
رضوی
जवानों को इमाम अली (अ) की वसीयतें
इस लेख की सनद नहजुल बलाग़ा का 31 वा पत्र है। सैयद रज़ी के कथन के अनुसार सिफ़्फ़ीन से वापसी पर हाज़रीन नाम की जगह पर आप ने यह पत्र अपने पुत्र इमाम हसन (अ) को लिखा है। हज़रत अली (अ) ने इस पत्र के ज़रिये से जो ज़ाहिर में तो इमाम हसन (अ) के लिये है, मगर वास्तव में सत्य की तलाश करने वाले सारे जवानों को इसमें संबोधित किया गया है। हम इस लेख में उसके केवल कुछ बुनियादी उसूलों का वर्णन करेगें।
तक़वा और पाक दामनी
इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं
واعلم يابنی ان احب ما انت آخذ به الِِی من وصِتی تقوِِ ی الله
बेटा जान लो कि मेरे नज़दीक सबसे ज़्यादा प्रिय चीज़ इस वसीयत नामे में अल्लाह का तक़वा है तुम उसे अपनाये रहो।
जवानों के लिये तक़वे का महत्व उस समय स्पष्ट होता है कि जब जवानी की तमन्नाओं, अहसासात और चाहतों को केन्द्रित किया जाये। वह जवान जिसे जिन्सी ख़्वाहिशें, ख़्यालात और तेज़ अहसासात के तूफ़ानों का सामना करना पड़ता है ऐसे जवान के लिये तक़वा एक मज़बूत क़िले की तरह है जो दुश्मन के हमलों से उसकी सुरक्षा करता है या तक़वा एक ऐसी ढाल की तरह है जो उसके शरीर को शैतान के ज़हर में बुझे हुए तीरों से सुरक्षित रखता है।
फ़रमाते हैं:
اعلموا عباد الله ان التقوی دارحصن عزيز
ऐ अल्लाह के बंदों जान लो कि तक़वा एक कभी न गिरने वाला क़िला है।
शहीद मुतहहरी फ़रमाते हैं: यह ख़्याल नही करना चाहिये कि तक़वा नमाज़ रोज़े की तरह दीन के मुख़तस्सात में से है बल्कि यह इंसानियत के लिये अनिवार्य है। इंसान अगर चाहता है कि जानवरों और जंगलों की ज़िन्दगी से निजात हासिल करे तो वह मजबूर है कि तक़वा इख़्तियार करे।
जवान हमेशा दो राहे पर होता है दो अलग अलग शक्तियाँ उसे अपनी ओर ख़ैचती हैं एक ओर तो उसका अख़लाक़ी और इलाही ज़मीर होता है जो उसे नेकियों को ओर आकर्षित करता है दूसरी ओर शैतानी ख़्वाहिशें, नफ़्से अम्मारा और शैतानी वसवसे उसे काम वासना की ओर दावत देती हैं। अक़्ल व वासना, नेकी व बुराई, पवित्रता व अपवित्रता इस जंग और कशमकश में वही जवान सफल हो सकता है जो ईमान और तक़वा के हथियार से लैस हो।
यही तक़वा था कि हज़रत युसुफ़ (अ) मज़बूत इरादे के साथ अल्लाह की ओर से होने वाली परिक्षा में सफल हुए और बुलंद मरतबे तक पहुचे। क़ुरआने करीम हज़रत युसुफ़ (अ) की सफ़लता की कुँजी दो चीज़ों को क़रार देता है एक, तक़वा और दूसरे सब्र। सूरए युसुफ़ की 90वीं आयत में इरशाद होता है :
انه منِِ يتق وِِ يصِبر فان الله لا ِِ يضِِيع اجر المحسنِِين
जो कोई तक़वा इख़्तियार करे और सब्र से काम ले तो अल्लाह तआला नेक कर्म करने वालों के पुन्य को बर्बाद नही करता।
इरादे की दृढ़ता
बहुत से जवान इरादे की कमज़ोरी और फ़ैसला न करने की सलाहियत की शिकायत करते हैं कहते हैं कि हमने बुरी आदत को छोड़ देने का फ़ैसला किया लेकिन उसमें सफल नही हुए इमाम अली (अ) की नज़र में तक़वा इरादे का मज़बूत होना, नफ़्स पर कंटरोल, बुरी आदात और गुनाहों के छोड़े देने का बुनियादी कारण हो सकता है आप फ़रमाते हैं जान लो कि ग़लतियाँ और पाप उस बिगड़े हुए घोड़े की तरह हैं जिसकी लगाम ढीली हो और गुनाह गार (पापी) उस पर सवार हो यह उन्हे नर्क की गहराईयों में गिरा देगा और तक़वा उस आरामदेह सवारी की तरह है जिसका मालिक उस पर सवार है उसकी लगाम उसके हाथ में है और यह सवारी उसको स्वर्ग की ओर ले जायेगी।
ध्यान रहना चाहिये कि यह काम होने वाला है मुम्किन (संभव) है। जो लोग इस वादी में क़दम रखते हैं अल्लाह तआला की इनायतें और कृपा उनके शामिले हाल हो जाती हैं जैसा कि सूरए अनकबूत की 69 वीं आयत में इरशाद है:
والذِين جاهدوا فِينا لنهدِِ ينهم سبلنا
और वह लोग जो हमारी राह में कोशिश करते हैं हम यक़ीनन और ज़रूर उनको अपने रास्तों की तरफ़ हिदायत (मार्गदर्शन) करेगें।
2. जवानी की फ़ुरसत
बेशक सफ़लता के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक फ़ुर्सत और अवकाश के क्षणों से सही और उसूली फ़ायदा उठाना है। जवानी का जम़ाना इस फ़ुरसत के ऐतेबार से बहुत महत्व रखता है। मअनवी और जिस्मानी शक्तियाँ वह महान और नायाब तोहफ़े हैं जो अल्लाह तआला ने जवान नस्ल को दिये है। यही कारण है कि धर्म गुरुओं ने हमेशा जवानी को ग़नीमत समझने की ओर ध्यान दिलाया और ताकीद की है। इस बारे में इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं
بادر الفرصه قبل ان تکون غصه ۴
इसके पहले कि फ़ुरसत और मौक़ा तुम्हारे हाथ से निकल जाए और ग़म व दुख का कारण बने उसको ग़नीमत जानो।
सूरए क़सस आयत 77 वीं आयत के अनुसार
لا تنس نصِِيبک من الدنِِيا
(दुनिया में होने वाले अपने हिस्से को भूल मत जाना) की तफ़सीर में फ़रमाते हैं कि
لا ننس صحتک و قوتک و فراغک و شبابک و نشاطک ان تطلب بها الآخره
अपनी सेहत, शक्ती, अवकाश, जवानी और निशात को भूल न जाना और उनसे अपनी आख़िरत के लिये फ़ायदा उठाओ। जो लोग अपनी जवानी से सही फ़ायदा नही उठाते। इमाम (अ) उनके बारे में फ़रमाते हैं:
उन्होने बदन की सलामती के दिनों में कोई चीज़ जमा नही की, अपनी ज़िन्दगी के आरम्भिक क्षणों से इबरत हासिल नही किया, क्या जो जवान है उसको बुढ़ापे के अलावा किसी और चीज़ का इंतेजार है?
जवानी के बारे में सवाल
जवानी और निशात अल्लाह की अज़ीम नेमत है जिसके बारे में क़यामत के रोज़ पूछा जायेगा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) से एक हदीस है आप फ़रमाते हैं:
क़यामत के दिन कोई शख़्स एक क़दम नही उठायेगा मगर उससे चार सवाल पूछे जायेगें:
- उसकी उम्र के बारे में कि कैसे और कहाँ गुज़ारी?
- जवानी के बारे में कि उसका क्या अँजाम किया?
- माल व दौलत के बारे में कि कहाँ से हासिल की और कहाँ कहाँ ख़र्च किया?
- अहले बैत (अ) की मुहब्बत और दोस्ती के बारे में सवाल होगा?
यह जो आँ हज़रत (स) ने उम्र के अलावा जवानी का ख़ास तौर पर ज़िक्र फ़रमाया है उससे ज़वानी की क़द्र व क़ीमत मालूम होती है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं:
شِِياءان لا ِِ يعرف فضلهما الامن فقدهما الشباب والعافِِيه
इंसान दो चीज़ों की क़द्र व मंज़ेलत नही जानता मगर यह कि उनको खो दे, एक जवानी और दूसरे तंदरुस्ती।
3. ख़ुदसाज़ी (स्वयंसुधार)
ख़ुद को सँवारने का बेहतरीन ज़माना जवानी का दौर है। इमाम अली (अ) अपने बेटे इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं:
انما قلب الحدث کالارض الخالِِيه ما القِِى فِِيها من شِِي قبلته فبادرتک بالادب قبل انِِ يقسوا قلبک و ِِ يشتعل لِِيک
नौजवान का दिल ख़ाली ज़मीन की तरह होता है जो उसमें बोया जाये वह ज़मीन उसे क़बूल कर लेती है इसलिय इसके पहले कि तुम्हारा दिल सख़्त हो जाये और तेरी सोच कहीं बट जाये मैंने तुम्हारी शिक्षा और प्रशिक्षण में जल्दी कर दी है।
नापसंदीदा आदतें जवानी में चूँकि उसकी जड़े मज़बूत नही होतीं इसलिये उनसे लड़ना आसान होता है। इमाम ख़ुमैनी फ़रमाते हैं जिहादे अकबर (बड़ा जिहाद) वह जिहाद है जिसका मुक़ाबला इंसान अपने बिगड़े हुए नफ़्स के साथ करता है। आप जवानों को अभी से जिहाद शुरु कर देना चाहिये कहीँ ऐसा न हो कि जवानी की शक्तियाँ तुम बर्बाद कर बैठो।
जैसे जैसे यह शक्तियाँ बर्बाद होती जायेंगी वैसे वैसे बुरे सदव्यवहार की जड़ें इंसान में मज़बूत और जिहाद मुश्किल होता जाता है। एक जवान इस जिहाद में बहुत जल्द कामयाब हो सकता है जबकि बूढ़े इंसान को इतनी जल्दी कामयाबी नही होती।
ऐसा न होने देना कि अपना सुधार को जवानी की जगह बुढ़ापे में करो।
अमीरुल मोमिनीन (अ) इरशाद फ़रमाते हैं:
غالب الشهوه قبل قوت ضراوتها فانها ان قوِِ يت ملکتک و استفادتک و لم لقدر علِِى مقاومتها
इससे पहले कि काम वासना और नफ़सानी ख़्वाहिशात जुरात व तंदरुस्ती की आदत अपना लें उनसे मुक़ाबला करो क्योकि अगर ख़्वाहिशात बिगड़ जायें तो तुम पर हुक्मरानी करेगीं फिर जहाँ चाहें तुम्हे ले जायेगीं। यहाँ तक कि तुम में मुक़ाबले की सलाहियत ख़त्म हो जायेगी।
4. सम्मानित व प्रतिष्ठित स्वभाव
अपने ख़त में अमीरुल मोमिनीन (अ) जवानों को एक और वसीयत करते हैं:
اکرم نفسک عن کل دنِِيه و ان ساقتک الِِى الرغاءب فانک لن تعتاض بما تبذل من نفسک عوضا و لا تکن عبد غِِيرک و قد جعلک الله اجرا
हर पस्ती से अपने आप को बाला रख। (अपने वक़ार का भरपूर ख़्याल रख) अगरचे यह पस्तियाँ तुझे तेरे मक़सद तक पहुचा दें, अगर तूने इस राह में अपनी इज़्ज़त व प्रतिष्ठा खो दी तो उसका बदला तुझे नही मिल पायेगा और ग़ैर का गुलाम न बन क्योकि अल्लाह तआला ने तुझे आज़ाद पैदा किया है। इज़्ज़ते नफ़्स इंसान की बुनियादी ज़रुरतों में से है।
उसका बीज अल्लाह तआला ने इंसान की फितरत में बोया है, उसकी हिफ़ाज़त, सुरक्षा और उन्नती व प्रगति की आवश्यकता है। फ़िरऔन के बारे में क़ुरआने करीम में इरशाद है:
فاستخف قومه فاطاعوه انهم کانوا فاسقِِين
(सूरए ज़ुख़रुफ़ आयत 54)
फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को ज़लील किया इसलिये उन्होने उसकी आज्ञा का पालन किया क्योकि वह लोग फ़ासिक़ थे।
इज़्ज़त और वक़ार के लिये निम्नलिखित कार्य आनिवार्य हैं:
विभिन्न कार्यों में से एक पाप और गुनाह है जो इंसान की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुचाता है अत पाप और गुनाह से बचना नफ़्स की शराफ़त और वक़ार एँव सम्मान का कारण बनता है इमाम (अ) फ़रमाते हैं:
من کرمت علِِيه نفسه لم ِِ ياهنها بالمعصِِيه
जो अपने लिये सम्मान व प्रतिष्ठा का क़ायल हो ख़ुद को पाप और गुनाह के ज़रिये ज़लील नही करता।
ब. बेनियाज़ी
दूसरों की चीज़ों पर नज़र रखना और मजबूरी के अलावा दूसरों से मदद माँगना इंसान की प्रतिष्ठा और सम्मान को बर्बाद कर देता है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं:
المسءله طوق المذله تسلب العز يز عزه والحسب حسبه۱۴
लोगो से माँगना बेइज़्ज़ती का एक ऐसा तौक़ है जो इज़्ज़तदारों की इज़्ज़त और शरीफ़ ख़ानदान और वंश के इंसानों से उनके वंश की शराफ़त को छीन लेता है।
स. सही राय
इज़्ज़त व शराफ़ते नफ़्स का बहुत ज़्यादा ताअल्लुक़ इंसान की अपने बारे में राय से है जो कोई ख़ुद को कमज़ोर ज़ाहिर करता है लोग भी उसे ज़लील व पस्त समझते हैं इसलिये इमाम (अ) फ़रमाते हैं:
الرجل حِِيث اختار لنفسه ان صانها ارتفعت و ان ابتذلها اتضعت ۱۵
हर इंसान की इज़्ज़त उसकी अपने कार्यों पर आधारित है जो उसने इख़्तियार की है अगर अपने आपको पस्ती व ज़िल्लत से बचा के रखे तो बुलंदियाँ तय करता है और ख़ुद को ज़लील करे तो पस्तियों और ज़िल्लतों का शिकार हो जाता है।
द. घटिया बातों और कार्यों से बचने का उपाय
अगर कोई चाहता है कि उसका वक़ार और इज़्ज़ते नफ़्स सुरक्षित रहे तो उसे चाहिये कि हर ऐसी बात और काम से जो कमज़ोरी का कारण बने उस से बचे। इसीलिये इस्लाम ने चापलूसी, ज़माने से शिकायत, अपनी मुश्किलों के लोगों से बयान करने, बड़े बड़े दावे करना, यहाँ तक कि बे मौक़ा आवभगत, सत्कार, तवाज़ो और इंकेसारी ज़ाहिर करने से मना किया है इमाम अली (अ) फ़रमाते है:
کثره الثنا ملق ِِ يحدث الزهوريدنِِي من العزه ۱۶
हद से ज़्यादा प्रशंसा और तारीफ़ चापलूसी है उससे एक तरफ़ तो इंसान में घमंड पैदा हो जाता है जबकि दूसरी तरफ़ इज़्ज़ते नफ़्स से दूर हो जाता है।
इसी तरह से इमाम (अ) फ़रमाते हैं:
رضِِي بالذل من کشف ضره لغِِيره ۱۷
जो शख़्स अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलों को दूसरों से बयान करता है वह अस्ल में अपनी बेइज़्ज़ती व अपमान पर राज़ी हो जाता है।
5. ज़मीर की आवाज़
इमाम (अ) अपने बेटे से फ़रमाते हैं:
ِِ يابنِِي اجعل نفسک مِِيزانا فِِيما بِِينک و بِِين غِِيرک
बेटा, ख़ुद को अपने और दूसरों के बीच फ़ैसले का मेयार क़रार दो, अगर समाज में सब लोग ज़मीर की पुकार के साथ एक दूसरे से रिश्ता रखें, एक दूसरे के हक़, फ़ायदे और हैसियत का आदर करें तो समाज के संबंधों में दृढ़ता, मज़बूती, शाँति और अम्न पैदा हो जायेगा। एक हदीस में आया है कि एक शख़्स पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पास आया और कहा ऐ अल्लाह के नबी मैं अपनी तमाम शरई ज़िम्मेदारियों को पूरा करता हूँ लेकिन एक गुनाह है जो मुझ से छूट नही पा रहा है वह नाज़ायज़ ताअल्लुक़ है। यह बात सुन कर सारे सहाबी बहुत ग़ुस्से में आ गये लेकिन आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया आप लोग इसको कुछ न कहें मैं ख़ुद इससे बात करता हूँ उसके बाद आपने फ़रमाया:ऐ शख़्स क्या तेरी माँ बहन या कोई इज़्ज़त व सम्मान है या नही? उसने कहा हाँ या रसूलल्लाह, आपने फ़रमाया तू यह चाहता है कि लोग भी तेरे घर की इज़्ज़त से ऐसे ही ताअल्लुक़ रखें? उसने कहा हरगिज़ नही तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया तो तू ख़ुद में कैसे हिम्मत पैदा करता है कि इस तरह का पाप करे? उस शख़्स ने सर झुका लिया और कहा ऐ अल्लाह के नबी आज के बाद मैं वादा करता हूँ कि यह पाप नही करूगा।19
इमाम सज्जाद (अ) फ़रमाते हैं लोगों का यह हक़ है कि उनको परेशान करने और तकलीफ़ पहुचाने से बचो और उनके लिये वही पसंद करों जो अपने लिये पसंद करते हो और वही जो अपने लिये नापसंद करते हो उनके लिये भी नापसंद करो। क़ुरआने हकीम में जो नफ़्से लव्वामा की सौगंध ख़ाई गई है यह वही इंसानी ज़मीर की आवाज़ है इरशाद होता है:
لا اقمس بِِيوم القِِيامه و لا بالنفس اللوامه (القِِيامه ۱-۲ )
क़सम है क़यामत के दिन की और क़सम है उस नफ़्स की जो इंसान को गुनाह और पाप करने पर सख़्ती से रोकता और बुरा भला कहता है।
4. अनुभव प्राप्त करना
इमाम अली (अ) इसी वसीयत नामे में अपने बेटे इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं:
اعرض علِِيه اخبار الماضِِين و ذکره بما اصاب من کان قبلک من الاولِِين و سرفِِي دِِ ياربم و آثار بم فانظر فِِيما فعلوا و عما انتقلوا وِِ اين حلوا و نزلو
अपने दिल के सामने पिछले लोगो की ख़बरें और उनके हालात को रखो जो कुछ उन पर तुम से पहले गुज़र चुका है उसको याद करो उनकी क़ब्रों और वीरानों, खंडरों को देखो कि उन्होने क्या किया। वह लोग कहाँ से आये और कहाँ चले गये और कहाँ हैं।
एक जवान को चाहिये कि वह इतिहास को पढ़े और अपने लिये उनके अनुभवों को जमा करे क्योकि
- जवान क्योकि कम उम्र होता है उसका ज़हन कच्चा और अनुभव से ख़ाली होता है उसने ज़माने के सर्द व गर्म नही देखे होते और ज़िन्दगी की मुश्किलों का सामना नही किया होता। यही कारण है कि किसी समय एक जवान का दिली सुकून तबाह हो जाता है और वह मायूसी या उसके बर ख़िलाफ़ तबीयत की सख़्ती और तेज़ी की शिकार हो जाता है।
- ख़्यालात और वहम जवानी के ज़माने की विशेषताएँ हैं जो कभी तो जवान को वास्तविकता से भी दूर कर देते हैं जबकि अनुभव इंसान के वहम के पर्दों का फाड़ वास्तविक ज़िन्दगी में ले आता है। इमाम (अ) फ़रमाते हैं:
التجارب علم مستفاد ۲۰
इँसानी अनुभव एक फ़ायदेमंद ज्ञान होता है।
- बावजूद इसके कि जवान की इल्मी सलाहियत और क़ाबिलियत इसी तरह विभिन्न फ़न और महारतें सीखने की सलाहियत बहुत ज़्यादा होती है लेकिन ज़िन्दगी का अनुभव न होने के कारण बिना सोचे फ़ैसले करता है और यह चीज़ उसको दूसरों के जाल में फाँस देती है। इमाम फ़रमाते हैं:
من قلت تجرِِ يته خدع۲۱
जिसके पास अनुभव कम हो वह धोखा खा जाता है। इमाम (अ) फ़रमाते हैं: अनुभवी इंसानों के साथ रहो क्योकि उन्होने अपनी क़ीमती चीज़ अनुभव को अपनी सबसे क़ीमती चीज़ यानी उम्र को दे कर हासिल किया है जबकि तुम इस क़ीमती चीज़ को बहुत कम क़ीमत पर आसानी से हासिल कर सकते हो।22
अनुभव प्राप्त करने का एक बहुत बड़ ज़रिया पिछली क़ौमों के इतिहास का अध्धयन करना है। इतिहास, भूतकाल और वर्तमान काल के बीच में संबंध स्थापित करता है बल्कि भविष्यकाल के लिये रास्ते के दिये की तरह होता है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं पिछली सदियों के इतिहास में तुम्हारे लिये बहुत बड़ी बड़ी इबरत पाई जाती है।23
7. समाजी रहन सहन और दोस्ती
इसमें शक नही है कि दोस्ती के बाक़ी रहने के लिये उसकी सीमा और समाजी रहन सहन का ख़्याल रखा जाये। दोस्त बनाना आसान और दोस्ती निभाना मुश्किल है।
अमीरुलमोमिनीन (अ) इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं: सबसे कमज़ोर इंसान वह है जो दोस्त न बना सके और उससे भी कमज़ोर वह है जो दोस्त को खो दे।24
कुछ जवान दोस्ताना संबंधों के बाक़ी न रह पाने या टूट जाने की शिकायत करते हैं। इस सिलसिले में अगर हम इमाम अली (अ) की नसीहतों पर अमल करें तो यह मुश्किल हल हो सकती है।
इमाम (अ) की हदीस में महत्वपूर्ण नुक्ते यह हैं:
अ. दोस्ती में संतुलन आवश्यक है:
जवानी के दिनों में अकसर देखने में आता है कि जवान दोस्ती की सीमा को पार कर जाते हैं और इसकी दलील जवानी के ज़माने के अहसासात हैं। कुछ जवान दोस्ती में हद से ज़्यादा मुहब्बत का इज़हार करते हैं जबकि जुदाई के दिनों में उसके बर ख़िलाफ़ शदीद विरोध और दुश्मनी का मुज़ाहेरा करते हैं यहाँ तक कि कुछ तो ख़तरनाक काम तक कर डालते हैं।
हज़रत फ़रमाते हैं:अपने दोस्त से हद में रहते हुए दोस्ती और मुहब्बत का इज़हार करो हो सकता है वह किसी दिन तुम्हारा दुश्मन बन जाये और इसी तरह से उस पर नफ़रत और ग़ुस्सा करते समय नर्मी और मुहब्बत का मुज़ाहेरा करो चूँकि मुम्किन है कि वह तुम्हारा दोस्त बन जाये।35
इस पत्र में इमाम (अ) फ़रमाते हैं अगर तुम चाहते हो कि अपने भाई से ताअल्लुक़ात ख़त्म कर लो तो कोई एक रास्ता उस के लिये ज़रुर छोड़ दो ताकि अगर किसी दिन वह लौटना चाहे तो लौट सके।
शेख सादी इस बारे में कहते हैं कि अपने हर राज़ को अपने दोस्त के सामने बयान न करों क्या मालूम कि एक दिन वह तुम्हारा दुश्मन बन जाये और तुम्हे वह नुक़सान पहुचाएँ जो दुश्मन भी नही पहुता सकता जबकि यह भी मुम्किन है कि किसी समय दोबारा तुम से फिर से दोस्ती हो जाये।36
ब. जवाब में मुहब्बत का इज़हार
दोस्ती और मुहब्बत की बुनियाद एक दूसरे से मुहब्बत और दोस्ती के इज़हार पर है। अगर दोनों में से एक तो दोस्ती चाहता हो जबकि दूसरा ऐसा न चाहता हो तो उसका नतीजा बेइज़्ज़ती के अलावा कुछ नही हो सकता।
इसी लिये अमीरुल मोमिनीन (अ) अपने इस पत्र में इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं:
لا ترغبن فِِيمن زهد عنک
जो तुम से संबंध नही रखना चाहता उससे मुहब्बत का इज़हार न करो।
स. दोस्ताना संबंधों की सुरक्षा
इमाम अली (अ) दोस्ताना संबंधों की रक्षा के बारे ज़ोर देते हैं और उसके कारणों को बयान फ़रमाते हैं जो दोस्ती की मज़बूती प्रदान करते हैं। फ़रमाते हैं अगर तुम्हारा दोस्त तुम से दूरी इख़्तियार करे तो तुम्हे चाहिये कि तुम उसे तोहफ़े दो और जब वह दूर हो तो तुम नज़दीक हो जाओ जब वह सख़्ती करे तो तुम नर्मी से काम लो। जब वह ग़लती या पाप करे और बहाना बनाए तो उसकी बात को मान लो।
कुछ लोग चूँकि बहुत छोटे दिल के होते हैं और अहसान का नतीजे दूसरे को नीचा दिखाना और ख़ुद को अक़्लमंद ख़्याल करते हैं इसलिये आप इसके आगे इरशाद फ़रमाते हैं इन सारे मौक़ों की नज़ाकतों को पहचानो और बहुत अहतियात से काम लो कि जो कुछ कहा गया है उसको केवल उसके सही समय पर अँजाम दो। इसी तरह उस शख़्स के बारे में अँजाम न दो जो अहमियत नही रखता।
इमाम (अ) इसी तरह एक और नसीहत इरशाद फ़रमाते हैं:
अपने दोस्त के साथ ख़ुलूस के साथ भलाई करो चाहे यह बात उसको पसंद आये या न आये।
हवाले:
1. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 156
2. दह गुफ़तार पेज 14
3. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 16
4. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 31
5. बिहारुल अनवार जिल्द 68 पेज 177
6. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 82
7. बिहारुल अनवार जिल्द 74 पेज 160
8. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 183
9. नहजुल बलाग़ा ख़त 31
10. आईने इंक़ेलाबे इस्लामी पेज 203
11. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 392
12. नहजुल बलाग़ा ख़त 31
13. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 5 पेज 357
14.ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 2 पेज 145
15. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 2 पेज 77
16. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 595
17. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 4 पेज 93
18. नहजुल बलाग़ा ख़त 31
19. अख़लाक़ व तालीम व तरबीयत इस्लामी, लेखक ज़ैनुल आबेदीन क़ुरबानी पेज 274
20. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 1 पेज 260
21. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 5 पेज 185
22. शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिल हदीद जिल्द 20 पेज 335
23. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 181
24. बिहारुल अनवार जिल्द 74 पेज 278
25. नहजुल बलाग़ा कलिमाते क़िसार 260
26. गुलिस्ताने सादी 8 वा अध्याय
प्रतिरोध से हथियार डालने की मांग हैरान करने वाली है
ओमान के मुफ्ती ए आज़म शेख़ अहमद अलखलीली ने फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों से हथियार छोड़ने की मांग पर आश्चर्य जताया है उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दुश्मन के अत्याचार और घेराबंदी के बावजूद फिलिस्तीनी लोगों को प्रतिरोध नहीं छोड़ना चाहिए।
ओमान के मुफ्ती-ए-आज़म शेख़ अहमद अल-खलीली ने मुक़ावमती गुटों से हथियार छोड़ने की मांग पर सख़्त हैरानी जताई है उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ज़ालिम दुश्मन और घेराबंदी के बावजूद, फ़िलिस्तीनी जनता को अपनी मुक़ावमत जारी रखनी चाहिए।
मुफ्ती खलीली ने सोशल मीडिया पर एक संदेश में कहा,मुझे ताज्जुब है कि कुछ लोग ग़ाज़ा और अन्य इलाकों में ज़ायोनी शासन से लड़ रहे मुजाहिदीन से यह मांग कर रहे हैं कि वे अपने हथियार डाल दें, जबकि ग़ाज़ा के लोग चारों तरफ से दुश्मन के घेरे में हैं उन पर बमबारी हो रही है और उन्हें खाने-पीने और दवाइयों से भी महरूम किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि मुक़ावमत से हथियार छीन लेना किसी के भी हित में नहीं है।मुफ्ती-ए-आज़म ने आगे कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता को क़ुरआन की शिक्षाओं के अनुसार मौजूदा हालात में सब्र और दुश्मन के सामने डटे रहने की ज़रूरत है।
ओमान के मुफ्ती-ए-आज़म शेख अहमद अलखलीली ने फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों से हथियार छोड़ने की मांग पर आश्चर्य जताया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दुश्मन के अत्याचार और घेराबंदी के बावजूद, फिलिस्तीनी लोगों को प्रतिरोध नहीं छोड़ना चाहिए।
पत्रकार जिहाद ए तबईन की अग्रिम पंक्ति का योद्धा होता हैं: आयतुल्लाह सईदी
पत्रकार दिवस के अवसर पर अपने संदेश में, हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की दरगाह के मुतावल्ली और क़ुम के इमाम जुमा आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद सईदी ने सभी प्रतिबद्ध और मेहनती पत्रकारों को बधाई दी और कहा कि पत्रकार जिहाद ए तबईन के अग्रिम पंक्ति का योद्धा होता हैं।
पत्रकार दिवस के अवसर पर अपने संदेश में, हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की दरगाह के मुतावल्ली और क़ुम के इमाम जुमा आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद सईदी ने सभी प्रतिबद्ध और मेहनती पत्रकारों को बधाई दी और कहा कि पत्रकार जिहाद ए तबईन के अग्रिम पंक्ति का योद्धा होता हैं।
उन्होंने कहा कि पत्रकार सत्य के प्रवक्ता, दूरदर्शी, बुद्धिमान और दृढ़निश्चयी व्यक्ति होते हैं जो अहंकारी शासन का चेहरा उजागर करते हैं। तथ्यों को जनता तक पहुँचाने में उनकी कलम और कदम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आयतुल्लाह सईदी ने कहा कि आज, जब इस्लाम और इस्लामी व्यवस्था के दुश्मन अपनी पूरी ताकत से तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने और मीडिया के माध्यम से मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ने में लगे हैं, पत्रकारों की ज़िम्मेदारियाँ कई गुना बढ़ जाती हैं। ये पत्रकार इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता द्वारा वर्णित "जिहाद ए तबईन" के अग्रिम मोर्चे पर खड़े हैं।
उन्होंने शहीद महमूद सरीमी और ग़ज़्ज़ा में पत्रकारिता के उत्पीड़ित शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि देश के क्रांतिकारी और जागरूक पत्रकार, दुश्मन के मीडिया आक्रमण को विफल करके, इस्लामी क्रांति के फल और आशा का संदेश दुनिया तक पहुँचा रहे हैं।
अंत में, आयतुल्लाह सईदी ने सभी पत्रकारों के स्वास्थ्य, समृद्धि और उनके मिशन को पूरा करने में और अधिक सफलता के लिए दुआ की।
जिहाद-ए-तबईन, हुसैनी आंदोलन की बक़ा का राज़
हुज्जतुल इस्लाम समद दूख्त ने कहा: कर्बला की वास्तविकता का स्थायित्व उसकी व्याख्या और स्पष्टीकरण पर निर्भर करता है; ठीक उसी तरह जैसे इमाम सज्जाद (अ) और हज़रत ज़ैनब (स) ने जिहाद-ए-तबईन के ज़रिए आशूरा आंदोलन को यज़ीद के पक्ष में ज़ब्त होने से बचाया था।
ईरान के तबरेज़ के हसनलू स्थित कदखुदा मस्जिद में शहीदों के अरबईन के अवसर पर एक सभा आयोजित की गई थी। जिसमें शहीदों की माताओं, छात्राओं और महिलाओं ने भाग लिया। सभा को आज़रशहर सिपाह में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि कार्यालय के प्रमुख, हुज्जतुल इस्लाम समद दूख्त ने संबोधित किया।
उन्होंने कहा: दुनिया में किसी भी वास्तविकता और आंदोलन का अस्तित्व उसकी सही व्याख्या और स्पष्टीकरण पर निर्भर करता है।
हुज्जतुल इस्लाम समद दूख्त ने कहा: कर्बला की घटना एक दिन में घटित हुई, लेकिन उसका संदेश और परंपरा चौदह शताब्दियों से चली आ रही है, और यह इमाम सज्जाद (अ) और हज़रत ज़ैनब (स) के व्याख्या के जिहाद का आशीर्वाद है कि कर्बला का संदेश यज़ीद के पक्ष में नहीं बदला।
शोहदा ए इक़्तेदार को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उन्होंने हाल के 12 दिवसीय युद्ध के कारणों और दुश्मन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कहा: इस युद्ध में दुश्मन का रणनीतिक लक्ष्य ईरान को मजबूर करके उसे अपने नियंत्रण में लाना था, और उसका तात्कालिक और क्रियात्मक लक्ष्य परमाणु ऊर्जा, मिसाइल शक्ति, क्षेत्रीय प्रभाव, जनता और सरकार के बीच की खाई और अंततः देश के विभाजन जैसे शक्ति के तत्वों को निशाना बनाना था, लेकिन अल्लाह के करम से, वह अपने उद्देश्यों में विफल रहा।
हुज्जतुल इस्लाम समद दूख्त ने आगे कहा: हाल के युद्ध में, दुश्मन ने विशेष रूप से राष्ट्रों, युवाओं और महिलाओं की उपस्थिति पर भरोसा किया था, लेकिन राष्ट्रीय जागरूकता, एकता और एकजुटता के कारण, दुश्मन की यह योजना भी विफल हो गई।
ग़ज़्ज़ा में नरसंहार को लेकर भारत सरकार से इज़राइल की खुली निंदा की मांग
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि दमनकारी इज़राइल भूख-प्यास के माध्यम से ग़ज़्ज़ा के लोगों को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है। ग़ज़्ज़ा के उत्पीड़ित लोगों के लिए आवाज़ उठाने वाले पोस्टर दिखाने के साथ भारत सरकार से इज़राइल की खुली निंदा की मांग की गई।
इंडिया फिलीस्टीन सॉलिडेरिटी फोरम और फिलीस्टीन एकजुटता ग्रुप (नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स) ने मंगलवार की दोपहर मराठी पत्रकार सिंह में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने गाजा में हो रही हत्या और खाने-पीने की वस्तुओं की भारी कमी पर इजराइल की सख्ती से निंदा की। साथ ही, भारत सरकार से उन्होंने अपना पुराना रुख दोहराने की मांग की।।
इस अवसर पर गाजा की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा गया कि वहाँ की स्थिति अत्यंत भयावह है और दमनकारी इज़राइल भूख-प्यास के माध्यम से गाजा के लोगों को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है। प्रेस वार्ता के दौरान सांसदों को एक ज्ञापन भी दिया गया, जिसमें यही माँग दोहराई गई कि वे गाजा पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें और भारत सरकार पर फिलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए दबाव डालें। चूँकि फिलिस्तीन को लेकर भारत की नीति पहले दिन से ही स्पष्ट रही है, दुर्भाग्य से वर्तमान परिस्थितियों में सरकार का रवैया बदल गया है। मराठी पत्रकार सिंह में आयोजित प्रेस वार्ता को किसान नेताओं डॉ. सुनील, डॉ. सलीम खान (जमात-ए-इस्लामी), फिरोज मेथी बोरवाला (भारत फिलिस्तीन एकजुटता मंच), मेराज सिद्दीकी (समाजवादी पार्टी), एमए खालिद और गादी एसएलआर (डॉ. यूसुफ मेहर अली सेंटर) ने संबोधित किया और हाथों में तख्तियाँ लेकर फिलिस्तीन और गाजा के उत्पीड़ित लोगों के लिए आवाज़ उठाई।
ज्ञापन में मांग की गई है कि
(1) वह फिलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इजरायल द्वारा जारी नरसंहार, भुखमरी और नरसंहार की कड़ी निंदा करे;
(2) युद्धविराम और मानवीय सहायता की मांग में अग्रणी भूमिका निभाए और तत्काल एवं स्थायी युद्धविराम की मांग करे। निर्बाध मानवीय सहायता, चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा और नागरिकों के लिए सुविधाओं और राहत की तत्काल बहाली; और अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों से अपहृत 21 मानवाधिकार रक्षकों की रिहाई, जिन्हें 'हनज़ला' जहाज से अगवा किया गया था;
(3) भारत की विदेश नीति और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और भारत की कूटनीतिक परंपरा के अनुसार फिलिस्तीन राज्य की संप्रभुता के लिए भारत के समर्थन को दोहराए।
ग़ज़्ज़ा पर इज़राईली बर्बरता पर मुस्लिम शासकों की चुप्पी समझ से परे हैः
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुज्जतुल्लाह सरवरी ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा में इस्राइली बर्बरता, हत्याकांड और नरसंहार सिर्फ फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि मानवता के ख़िलाफ़ एक गंभीर अपराध है और इस्लामी दुनिया की चुप्पी इस दर्दनाक त्रासदी को और गहरा कर रही है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुज्जतुल्लाह सरवरी ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा में इस्राइली बर्बरता, हत्याकांड और नरसंहार सिर्फ फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि मानवता के ख़िलाफ़ एक गंभीर अपराध है, और इस्लामी दुनिया की चुप्पी इस दर्दनाक त्रासदी को और गहरा कर रही है।
उन्होंने कहा कि आज ग़ज़्ज़ा में भूख, बीमारी और अकाल की जो भयावह स्थिति है वह इतिहास की सबसे बुरी मानवीय तबाहियों में से एक है। यूनिसेफ के अनुसार, पाँच लाख से अधिक लोग भुखमरी के गंभीर ख़तरे में हैं, जिनमें सत्तर हज़ार लोग मौत के कगार पर हैं।
उन्होंने अफ़सोस जताया कि इस्लामी सरकारें और मुस्लिम जनप्रतिनिधि इस समय लापरवाही की मिसाल बने हुए हैं। बच्चे, महिलाएँ और मासूम लोग सिर्फ इसलिए शहीद हो रहे हैं क्योंकि वे सच्चाई पर हैं लेकिन दुनिया चुप है।
हुज्जतुल इस्लाम सरवरी ने कहा कि इस्राइली सेना जानबूझकर खाद्य केंद्रों को निशाना बना रही है, ताकि बच्चे और बीमार भूख से मर जाएँ। अगर आज पैग़म्बर इस्लाम (स) या हज़रत ईसा (अ) हमसे पूछें कि तुमने मजलूमों के लिए क्या किया? तो क्या जवाब देंगे?
उन्होंने कहा कि क़ुरआन मजीद ने यहूदियों की क्रूरता और फ़साद को स्पष्ट किया है और मुसलमानों को चेतावनी दी है। आज उम्मत-ए-मुस्लिमा पर फ़र्ज़ है कि ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज उठाए, वरना इतिहास उन्हें माफ़ नहीं करेगा।
अरबईन हुसैनी: उत्पीड़न के विरुद्ध वैश्विक विरोध की आवाज़
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मेहदी इकबाली ने कहा है कि अरबईन हुसैनी में उठी विरोध की आवाज़ वैश्विक अहंकार के विरुद्ध कमज़ोर और उत्पीड़ित राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व बन गई है। इस अवसर पर लगाए गए अमेरिका-विरोधी और ज़ायोनी-विरोधी नारे उत्पीड़ितों की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मेहदी इकबाली ने कहा है कि अरबाईन हुसैनी में उठी विरोध की आवाज़ वैश्विक अहंकार के विरुद्ध कमज़ोर और उत्पीड़ित राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व बन गई है। इस अवसर पर लगाए गए अमेरिका-विरोधी और ज़ायोनी-विरोधी नारे उत्पीड़ितों की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाते हैं।
उन्होंने कहा कि अरबईन केवल एक धार्मिक समागम नहीं है, बल्कि यह मानवीय और धार्मिक मूल्यों का नवीनीकरण, उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के विरुद्ध इमाम हुसैन के विद्रोह की स्मृति और शहीदों के बलिदान का फल है।
हुज्जतुल इस्लाम इकबाली के अनुसार, अरबईन का एक महत्वपूर्ण पहलू इस्लामी एकता को बढ़ावा देना है, जहाँ विभिन्न धर्मों और आस्थाओं के लोग, विशेष रूप से सुन्नी, ईसाई, यज़ीदी और अन्य राष्ट्रों के लोग, एकजुट होकर उत्पीड़न के विरुद्ध एक पंक्ति में खड़े होते हैं।
उन्होंने कहा कि अरबईन एक क़ौम व मिल्लत से परे एक समागम है जिसमें ईरान, इराक, पाकिस्तान, लेबनान और यूरोप सहित दुनिया भर के लाखों लोग भाग लेते हैं, जो इस्लामी दुनिया की सौम्य शक्ति का प्रकटीकरण है।
अरबईन के दौरान स्वतःस्फूर्त जनसेवाएँ बलिदान और भाईचारे की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करती हैं जो एक आदर्श इस्लामी समाज का प्रतिबिंब है।
हुज्जतुल इस्लाम इकबाली ने कहा कि अरबाईन आईएसआईएस और आतंकवाद के खिलाफ प्रतिरोध का भी प्रतीक है, जिसने इराक को हिंसा के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक में बदल दिया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अरबाईन न केवल इस्लाम विरोधी मीडिया के दुष्प्रचार से एक विराम है, बल्कि उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष, मुसलमानों की एकता और शुद्ध इस्लाम के जीवन का एक उज्ज्वल संदेश भी है।
अरबईन मार्च को ग्लोबलाइज़ करना ज़रूरी है
हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने अरबईन हुसैनी मार्च को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने के लिए मीडिया के साथ जुड़ना ज़रूरी समझा है और ग़ज़्ज़ा के उत्पीड़ितों की रक्षा के लिए इस महान धार्मिक समागम में "जिहाद-ए-तबईन" के कर्तव्य पर ज़ोर दिया है।
जैसे-जैसे अरबईन हुसैनी नज़दीक आ रहा है, इमाम हुसैन (अ) के चाहने वालों में प्रेम और ज्ञान के सागर से जुड़ने की चाहत बढ़ती जा रही है, और निस्संदेह, यह हज़रत सय्यद उश-शोहदा (अ) की मुक्ति की नाव की नेमतों में से एक है जो इंसान को समय के तूफ़ानों में उसकी मंज़िल तक पहुँचाती है।
"इस्लामिक रिसर्च सेंटर फॉर कल्चर एंड थॉट" के अकादमिक बोर्ड के सदस्य, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद मलिकज़ादा ने बताया कि अरबईन मार्च केवल एक धार्मिक अनुष्ठान या इबादत का एक बाहरी कार्य नहीं है, बल्कि एक महान आध्यात्मिक समागम है जो इमाम हुसैन (अ) के चाहने वालों के दिलों को आशूरा की वास्तविकता और उत्पीड़न से जोड़ता है और हर साल इस प्रतिज्ञा को नवीनीकृत करने का अवसर प्रदान करता है।
उन्होंने आगे कहा: इस महान और धन्य सुन्नत के संस्थापक अहले-बैत (अ) हैं, जिन्होंने कर्बला की घटना के बाद सीरिया से लौटकर इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की कब्रों पर जाकर शोक मनाया था। ऐतिहासिक रिवायतो के अनुसार, हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह का नाम भी अरबईन मार्च (माशाया) के आरंभकर्ताओं में आता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अरबईन हुसैनी की प्रभावशीलता और दक्षता का विभिन्न कोणों से विश्लेषण करना आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, अरबईन मार्च आधुनिक युग में शिया उम्माह की एकता और राजनीतिक शक्ति का प्रकटीकरण है, जो दुनिया के लोगों को इमाम हुसैन (अ) के जीवन और शैली पर शोध करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हालाँकि, यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि अरबईन और हमारे अन्य धार्मिक समारोह इस्लामी एकता को बढ़ावा देने के लिए हैं, और यही अहले-बैत (अ) और हमारे बुजुर्गों का जीवन और परंपरा भी रही है ताकि इस्लामी समाज में एकता और एकजुटता को मज़बूत किया जा सके।
हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय की व्याख्याता डॉ. सय्यदा फ़ातिमा सय्यद मुदलालकर ने कहा: एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अरबाईन मार्ग पर दुनिया के विभिन्न देशों से युवा पीढ़ी की बड़े पैमाने पर उपस्थिति धार्मिक अवधारणाओं को व्यक्त करने और इस्लामी क्रांति के संदेशों को उन तक पहुँचाने का एक अनूठा अवसर है, क्योंकि इनमें से अधिकांश युवाओं में इज़राइली अत्याचारों के प्रति गहरा जुनून है और वे अक्सर अपने देशों की इज़राइल विरोधी नीतियों से असंतुष्ट रहते हैं। इसलिए, यह तथ्य कि वे प्रतिरोध और क्रांति के विमर्श को इस क्षेत्र में एकमात्र सफल विमर्श मानते हैं, इस मुद्दे को उत्पीड़न के खिलाफ आगे बढ़ाने और दुनिया के उत्पीड़ितों, विशेष रूप से ग़ज़्ज़ा के लोगों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सिडनी में फिलिस्तीन समर्थकों का सबसे बड़ा जमावड़ा सभी को चौंका दिया
सिडनी के हार्बर ब्रिज पर फिलिस्तीन समर्थकों की रैली में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सभी अनुमानों और गणनाओं से कहीं अधिक थी।
सिडनी के हार्बर ब्रिज पर फिलिस्तीन समर्थकों की रैली में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सभी अनुमानों और गणनाओं से कहीं अधिक थी।
जब सिडनी में फिलिस्तीन समर्थकों की रैली का आह्वान किया गया, तो लोगों ने सोचा कि शायद ही कुछ लोग इतने साहसी होंगे जो सरकार पर इज़राइल पर दबाव डालने का आग्रह करें ताकि वह नरसंहार और खूनखराबा बंद कर दे लेकिन फिलिस्तीन के समर्थकों की भव्य उपस्थिति ने सभी गणनाओं को बदल दिया।
न्यू साउथ वेल्स पुलिस ने घोषणा की है की उनके प्रारंभिक अनुमान के अनुसार भीड़ की संख्या 90,000 थी। लेकिन रैली के आयोजकों के प्रवक्ता ने कहा कि पुलिस ने उन्हें सूचित किया है कि लगभग 100,000 लोग इसमें शामिल हुए थे लेकिन हमारे समूह के मैदानी सर्वेक्षण के अनुसार यह संख्या 300,000 के करीब है।
इस रैली और बड़े विरोध प्रदर्शन के बाद, पुलिस उपायुक्त और उनके सहायक ने घोषणा की कि यह उनके जीवन में देखा गया सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन था और पिछले 35 वर्षों में सिडनी में ऐसा कुछ नहीं हुआ था!
ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय संग्रहालय के बयान के अनुसार, पुल पर लगातार एक के बाद एक करके 250,000 से अधिक लोग गुजरे, जिसमें लगभग छह घंटे का समय लगा।
पूर्व प्रधानमंत्री बॉब कार ने इस सवाल के जवाब में कि भीड़ का अनुमान कैसे लगाया जाता है, कहा,जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि हमने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है, सिडनी पुलिस और उन सभी प्रेरित लोगों के सहयोग से जो इज़राइल के अत्याचारों से स्तब्ध हैं और उसका विरोध करने के लिए कुछ करना चाहते हैं।
ज़ाएरीन ए अरबईन के लिए ज़रूरी हिदायात
इस रूहानी सफ़र में सबसे प्रभावी सुझाव उन लोगों के अनुभव हैं जिन्होंने कई बार यात्रा की है। हमने अरबईन जाएरीन के लिए कुछ परामर्श चुने हैं, जो उन्हें अच्छी तरह से मार्गदर्शन करती हैं कि यात्रा में क्या करना है और क्या नहीं करना है।
इन दिनों इमाम हुसैन का चेहल्लुम नजदीक है, दुनिया के अलग-अलग देशों से लोग अरबईन के लिए इराक के कर्बला जा रहे हैं। कुछ लोग नजफ से कर्बला के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं ताकि वे सुरक्षित कर्बला पहुंच सकें। लेकिन आध्यात्मिक यात्रा में सबसे प्रभावी सुझाव उन लोगों के अनुभव हैं जिन्होंने कई बार यात्रा की है। हमने अरबईन तीर्थयात्रियों के लिए कुछ युक्तियाँ चुनी हैं, जो उन्हें अच्छी तरह से मार्गदर्शन करती हैं कि यात्रा में क्या करना है और क्या नहीं करना है।
किसी भी चीज़ के लिए मेज़बान को हुकम ना दें
इस यात्रा में अरबईन तीर्थयात्रियों के स्वागत में इराकी लोगों का ख़ुलूस अवर्णनीय है। धर्मस्थल के सेवकों से कभी यह न कहें कि यह स्थान हमारे पैसे से बनाया गया है, और उन लोगों को कुछ भी निर्देशित न करें क्योंकि वे अपने दिल और आत्मा से आपका स्वागत करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। मेज़बान को धन्यवाद देना न भूलें। धन्यवाद कहने के लिए आप "धन्यवाद" शब्द का प्रयोग कर सकते हैं।
यह बिल्कुल सच है कि कुछ लोग आपके जूते पॉलिश करेंगे और रास्ते में आपकी मुफ्त मालिश करेंगे, लेकिन यह सेवा उन लोगों के लिए है जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है। इस सेवा का उपयोग मनोरंजन के लिए न करें।
जूतों की जगह मुलायम सैंडल या चप्पल पहनें
अरबाईन के दौरान चलने के लिए आरामदायक जूते पहनें। क्योंकि अगर आपके जूते थोड़े भी ख़राब होंगे तो अरबाईन वॉक के दौरान आपको काफी परेशान कर सकते हैं। लेकिन जूते पहनने के अलावा ज़ाएरीन सैंडल और चप्पल भी पहनें तो बेहतर है। अन्य इराकी पुरुष बिना मोजे के सैंडल और चप्पल पहन सकते हैं।
आप भी इराकी बच्चों की पज़ीराई कर सकते हैं?
आमतौर पर जब हम किसी के घर जाते हैं जहां बच्चे होते हैं तो हम अपने साथ कुछ चॉकलेट ले जाते हैं। इराकी बच्चे इन सिद्धांतों से मुक्त नहीं हैं। आप उन्हें अपनी संपत्ति से कुछ मात्रा में चॉकलेट आदि दे सकते हैं।
सेनेटरी का सामान अपने साथ रखें
दूषित हाथों के कारण बीमारियाँ फैलने की संभावना रहती है। इसलिए, हैंड सैनिटाइज़र को न भूलें। अपने हाथ नियमित और ठीक से धोएं, अपनी आवश्यक दवाएं अपने साथ रखें। आपको सन क्रीम और वैसलीन भी जरूरी होगी।
नमाज अव्वले वक़्त और बा जमाअत पढ़े
रास्ते में नमाज अव्वले वक्त पढ़ना न भूलें। यह मत भूलिए कि इमाम हुसैन (अ) ने आशूरा के दिन और युद्ध के बीच में नमाजे जमाअत की इमामत की थी।
इराक में पानी का इसराफ़ ना करें
बहुत से लोग कार्य नहीं करते। भारत और पाकिस्तान की तुलना में इराक में पानी की आपूर्ति की स्थिति बहुत खराब है।
अपनी यात्रा में 2-3 मीटर की डोरी या थ्री प्लक ज़रूर ले जाएं
आप अपने फोन, टैबलेट या कैमरे की बैटरी को थ्री प्लग तार के जरिए चार्ज कर सकते हैं। इस प्लान से आपको अपना फोन या कैमरा चोरी होने की चिंता नहीं रहेगी और आप सुरक्षित रहेंगे।
छाले वाले पैरो का सूई से इलाज
याद रखें कि आपके छाले वाले पैरों पर पट्टियाँ लगाना बेकार है। अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो छाले न छोड़ें। सूई को रूई से साफ करके छालो मे छेद करे छेदों को सुई से ज्यादा खोलें ताकि वे दोबारा बंद न हों। छाले को दबाएं और उसे खाली कर दें, छाले के निचले हिस्से को न छुएं, फिर पट्टी लगा दें।
बैग मे अतिरिक्त सामान न रखें
अरबईन वॉक पर अतिरिक्त बोझ न लें, क्योंकि इससे आपकी परेशानियां बढ़ जाएंगी। कम खाएं, कम पियें और पर्याप्त आराम करें।
जब कोई इराकी आपको अपने घर ले जाए तो इस बात को मत भूलिए
जब कोई इराकी अपने घर में आपका स्वागत सिर झुकाकर करता है तो आप सिर झुकाकर नम्रतापूर्वक घर में प्रवेश करते हैं और अपनी आंखों तथा विचारों को नियंत्रण में रखते हैं। यदि आप मुकिब में सोने का निर्णय लेते हैं, तो पहले से अपने लिए जगह आरक्षित न करें। मुकिबो की सख्या बहुत अधिक है। एक खूबसूरत मुकिब में सोने से बेहतर है छोटे मुकिब मे रात बीताएं।
अरबईन के बारे में जाएरीन के लिए कुछ दीनी सलाह
यात्रा शुरू करने से पहले यात्रा शिष्टाचार पढ़ें। मस्जिदे कूफ़ा जरूर जाए और उसके आमाल करे, इसमें आपको कुल आधे घंटे से चालीस मिनट तक का समय लगेगा। छोटी सी मफातीह और छोटा कुरआन अपने साथ रखे रास्ते में ज्यादा से ज्यादा इस्तिगफार करे और इमाम हुसैन (अ) की मुसीबतो को याद करें ताकि आप तैयार दिल के साथ कर्बला में प्रवेश कर सके। बहुत अधिक सेल्फी, तस्वीरें और वीडियो लेने से बचें, ताकि आप यात्रा से पर्याप्त आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकें। हरम में ज्यादा देर तक अकेले न खड़े रहें, बल्कि दूसरों को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के गुंबद के नीचे आने का समय दें। अरबईन के दौरान हरम में काफी भीड़ होती है, याद रखें कि दूसरों को दुख पहुंचाना इंसानियत के खिलाफ है। इमाम के जुहूर के लिए जितना संभव हो सके दुआ करें।