
رضوی
अमेरिका इस्लामी विचार के खिलाफ जंग में सबसे आगे है
आयतुल्लाह ईल्म अलहुदा ने सामाजिक जीवन में दीन-ए-खुदा की मदद करने की अहमियत पर ज़ोर दिया और कहा, अगर भौतिकवादी और अहंकारी प्रवृत्तियों के खिलाफ प्रतिरोध नहीं हुआ तो इबादतगाहें तबाह हो जाएंगी।
मशहद के इमाम-ए-जुमा आयतुल्लाह सैयद अहमद इल्म अलहुदा ने हुसैनिया दफ्तर-ए-नुमाइंदा-ए-वली-ए-फकीह खुरासान रिज़वी में सूरह हज की आयत नंबर 40
الَّذِینَ أُخْرِجُوا مِنْ دِیَارِهِمْ بِغَیْرِ حَقٍّ... وَلَیَنْصُرَنَّ اللَّهُ مَنْ یَنْصُرُهُ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِیٌّ عَزِیزٌ"
की तफ्सीर बयान करते हुए कहा,जिन लोगों को उनके घरों से बिना किसी हक के निकाला गया, और अल्लाह उसकी ज़रूर मदद करेगा जो उसकी मदद करेगा बेशक अल्लाह ताक़तवर और ग़ालिब है।इस आयत में सबसे पहला नुक्ता यह है कि जो खुदा की मदद करता है खुदा भी उसकी मदद करता है।
उन्होंने कहा, जब कोई दीन-ए-खुदा की मदद के लिए मैदान में आता है और मुस्तकबिरों के ज़ुल्म-ओ-जबर से बंदगान-ए-खुदा को निजात दिलाने की कोशिश करता है तो जब तक वह इस राह पर रहेगा खुदा भी उसकी मदद करेगा।
हौज़ा-ए-इल्मिया खुरासान की आला कौंसिल के इस सदस्य ने कहा, आज दुनिया में इस्लाम को निशाना बनाया जा रहा है। तारीख-ए-इस्लाम के शुरू से लेकर आज तक जितना इस दौर में नबी-ए-अकरम (स.अ.व.व) की मुबारक ज़ात पर हमला हो रहा है, पहले कभी नहीं हुआ। आज दुनिया की तमाम ताक़तें इस्लामी फिक्र के खिलाफ जंग लड़ रही हैं जिनमें सबसे आगे अमेरिका है।
उन्होंने कहा, जो भी वैश्विक व्यवस्था (Global Order) का नज़रिया रखता है वह इस्लाम का दुश्मन है उन्होंने सवाल उठाया कि क्यों दुनिया के दूसरे मुल्क इसराइल द्वारा लेबनान और ग़ज़ा के लोगों पर ढाए जा रहे मज़ालिम के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाते?
इसका सबब यह है कि वे इस्लाम को मिटाने के अमेरिकी मंसूबे में शरीक हैं इसलिए इन हालात में इस्लाम-दुश्मनों के खिलाफ मुक़ाबला करना हमारा फ़र्ज़ है।
क़ुरआने मजीद और नारी
इस्लाम में नारी के विषय पर अध्धयन करने से पहले इस बात पर तवज्जो करना चाहिये कि इस्लाम ने इन बातों को उस समय पेश किया जब बाप अपनी बेटी को ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और उस कुर्रता को अपने लिये इज़्ज़त और सम्मान समझता था। औरत दुनिया के हर समाज में बहुत बेक़ीमत प्राणी समझी जाती थी। औलाद माँ को बाप की मीरास में हासिल किया करती थी। लोग बड़ी आज़ादी से औरत का लेन देन करते थे और उसकी राय का कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के फ़लासेफ़ा इस बात पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों की एक क़िस्म क़रार दिया जाये या यह एक इंसान नुमा प्राणी है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान के मुहब्बत करने के लिये पैदा किया गया है ताकि वह उससे हर तरह का फ़ायदा उठा सके वर्ना उसका इंसानियत से कोई ताअल्लुक़ नही है।
इस ज़माने में औरत की आज़ादी और उसको बराबरी का दर्जा दिये जाने का नारा और इस्लाम पर तरह तरह के इल्ज़ामात लगाने वाले इस सच्चाई को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की आदरनीय सोच और उसके सिलसिले में हुक़ुक़ का तसव्वुर भी इस्लाम ही का दिया हुआ है। इस्लाम ने औरत को ज़िल्लत की गहरी खाई से निकाल कर इज़्ज़त की बुलंदी पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसके बारे में इस अंदाज़ में सोचने वाला न होता। यहूदीयत व ईसाईयत तो इस्लाम से पहले भी इन विषयों पर बहस किया करते थे उन्हे उस समय इस आज़ादी का ख़्याल क्यो नही आया और उन्होने उस ज़माने में औरत को बराबर का दर्जा दिये जाने का नारा क्यों नही लगाया यह आज औरत की अज़मत का ख़्याल कहाँ से आ गया और उसकी हमदर्दी का इस क़दर ज़ज़्बा कहाँ से आ गया?
वास्तव में यह इस्लाम के बारे में अहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर चलाना सीखाना उसी को निशाना बना दिया और जिसने आज़ादी और हुक़ुक का नारा दिया उसी पर इल्ज़ामात लगा दिये। बात सिर्फ़ यह है कि जब दुनिया को आज़ादी का ख़्याल पैदा हुआ तो उसने यह ग़ौर करना शुरु किया कि आज़ादी की यह बात तो हमारे पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है आज़ादी का यह ख़्याल तो इस बात की दावत देता है कि हर मसले में उसकी मर्ज़ी का ख़्याल रखा जाये और उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाये और उसके हुक़ुक़ का तक़ाज़ा यह है कि उसे मीरास में हिस्सा दिया जाये उसे जागीरदारी और व्यापार का पाटनर समझा जाये और यह हमारे तमाम घटिया, ज़लील और पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है लिहाज़ा उन्होने उसी आज़ादी और हक़ के शब्द को बाक़ी रखते हुए अपने मतलब के लिये नया रास्ता चुना और यह ऐलान करना शुरु कर दिया कि औरत की आज़ादी का मतलब यह है कि वह जिसके साथ चाहे चली जाये और उसका दर्जा बराबर होने के मतलब यह है कि वह जितने लोगों से चाहे संबंध रखे। इससे ज़्यादा इस ज़माने के मर्दों को औरतों से कोई दिलचस्बी नही है। यह औरत को सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है और उसके कुर्सी पर लाने में किसी न किसी साहिबे क़ुव्वत व जज़्बात का हाथ होता है और यही वजह है कि वह क़ौमों की मुखिया होने के बाद भी किसी न किसी मुखिया की हाँ में हाँ मिलाती रहती है और अंदर से किसी न किसी अहसासे कमतरी में मुब्तला रहती है। इस्लाम उसे साहिबे इख़्तियार देखना चाहता है लेकिन मर्दों का आला ए कार बन कर नही। वह उसे इख़्तियार व इंतेख़ाब देना चाहता है लेकिन अपनी शख़्सियत, हैसियत, इज़्ज़त और करामत का ख़ात्मा करने के बाद नही। उसकी निगाह में इस तरह के इख़्तियारात मर्दों को हासिल नही हैं तो औरतों को कहाँ से हो जायेगा जबकि उस की इज़्ज़त की क़ीमत मर्द से ज़्यादा है उसकी इज़्ज़त जाने के बाद दोबारा वापस नही आ सकती है जबकि मर्द के साथ ऐसी कोई परेशानी नही है।
इस्लाम मर्दों से भी यह मुतालेबा करता है कि वह जिन्सी तसकीन के लिये क़ानून का दामन न छोड़े और कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो उनकी इज़्ज़त व शराफ़त के ख़िलाफ़ हो इसी लिये उन तमाम औरतों की निशानदहीकर दी गई जिनसे जिन्सी ताअल्लुक़ात का जवाज़ नही है। उन तमाम सूरतों की तरफञ इशारा कर दिया गया जिनसे साबेक़ा रिश्ता मजरूह होता है और उन तमाम ताअल्लुक़ात को भी वाज़ेह कर दिया जिनके बाद दूसरा जिन्सी ताअल्लुक़ मुमकिन नही रह जाता। ऐसे मुकम्मल और मुरत्तब निज़ामें ज़िन्दगी के बारे में यह सोचना कि उसने एक तरफ़ा फ़ैसला किया है और औरतों के हक़ में नाइंसाफ़ी से काम लिया है ख़ुद उसके हक़ में नाइंसाफ़ी बल्कि अहसान फ़रामोशी है वर्ना उससे पहले उसी के साबेक़ा क़वानीन के अलावा कोई उस सिन्फ़ का पुरसाने हाल नही था और दुनिया की हर क़ौम में उसे ज़ुल्म का निशाना बना लिया गया था।
शबे क़द्र में सबसे अच्छे कर्म दान और सच्ची प्रार्थनाएँ हैं
हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा: शबे क़द्र पर हम जो सबसे अच्छे काम कर सकते हैं वह दान देना और सच्ची और शुद्ध प्रार्थना करना है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी उर्मिया के संवाददाता के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम हसन रहीमी ने मदरसा ज़ैनब काबरा (स) उर्मिया में इमाम अली (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए कहा: सर्वशक्तिमान ईश्वर की निकटता भाग्य की छाया में मनुष्य के लिए यह एक महान अवसर है।
उन्होंने आगे कहा: इस रात के सबसे अच्छे कामों में दान और सच्चे दिल से दुआ करना है।
हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा: इस रात में हम कुरान, जिक्र और दुआ के पाठ के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं और आने वाले दिनों में पापों से मुक्ति और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।
हौज़ा इल्मिया पश्चिम आज़रबाइजान के इस शिक्षक ने कहा: दान देना उन कार्यों में से एक है जो हमारी मानवीय भावना को बेहतर बनाने और दूसरों की मदद करने में मदद करता है, दान देना दूसरों के प्रति हमारी करुणा, प्रेम और उदारता का प्रतीक है और हमें मानवता और दयालुता की ओर आकर्षित करता है।
उन्होंने आगे कहा: क़द्र की रात में इमाम अल-ज़माना (अ) के ज़हूर मे तेजी लाने के लिए दुआ करने पर भी बहुत जोर दिया जाता है।
हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने हज़रत इमाम अली (अ) की महानता और बुलंद व्यक्तित्व की ओर इशारा किया और कहा: इमाम अली (अ) इस्लाम के इतिहास में सबसे महान शख्सियतों में से एक हैं। वह साहस, न्याय, ज्ञान और धर्मनिष्ठा में अद्वितीय हैं। उन्हें उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होकर और न्याय स्थापित करके मानवता के लिए एक महान संपत्ति के रूप में जाना जाता है।
शब ए क़द्र की अज़मत
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में शब ए क़द्र की अज़मत को बयान फरमाया हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार ,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول الله صلی الله علیه وآله وسلم
في أوَّلِ لَيلَةٍ مِن شَهرِ رَمَضانَ تُغَلُّ المَرَدَةُ مِنَ الشَّياطينِ ، و يُغفَرُ في كُلِّ لَيلَةٍ سَبعينَ ألفا ، فَإِذا كانَ في لَيلَةِ القَدرِ غَفَرَ اللّه ُ بِمِثلِ ما غَفَرَ في رَجَبٍ وشَعبانَ وشَهرِ رَمَضانَ إلى ذلِكَ اليَومِ إلاّ رَجُلٌ بَينَهُ وبَينَ أخيهِ شَحناءُ، فَيَقولُ اللّه ُ عز و جل : أنظِروا هؤُلاءِ حَتّى يَصطَلِحوا
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:
माहें रमज़ान उल मुबारक की पहली रात को शैतान को बांध दिया जाता है और हर रात 70हज़ार लोगों के गुनाह बख्श दिए जाते हैं और जब शबे कद्र आती है तो जितने लोग की माहे रजब,शाबान और रमज़ान में बख्शीश होती थी,अल्लाह तआला इतने ही लोगों को सिर्फ इसी रात बख्श देता है मगर दो मोमिन भाइयों की आपस में दुश्मनी(जो गैरक्षमा का कारण बनता हैं) तो इस सूरत में अल्लाह ताला फरमाता है कि जब तक यह आपस में सुलाह नहीं कर लेते तब तक उनकी मगफिरत को टाल दो,
बिहारूल अनवार,97/36/16
क़द्र की रात में क़ुरआन का उतरना
पवित्र रमज़ान के अन्तिम दस दिन, रोज़ा रखने वालों के लिए विशेष रूप से आनंदाई होते हैं।
इन दस रातों में पड़ने वाली शबेक़द्र या बरकत वाली रातों को छोटे-बड़े, बूढ़े-जवान, पुरूष-महिला, धनवान व निर्धन, ज्ञानी व अज्ञानी सबके सब निष्ठा के साथ रात भर ईश्वर की उपासना करते हैं। इन रातों अर्थात शबेक़द्र में लोगों के बीच उपासना के लिए विशेष प्रकार का उत्साह पाया जाता है। लोग पूरी रात उपासना में गुज़ारते हैं।
शबेक़द्र को इसलिए शबेक़द्र कहा जाता है क्योंकि पवित्र क़ुरआन के अनुसार इसी रात मनुष्य के पूरे वर्ष का लेखाजोखा निर्धारित किया जाता है। यह ऐसी रात है जो हज़ार महीनों से भी अधिक महत्वपूर्ण है। यह रात उन लोगों के लिए सुनहरा अवसर है जिनके हृदय पापों से मुर्दा हो चुके हैं। यह बहुत ही बरकत वाली रात है। इस रात में उपासना करके मनुष्य जहां अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है वहीं पर आने वाले साल में अपने लिए सौभाग्य को निर्धारित कर सकता है।
पवित्र क़ुरआन के सूरेए क़द्र में ईश्वर कहता है कि हमने क़ुरआन को शबेक़द्र में नाज़िल किया और तुमको क्या मालूम के शबेक़द्र क्या है? शबेक़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है। इस रात फ़रिश्ते और रूह, सालभर की हर बात का आदेश लेकर अपने पालनहार के आदेश से उतरते हैं। यह रात सुबह होने तक सलामती है। सूरए क़द्र में बताया गया है कि क़ुरआन क़द्र की रात में नाज़िल किया गया जो रमज़ान के महीने में पड़ती है। इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर कहा गया है। क़ुरआन की आयतों से यह पता चलता है कि क़ुरआन को दो रूपों में नाज़िल किया गया है एक तो एक बार में और दूसरे चरणबद्ध रूप से। पहले चरण में क़ुरआन एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर उतरा। यह क़द्र की रात थी जिसे शबेक़द्र कहा जाता है। बाद के चरण में क़ुरआन के शब्द पूरे विस्तार के साथ धीरे-धीरे अलग-अलग अवसरों पर उतरे जिसमें 23 वर्षों का समय लगा।
क़द्र की रात में क़ुरआन का उतरना भी इस बात का प्रमाण है कि यह महान ईश्वरीय ग्रंथ निर्णायक ग्रंथ है। क़ुरआन, मार्गदर्शन के लिए ईश्वर का बहुत बड़ा चमत्कार तथा सौभाग्यपूर्ण जीवन के लिए सर्वोत्तम उपहार है। इस पुस्तक में वह ज्ञान पाया जाता है कि यदि दुनिया उस पर अमल करे तो संसार, उत्थान और महानता के चरम बिंदु पर पहुंच जाएगा।
सूरए क़द्र में उस रात को, जिसमें क़ुरआन उतारा गया, क़द्र की रात अर्थात अति महत्वपूर्ण रात कहा गया है। क़द्र से तात्पर्य है मात्रा और चीज़ों का निर्धारण। इस रात में पूरे साल की घटनाओं और परिवर्तनों का निर्धारण किया जाता है। सौभाग्य, दुर्भाग्य और अन्य चीज़ों की मात्रा इसी रात में तय की जाती है। इस रात की महानता को इससे समझा जा सकता है कि क़ुरआन ने इसे हज़ार महीनों से बेहतर बताया है। रिवायत में है कि क़द्र की रात में की जाने वाली उपासना हज़ार महीने की उपासनाओं से बेहतर है। सूरए क़द्र की आयतें जहां इंसान को इस रात में उपासना और ईश्वर से प्रार्थना की निमंत्रण देती हैं वहीं इस रात में ईश्वर की विशेष कृपा का भी उल्लेख करती हैं और बताती हैं कि किस तरह इंसानों को यह अवसर दिया गया है कि वह इस रात में उपासना करके हज़ार महीने की उपासना का सवाब प्राप्त कर लें। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि ईश्वर ने मेरी क़ौम को क़द्र की रात प्रदान की है जो इससे पहले के पैग़म्बरों की क़ौमों को नहीं मिली है।
रिवायत में है कि क़द्र की रात में आकाश के दरवाज़े खुल जाते हैं, धरती और आकाश के बीच संपर्क बन जाता है। इस रात फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और ज़मीन प्रकाशमय हो जाती है। वे मोमिन बंदों को सलाम करते हैं। इस रात इंसान के हृदय के भीतर जितनी तत्परता होगी वह इस रात की महानता को उतना अधिक समझ सकेगा। क़ुरआन के अनुसार इस रात सुबह तक ईश्वरीय कृपा और दया की वर्षा होती रहती है। इस रात ईश्वर की कृपा की छाया में वह सभी लोग होते हैं जो जागकर इबादत करते हैं।
शबेक़द्र की एक विशेषता, आसमान से फ़रिश्तों का उस काल के इमाम पर उतरना है। इस्लामी कथनों के अनुसार शबेक़द्र केवल पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल से विशेष नहीं है बल्कि यह प्रतिवर्ष आती है। इसी रात फरिश्ते अपने काल के इमाम के पास आते हैं और ईश्वर ने जो आदेश दिया है उसे वे उनको बताते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि रमज़ान का महीना, ईश्वर का महीना है। यह ऐसा महीना है जिसमें ईश्वर भलाइयों को बढ़ाता है और पापों को क्षमा करता है। यह सब रमज़ान के कारण है। इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम कहते हैं कि लोगों के कर्मों के हिसाब का आरंभ शबेक़द्र से होता है क्योंकि उसी रात अगले वर्ष का भाग्य निर्धारित किया जाता है।
शबेक़द्र के इसी महत्व के कारण इसका हर पल महत्व का स्वामी है। इस रात जागकर उपासना करने का विशेष महत्व है। इस रात की अनेदखी करना अनुचित है। इस रात को सोते रहना उसे अनदेखा करने के अर्थ में है अतः एसा करने से बचना चाहिए। शबेक़द्र के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस रात अपने घरवालों को जगाए रखते थे। जो लोग नींद में होते उनके चेहरे पर पानी की छींटे मारते थे। वे कहते थे कि जो भी इस रात को जागकर गुज़ारे, अगले साल तक उससे ईश्वरीय प्रकोप को दूर कर दिया जाएगा और उसके पिछले पापों को माफ किया जाएगा। पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा शबेक़द्र में अपने घर के किसी भी सदस्य को सोने नहीं देती थीं। इस रात वे घर के सदस्यों को खाना बहुत हल्का देती थीं और स्वयं एक दिन पहले से शबेक़द्र के आगमन की तैयारी करती थीं। वे कहती थीं कि वास्वत में दुर्भागी है वह व्यक्ति जो विभूतियों से भरी इस रात से वंचित रह जाए।
शबेक़द्र को शबे एहया भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है जीवित करना। इस रात को शबे एहया इसलिए कहा जाता है ताकि रात में ईश्वर की याद में डूबकर अपने हृदय को पवित्र एवं जीवित किया जा सके। हृदय को जीवित करने का अर्थ है बुरे कामों से दूरी। मरे हुए हृदय का अर्थ है सच्चाई को न सुनना, बुरी बातों को देखते हुए खामोश रहना। झूठ और सच को एक जैसा समझना और अपने लिए मार्गदर्शन के रास्तों को बंद कर लेना। इस प्रकार के हृदय के स्वामी को क़ुरआन, मुर्दा बताता है। ईश्वर के अनुसार ऐसा इन्सान चलती-फिरती लाश के समान है। जिस व्यक्ति का मन मर जाए वह पशुओं की भांति है। उसमें और पशु में कोई अंतर नहीं है। पापों की अधिकता के कारण पापियों के हृदय मर जाते हैं और वे जानवरों की भांति हो जाते हैं।
अपने बंदों पर ईश्वर की अनुकंपाओं में से एक अनुकंपा यह है कि उसने मरे हुए दिलों को ज़िंदा करने के लिए कुछ उपाय बताए हैं। इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि ईश्वर पर भरोसा, प्रायश्चित, उपासना और प्रार्थना, दान-दक्षिणा और भले काम करके मनुष्य अपने मरे हुए हृदय को जीवित कर सकता है। ईश्वर ने शबेक़द्र को इसीलिए बनाया है कि मनुष्य इस रात पूरी निष्ठा के साथ उपासना करके अपने मन को स्वच्छ और शुद्ध कर सकता है। यही कारण है कि शबेक़द्र की पवित्र रात के प्रति किसी भी प्रकार की निश्चेतना को बहुत बड़ा घाटा बताया गया है। इसीलिए महापुरूष इस रात के एक-एक क्षण का सदुपयोग करते हुए सुबह तक ईश्वर की उपासना में लीन रहा करते थे।
हम लेबनान और प्रतिरोध के साथ खड़े हैं
सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी यमन के अंसारुल्लाह के नेता ने लेबनान की जनता को संबोधित करते हुए कहा,हम अपने भाइयों हिज़्बुल्लाह और लेबनान की जनता से कहते हैं कि आप अकेले नहीं हैं और हम हर आक्रमण में आपके साथ खड़े हैं।
अंसारुल्लाह आंदोलन के नेता सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी ने कहा कि हमने इस्राइली हमलों को लेबनान के विभिन्न क्षेत्रों में देखा है और उन्होंने इसे अकारण आक्रमण करार दिया है।
यमन के अंसारुल्लाह नेता ने जोर देकर कहा, हम अपने स्पष्ट और सिद्धांतों पर आधारित रुख पर कायम हैं और किसी भी बड़े घटनाक्रम या समग्र रूप से बढ़ते तनाव की स्थिति में अपने भाइयों, हिज़्बुल्लाह और लेबनान की जनता का समर्थन करते रहेंगे।
उन्होंने कहा,हम लेबनान पर हो रहे इस्राइली हमलों के केवल दर्शक नहीं रहेंगे। साथ ही उन्होंने लेबनान की जनता और हिज़्बुल्लाह से कहा,आप अकेले नहीं हैं और हम हर आक्रमण में आपके साथ हैं।
सैयद अब्दुल मलिक ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी भी परिस्थिति में हस्तक्षेप की आवश्यकता हुई तो हम अपने भाइयों हिज़्बुल्लाह और लेबनान की जनता के साथ खड़े होंगे और इसके लिए हम पूरी तरह तैयार हैं।
हज़रत इमाम अली अ.स.कुरआने नातिक,और मज़हरे ईल्ही
आयतुल्लाह उलमा ने कहा,हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) स्वयं फरमाते हैं,أنا القرآن الناطق" यानी "मैं बोलता हुआ क़ुरान हूँ। वे इलाही ज्ञान के प्रतीक और "لسان الله" (अल्लाह की वाणी) हैं, और उनका कलाम वही है जो अल्लाह का कलाम है।
आयतुल्लाह उलमा ने माहे रमज़ान के दौरान नैतिकता पर एक पाठ सत्र में जो कि रविवार को क़ुम स्थित हज़रत इमाम ख़ुमैनी रह. हुसैनिया में सर्वोच्च नेता के कार्यालय में आयोजित हुआ अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.ल. की ब्रह्मांडीय स्थिति और उनकी पैगंबर मुहम्मद (स) से संबंध पर चर्चा की।
रसूलुल्लाह (स.ल.व.व.) और अमीरुल मोमिनीन (अ) एक ही नूर से है।
उन्होंने पैगंबर (स) की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा,मुझे और अली (अ) को एक ही नूर से पैदा किया गया है उन्होंने इस पर बल दिया कि पैगंबर (स) और अमीरुल मोमिनीन (अ) की विश्व-दृष्टि एक समान है और ये दोनों महान हस्तियां समान स्तर पर हैं।
हज़रत मासूम (अ.स.) ही अस्तित्व और आध्यात्मिक सच्चाइयों के वास्तविक स्रोत:
आयतुल्लाह अलमा ने कहा कि मासूम (अ) ही वे हस्तियां हैं जो अस्तित्व आध्यात्मिक संसार (मलकूत) और रहस्यमयी आध्यात्मिक अवस्थाओं की वास्तविकता को व्यक्त कर सकती हैं। क्योंकि वे पूरी तरह से अस्तित्व की सच्चाइयों को समझते हैं। गैरमासूम व्यक्ति भले ही कुछ हद तक इन वास्तविकताओं को जान ले, लेकिन वह कभी भी पूर्णता तक नहीं पहुँच सकता।
अमीरुल मोमिनीन (अ) बोलता क़ुरान और इलाही ज्ञान का प्रतीक:
उन्होंने हज़रत अली (अ.स.) की महानता को बताते हुए कहा,अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) ने स्वयं फरमाया: 'أنا القرآن الناطق' (मैं बोलता हुआ क़ुरान हूँ)।यानी उनका ज्ञान, उनकी वाणी, और उनके कार्य सभी दिव्य ज्ञान के प्रतिबिंब हैं। वे "लिसानुल्लाह" (अल्लाह की वाणी) हैं और उनका कथन वही है जो ईश्वर का कथन है।
सलमान फ़ारसी (रह.)बोलते क़ुरान के सच्चे अनुयायी:
आयतुल्लाह उलमा ने सलमान फ़ारसी (रह.) के जीवन पर चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने पैगंबर (स.ल.) और अमीरुल मोमिनीन (अ) के प्रति संपूर्ण समर्पण दिखाया, जिसके कारण उन्हें "सलमानु मिन्ना अहलुल बैत" (सलमान हमारे अहलुल बैत में से हैं) का सम्मान प्राप्त हुआ। यह दर्शाता है कि जो भी क़ुरान और अहलुल बैत (अ) के मार्ग पर चलेगा वह उच्च आध्यात्मिक स्थान प्राप्त कर सकता है।
शबे मेराज और अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) का दिव्य स्थान:
इस्लामी विद्वान ने पैगंबर (स.ल.) की मेराज का उल्लेख करते हुए कहा कि उस रात अल्लाह ने पैगंबर (स) को आदेश दिया कि वे सभी पैगंबरों से पूछें कि वे किस उद्देश्य से भेजे गए थे। सभी पैगंबरों ने उत्तर दिया कि हम तौहीद अंतिम पैगंबर (स) की रिसालत और अमीरुल मोमिनीन (अ) की विलायत के प्रचार के लिए भेजे गए हैं।यह स्पष्ट करता है कि हज़रत अली (स.ल.) की विलायत ब्रह्मांडीय और ईश्वरीय व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है।
अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की ओर देखना सर्वोच्च इबादत:
उन्होंने हज़रत अबूज़र ग़िफ़ारी (रह.) की एक हदीस का उल्लेख करते हुए कहा,अमीरुल मोमिनीन (अ) की ओर देखना भी एक इबादत है क्योंकि वे ईश्वरीय न्याय का मापदंड और न्याय का तराजू हैं। हमें अपने विश्वास, आचरण और कर्मों में अमीरुल मोमिनीन (अ) को अपना संपूर्ण आदर्श बनाना चाहिए।
इमाम मासूम (अ.स.)सीरत-ए-मुस्तकीम" और ईश्वरीय न्याय का तराजू:
अंत में उन्होंने कहा कि हम सभी मासूम इमामों (अ.स.) के प्रति पूर्ण रूप से निर्भर हैं, क्योंकि वे ईश्वरीय प्रकाश के पूर्ण प्रतीक और अल्लाह के सत्य प्रतिबिंब हैं। केवल उन्हीं के माध्यम से हम अस्तित्व की वास्तविकता और ईश्वरीय ज्ञान को समझ सकते हैं।
वाशिंगटन: यमनियों ने हमको भारी ख़र्चे में डाल दिया है,
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने एलान किया है: यमनी सशस्त्र बलों के हमलों ने जहाज़ों को महंगा रास्ता अपनाने पर मजबूर कर दिया है।
फ़िलिस्तीन की निहत्थी और मज़लूम जनता के विरुद्ध ज़ायोनी हमलों के जारी रहने के कारण यमनी सशस्त्र बलों ने एक बार फिर ज़ायोनी शासन के जहाजों को अपने जलक्षेत्रों में निशाना बनाया है।
अल-आलम चैनल का हवाला देते हुए, इस मुद्दे ने तेल अवीव और इज़राइल के सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका को भारी ख़र्चे में डाल दिया है।
इस बुनियाद पर, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज ने कहा: यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के हमलों के कारण तीन-चौथाई अमेरिकी ध्वज वाले जहाजों ने लाल सागर पार करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय दक्षिण अफ्रीका से होते हुए लंबा और महंगा मार्ग चुना है।
सीबीएस से एक साक्षात्कार में, वाल्ट्ज ने कहा: अमेरिकी ध्वज के तहत 75 प्रतिशत जहाजों को अब स्वेज नहर से जाने के बजाय अफ्रीका के दक्षिणी तट से गुज़रना पड़ता है।
उन्होंने आगे कहा: पिछली बार जब हमारा कोई डिस्ट्रायर यमन के पास जलडमरूमध्य से गुजरा था, तो उस पर 23 बार हमला किया गया था।
वाशिंगटन से बातचीत से इनकार करना हठ नहीं बल्कि अनुभव का नतीजा है: ईरान
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने कहा कि जब तक कुछ बदलाव नहीं किए जाते, अमेरिका के साथ बातचीत नहीं हो सकती।
क्षेत्र में बढ़ते तनाव और ईरान को अमेरिकी चेतावनियों के बीच नए परमाणु समझौते पर वार्ता के आह्वान के बावजूद, ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने जोर देकर कहा है कि उनका देश अमेरिका के साथ तब तक वार्ता नहीं कर सकता जब तक कि कुछ बदलाव नहीं किए जाते। रविवार को एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वाशिंगटन के साथ बातचीत से इनकार करना हठ नहीं बल्कि इतिहास और अनुभव का परिणाम है।
ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि 2015 के परमाणु समझौते को उसके वर्तमान स्वरूप में बहाल नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उनके देश ने अपनी परमाणु स्थिति में महत्वपूर्ण प्रगति की है। अब्बास अराक्ची ने कहा कि अमेरिकी पक्ष के साथ किसी भी वार्ता का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य प्रतिबंधों को हटाना है। उन्होंने कहा कि ईरान हमेशा युद्ध से बचता रहा है और वह युद्ध नहीं चाहता है, लेकिन साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि वह इसके लिए तैयार है और इससे डरता नहीं है। अराक्ची ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ओमान के माध्यम से तेहरान को भेजे गए हालिया संदेश को उसके परमाणु कार्यक्रम से भी बड़ा खतरा बताया। इस बीच, एक अमेरिकी अधिकारी और दो अन्य जानकार सूत्रों ने खुलासा किया है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई को लिखे ट्रम्प के पत्र में नए परमाणु समझौते पर पहुंचने के लिए दो महीने की समय सीमा भी शामिल है। हालाँकि, खामेनेई ने पिछले शुक्रवार को दोहराया कि अमेरिकी धमकियाँ कोई फायदा नहीं पहुँचातीं। तेहरान ने किसी भी सैन्य कार्रवाई के भयंकर परिणामों की भी चेतावनी दी है। 7 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान के साथ परमाणु युद्ध विराम पर बातचीत करना उनकी प्राथमिकता है, लेकिन साथ ही उन्होंने सैन्य टकराव की संभावना से भी इनकार नहीं किया।
मुस्लिम उम्माह को ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी आक्रमण के खिलाफ़ एकजुट होना चाहिए: यमनी विद्वान
यमन के विद्वानों ने एक बयान में ज़ायोनी दुश्मन की वादाखिलाफी, समझौतों के उल्लंघन, युद्ध की बहाली और नरसंहार पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जो लोग इस उत्पीड़न के खिलाफ खड़े नहीं होंगे, उनके लिए अल्लाह की दृष्टि में कोई बहाना स्वीकार्य नहीं होगा।
यमनी विद्वानों ने एक बयान में ज़ायोनी दुश्मन की वादाखिलाफी, समझौतों के उल्लंघन, युद्ध की बहाली और नरसंहार पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जो लोग इस उत्पीड़न के खिलाफ खड़े नहीं होंगे, उनके लिए अल्लाह की दृष्टि में कोई बहाना स्वीकार्य नहीं होगा।
बयान में कहा गया है कि गाजा, पश्चिमी तट और फिलिस्तीन में विनाशकारी हमलों, बमबारी, भूख और प्यास के खिलाफ केवल निंदा या खेद व्यक्त करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि व्यावहारिक उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
यमनी विद्वानों ने उम्माह के सभी वर्गों - लोगों, सेना, शासकों, विद्वानों और धर्म प्रचारकों - को इस बर्बरता के खिलाफ उठ खड़े होने की उनकी जिम्मेदारी की याद दिलाई। गाजा की रक्षा और अल-अक्सा मस्जिद की मुक्ति के लिए सम्पूर्ण जिहाद ही इस दुनिया और परलोक की बदनामी से बचने का एकमात्र रास्ता है।
बयान में कहा गया कि युद्ध को फिर से शुरू करने का इजरायल का निर्णय संयुक्त राज्य अमेरिका की अनुमति, सैन्य सहायता और पूर्ण समर्थन के बिना संभव नहीं होता। इसी प्रकार, अरब शासकों की चुप्पी और शर्मनाक मिलीभगत ने भी ज़ायोनी आक्रामकता को बढ़ावा दिया है।
यमनी विद्वानों ने पड़ोसी देशों, लोगों, सेनाओं और उनके नेतृत्व पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी डालते हुए कहा कि यदि वे इस नरसंहार को रोकने के लिए एकजुट नहीं हुए तो उन्हें अल्लाह के क्रोध और दंड का सामना करना पड़ेगा।
उन्होंने अंसारुल्लाह के नेता सय्यद अब्दुल मलिक बदर अल-दीन अल-हौथी के गाजा को समर्थन देने के निर्णय को उचित ठहराया तथा हवाई और नौसैनिक सैन्य अभियानों सहित हर संभव विकल्प का समर्थन किया।
यमनी विद्वानों ने स्पष्ट किया कि गाजा का समर्थन करना एक धार्मिक कर्तव्य, धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी, सच्चे इस्लामी भाईचारे की व्यावहारिक अभिव्यक्ति और मुसलमानों के बीच सहानुभूति और सहयोग का एक सच्चा रूप है।