ईश्वरीय आतिथ्य- 2

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ईश्वरीय आतिथ्य- 2

रमज़ान का महीना चल रहा है। यह वह महीना है जिसमें बंदा अल्लाह का मेहमान होता है। यह मेहमानी भी दूसरी मेहमानियों की भांति सबसे सुन्दर और सबसे मीठी होती है और इसका समय भी सीमित होता है और हमको इसकी क़द्र समझनी चाहिए और इस छोटी अवधि से भरपूर लाभ उठाना चाहिए। आज के इस कार्यक्रम में हम शाबान के महीने के अंतिम दिनों में पैग़्मबरे इस्लाम द्वारा मस्जिद में दिए गये विशेष भाषण के कुछ अंशों पर चर्चा करेंगे। यह ख़ुतबा, इतिहास में ख़ुतबए शाबानिया के नाम से प्रसिद्ध है।

रमज़ानुल मुबारक अपनी रहमतों, बरकतों और आध्यात्मिक ख़ुबसूरतियों के साथ एक बार फिर आया है। रमज़ान का मुबारक महीना शुरू होने से पहले रसूले अकरम स. लोगों को इस महीने के लिये तैयार करते थे। रसूलुल्लाह (स) का एक ख़ुतबा है जिसे ख़ुतबए शाबानिया कहते हैं, इसमें इस तरह आया हैः रमजान का महीना तुम्हारी ओर अपनी बरकत और रहमत के साथ आ रहा है। जिसमें पाप माफ़ होते हैं, यह महीना ईश्वर के यहां सारे महीनों से बेहतर और श्रेष्ठ है। जिसके दिन दूसरे महीनों के दिनों से बेहतर, जिसकी रातें दूसरे महीनों की रातों से बेहतर और जिसकी घड़ियां दूसरे महीनों की घड़ियों से बेहतर हैं।

जी हां दयालु ईश्वर का एक महीना है जो हर वर्ष एक विशेष समय पर एक विशेष समयावधि के लिए अपने मेहमानों की सेवा करता है। इस भव्य और अद्वितीय मेहमानसराय में रहने वालों का फ़रिश्ते भ्रमण करते हैं और इस मेहमानसराय के चारो ओर चक्कर लगाते हैं। इस शहर में जिसका क्षेत्रफल समस्त ईश्वरीय बंदें हैं, जगह जगह पर ईश्वरीय दूतों और उसके ख़ास बंदों के क़दमों के निशान पाए जाते हैं।  इस शहर की गलियां और कूचे, सब अल्लाह की ओर समाप्त होते हैं। शहर बहुत सुन्दर और विस्तृत है किन्तु इसके समस्त रास्ते छोटे हैं और यात्रा बहुत तेज़ी से होती है। गलियों के बाग़ यद्यपि प्राचीन हैं किन्तु ख़राब नहीं हैं, गलियां साफ़ सुथरी और पानी से धुली हुई हैं इसके किनारे हरे भरे पेड़ पौधे लगे हुए हैं, सूरज की रोशनी की वजह से गलियों में अंधेरा नहीं है, यह सब चीज़ें अल्लाह के मेहमानों का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। गलियों के बीच में अल्लाह के ख़ास बंदों के सुन्दर घर बने हुए हैं जिनसे पवित्र क़ुरआन की तिलावत की आवाज़ें कानों में रस घोलती हैं और अल्लाह के नेक बंदों को अपनी ओर साम्मोहित करती हैं। मानो पैग़म्बरे इस्लाम पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रह की आयत संख्या 185 की तिलावत कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि पवित्र रमज़ान वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है और इसमं मार्गदर्शन और सत्य व अस्त्य की पहचान की स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं इसीलिए जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित रहे उसका दायित्व है कि रोज़े रखे और जो बीमार या यात्री हो वह इतने ही दिन दूसरे समय में रखे। ईश्वर तुम्हारे बारे में आसानी चाहता है कष्ट नहीं चाहता, और इतने ही दिन का आदेश इसलिए है कि तुम संख्या पूरी कर दो और अल्लाह के दिए मार्गदर्शन पर उसकी महानता को स्वीकार करो और शायद तुम इस प्रकार उसके आभारी बंदे बन जाओ।

इस मेहमान की आवभगत करने में अल्लाह के हज़ारों सुन्दर फ़रिश्ते व्यस्त हैं। यह फ़रिश्ते अल्लाह की उपासना में व्यस्त होने के साथ ही अपने ख़ास मेहमानों का विशेष ख़्याल रख रहे हैं। कभी कभी अपने कृपालु हाथों को मेहमान की ओर बढ़ाते हैं और कभी इस मेहमान के लिए दुआ करने के लिए मेज़बान की ओर हाथ बढ़ाते हैं।  ईश्वर भी पूरी ख़ुशी से अपने बंदों के हक़ में उनकी दुआओं को स्वीकार करता है। तभी कुछ फ़रिश्ते स्वर्ग के फलों से भरा दस्तरख़ान बिछाते हैं जबकि दूसरे फ़रिश्ते ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने और उसको ख़ुश करने के लिए जा नमाज़ अर्थात नमाज़ पढ़ने की विशेष दरी बिछाते हैं। कुछ फ़रिश्ते अल्लाह से अपने दिल बात करने में व्यस्त हो जाते हैं और सब मिलकर ईश्वर के बंदों की दिल की बात ईश्वर तक पहुंचाते हैं। यही वह फ़रिश्ते हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि मुझे जिब्राइल ने अल्लाह के हवाले से बताया है कि मैंने अपने फ़रिश्तों को अपने बंदों के लिए दुआ करने की अनुमति नहीं दी मगर यह कि उनकी दुआएं स्वीकार करूं। पवित्र रमज़ान के महीने में कुछ फ़रिश्तों पर मैं यह ज़िम्मेदारी डाल देता हूं कि वह रोज़ेदारों के लिए दुआएं करें, रोज़ेदारों के लिए यह दुआएं, ईश्वर से भलाई और अच्छाई की मांग है। कुछ फ़रिश्तों को इस मेहमानसराए की रक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी, वह शैतान और उसके चेले चापड़ों को इस भव्य मेहमानी में आने नहीं देते ताकि मेहमान एकांत में बिना किसी रोकटोक के अपने ईश्वर से अपने दिल की बात कर सके और शैतान की दुष्टता और उसके बहकावे से सुरक्षित रह सके। मेहमानसराए के रक्षक, दिनों रात इसके रहने वालों पर नज़र रखते हैं और अपने प्रकाश से उनके भीतर की हर प्रकार की बुराई और गंदगी को दूर करते हैं और मेहमानों को ईश्वर के प्रकाशमयी दरबार से निकट करते हैं और अल्लाह के मार्ग पर चलने वाले उसके रास्ते को रोशनी प्रदान करते हैं।

ईश्वरीय शहर के पूरे घर पवित्र क़ुरआन के उतरने से जगमगा रहे हैं और यहीं से ईश्वर के ख़ास बंदे अल्लाह के लिए अपनी दुआओं का तोहफ़ा भेजते हैं। क़ुरआन दिलों में ईश्वरीय भय पैदा करता है और उसकी आयतों की तिलावत, आयतों में चिंतन मनन की चुप्पी को तोड़ नहीं सकता। पवित्र क़ुरआन की तिलावत से तत्वदर्शिता और दूरदर्शिता बढ़ती है, क़ुरआने मजीद की तिलावत, नम्रता प्रदान करती है और कोई भी दुआ में गर्व नहीं करता। शौक़ के आंसू से, ईश्वर के डर से निकलने वाली आह की मिठास को दूर नहीं होती। क़ुरआन की मदद से जो तुला, संतुलन और मीज़ान किताब है, इस शहर के निवासियों के जीवन में संतुलन पैदा होता है।

रात के समय इस मेहमानसराए का माहौल ही अलग तरह का होता है, मन की बात कहने का समय आ पहुंचता है, सुबह तड़के दिलों पर लगे हुए ताले खुल जाते हैं। ईश्वरीय प्रकाश और क्षमा का चांद, उसके मेहमानों को अपनी रोशनी में रंग देता है। उनकी रातें, दिन से अधिक उज्जवल है, उनके दिन, रात से अधिक शांतपूर्ण है, यह रमज़ान की एक अन्य विशेषता है।

मेहमान, इस मेहमानसराए में अजनबी पन का आभास नहीं करते। मेहमानों की अपनी एक ख़ास जगहें हैं, कुछ लोग सामान्य रूप से ईश्वर से दूर नहीं हैं जबकि कुछ दूसरे लोग थोड़ी दूरी पर हैं। यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मेहानसराए में रहने वाले ईश्वर की उपस्थिति से भलिभांति अवगत हैं। वह ईश्वर की ओर अपने हाथ बढ़ाते हैं किन्तु अल्लाह को हमेशा से अधिक स्वयं से निकट पाते हैं और उसकी मुलाक़ात को उतावले रहते हैं।

इस मेहमानसराए में भूख और प्यास का अलग ही माहौल होता है। इसमें मेहमानों को वचन दिया जाता है कि यदि वह शाम तक अपने मुंह में खाने के दाने और पानी की एक बूंद भी न रखें और अपने शरीर को ख़ाने पीने से दूर रखेंगे तो ईश्वर उनकी जानों को अपने प्याले से तृप्त कर देगा। इस मेहमानसराए में दुनिया की वास्तविकता को देखा जा सकता और परलोक की मिठास को चखा जा सकता है। यहां पर यह समझा जा सकता है कि दुनिया से जितना कम लाभ उठाया जाए तो उसका परलोक का जीवन उतना ही बेहतर होगा।

मेहमान हर नमाज़ में अपने दिल की बातें ईश्वर के सामने रखते हैं और ईश्वर से बातें करते हैं। उन्हें जब भी अपने दिल की बात बयान करने और ईश्वर से दुआ करने का अवसर मिलता है तो वह इतना ख़ुश होते हैं कि मानो ईश्वर के समक्ष पहली बार पेश हो रहे हैं। इस मेहमानसराए में रहने वाले कभी भी दुनिया के मामले में दुआ नहीं करते और जब भी ईश्वर से बात करते हैं तो उनकी आंखों में आसू होता है, दिल में डर और जबान पर पछतावे के शब्द। जब कोई व्यक्ति किसी से डरता है तो उससे दूर ही रहता है किन्तु अल्लाह के बंदों में ऐसा नहीं है बंदा अल्लाह से डरने के बावजूद उससे दूर नहीं होता, क्योंकि वह उसकी ओर हमेशा चलता रहता है, इसीलिए उससे निकट रहता है किन्तु पहुंचने का क्रम कभी समाप्त नहीं होता, वह उपासना और इबादत में लीन रहता है मानो उसने ईश्वर की उपासना में सारी उम्र व्यतीत कर दी हो और अब वह अतीत की भरपायी करने पर आ गया हो।

इस शहर का माहौल स्वर्ग की ख़ुशबू से भरा हुआ है। इस शहर के निवासी यद्पि अपने संबंध में कठोर हैं लेकिन एक दूसरे के प्रति दयालु हैं। कभी कभी लोग ख़ुद को आत्मिक दृष्टि से इतना ऊंचा पाते हैं कि उन्हें लगता है कि वे उन फ़रिश्तों से भी ऊंचे हैं जो उनकी सैवा में लग रहते हैं। हमेशा मुस्कुराते रहते हैं और हर एक के साथ दुयालु और कृपालु होते हैं और सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। वह जितना भूखे होंगे दूसरों की भूख मिटाने के प्रयास में रहेंगे और यदि उनका पेट भरा होगा तो वह दूसरे से शर्माते हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए इंसान की आयत संख्या 8 और 9 में ईश्वर कहता है कि  हम केवल अल्लाह की मर्ज़ी के कारण यह उसकी मुहब्बत में मिसकीन, यतीम और क़ैदी को खाना खिलाते हैं, ईश्वर की प्रसन्नता में खिलाते हैं, न तुम से कोई बदला चाहते हैं न शुक्रिया।

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