पवित्र रमज़ान के दिन चल रहे हैं।
हर तरफ़ अल्लाह के बंदे उसकी उपासना में लीन हैं और उसका सामिप्य प्राप्त करने के लिए रोज़े रख रहे हैं, जिधर देखो पवित्र क़ुरआन की तिलावत हो रही है, पवित्र क़ुरआन की तिलावत मानो कान में रस घोल रही है। पवित्र क़ुरआन की सुन्दर मनमोहक तिलावत, बसंत ऋतु के महकते फूलों की सुगंध में मिश्रित होकर दिलो को ईश्वरीय प्रेम का प्रकाश प्राप्त करने के लिए तैयार करती करती है। रमज़ान का पवित्र महीना पवित्र क़ुरआन से प्रेम का पाठ सिखाता है। पूरी दुनिया में दूसरे महीनों की तुलना में इस महीने में पवित्र क़ुरआन की अधिक तिलावत होती है क्योंकि रोज़ेदार व्यक्ति की आत्मिक प्रफुल्लता और पवित्रता, पवित्र क़ुरआन की मन छू लेने वाली तिलावत के समुद्र में ग़ोते लगाने लगती है और उसमें क़ुरआने मजीद की अधिक से अधिक तिलावत करने की भावना पैदा होती है और इस प्रकार एक रोज़ेदार एक महीने अर्थात तीस रोज़ों के दौरान कई कई बार पूरा पूरा क़ुरआन ख़त्म कर देता है। आश्चर्य की बात यह है कि इंसान पवित्र क़ुरआन की जितनी बार तिलावत करेगा उसे हर बार नई चीज़ का आभास होगा और उसकी जान को प्रकाशमयी बना देती है। यह पवित्र क़ुरआन की विशेषता है। सूरए ज़ुमर की आयत संख्या 23 में इस बात की ओर संकेत किया गया हैः अल्लाह ने बेहतरीन बात इस पुस्तक के रूप में उतारी है जिसकी आयतें आपस में मिलती जुलती हैं और बार बार दोहराई गयी हैं कि इनसे ईश्वरीय भय रखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, इसके बाद उनके शरीर और दिल ईश्वर की याद के लिए नर्म हो जाते हैं, यही अल्लाह का वास्तविक मार्गदर्शन है और वह जिसको चाहता है प्रदान कर देता है और जिसको पथभ्रष्टता में छोड़ दे उसको कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं है।
पवित्र क़ुरआन के आकर्षण इतने मनमोहक और सुन्दर हैं कि मनुष्य की आत्मा और उसकी भावना को न केवल हतप्रभ कर देते हैं बल्कि उसे अपना बेक़रार प्रेमी बना देता है। ब्रिटेन के ईसाई शोधकर्ता कैन्ट ग्रैक ज़ंग पवित्र क़ुरआन के आकर्षण को चुंबकीय मैदान और ज़ंग लगे दिलों पर सान करने वाले के रूप में बताया। और कहा कि काफ़ी है कि दिल चुंबकीय मैदान में पवित्र क़ुरआन के आकर्षण होते हैं, इस मैदान की कशिश और खिंचाव ऐसा है कि अब वह उसे छोड़ता ही नहीं है।
पवित्र रमज़ान का महीना ईश्वर की कृपा के द्वार को खुलवाने का महीना है। इस महीने के आने से रोज़ा रखने वाले अपने वजूद में ताज़गी का एहसास करते हैं। महान ईश्वर इस महीने अपने बंदों को अपने दस्तरख़ान पर हर प्रकार की नेमतों व अनुकंपाओं से नवाज़ता है।
कहा जा सकता है कि रमज़ान के महीने का एक बड़ा भाग पवित्र क़ुरआन से संबंधित है। इस महीने रोज़ेदार अपने दिलों के खेत में पवित्र क़ुरआन की प्रकाशमयी शिक्षाओं के बीज बोने का प्रयास करता है, ताकि वह पले बढ़े और आख़िर में इस महीने में आत्मिक आहार के लिए पवित्र क़ुरआन के फल का चयन करे। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन और पवित्र रमज़ान के बीच एक प्रकार का विशेष संबंध है। जैसा कि बसंत ऋतु में मनुष्य और प्रकृति प्रफुल्लित व तरोताज़ा हो जाती है और अपना नया जीवन शुरु कर ती है पवित्र रमज़ान भी क़ुरआन का बहार है। इस महीने पवित्र क़ुरआन को पसंद करने अन्य महीनों की तुलना में इस महीने अधिक क़ुरआन से निकट होते हैं और पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल करके, उसकी आयतों को याद करके और उसके बताए हुए मार्ग पर चलकर अपने दिलों को फिर से ज़िंदा कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का एक प्रसिद्ध कथन है कि अल्लाह की किताब को याद करें, क्योंकि क़ुरआन दिलों की बहार है।
पवित्र रमज़ान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि क़ुरआन इसी महीने में आसमान से उतरा है। दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि इस पवित्र महीने में पैग़म्बरे इस्लाम के दिल पर पूरा क़ुरआन उतरा है। सूरए बक़रा की आयत संख्या 185 में कहा गया है कि रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है और इसमें मार्गदर्शन और सत्य व असत्य को पहचानने की स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं इसीलिए जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित रहे, उसका यह दायित्व है कि रोज़े रखे और जो मरीज़ हो या वह इतने ही दिन दूसरे समय में रखे। ईश्वर तुम्हमारे बारे में सरलता चाहता है, कष्ट नहीं चाहता और इतने ही दिन का आदेश इसलिए है कि तुम संख्या पूरी कर दो और अल्लाह के दिए हुए मार्गदर्शन पर उसके बडप्पन को स्वीकार करो और शायद तुम इस प्रकार के शुक्र करने वाले बंदे बन जाओ।
सूरए दुख़ान की आयतें भी इस बात की ओर संकेत करती हैं कि क़ुरआन एक अनुकंपा और विभूति वाली रात में उतरा है। इसी परिधि में सूरए क़द्र की पहली आयत में आया है कि निसंदेह हमने इसे शबे क़द्र में नाज़िल किया है।
अब यह सवाल पैदा होता है कि पवित्र क़ुरआन उतरा कैसे? इस की ओर पवित्र क़ुरआन की आयतें दो प्रकार की ओर संकेत करती हैं। कुछ आयतें इस बात की ओर संकत करती हैं कि पूरा क़ुरआन एक बार ही में उतरा और वह शबे क़द्र में एक साथ ही उतरा है जबकि कुछ अन्य आयतों में बताया गया है कि पवित्र क़ुरआन 23 वर्षों के दौरान धीरे धीरे उतरा है। दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि समय और स्थान के अनुसार आयतें और सूरए उतरे हैं।
पवित्र क़ुरआन वह किताब है जो पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुई है, यही वह किताब है जो मनुष्यों के लिए मार्गदर्शन और व्यवस्थित क़ानून है। इसी समस्त शिक्षाएं समय और स्थान से परे हैं। अर्थात इसकी आयतें और इसके सूरे किसी विशेष समय और स्थान से विशेष नहीं हैं बल्कि यह किताब प्रलय तक के लिए समस्त मानव जाति के लिए एक व्यापक और व्यवस्थित क़ानून और ईश्वरीय कार्यक्रम है।
पवित्र क़ुरआन में ईश्वरीय सामिप्य प्राप्त करने, वांछित भविष्य निर्धारण और कल्याण की प्राप्ति के लिए बेहतरीन कार्यक्रम हैं। जैसा कि इस्लाम धर्म के उदय काल में भी इसने यह सब बताया था कि लोगों को क्या करना है और क्या नहीं करना है? ठीक उसी तक आज भी यह लोगों की आवश्यकताओं का जवाब दे रहा है। इस पुस्तक को दूरदर्शी ईश्वर ने लोगों को कल्याण पर पहुंचने, अपने लक्ष्यों की प्राप्ति और ईश्वर का सामिप्य राप्त करने के मार्गदर्शन के लिए उतारा है।
पवित्र क़ुरआन, हमेशा बाक़ी रहने वाली किताब है जिसने मानवता के लिए एक समग्र और व्यापक धर्म पेश किया। पवित्र क़ुरआन ने मानवता की सभी समस्याओं का निवारण कर दिया है।
पवित्र रमज़ान के दिन और रात दोनों ही पापों के प्रायश्चित के लिए उचित समय हैं। प्रायश्चित का फ़ायदा यह होता है कि वह इंसान को ग़फ़लत या अपनी आत्मा के संबंध में लापरवाही से बाहर निकाल लाता है। जब इंसान प्रायश्चित के बारे में सोचता है तब उसे वह सारे पाप याद आते हैं जो उसने अपने मन पर किए या दूसरों के हक़ में अत्याचार किए। उस वक़्त वह घमंड और ग़फ़लत से बच जाता है। इस स्थिति में इंसान को यह पता चलता है कि वह कितना छोटा व तुच्छ है और ईश्वर की नेमतों और अनुकंपाओं के सामने कितना एहसानफ़रामोश व कृतघ्न पाता है। उस वक़्त इंसान ईश्वर के सामने शर्मिन्दगी का एहसास करता है और पछताता है। यह प्रायश्चित का पहला फ़ायदा है। इंसान अपनी ग़लतियों व बुराइयों से अवगत होने के बाद ईश्वर से क्षमा मांगता है। क्योंकि ईश्वर उसकी कमियों पर पर्दा डालता है और वह सभी बुराइयों से पाक करने वाला है। ईश्वर ने वादा किया है जो भी उससे प्रायश्चित करेगा अर्थात सच्चे मन से अपने पापों की क्षमा चाहेगा तो वह उसे माफ़ कर देगा और ईश्वर को बहुत ज़्यादा प्रायश्चित को स्वीकार करने वाला पाएगा।
पवित्र रमज़ान के महीने का अध्यात्मिक माहौल उपासना, पवित्र क़ुरआन की तिलावत, एक दूसरे का ख़्याल रखने तथा वंचितों की सहायता के वातावरण से भर दें। आइये रमज़ान के इस उचित वातावरण का फ़ायदा उठाते हुए समाज में दोस्ती और भाईचारे को फैला दें।
मस्जिद में एक साथ पढ़ी जाने वाली नमाज़ों, पवित्र रमज़ान में आयोजित होने वाली प्रशिक्षण की विशेष क्लासों में भाग लेकर, उपदेशों के कार्यक्रम में भाग लेकर, मस्जिदों और घरों में आयोजित होने वाली क़ुरआन की क्लासें लगाकर मनुष्य रमज़ान के दिनों को अच्छी तरह व्यतीत कर सकता और इस प्रकार से वह स्वयं को ईश्वर से निकट कर सकता है।
पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रह की आयत संख्या 183 में आया है कि हे ईमान वालों तुम्हारे ऊपर रोज़े इसी प्रकार लिख दिए गये हैं जिस प्रकार तुम्हारे पहले वालों पर लिखे गये थे, शायद तुम इसी प्रकार ईश्वरीय भय रखने वाले हो जाओ।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि ईश्वरीय पुस्तक तौरेत रमज़ान महीने की छह तारीख़ को, इंजील रमज़ान की बारह तारीख़ को, ज़बूर रमज़ान की 18 तारीख़ को तथा क़ुरआन शबे क़द्र में नाज़िल हुआ।