ईश्वरीय आतिथ्य- 3

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ईश्वरीय आतिथ्य- 3

रमज़ान के महीने को ईश्वर की मेज़बानी का महीना और उत्कृष्टता तक पहुंचने का मार्ग कहा जाता है।

पूरे इतिहास में ईश्वरीय दूतों ने लोगों को ईश्वर की ओर आमंत्रित किया है। ईश्वरीय दूत हज़रत नूह ने कहा था, हे ईश्वर, मैंने अपनी उम्मत को रात-दिन तुझ पर ईमान लाने की दावत दी। अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने ईश्वर के आदेशानुसार लोगों से कहा, कह दो, यह मेरा मार्ग है, मैं समझदारी और जागरुकता से ईश्वर की ओर दावत देता हूं।

ईश्वर की ओर दावत की कुछ विशेषताएं हैं, जो उसे अन्य दावतों से अलग करती हैं। इस दावत की महत्वपूर्ण विशेषता, बुद्धिमत्ता और अच्छी बात है। क़ुराने मजीद में उल्लेख है, हे पैग़म्बर, लोगों को दृढ़ संकल्प, अच्छे एवं सुन्दर उपदेशों से अपने ईश्वर की ओर बुलाओ, और उनसे बहुत ही अच्छे अंदाज़ में वार्ता करो। निःसंदेह तुम्हारा पालनहार उन लोगों के बारे में अधिक जानता है जो उसके रास्ते से भटक जाते हैं या वे सही रास्ता अपना लेते हैं।

तीन साल तक गोपनीय रूप से लोगों का मार्गदर्शन करने के बाद, पैग़म्बरे इस्लाम (स) सफ़ा की पहाड़ी पर गए और पहली बार स्पष्ट रूप से लोगों को पुकार कर कहा, हे लोगो, कहो अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है, ताकि तुम्हारा कल्याण हो जाए।

यह कल्याण या मोक्ष क्या है और किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है? कल्याण का अर्थ है, भलाई और स्वास्थ्य के साथ लक्ष्य तक पहुंचना। जो व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है, उसे चाहिए कि उसके लिए तैयारी करे और उस तक पहुंचने के लिए भूमि प्रशस्त करे। मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में उतार चढ़ाव आते हैं, कभी यह अस्थायी होते हैं और इंसान के लिए चुनौतियां उत्पन्न करते हैं। मोक्ष प्राप्ति का कारण, एक ज़ीने की भांति है, जिसकी हर सीढ़ी लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करती है।

मोक्ष का मार्ग पैग़म्बरे इस्लाम (स) और शुरूआत में इस्लाम स्वीकार करने वालों की दावत से जुड़ा हुआ है, जो मक्के के गली कूचों में गूंजी थी और उसने इंसान के विवेक को जगाया था। क़ुराने मजीद के सूरए मोमेनून में हम पढ़ते हैं, वास्तव में मोमेनीन सफल हो गए। इस आयत के आधार पर, इंसान जब ईश्वर और उसके वादों पर ईमान ले आते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर क़दम बढ़ाते हैं, हालांकि संभव है इस मार्ग में उन्हें गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़े।

क़ुराने करीम की अन्य आयतों में आत्मा की शुद्धि को भी मोक्ष प्राप्ति का एक कारण बताया गया है। सूरए शम्स में ईश्वर कहता है, जिस किसी ने भी अपनी आत्मा को शुद्ध किया, निश्चित रूप से वह सफल हो गया, और जिसने अपनी आत्मा को गुनाहों से दूषित किया वह नुक़सान में रहा।

नैतिकता और रहस्यवाद के अनुसार, आत्मा की शुद्धि का अर्थ है, अनैतिकता और बुराईयों से आत्मा का शुद्धिकरण करना। जिसके परिणाम स्वरूप, कल्याण और मोक्ष प्राप्त होता है। क़ुरान के मुताबिक़, शुरू में इंसान की आत्मा एक सफ़ेद तख़्ती की तरह होती है, जिसे गुणों से सुसज्जित भी किया जा सकता है और बुराईयों से प्रदूषित भी। इन दोनों स्थितियों के चुनाव में इंसान आज़ाद होता है। अगर कोई व्यक्ति ख़ुद को बुराईयों से पाक रखता है, मानवीय गुणों को प्राप्त करता है और ईश्वर तक पहुंचने के लिए प्रयास करता है तो वह सफल हो जाता है। दूसरे शब्दों में ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण और सही कार्य अंजाम देना, आत्मनिर्माण है, न कि सामाजिक गतिविधियों को बंद कर देना और एक कोने में बैठकर ईश्वर तक पहुंचने की आशा रखना।

आत्मशुद्धता और आत्मनिर्माण का परिणाम, ईश्वर की बंदगी है। बंदगी यानी ईश्वर के सामने पूर्ण रूप से नतमस्तक होना, इसका अर्थ व्यापक है जो इबादत से अधिक विस्तृत है। ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए किसी भी काम को अपनी इच्छा से छोड़ना या उसे अंजाम देना बंदगी का ही भाग है। अगर इंसानों को मोक्ष प्राप्ति और कल्याण प्राप्ति के लिए नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने का आदेश दिया गया है तो वह इसलिए कि इन कार्यों में बंदगी भी उन्हें अन्य इबादतों की भांति लक्ष्य की ओर मार्गदर्शित करती है। 

बंदगी, ईश्वर के ज़िक्र और उसके गुणगान के साथ होती है, यही ज़िक्र मोक्ष प्राप्ति का एक ज़रिया है। क़ुरआन के अनुसार, अल्लाह का अधिक ज़िक्र करो, शायद तुम्हें मोक्ष प्राप्त हो जाए। जो लोग ईश्वर का ज़िक्र करते हैं, वे जानते हैं कि ईश्वर के नामों से ज़बान और दिल को प्रकाशमय करने से ईश्वर के साथ संपर्क स्थापित होता है और ईश्वर की पहचान हासिल होती है। इंसान की आत्मा ईश्वर के गणगान से शुद्ध होती है और इससे पारदर्शिता प्राप्त होती है। ईश्वर अपने गुणगान को दिलों को प्रकाशमय करने का कारण मानता है।

निराशा और मायूसी, इंसान को अँधेरे में डुबो देती है, इस प्रकार से कि हज़रत अली (अ) अपने बड़े को पहली नसीहत करते हुए दिल को तरो-ताज़ा रखने पर बल देते हुए कहते हैं, मेरे प्यारे बेटे, मैं तुम्हें बुराईयों से दूर रहने, ईश्वर के आदेशों का पालन करने, दिल और आत्मा को तरो-ताज़ा रखने और ईश्वरीय रस्सी को मज़बूती से पकड़े रहनी की नसीहत करता हूं।

क़ुरआने मजीद की व्याख्या करते हुए अल्लामा तबातबायी कहते हैं, ईश्वर का ज़िक्र करने से दिलों को शांति प्राप्त होती है। इसलिए कि इंसान के जीवन का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति और कल्याण प्राप्ति के अलावा कुछ नहीं है और उसे किसी अचानक आने वाली आफ़त का कोई भय नहीं होता है। एकमात्र वह हस्ती कि जिसके हाथ में उसका कल्याण और अभिशाप है, वह वही ईश्वर है। समस्त मामले उसकी ही ओर पलटकर जाते हैं, वह वही है जो पालनहार है, जो चाहता है वह करता है और मोमिनों का स्वामी और उन्हें शरण देने वाला है। इसलिए उसका ज़िक्र और गुणगान ऐसे व्यक्ति के लिए जो मुसीबतों में घिरा हुआ है और किसी मज़बूत सहारे की तलाश में है कि जो उसका कल्याण कर सके, वह उसकी ख़ुशी और शांति का कारण है।

रमज़ान का महीना दुआओं के क़बूल होने का महीना और शरीर एवं आत्मा के शुद्धिकरण का महीना है। क़ुराने मजीद के अनुसार, ईश्वरीय अनुकंपाओं के ज़िक्र का एक फल, कल्याण एवं मोक्ष प्राप्ति है। सूरए आराफ़ की आयत 69 में उल्लेख है, ईश्वर की अनुकंपाओं को याद करो, क्योंकि तुम्हें कल्याण प्राप्त होगा।

ध्यान योग्य है कि ईश्वर इंसान को साइप्रेस पेड़ की भांति सिर बुलन्द होने की दावत देता है, इसलिए कि साइप्रेस एकमात्र ऐसा पेड़ है कि जो सीधा आसमान की ओर बढ़ता है, जबकि अन्य पेड़ों की डालियां चारो ओर फैलती हैं।

रमज़ान के महीने में ईश्वर का ज़िक्र और गुणगान हो रहा है, यह आत्मनिर्माण और बंदगी का महीना है, इस महीने में रोज़ेदार ईश्वर की मेज़बानी और प्रेम का लुत्फ़ उठाते हैं। इस महीने में उन लोगों को इस मूल्यवान दावत का फल मिलता है। इसका मूल्यवान फल, स्वयं से संपर्क, ईश्वर से संपर्क और उसके बंदों से संपर्क करना है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मुताबिक़, यह महानता, गौरव और सम्मान का महीना है और इसे अन्य महीनों पर प्राथमिकता दी गई है। बेहतर होगा प्रेम और शुद्ध नीयत के साथ इससे लाभान्वित हों और उसके सुन्दर दिनों और आध्यात्मिक सुबहों को ईश्वर से बातचीत एवं प्रेमपूर्वक दुआओं के लिए लाभ उठाएं और कल्याण प्राप्त करें।                           

 

 

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