ईश्वरीय आतिथ्य- 4

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ईश्वरीय आतिथ्य- 4

रमज़ान का पवित्र महीना, आत्मनिर्माण और पापों से स्वयं को बचाने का बहुत अच्छा अवसर है।

यही कारण है कि बहुत से मुसलमान इस अवसर से लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।  रमज़ान का महीना विशेष महत्व का रखता है।  यह महीना अपनी आत्मा को पवित्र करने का बेहतरीन अवसर है।  यह लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करता है।  इस महीने में जो कुछ हासिल होता है वह कठिन उपासना का परिणाम होता है।  ईश्वर चाहता है कि मनुष्य, पवित्र रमज़ान में इबादत करके ईश्वर से डरता रहे ताकि उसे कल्याण प्राप्त हो सके।

इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि ईश्वर की उपासना करके मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य, कल्याण व सफलता प्राप्त करना है।  पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में तक़वा अर्थात ईश्वर से भय की बात कही गई है।  तक़वे का भी लक्ष्य, कल्याण हासिल करना है।  सूरए बक़रा की आयत संख्या 130 में ईश्वर कहता है कि और ईश्वर से डरते रहो ताकि तुम्हें फ़लाह या कल्याण प्राप्त हो जाए।  क़ुरआन की आयतों में 40 बार फ़लाह शब्द का प्रयोग उसके विभिन्न रूपों में किया गया है।

फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो कल्याण व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।  क़ुरआन के अनुसार वे स्वतंत्र लोग जो ईश्वर को दिल की गहराइयों से मानते हैं उनका ईश्वर पर अटूट भरोसा होता है।  ऐसे लोग कठिन परिश्रम करके अच्छाइयां प्राप्त करते हैं।  सूरे तौबा की 20वीं आयत में कहा गया है कि वे लोग जो ईमान और अमल अर्थात आस्था एवं कर्म को साथ-साथ रखते हैं, सफल रहते हैं।

मनुष्य के हर कार्य को अच्छा काम नहीं कहा जा सकता।  केवल वही काम अच्छा काम माना जाएगा जो बुद्धि के आधार पर और पूरी निष्ठा के साथ किया गया हो।  इस प्रकार से ईश्वर, ऐसा काम करने का निमंत्रण देता है जिसे पूरी निष्ठा के साथ किया जाए।  अपने व्यवहार के बारे में मनुष्य के सतर्क रहने से वह अच्छे काम की ओर अग्रसर रहता है।  ऐसे में वह केवल वे काम ही करता है जिससे ईश्वर नाराज़ न हो।  जिन लोगों को इस बात पर विश्वास है कि ईश्वर हमें देख रहा है और हमारे सारे कर्मों से अवगत है वे सच्चाई के साथ भले काम करते हैं जो तक़वे का कारण बनते हैं।

अब जबकि रमज़ान का महीना चल रहा है एसे में हम यह काम बड़ी सरलता से कर सकते हैं।  रोज़ा रखकर आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है।  रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने पर अधिक से अधिक बल दिया गया है।  जितना भी संभव हो सके मनुष्य इस महीने में क़ुरआन पढ़ता रहे।  यहां पर यह बात ध्यान योग्य है कि केवल क़ुरआन का पढ़ना की पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य, क़ुरआन की बातों को समझकर उनपर अमल करना है।

रमज़ान के महीने के बारे में ईश्वर सूरे बक़रा की आयत संख्या 185 में कहता हैः रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन ईश्वर की ओर से उतरा है, जो लोगों का मार्गदर्शक है तथा, असत्य से सत्य को अलग करने हेतु स्पष्ट तर्कों व मार्गदर्शन को लिए हुए है, तो तुम में से जो कोई भी ये महीना पाए तो उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो कोई बीमार या यात्रा में हो तो वह उतने ही दिन किसी अन्य महीने में रोज़ा रखे, ईश्वर तुम्हारे लिए सरलता चाहता है, कठिनाई नहीं, तो तुम रोज़ा रखो यहां तक कि दिनों की संख्या पूरी हो जाए और तुम्हें मार्गदर्शन देने के लिए ईश्वर का महिमागान करो और शायद तुम (ईश्वर के प्रति) कृतज्ञ हो।

पवित्र क़ुरआन का तेइसवां सूरा, मोमेनून है।  इसमें मोमिनों के बारे में बताया गया है ताकि उनकी सफलता को देखकर अन्य लोग भी कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ें।  बाद में सफलता के लिए कुछ विशेषताएं बयान की गई हैं।  यह वे विशेषताए हैं जिनको व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर लागू किया जा सकता है।  आरंभ में ईश्वर, मोमिनों को सफल बताता है।  पहली आयत एक संक्षिप्त वाक्य में स्पष्ट रूप से लोक परलोक में ईमान वालों के निश्चित कल्याण व सफलता की सूचना देती है। इस आयत में फ़लाह शब्द का प्रयोग किया गया है।  आयत में प्रयोग होने वाले शब्द फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो विजय व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।

सूरे मोमेनून में मोमिनों की प्रशंसा करते हुए ईश्वर पहले नमाज़ का उल्लेख करता है।  नमाज़, ईश्वर से संपर्क का सबसे अच्छा माध्यम है।  ईश्वर कहता है कि मोमिन वे लोग हैं जो पूरी विनम्रता के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।  विनम्रता ऐसी स्थिति है जिसका प्रभाव शरीर पर भी दिखाई देता है। रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले के लिए सबसे अच्छा काम अपने ईश्वर की उपासना करना है।  रोज़ेदार बड़ी ही श्रद्धा के साथ रमज़ान में अपने ईश्वर को याद करता है।

नमाज़, बंदगी का रहस्य और आज़ादी की पहचान है।  इस सूरे में नमाज़ के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता की ओर संकेत किया गया है जो लगभग सात आयतों में मिलता है।  रोज़ेदार, इन विशेषताओं का अध्ययन करके अपनी अच्छी विशेषताओं में अधिक से अधिक वृद्धि कर सकते हैं।  इन विशेषताओं को हमें ध्यान से पढ़ना चाहिए।  निश्चित रूप से ईश्वर पर ईमान रखने वाले सफल रहे कि जो अपनी नमाज़ों में विनम्र रहते हैं।  और जो लोग व्यर्थ बातों व कार्यों से मुंह मोड़ लेते हैं। और जो ज़कात अदा करते हैं।  और जो स्वयं को व्यभिचार से बचाते हैं। सिवाय अपनी पत्नियों या (ख़रीदी हुई) दासियों के, कि इस पर वे निन्दनीय नहीं हैं। तो जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा लांघने वाले है। और जो लोग अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हैं। और जो सदैव अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं। यही लोग तो वारिस हैं। जो स्वर्ग की विरासत पाएँगे (और) वे उसमें सदैव रहेंगे।

रमज़ान का महत्व समझाते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने पवित्र रमज़ान को जागरूकता का प्रमुख कारक बताते हुए कहा कि यह महीना, ईश्वर के मार्ग पर चलने का बहुत अच्छा ज़माना है।  इस महीने में कुछ लोग भलाई में एक-दूसरे से आगे बढ़ जाते हैं।  इसी महीने में कुछ लोग उदंडता करके अपना नुक़सान कर लेते हैं।  आश्चर्य है उन लोगों पर जो बहुत हंसते हैं और अपना समय खेल में गुज़ारते हैं।  उस दिन जब भलाई करने वालों को उनकी भलाई का बदला दिया जाएगा, एसे में बुराई करने वाले घाटा उठाएंगे।  ईश्वर के कथनानुसार वास्तविक कल्याण पाने वाले प्रकाश में रहेंगे।

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