हमको एक विशेष दावत अर्थात ईश्वर की दावत पर बुलाया गया है।
हमको एक विशेष दावत अर्थात ईश्वर की दावत पर बुलाया गया है। अल्लाह का विस्तृत दस्तरख़ान सुन्दर तरीक़े से बिछा हुआ है और अब हमको अपनी शक्ति के अनुसार इस दस्तरख़ान की विभूतियों से लाभान्वित होना है। मेज़बान ने हमें बहुत प्रेम और उत्सुकता से अपनी दया, क्षमाशीलता और कृपा की ओर बुलाया है। तो फिर हे अल्लाह के मेहमानो, हे रोज़ेदारो, तौबा व प्रायश्चित करके तथा इस महीने में नेक काम अंजाम देकर अल्लाह की दावत को स्वीकार करें।
पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ेदार व्यक्ति सुबह की अज़ान से लेकर शाम की अज़ान तक खाने पीने से बचकर अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वहन करता है। वह रोज़ा रखकर ईश्वर के निकट अपनी बंदगी का प्रदर्शन करके रोज़े के अध्यात्मिक और शारीरिक लाभ उठा सकता है। रोज़ा, एक धार्मिक अवसर से हटकर इस्लाम धर्म का एक अनिवार्य या वाजिब काम है, रोज़े के बहुत से धार्मिक और शारीरिक फ़ायदे भी हैं। इस कार्यक्रम में हम रोज़े के फ़ायदे और मनुष्य के शरीर पर इसके पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करेंगे।
ख़ाने पीने से रुकना, विभिन्न धर्मों में प्रचलित है। इन धर्मों में इस बात पर पूर्ण सहमति है कि यह कार्य उनके शरीर और उनकी आत्मा पर प्रभाव डालते हैं। भारतीय योगगुरुओं और तपस्वी लोगों का कहना है कि खाने पीने से रुकना, आत्मा की पवित्रता, इरादे की मज़बूती और धैर्य व सहनशीलता में वृद्धि का कारण बनता है। उन परिज्ञानियों का भी यही कहना है जो ईश्वर के मार्ग में आगे बढ़ते हैं और अधिक अध्यात्म प्राप्त करना चाहते हैं, कि भीतर से ख़ाली पेट हो ताकि उसके भीतर परिज्ञान के प्रकाश देखे। इस्लाम धर्म में भी परिपूर्णता की प्राप्ति और ज्ञान हासिल करने के लिए भूख को महत्वपूर्ण कारक बताया गया है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि भूख और प्यास द्वारा अपनी आंतरिक इच्छा से संघर्ष करो कि उसका पारितोषिक ईश्वर के मार्ग में संघर्ष है और ईश्वर के निकट भूख और प्यास से अधिक कोई बेहतर कार्य नहीं है। रोज़ेदार खाने पीने से रुककर, प्रतिरोध और सहनशीलता का अभ्यास करता है और अपनी आवश्यकताओं पर ध्यान न देकर अधिक चाह व उदंडी इच्छा को शांत करता है और बहुत सी बुराईयों में गिरने से रोकता है किन्तु रोज़ा आत्मा के प्रशिक्षण और परिज्ञान की प्राप्ति के लिए दिल के घर को तैयार करने के अतिरिक्त शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है।
चिकित्सकों और विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रमज़ान के महीने में सही ढंग से रोज़ा रखा जाए तो यह ख़ून की चर्बी, शर्करा की कमी और शरीर के हानिकारक पदार्थ को समाप्त करने का अच्छा अभ्यास है। चिकित्सकों का मानना है कि जैसा कि दिल एक क्षण काम करता है और एक क्षण के लिए रुक जाता है उसी प्रकार अमाशय के लिए भी आवश्यक है कि 11 महीने निरंतर काम करने के बाद एक महीने के लिए उसे आराम मिलना चाहिए।
चिकित्सा की प्राचीन किताबों, मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम चिकित्सकों और महापुरुषों की किताबों में रोज़े के चिकित्सकीय फ़ायदे के बारे में बहुत से लेख और बातें लिखी हुई हैं। यह लोग इस परिणाम पर पहुंचे कि रोज़े से अधिक मनुष्य के मिज़ाज के संतुलन और उसको बेहतर बनाने की कोई अच्छी दवा नहीं है। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि अमाशय हर मरज़ की जड़ है और खाने से बचना या कम खाना हर मरज़ की दवा है।
हकीमों का कहना है कि अधिक खाना और पीना 70 प्रकार की बीमारियों की जड़ है और इन मरज़ों को रोकने का बेहतरीन रास्ता खाने पीने से रुकना विशेषकर रोज़ा रखना है। इसके अतिरिक्त पारंपरिक चिकित्सकों, हकीमों और नवीन विशेषज्ञों ने भी रोज़े के लाभ के बारे में बयान किया है। चिकित्सा और सर्जरी के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार विजेता डाक्टर एलेक्सिस कार्ल मनुष्य अपरिचित प्राणी नामक अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि दुनिया के समस्त धर्मों में रोज़े की अनिवार्यता पर बल दिया गया है, रोज़े में आरंभ में तो भूख लगती है और कभी कभी कमज़ोरी का आभास करता है किन्तु इसके साथ ही कई छिपी विशेषताएं भी सामने आती हैं, गतिविधियां कम हो जाती हैं और आख़िरकार शरीर के समस्त अंग अपने ख़ास पदार्थों को आंतरिक संतुलन बनाने और रक्षा के लिए बलि चढ़ाते हैं और इस प्रकार रोज़ा शरीर की समस्त बनावटों को धोता है और उनको तरोताज़ा करता है। वह आगे कहते हैं कि रोज़ा रखने से ख़ून की शर्करा यकृत या लीवर में गिरती है और त्वचा के नीचे जमी चर्बी, प्रोटीन, ग्रंथियों और यकृत के सेल्स स्वतंत्र होते हैं और खाद्य पदार्थ में परिवर्तित हो जाते हैं।
अमाशय को शरीर का सबसे सक्रिय भाग कहा जा सकता है और जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों के लिए विश्राम आवश्यक है, अमाशय के लिए भी आवश्यक है कि वह भी आराम करे। कितना अच्छा होता कि एक निर्धारित खाद्य कार्यक्रम द्वारा एक महीने तक अपने अमाशय को विश्राम दिया जाए और यह क्रम एक महीने के कार्यक्रम से प्राप्त हो सकता है और इसके बहुत अधिक लाभ हैं।
रोज़ा, बदन के ख़राब पदार्थों को तबाह और अमाशय के आराम का कारण बनता है। अमरीकी चिकित्सक कारियो लिखते हैं कि हर बीमार व्यक्त को एक साल में कुछ दिन के लिए खाने से बचना चाहिए क्योंकि जब तक शरीर में खाना पहुंचता रहता है, विषाणु और रोगाणु विस्तृत होंगे किन्तु जब तक आहार से बचा जाता है, रोगायु कमज़ोर होते हैं। उन्होंने कहा कि इस्लाम ने जिस रोज़े को वाजिब किया है वह शरीर की सुरक्षा की सबसे बड़ी गैरेंटी है।
रोज़ेदार के आहार में अतिरिक्त वसा ख़ून में घुल जाती है, ज़्यादा और नुक़सानदेह मोटापा कमज़ोर होता है, दिल और मांस पेशिया, ग्रंथियां और यकृत व अमाशय व्यवस्थित व संतुलित रहते हैं और शरीर की रक्षा व्यवस्था तैयार हो जाती है। आपके लिए यह जानना रोचक है कि रोज़ा रखने के बहुत से समर्थक हैं यहां तक यह चीज़े ग़ैर मुस्लिम धर्म में भी पैदा हो गयी है। यूरोप के बहुत से चिकित्सकों ने मनुष्य के स्वास्थ्य की सुरक्षा और उसके शरीर पर पड़ने वाले उसके प्रभावों की समीक्षा की है। इसी संबंध में आस्ट्रिया के चिकित्सक बारसीलोस कहते हैं कि संभव है कि उपचार में भूखेपन का फ़ायदा, दवा से अधिक लाभदायक है। डाक्टर हेल्बा अपने मरीज़ों को कुछ दिनों के लिए खाना छोड़ने की सलाह देती हैं और उसके बाद हल्के आहार देती हैं।
रमज़ान मन के साथ साथ शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त होने का मौका देता है। पूरे दिन न खाने पीने के चलते एनर्जी हासिल करने के लिए शरीर, अपने अंदर मौजूद फ़ैट का इस्तेमाल करने लगता है। जब ऐसा होता है तो फ़ैट के साथ जमा विषैले तत्व भी बाहर निकलने लगते हैं। आपका लीवर, किडनी और अन्य अंग मिलकर इन विषैले तत्वों को शरीर से बाहर धकेल देते हैं।
कुछ दिन भूखे रहकर वज़न घटाने वाले लोग आमतौर पर जैसे ही खाना शुरू करते हैं उनका वजन फिर बढ़ जाता है, मगर रमज़ान की प्रक्रिया अलग है। दिन के वक्त लगातार भूखे रहने से धीरे-धीरे आपका पेट सिकुड़ने लगता है। आपका शरीर और दिमाग कम भोजन में काम चलाने के लिए तैयार होने लगता है चूंकि यह प्रक्रिया एक माह चलती है इसलिए शरीर और मन दोनों काबू में आ जाते हैं। अगर कोई चाहे तो रमज़ान के बाद वेट लॉस की मुहिम शुरू कर सकता है। भूखा रहने से ग्लूकोज़ को एनर्जी में तब्दील करने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। इससे शरीर में शुगर का लेवल कम होने लगता है। रोजा रखने से ख़ून में फैट की मात्रा भी कम होने लगती है। रोज़ा खोलते वक्त लोग आमतौर पर नींबू की शिकंजी, फल, सलाद, खजूर वगैरा खाते हैं। यह सभी चीजें सेहत के लिए अच्छी होती हैं। दिन भर न खाने के बाद जब आप कुछ खाते हैं तो शरीर उस भोजन में मौजूद हर पोषक तत्व को हासिल करने की कोशिश करता है। ऐसा एडिपोनेक्टिन हार्मोन में बढ़ोत्तरी के चलते होता है। यह हार्मोन भूखा रहने और देर रात के खाने के चलते बढ़ता है। यह भांसपेशियों की पोषक तत्वों को सोखने की क्षमता को बढ़ा देता है। इससे आपके पूरे शरीर को फायदा पहुंचता है। आम दिनों में हम भूख के बाद इतना खाते पीते हैं कि हमारा शरीर खाने पीने में मौजूद विटामिन, मिनरल्स व प्रोटीन वगैरा को पूरा तरह से इस्तेमाल ही नहीं कर पाता और धीरे धीरे ये उसकी आदत में शुमार हो जाता है। मगर रमज़ान का एक माह उसे फिर पटरी पर ला देता है।
चिकित्सा विज्ञान की एक उपलब्धि इस बात का चिन्ह है कि रोज़े से शरीर में वह पदार्थ पैदा हो जाते हैं जो सीमा से अधिक होते हैं और यह पदार्थ, शरीर में रोगाणुओं, जीवाणुओं और वयारस तथा कैंसर के सेल्ज़ को समाप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं । सामान्य हालत में शरीर में मौजूद विषाणु और वायरस गुप्त रूप से सक्रिय होते हैं और जब मनुष्य का बदन कमज़ोर हो जाता तो यह जीवाणु तेज़ी से सक्रिय होते हैं और विध्वसंक कार्यवाहियां शुरु कर देते हैं और यह कैंसर के सेल्ज़, ख़राब कोशिकाओं को खाना शुरु कर देते हैं। वास्तव में यह कहा जा सकता है कि रोज़ा रखना, शरीर की धुलाई और सफ़ाई और बहुत सी बीमारियों की रोकथाम का कारण बनता है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम इफ़्तार, मीटे से शुरु करते थे और उससे रोज़ा खोलते हैं और यदि वह चीज़ नहीं मिलती थी तो वह कुछ खजूरों से रोज़ा खोलते थे और यदि वह भी नहीं मिलती थी तो गुनगुने पानी से रोज़ा खोलते थे। वह फ़रमाते हैं कि यह वस्तुएं अमाशय और यकृत को साफ़ करती हैं और सिर दर्द को समाप्त कर देती हैं।