माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ زَيِّنِّي فيہ بالسِّترِ وَالْعَفافِ وَاسْتُرني فيہ بِلِباسِ الْقُنُوعِ وَالكَفافِ وَاحْمِلني فيہ عَلَى الْعَدْلِ وَالْإنصافِ وَآمنِّي فيہ مِنْ كُلِّ ما اَخافُ بِعِصْمَتِكَ ياعصمَةَ الْخائفينَ..
अल्लाह हुम्मा ज़ैय्यिनी फ़ीहि बिस्सित्रे वल अफ़ाफ़, वस तुरनी फ़ीहि बेलिबासिल क़ुनूइ वल कफ़ाफ़, वह मिलनी फ़ीहि अलल अद्ले वल इन्साफ़, व आमिन्नी फ़ीहि मिन कुल्ले मा अख़ाफ़ु बे इस मतिका या इस मतल ख़ाएफ़ीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! मुझे इस महीने में पर्दा और पाकदामनी से ज़ीनत अता फ़रमा और मुझे किफ़ायते शआरी और इकतेफ़ा का लिबास पहना और मुझे इस महीने में अद्ल व इन्साफ़ पर आमादा कर दे और इस महीने के दौरान मुझे हर उस चीज़ से अमान दे जिससे मैं ख़ौफ़ज़दा होता हूं, ऐ ख़ौफ़ज़दा बन्दों की पनाहगाह.
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.