सूरे माएदा की आयत संख्या 105 में ईश्वर कहता हैः हे ईमान वालो! अपने आप को बचाओ।
जान लो कि तुम्हें मार्गदर्शन प्राप्त हो गया तो पथभ्रष्ट तुम्हें क्षति नहीं पहुंचा सकेंगे। तुम सबकी वापसी ईश्वर (ही) की ओर है फिर वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों से अवगत कराएगा।
मनुष्य को अपने जीवन में जिन शत्रुओं का सामना रहता है वे दो प्रकार के हैं। पहला शत्रु तो स्वंय उसकी आंतरिक इच्छाए हैं जबकि दूसरा शत्रु शैतान है। इस्लामी शिक्षाओं में आंतरिक इच्छाओं को भीतरी शत्रु की संज्ञा दी जाती है जबकि शैतान को बाहरी शत्रु कहकर संबोधित किया गया है। आंतरिक इच्छाओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु वे इच्छाए हैं जो तुम्हारे अस्तित्व में निहित हैं। इस बारे में पवित्र क़ुरआन में कहा गया है कि आंतरिक इच्छाएं मनुष्य को बुरे कर्मों की ओर प्रेरित करती हैं। मनुष्य का दूसरा सबसे बड़ा शत्रु शैतान है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम इस बारे में ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मैं तुझसे उस शत्रु की शिकायत करता हूं जो मुझको पथभ्रष्ट करना चाहता है। यह शैतान मेरे मन में भांति-भांति के विचार लाता है यह मुझको सांसारिक मायामोह की ओर अग्रसर करता है। यह मुझमें और तेरी उपासना के बीच गतिरोध उत्पन्न करता है। शैतान की चालों और उसके हथकण्डों से बचने के सबसे अच्छा मार्ग पवित्र रमज़ान का पवित्र महीना है। इस महीने में रोज़े रखकर मनुष्य शैतान को परास्त कर सकता है।
प्रतिवर्ष रमज़ान के महीने में लोगों के लिए यह अवसर उपलब्ध हो जाता है कि वे अपने शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए अधिक से अधिक ध्यान दें। इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्ला ख़ामेनेई कहते हैं कि आत्म निर्माण के लिए रमज़ान का महीना बहुत ही उपयुक्त अवसर है। हम लोग उस कच्ची मिट्टी की तरह है जिसपर अगर काम किया जाए तो फिर उसे अपने दृष्टिगत आकार में लाया जा सकता है। यदि हम अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं तो उसके परिणाम भी हासिल कर लेंगे। वैसे जीवन का उद्देश्य भी स्वयं का निर्माण करना है।
रमज़ान का पवित्र महीना एक प्रकार से आत्म निर्माण का महीना है। इस महीने में आत्मशुद्धि की जा सकती है। यह महीना शैतान से दूरी का महीना है। इस महीने में आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। रमज़ान का हर पल मूल्यवान है। इस महीने में एक विशेष प्रकार का आध्यात्मिक वातावरण बन जाता है। इस प्रकार के आध्यात्मिक वातावरण में आत्मनिर्माण करने में बहुत सहायता मिलती है। आत्मशुद्धि करके मनुष्य बुराइयों से मुक़ाबला कर सकता है। रमज़ान में एकांत में बैठकर ईश्वर की प्रार्थना करने से विशेष प्रकार का आनंद प्राप्त होता है। ऐसे में हम व्यक्तिगत या सामूहिक रूप में उपासना करके ईश्वर से अधिक निकट हो सकते हैं।
आत्मनिर्माण ऐसा विषय है जिसके बारे में पवित्र क़ुरआन ने बहुत बल दिया है। क़ुरआन के अनुसार मनुष्य की आत्मा आरंभ में एक सफ़ेद काग़ज़ की भांति साफ होती है। उसके भीतर अच्छाइयों की ओर जाने या बुराइयों का रूख करने, दोनो की क्षमता पाई जाती है। अब मनुष्य के ऊपर है कि वह कौन से मार्ग का चयन करता है। पवित्र क़ुरआन के सूरे शमस में ग्यारह बार सौगंध खाने के बाद ईश्वर आत्मनिर्माण को सफलता का एकमात्र साधन बताता है। इसी के साथ वह नैतिक भ्रष्टाचार को मनुष्य के पतन का कारण बताता है। ईशवर कहता है कि निश्चित रूप से वह सफल रहा जिसने आत्मनिर्माण किया और निश्चित रूप में वह विफल रहा जिसने अपनी आंतरिक इच्छाओं का अनुसरण किया। जिसने भी स्वयं को पापों में लगा लिया वह अच्छाइयों से वंचित रहा।
ईश्वर ने अपने दूतों को धरती पर इसलिए भेजा कि वे लोगों को बुराइयों के दुष्परिणाम से अवगत करवाते हुए उनको इससे रोकें। पैग़म्बरे इस्लाम (स) जब भी सूरे शम्स की आयत संखया 9 की तिलावत करते थे तो पहेल कुछ देर ठहरते थे। उसके बाद ईश्वर से अनुरोध करते हुए कहते थे कि हे ईश्वर, मेरे भीतर अपने भय को जगह दे क्योंकि तूही मेरा स्वामी है। मेरी आत्मा को पवित्र कर दे क्योंकि तू ही सबसे अच्छा पवित्र करने वाला है। अपने पूर्वजों की ही भांति इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम भी आत्मा की शुद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते थे कि हे पालनहार! मेरे भीतर उन अच्छी विशेषताओं को भर दे जो आत्म शुद्धि का माध्यम हैं।
आत्मशुद्धि का अर्थ होता है आत्मा को स्वच्छ करना। इसका दूसरा अर्थ आत्मिक विकास भी हो सकता है। आत्मा को स्वच्छ करना भी एक प्रकार का विकास ही है। यह बात इसलिए कही जा रही है कि जब आत्मा को शुद्ध किया जाएगा तो वह विकास की ओर उन्मुख होगी जबकि अगर उसे अशुद्ध कर दिया जाए तो उसका विकास रुक जाएगा। मनुष्य के भीतर आत्मिक विकास धीरे-धीरे होता है इसिलए यह आवश्यक है कि इसके लिए लगातार प्रयास किये जाएं। आत्मा का विकास उस स्थिति में ही संभव है जब ईश्वरीय आदेशों को व्यवहारिक बनाया जाए।
पवित्र रमज़ान के रोज़े, मनुष्य के आत्म निर्माण और उसके प्रशिक्षण का एक व्यवस्थित कार्यक्रम हैं। विगत से ही रोज़े को आत्मनिर्माण और अध्यात्म से संपर्क का माध्यम बताया गया है। कुछ तत्वदर्शी और आत्मज्ञानी, यह मानते हैं कि रोज़ा, तत्वदर्शिता प्राप्त करने का मूल स्तंभ है। समस्त धर्मों में रोज़े को नियंत्रण के अर्थ में पेश किया गया है जिसके माध्यम से लोगों को ईश्वरीय पहचान, आत्मशुद्धि और इच्छाशक्ति को मज़बूत करने का आह्वान किया गया है। इस संदर्भ में शहीद आयतुल्लाह मुतह्हरी कहते हैं कि रमज़ान का कार्यक्रम यह है कि जिन लोगों में कुछ कमी है वे अपनी कमियों को दूर करके अच्छाइयां पैदा करें, जो लोग अच्छे हैं वे और अधिक अच्छाइयों को अपने भीतर लाने के प्रयास करें और अंततः परिपूर्णता तक पहुंचने की कोशिश जारी रखें। इस महीने का कार्यक्रम आत्म निर्माण करते हुए अपने भीतर छिपी बुराइयों को दूर करते रहना है। रमज़ान में अपनी आंतरिक इच्छाओं पर पूरी तरह से नियंत्रण करके उन्हें बुद्धि के अधीन लाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि रोज़ेदार, रमज़ान में भूखा और प्यासा रहने के साथ ही आत्मविकास के लिए भी प्रयासरत रहे।
अगर कोई व्यक्ति 30 दिनों तक लगातार भूखा और प्यासा रहे तथा उसमें विगत की तुलना में कोई भी परिवर्तन न आए तो इस प्रकार के रोज़े उसके लिए प्रभावहीन हैं। इसी विषय के दृष्टिगत शहीद मुतह्हरी कहते हैं कि रोज़ा, एसी व्यवहारिक उपासना है जिसका उद्देश्य, आत्मोत्थान करना है। रोज़े को अगर उसकी सही पहचान और विशेष शर्तों के साथ रखा जाए तो फिर नैतिक, आय्धात्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से एसी मूल्यवान उपलब्धियां प्राप्त होंगी जो स्वंय रोज़ेदार के लिए भी लाभदायक होंगी और उस समाज के लिए भी जहां पर वह रहता है।
पवित्र क़ुरआन, तक़वा या ईश्वरीय भय को रोज़े का महत्वपूर्ण परिणाम बताता है। तक़वे का अर्थ होता है हर प्रकार की बुराई से दूर रहना। तक़वा कभी भी आत्मशुद्धि के बिना हासिल नहीं हो सकता। तक़वा एसी सवारी है जिसका सवार पूरे विश्वास के साथ अपने गंतव्य तक पहुंचता है और वह रास्ते में भटक नहीं पाता। तक़वे को जलती हुई मशाल भी बताया गया है जो राहगीर को अंधकार में उसके लक्ष्य तक पहुंचाती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि तक़वा, हर अच्छाई का स्रोत है। महापुरूषों ने सदैव ही तक़वे को तरक़्क़ी या विकास की सीढ़ी बताया है। उनका कहना है कि स्वंय को नियंत्रित करके ईश्वरीय भय या तक़वे के माध्यम से सफलता प्राप्त की जा सकती है। विशेष बात यह है कि रोज़ा, मनुष्य के मन पर नियंत्रण का माध्यम बनता है एसे में इसे तक़वे तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता कहा जा सकता है।
ईश्वरीय दूतों और महापुरूषों के कथनों में आत्मा की गंदगी को परिपूर्णता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बताया गया है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक बार हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछा कि वे लोग कौन हैं जो प्रलय के दिन तेरी छत्रछाया हो होंगे। उनको जवाब मिला कि पवित्र हृदय वाले ही मेरी छत्रछाया में होंगे। यह वे लोग होंगे जो ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखते और झूठ से दूर रहते हैं।
अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने से मनुष्य, बुराइयों से बचा रहता है और ईश्वरीय आदेशों को उचित ढंग से व्यवहारिक बना सकता है। वह अपने कर्मों को इस प्रकार से अंजाम दे सकता है कि ईश्वर के प्रकोप से सुरक्षित रह जाए। जो लोग इस बात पर पूरी तरह से विश्वास रखते हैं उनकी पूरी कोशिश यही रहती है कि उनसे कोई भी पाप न होने पाए और वे पापों से बचे रहें। एसे लोग अपने जीवन में सदैव ही अच्छे-अच्छे काम करने की कोशिश करते रहते हैं।
रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ेदार, अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण कर सकता है। इस बारे में वह ईश्वर से सहायता भी हासिल कर सकता है। हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह रोज़ेदारों को उनकी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण का सौभाग्य प्रदान करे।