इस महीने में रोज़ेदार, ईश्वर के मेहमान होते हैं। यह ऐसा महीना है जिसमे ईश्वरीय अनुकंपाएं नाज़िल होती हैं और इसमे पापों का प्रायश्चित होता है। यह महीना ईश्वर का है जिसमें प्रार्थना करने का आह्वान किया गया है। इस महीने में जितना भी संभव हो उतनी ही ईश्वर से दुआ या प्रार्थना की जाए। रमज़ान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि हे लोगो! इस महीने में ईश्वर से गिड़गिड़ाकर दुआ करो क्योंकि तुम्हारे जीवन का यह अति महत्वपूर्ण काल है। रमज़ान के महीने में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष प्रकार की कृपा करता है।
दुआ अरबी भाषा का शब्द है जिसे हम प्रार्थना कहते हैं। दुआ का शाब्दिक अर्थ होता है मांगना। इसको हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि खुशी-ग़म, आसानी-परेशानी, उतार-चढ़ाव और हर स्थिति में मनुष्य को ईश्वर से ही मांगना चाहिए। दुआ का एक अर्थ है केवल ईश्वर से ही मांगना। रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वर के विशेष बंदों की दुआएं बढ़ जाती हैं और वे हर पल उसकी सेवा में उपस्थित रहना चाहते हैं। दुआ मांगने की एक परंपरा यह है कि दुआ मांगने वाला अपने दोनो हाथों को ऊपर की ओर उठाकर ईश्वर की सेवा में अपनी मांग पेश करे क्योंकि इस महीने में ईश्वर अपने बंदों की दुआओं को अवश्य सुनता है।
आइए अब हम दुआए जौशने कबीर के बारे में बात करते हैं। रमज़ान के पवित्र महीने में जिन दुआओं के पढ़ने पर बल दिया गया है उनमें से एक जौशने कबीर नाम की दुआ है। जौशन, अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है युद्ध की पोशाक या ज़िरह। इसे हिंदी में कवच कहते हैं। धर्मगुरूओं का कहना है कि इस दुआ का नाम जौशने कबीर इसलिए पड़ा क्योंकि एक युद्ध में पैग़म्बरे इस्लाम (स) जो कवच पहने हुए थे वह बहुत भारी थी। कवच इतनी भारी थी जिससे आपको परेशानी हो रही थी। इस युद्ध में जिब्रईल, ईश्वर की ओर से एक संदेश लाए। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए कहा कि हे मुहम्मद! ईश्वर आपको सलाम भेजते हुए कहता है कि आप उस भारी कवच को उतार दीजिए और इस दुआ को पढ़िए। यह एसी दुआ है जो आपको और आपके मानने वालों को हर प्रकार के ख़तरों से सुरक्षित रखेगी। इस घटना के बाद से इस दुआ का नाम जौशने कबीर पड़ गया। आइए देखते हैं कि दुआए जौशने कबीर क्या है?
दुआए जौशने कबीर एक बड़ी दुआ है। इस दुआ के 100 भाग हैं और हर भाग में अल्लाह के दस नाम हैं। दुआए जौशने कबीर के 100 भागों में से केवल 55वें भाग में ईश्वर के ग्यारह नाम हैं। इस प्रकार से जौशने कबीर में ईश्वर के एक हज़ार एक नाम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) जौशने कबीर के महत्व की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि मेरे मानने वालों में से कोई भी ऐसा बंदा नहीं है जो रमज़ान के पवित्र महीने में इसे तीन बार पढ़े, ईश्वर नरक की आग को उससे दूर कर देता है और जन्नत उसके लिए वाजिब कर देता है। एक अन्य स्थान पर कहा गया है कि दुआए जौशने कबीर का महत्व इतना अधिक है कि यदि संभव न हो तो इसे जीवन में कम से कम एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
दुआए जौशने कबीर में ईश्वर के जिन हज़ार नामों का उल्लेख किया गया है वे बहुत ही अच्छे ढंग से एकेश्वरवाद, प्रलय और अन्य उच्च इस्लामी विषयों को पेश करते हैं। आइए अब हम दुआए जौशने कबीर के 55वें भाग का उल्लेख करने जा रहे हैं जिसमें ईश्वर के ग्यारह नामों का ज़िक्र किया गया है। इस दुआ के हर भाग की कुछ पक्तियां हैं। 55वें भाग की ग्यारह पक्तियां है जिनका अनुवाद इस प्रकार हैः हे वह कि जिसका आदेश हर चीज़ पर चलता है। हे वह जिसके ज्ञान में सबकुछ है। हे वह कि जिसकी शक्ति के घेरे में सबकुछ है। हे वह कि जिसकी अनुकंपाओं को बंदे गिनने में अक्षम हैं। हे वह कि बनाने वाले उसकी प्रशंसा न कर सकें। हे वह कि जिसकी महानता को बुद्धियां न समझ सकें। हे वह कि महानता जिसकी पोशाक है। हे वह कि तेरे बंदे, जिसकी हिकमत को न समझ सकें। हे वह कि उसके अतिरिक्त कोई शासक नहीं। हे वह कि जिसके अतिरिक्त कोई अन्य देने वाला नहीं है अर्थात उसके जैसा कोई भी देने वाला है ही नहीं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक कथन में मिलता है कि ईश्वर के 99 नाम हैं। जो भी ईश्वर को इन नामों के माध्यम से पुकारे, उसकी दुआ सुनी जाती है। जो भी ईश्वर के इन नामों को याद करे वह स्वर्ग में जाएगा। जैसाकि आप जानते हैं कि ईश्वर का हर नाम उसकी एक विशेषता का प्रतीक है। जो भी इन्सान, इन नामों को सोच-विचार के साथ याद कर ले वह स्वर्ग जाने वालों में से होगा।
जैसाकि हमनें आरंभ में बताया था कि दुआए जौशने कबीर के सौ भाग हैं। इस दुआ का हर भाग कुछ पक्तियों पर आधारित है। इन पक्तियों को बंद भी कहा जाता है। परंपरा यह रही है कि जब दुआए जौशने कबीर पढ़ी जाती है तो उसके हर भाग या बंद के अंत में एक वाक्य पढ़ा जाता है जिसका अर्थ इस प्रकार होता है कि हे ईश्वर! तू हर बुराई से पवित्र है और तेरे अतिरिक्त कोई अन्य ईश्वर नहीं है। हे ईश्वर! हमे आग से सुरक्षित रख। इस वाक्य को हर बंद के बाद पढ़ना चाहिए जिसका विशेष प्रभाव है।
पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में बताया गया है कि पापियों और काफ़िरों को नरक की आग में डाला जाएगा। आग देखने में तो प्रकाशमान होती है किंतु भीतर से झुलसा देने वाली होती है। पाप और भीतरी नकारात्मक सोच, कुछ एसी होती हैं जो देखने में तो शायद सुन्दर दिखाई दें किंतु भीतर से यह अंधकार में डूबे होते हैं। एक रोज़ा रखने वाला, दुआए जौशने कबीर जैसी दुआ पढ़कर वास्तव में ईश्वर से कहता है कि हम तेरे बारे में कही जाने वाली सारी वास्तविकताओं को स्वीकार करते हैं। हे ईश्वर तू मेरी ग़लतियों और बुराइयों को क्षमा कर दे और अपने नामों की वास्तविकता को मेरे अस्तित्व में उतार दे ताकि उनके प्रभाव से मैं उन सभी व्यर्थ बातों से दूर हो जाऊं जो मेरी समस्याओं और कठिनाइयों का कारण बनती रहती हैं।
एसे लोग जो मन की गहराइयों से इस बारे में विश्वास रखते हों कि सृष्टि में जो कुछ भी पाया जाता है वह सब ईश्वर का है, इस प्रकार के लोग सांसारिक सुख-दुख से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होते। एसे लोग सांसारिक मायामोह की वास्तविकता को भलिभांति पहचानते हैं। अगर कोई इन्सान कठिनाई के समय में भी ईश्वर को याद रखता है तो वह हर प्रकार की चिंता से सुरक्षित हो जाता है। इस प्रकार का व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी निराश नहीं हो सकता। वह अपने समाज में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
यही कारण है कि इस दुआ को पढ़कर पहले ईश्वर की विशेषताओं की वास्तविकता का स्मरण किया जाता है। हम एसा इसलिए करते हैं कि यदि इसके बारे में हम यदि कुछ भूल जाएं या कुछ छूट जाए तो उसको दोहरा लिया जाए। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमको नरक की आग और वास्तविकताओं को भूल जाने जैसी बुराई से बचाए रखे। यह इस अर्थ में है कि हे! ईश्वर, हम तेरे नामों की वास्तविकताओं पर पूरा भरोसा रखते हैं अतः तू हमे इस मार्ग से हटने से दूर रख। अपनी वास्तविकताओं को हमारे अस्तित्व में उंडेल दे ताकि इसके माध्यम से हम हर प्रकार की बुराई से बच सकें।