ईश्वरीय आतिथ्य- 16

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ईश्वरीय आतिथ्य- 16

तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय रखने वाले दुनिया में सराहनीय व अच्छे लोग हैं।

वे सुदृढ़ व अच्छी बात करते हैं। वस्त्र धारण करने में वे मध्यमार्गी रास्ता अपनाते हैं। वे विनम्रता से रास्ता चलते हैं। जो चीज़ें ईश्वर ने हराम करार दी हैं उसे वे नहीं देखते। जो ज्ञान उनके लिए लाभदायक होते हैं उसे ही वे सुनते हैं। इस आधार पर तक़वा धारण करने वाले व्यक्तियों को देखने से आम इंसानों को आनंद प्राप्त होता है। एक हदीस अर्थात कथन में आया है कि तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय रखने वाले इंसान को समस्त लोग पसंद करते हैं चाहे वे किसी भी धर्म के अनुयाइ हों।

समस्त ईश्वरीय दूतों का उद्देश्य लोगों को तक़वा का निमंत्रण देना था। तक़वा यानी स्वयं का ध्यान रखना व निरीक्षण करना। एक मोमिन व्यक्ति खुले नेत्रों से और जागरुक दिल से जीवन के मामलों व समस्याओं का सामना करता है। इस बात का ध्यान रखता है कि उसका कोई कार्य महान ईश्वर की इच्छा और धर्म के खिलाफ न हो। इंसान में जब इस प्रकार के निरीक्षण की भावना पैदा हो जाती है तो उसका हर कार्य महान ईश्वर द्वारा बताये गये मार्ग और उसकी इच्छा के अनुसार होता है। तक़वे के मुकाबले में निश्चेतना है। रमज़ान का पवित्र महीना और इस महीने में 30 दिनों तक रोज़ा रखना तक़वे के अभ्यास की मूल्यवान भूमिका है ताकि इस अभ्यास के परिणाम में मूल्यवान चीज़ें हासिल कर लें और कठिन दिनों में इन मूल्यवान चीज़ों से लाभ उठायें। दुनिया और दुनिया की समस्याओं का सदैव इंसान को सामना रहता है और जो इंसान विशेषकर रमज़ान के पवित्र महीने में तकवे की क्षमता को बेहतर व अधिक करता है वह सांसारिक समस्याओं का सामना बेहतर ढंग से करता है क्योंकि उसका व्यक्तित्व मज़बूत हो जाता है और मूल्यों व सिद्धांतों पर बाकी रहने के लिए उसके अंदर अधिक कारण होते हैं। इस आधार पर समस्त लोगों को चाहिये कि वे रमज़ान के पवित्र महीने के मूल्य को समझें और इसके अवसरों से लाभ उठाकर तकवे के मीठे फलों को संचित कर लें।

पहले चरण में तक़वे का अर्थ उन पापों से दूरी करना है जिनसे महान ईश्वर ने इंसान को मना किया है परंतु तक़वे का दूसरा पहलु यह है कि इंसान महान ईश्वर के आदेशों पर अमल करे और भले कार्यों को अंजाम दे। वास्तव में स्वयं की निगरानी करना, पापों से निकट न होना, ईश्वर से डरना और अच्छे कार्यों को अंजाम देना तक़वा रूपी सिक्के के दो पहलु हैं। इन अर्थों में कि तकवा उत्पन्न करने में ईश्वर से भय महत्वपूर्ण कारण है और वह इंसान को भले कार्यों की ओर प्रोत्साहित करने में प्रभावी है।

अलबत्ता यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि इंसान में जो बर्बाद करने वाला भय होता है वह उस भय से भिन्न होता है जो भय इंसान को पापों से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है। जो भय इंसान को पापों से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है उसका स्रोत महान ईश्वर से प्रेम व भय होता है और वह ऊर्जा दायक भय होता है। इस प्रकार का भय इंसान के दिल को शक्ति प्रदान करता है। इस अर्थ में कि मोमिन इंसान महान ईश्वर की उपेक्षा से बचने के लिए पापों से दूरी करता है।

तक़वे के अंदर भले कार्यों को अंजाम देने के लिए उत्साह निहित होता है। तो तक़वा समस्त अच्छाइयों को अंजाम देने और समस्त बुराइयों से रुकने का कारक है। जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” ईश्वर से डरो कि वह समस्त भलाइयों का स्रोत है।  इसी प्रकार उन्होंने एक अन्य स्थान पर फरमाया है" ईश्वर से डरो कि वह समस्त उपासनाओं का संग्रह है। 

तकवे का एक चरण अमल है और जो कार्य तकवे के साथ अंजाम दिया जाता है उसका विशेष महत्व होता है। इंसान तकवे के चरणों को तय करने के लिए पापों से दूरी करता है, अपने दिल और ज़बान को बुरे कार्यों से दूर रखता है। अच्छे कार्यों को अंजाम देकर अपने तकवे की शक्ति व क्षमता को अधिक करता है। अलबत्ता समस्त इंसानों में अच्छे कार्यों को अंजाम देने की भावना मौजूद होती है परंतु जो लोग तक़वा रखते हैं यानी महान ईश्वर से डरते हैं उनमें अच्छे कार्य अंजाम देने की भावना अधिक होती है और रमज़ान के पवित्र महीने में यह भावना अधिक हो जाती है क्योंकि यह दिलों को स्वच्छ बनाने का महीना है। जो इंसान तकवा रखते हैं यानी मुत्तकी हैं उनके भले कार्य अंजाम देने और वे इंसान जो तकवा नहीं रखते हैं उनमें भले कार्य अंजाम देने में अंतर यह है कि जो इंसान ईश्वरीय भय रखता है वह केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए भले कर्म करता है और यही शुद्ध नियत है जो आध्यात्मिक सुन्दरता को सैक़ल देती है जबकि जो इंसान तकवा नहीं रखते हैं संभव है कि वे दूसरे कारणों से भले कार्यों को अंजाम दें। पवित्र कुरआन की दृष्टि में भले कार्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता शुद्ध नियत के साथ उसे अंजाम देना है। यानी अपने को बड़ा बताने और लोगों को दिखाने के लिए नहीं बल्कि तकवा रखने वाला इंसान केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए भले कार्यों को  अंजाम देता है।

जो इंसान महान ईश्वर से डरता है उसके अंदर परोपकार की भावना पायी जाती है और वह दूसरे इंसानों के साथ भलाई करना चाहता है और यह भावना रमज़ान के पवित्र महीने में अधिक हो जाती है। महान ईश्वर से डरने वाले दूसरों के साथ भलाई करने में संकोच से काम नहीं लेते हैं। निर्धनों को खाना खिलाते हैं। अपने माले को गोपनीय ढंग से महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के मार्ग में खर्च करते हैं और अपने दूसरे मुसलमान भाइयों की समस्याओं का समाधान करते हैं और हर भले कार्य के प्रति उनमें रुझान होता है।

सद्गुणों से सुसज्जित हो जाना और महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना मुत्तकी लोगों की हार्दिक आकांक्षा होती है। मुत्तकी हो जाना और मुत्तकी की विशेषताओं से सुसज्जित हो जाना हर अकलमंद की मनोकामना होती है। चिंतन- मनन करने वाले और बुद्धिमान यह जानते हैं कि तकवे के बिना परिपूर्णता के किसी भी चरण को तय करना संभव नहीं है क्योंकि जब तक इंसान की आत्मा पापों से दूषित है और इंसान अपनी गलत इच्छाओं का अनुसरण कर रहा है तो वह कभी भी आध्यात्मिक परिपूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। इसी तरह वह कभी भी पवित्र जीवन नहीं प्राप्त कर सकता जो इंसान को पैदा करने का मुख्य उद्देश्य है।

तकवे के बहुत अधिक लाभ हैं। तकवे का एक लाभ यह है कि इंसान महान ईश्वर की कृपा व दया का पात्र बनता है महान ईश्वर उसका पथप्रदर्शन करता है उसकी मदद करता है।

मुत्तकी इंसान अपने तकवे के हिसाब से ब्रह्मांड के रहस्यों को देखता और समझता है वह सीधे रास्ते को आसानी से तय करता है। जैसाकि महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अनफाल की 29वीं आयत में कहता है अगर तकवा अख्तियार करोगो तो मैं तुम्हें सत्य- असत्य के बीच अंतर करने की क्षमता प्रदान करूंगा। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज्मा सैयद अली ख़ामनेई इस बारे में कहते हैं” अगर इंसान मुत्तकी है तो उसे ईश्वरीय पथ प्रदर्शन भी प्राप्त है और अगर तकवा न हो तो समाज और व्यक्ति का पूरी तरह पथप्रदर्शन भी नहीं होगा। यह रोज़ा तकवे की भूमिका है।“

स्वर्ग में जो कुछ इंसान को  देने का वादा किया गया है वह सब हराम कार्यों से दूरी करने और अनिवार्य कार्यों को अंजाम देने का प्रतिदान है। पवित्र कुरआन के सूरे क़ाफ की दूसरी आयत में महान ईश्वर कहता है” मुत्तकीन के लिए स्वर्ग को निकट कर दिया गया है।“

रमज़ान के पवित्र महीने में जो निष्कर्ष निकाला जाना चाहिये वह यह है कि जितना हो सके इस पवित्र महीने के अवसरों से लाभ उठायें ताकि अपने तकवे को अधिक से अधिक करके मुत्तकी बन सकें। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं” तक़वा लोक- परलोक के सौभाग्य की कुंजी है। गुमराह लोग जो नाना प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे तकवे से दूरी और निश्चेतना की मार खा रहे हैं। जो समाज पिछड़ेपन का शिकार हैं उनकी हालत पता है। विश्व के विकसित समाजों को भी जीवन में खतरनाक शून्य का सामना है यद्यपि उन्हें जीवन की कुछ सुविधायें प्राप्त हैं जो जीवन में होशियारी और जागरुकता का परिणाम हैं और विकसित समाजों को जिन खतरनाक चुनौतियों का सामना है उनका उल्लेख उनके लेखक, वक्ता और कलाकार स्पष्ट शब्दों में कर रहे हैं।     

 

 

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