इस्लाम में जेहाद को बहुत अहम उपासनाओं में बताया गया है कि जिसका दायरा पवित्र रमज़ान में हमेशा बढ़ा है और मुसलमानों को बहुत सी जीत इसी पवित्र महीने में मिली।
जैसे बद्र नामक जंग पवित्र रमज़ान में हुयी जिसमें 70 अनेकेश्वरवादी मारे गए और 70 ही अनेकेश्वरवादी लड़ाके क़ैदी बने थे।
पवित्र रमज़ान बर्कत का महीना, क़ुरआन के उतरने का महीना, सत्य के असत्य से अलग होने का महीना और जीत व सफलताओं का महीना है। यह वह महीना है जिसमें ऐसी अहम घटनाएं घटीं कि इतिहास का रुख़ ही बदल गया।
यह वह महीना है जिसमें बद्र नामक जंग हुयी। यह वह जंग थी जो मोमिनों अर्थात ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए सम्मान का संदेश लायी, ईश्वर ने इसे सत्य और असत्य के बीच अंतर का महीना कहा है। इस महीने में कृपालु ईश्वर के भक्त शैतान के भक्त से अलग हुए अलबत्ता आस्था की दृष्टि से अलग हुए।
शुक्रवार 17 रमज़ान सन दो हिजरी क़मरी का दिन इस्लामी इतिहास में निर्णायक मोड़ समझा जाता है। इस दिन इस्लामी इतिहास की निर्णायक जंगों में से एक जंग हुयी और यह जंग पैग़म्बरे इस्लाम के लिए बहुत उपलब्धि भरी रही। इस जंग में बाप-बेटे एक दूसरे के मुक़ाबले में खड़े हुए ताकि ईश्वर अपने भक्तों को सम्मानित और दुश्मनों को अपमानित करे। जैसा कि आले इमरान सूरे की आयत नंबर 123 में ईश्वर कह रहा है, "ईश्वर ने तुम लोगों को बद्र के दिन विजय दी हालांकि तुम लोग एक छोटा सा गुट थे। तो ईश्वर से डरो ताकि उसका आभार व्यक्त कर सको।"
बद्र नामक जंग की वजह मुसलमानों का मक्का से मदीना पलायन था। इस पलायन की वजह से मुसलमान अपनी सारी संपत्ति मक्का में छोड़ने पर मजबूर हुए। मुसलमानों की संपत्तियों पर क़ुरैश ने क़ब्ज़ा कर लिया था इसलिए मुसलमानों ने अबु सुफ़ियान की अगुवाई वाले व्यापारिक कारवां को अपने क़ब्ज़े में करने और उसकी वस्तुओं को मदीना ले जाने का फ़ैसला किया। मुसलमानों का जंग का इरादा नहीं था लेकिन ईश्वर का इरादा था कि मुसलमान अनेकेश्वरवादियों से जंग करें और असत्य पर सत्य की जीत के नतीजे में इस्लाम की बुनियाद मज़बूत हो। इस बिन्दु की ओर ईश्वर अन्फ़ाल नामक सूरे की आयत नंबर 7 और 8 में फ़रमाता है, "ईश्वर ने तुमसे वादा किया था कि क़ुरैश का व्यापारिक कारवां या उसके सशस्त्र बल में से एक गुट तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि निशस्त्र गुट तुम्हारे हाथ आए लेकिन ईश्वर ने इरादा किया कि सत्य को अपने वचन से मज़बूत करे और अनेकेश्वरवादियों की जड़ को ख़त्म करे। ताकि सत्य को सत्य कर दिखाए और असत्य को असत्य, चाहे अपराधियों को कितना ही अप्रिय लगे।" चूंकि ईश्वर का इरादा मुसलमानों के इरादे पर हावी था, उन्हें अनेकेश्वादियों पर जीत दी और सत्य व असत्य के बीच ऐतिहासिकि संघर्ष हुआ।
उस ऐतिहासिक दिन मुसलमान यौद्धाओं के चेहरे पर ईश्वर पर आस्था की चमक इतनी ज़्यादा थी कि दुश्मन के लोग भी इससे प्रभावित थे। इतिहासकार इब्ने हेशाम ने अपनी किताब में लिखा है, "मक्का के अनेकेश्वरवादियों की सेना बद्र के मरुस्थल में उदवतुल क़ुसवा स्थान पर ठहरी हुयी थी। उसने अपने गुप्तचर गुट के एक बहुत ही माहिर जासूस को जिसका नाम उमैर बिन वहब जुमही था, यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि इस्लामी सेना की सही जानकारी ले आए। उसने अपने तेज़ व फुर्तीले घोड़े से मुसलमानों के कैंप के चारों ओर चक्कर लगाया और स्थिति की समीक्षा करने के बाद अपने कमान्डर से कहाः वे लगभग 300 लोग हैं जिनके चेहरों और व्यवहार से ईश्वर पर आस्था और दृढ़ता ज़ाहिर है। वे तलवार को ही अपनी शरणस्थली समझते हैं। जब तक उनमें से हर एक तुममे से एक को क़त्ल न करे, क़त्ल नहीं होगा और अगर तुममे से उनके जितना मारे गए तो तुम्हारे निकट जीवन का क्या मूल्य रहेगा। इस स्थिति के बारे में सोचो और फ़ैसला लो।"
पवित्र रमज़ान दुआ के क़ुबूल होने और बंदों पर ईश्वर की कृपा के द्वार खुलवाने का महीना है। पवित्र रमज़ान में दुआ का इंसान के भविष्य पर गहरा असर पड़ता है। जैसा कि ईश्वर बद्र नामक जंग में दुआ के प्रभाव और उसके लाभदायक नतीजे के बारे में पवित्र क़ुरआन के अन्फ़ाल नामक सूरे की आयत नंबर 9 में फ़रमाता है, "याद करो जब अपने पालनहार से गुहार लगा रहे थे, उसने तुम्हारी दुआ क़ुबूल की और कहा कि मैं तुम्हारी एक हज़ार फ़रिश्तों से मदद करुंगा। यह काम तुम्हे ख़ुश करने और संतोष दिलाने के लिए था। ईश्वर के सिवा कहीं और से मदद नहीं होती और बेशक ईश्वर शान वाला व तत्वदर्शी है।" मुसलमानों के बीच पैग़म्बरे इस्लाम की दुआ व प्रार्थना का दृष्य बहुत ही शानदार था। उस निर्णायक चरण में पैग़म्बरे इस्लाम ने इन शब्दों में दुआ की, "हे पालनहार! तूने जो वादा किया है उसे पूरा कर।" पैग़म्बरे इस्लाम अपने हाथों को आसमान की ओर उठाकर इस तरह दुआ कर रहे थे कि उनके कांधों से अबा उतर गयी।
आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा कि पैग़म्बरे इस्लाम सबसे कठिन स्थिति का ख़ुद सामना करते थे। वह आनंद व आराम पसंद व्यक्ति न थे कि अपने साथियों का मुश्किल हालात में साथ छोड़ कर किनारे बैठ जाए और सिर्फ़ आदेश देते रहें बल्कि वह जंग के मैदान में एक वीर की तरह दुश्मन के सबसे क़रीब होते थे। हज़रत अली कि जिन्हें उनके दोस्त और दुश्मन दोनों ही इस्लामी जंगों का सबसे वीर योद्धा मानते हैं, इस बारे में फ़रमाते हैं, "जब जंग अपने चरम पर होती थी तो हम पैग़म्बरे इस्लाम के पास शरण लेते थे और हम मुसलमानों में से कोई भी पैग़म्बरे इस्लाम के जितना दुश्मन के निकट नहीं होता था।" इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम मुसलमानों और अपने साथियों को दृढ़ता, संघर्ष और इस्लाम की सत्यता की रक्षा का पाठ सिखाते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम 2 रमज़ान मुबारक सन 8 हिजरी क़मरी को 10000 सिपाहियों पर आधारित एक फ़ौज लेकर मक्के की ओर रवाना हुए। इस बार पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत सावधानी बरती ताकि क़ुरैश को मुसलमानों की फ़ौज के निकलने के बारे में पता न चल सके। इस तरह मुसलमानों की फ़ौज के मर्रुज़्ज़हरान पहुंचने तक जो मक्के से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है, मक्कावासियों और उनके जासूसों को मुसलमानों की फ़ौज के पहुंचने की कोई सूचना न थी। पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का जो मक्के में रहते थे, इससे पहले मुसलमान हो चुके थे और मक्के वालों से उनका अच्छे संबंध थे, उस समय मक्के से मदीना पलायन कर रहे थे, जोहफ़ा नामक क्षेत्र में पैग़म्बर इस्लाम और उनकी फ़ौज का सामना हुआ। वह कुछ समय तक पैग़म्बरे इस्लाम के पास रहे और फिर पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश से मक्का गए। रास्ते में उनका अबू सुफ़ियान, हकीम बिन हेज़ाम और बदील बिन वरक़ा जैसे क़ुरैश के सरदारों से सामना हुआ और उन्होंने इस्लामी सेना की चढ़ाई की उन्हें सूचना दी और अबु सुफ़ियान को अपने साथ लेकर पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचे और उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी सैन्य रणनीति और अबू सुफ़ियान के वजूद से मक्का को फ़त्ह करने के लिए उसे पहले मक्का भेजा ताकि वह इस पवित्र शहर को बिना किसी रक्तपात के फ़त्ह करने का मार्ग समतल करे। यह वह जीत थी जिसके ज़रिए से ईश्वर ने इस्लाम धर्म को सम्मानित किया, मुसलमान फ़ौज की मदद की, काबे को पवित्र किया और इस तरह लोग गुटों में इस ईश्वरीय धर्म को स्वीकार करने लगे।
पवित्र रमज़ान के महीने में मक्का की फ़त्ह से इस्लामी इतिहास में नया अध्याय जुड़ा। इस फ़त्ह से इस्लाम की बुनियाद मज़बूत हुयी। इसके बाद अनेकेश्वरवादियों ने किसी तरह का प्रतिरोध नहीं किया और उसके बाद पूरे अरब प्रायद्वीप से पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में इस्लाम स्वीकार करने के लिए लोगों का गुट जाने लगा। इस जीत का फ़त्ह नामक सूरे में इन शब्दों में वर्णन हुआ है, "जब ईश्वर की मदद और फ़त्ह आ पहुंचे और लोग समूहों में ईश्वर के धर्म में शामिल होने लगें। तो अपने पालनहार की प्रशंसा करो, उससे पापों की क्षमा चाहो कि वह हमेशा प्रायश्चित स्वीकार करने वाला है।" इस बड़ी जीत के लिए आभार व्यक्त करने के लिए तीन आदेश दिए गए हैं। एक उसे हर बुराइयों से पाक समझना, दूसरे उसे उसकी उच्च विशेषताओं से याद करना और तीसरे बंदों की कमियों के मुक़ाबले में क्षमा चाहना। इस महासफलता से अनेकेश्वरवादी विचार मिट गए, ईश्वर की महानता और अधिक प्रकट हुयी और गुमराह सत्य की ओर पलट आए। ये वे विभूतियां हैं जिन्हें हर मोमिन बंदा पवित्र रमज़ान में हासिल कर सकता है।