बंदगी की बहार- 18

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बंदगी की बहार- 18

इस्लाम के आंरभिक काल में कुछ एसी घटनाएं घटी हैं जो सदा के लिए इतिहास बनकर रह गई हैं।

यह घटनाएं विशेष महत्व की स्वामी हैं।  इन्हीं घटनाओं में से एक का नाम है "मेराज"।  मेराज की घटना का संबन्ध पैग़म्बरे इस्लाम (स) से है।  मेराज की घटना को संसार के सारे ही मुसलमान मानते हैं।  इस बात पर पूरे संसार के मुसलमान एकजुट हैं कि ईश्वर के अन्तिम दूत हज़रत मुहम्मद (स) को मेराज हुई थी।  इस घटना की तिथि के बारे में दो प्रकार के कथन पाए जाते हैं।  एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम (स) को मेराज 27 रजब को हुई जबकि एक अन्य कथन के अनुसार यह तारीख़ 17 रमज़ान थी।  बहरहाल तारीख़ के बारे में चाहे मतभेद पाया जाता हो लेकिन इसको सारे मुसलमान मानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम को मेराज हुई थी।

इस्लाम के उदय के काल में जो एक अति महत्वपूर्ण घटना घटी उसका नाम था मेराज।  मेराज की घटना वास्तव में चमत्कारी यात्रा थी।  यह एक महान चमत्कार था।  मेराज की घटना की वास्तविकता को समझने में आज भी मानव अक्षम है।  मेराज की यात्रा अर्थात भौतिक परिधि से निकलकर आकाश में पैर रखना।  यह घटना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की निष्ठापूर्ण उपासना का परिणाम थी।  इस्लामी शिक्षाओं में मेराज की घटना को बहुत ही विशेष स्थान प्राप्त है।  मेराज वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम की धरती से आकाश की आध्यात्मिक यात्रा का नाम है।  आइए देखते हैं कि यह घटना है क्या और कैसे घटी?

रात का अंधेरा हर ओर छाया हुआ था।  दूर-दूर तक प्रकाश का कोई नाम नहीं था।  आम लोग दैनिक कार्यों को पूरा करके अपने घरों में आराम की नींद सो रहे थे।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) नमाज़ जैसी उपासना पूरी करने के बाद कुछ देर के लिए विश्राम करना चाहते थे।  इसी बीच एकदम से उन्हें ईश्वरीय फ़रिश्ते, जिब्राईल की आवाज़ सुनाई दी।  उन्हें आवाज़ सुनाई दी कि हे मुहम्मद! उठो।  मेरे साथ यात्रा पर निकलो क्योंकि हमें एक लंबी यात्रा पर जाना है।  बाद में जिबरईले अमीन, "बुराक़" नामकी एक सवारी लाए।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपनी इस आध्यात्मिक भव्य एवं अभूतपूर्व यात्रा का आरंभ, "उम्मेहानी" के घर से या फिर मस्जिदुल हराम से किया।  अपनी उसी सवारी से वे बैतुल मुक़द्द गए और बहुत ही कि समय में वे वहां पहुंचे।  उन्होंने बैतुल मुक़दस में हज़रत इब्राहीम, हज़रते ईसा और मूसा जैसे महान ईश्वरीय दूतों की आत्माओं से मुलाक़ात की।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस चमत्कारिक यात्रा के प्रति आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से कई पवित्र स्थलों पर नमाज़ पढी।

बाद में उन्होंने अपनी यात्रा के दूसरे चरण का आरंभ किया अर्थात सात आसमानों की यात्रा।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने एक-एक करके सातों आसमानों की यात्रा पूरी की।  उन्होंने हर आसमान पर अलग-अलग तरह से दृश्य देखे।  उन्होंने कुछ स्थानों पर स्वर्ग और स्वर्गवासियों तथा कुछ स्थानों पर नरक और नरकवासियों के बारे में ईश्वर की अनुकंपाओं और प्रकोप को देखा।  पैग़म्बरे इस्लाम ने निकट से स्वर्गवासियों और नरक वासियों के दर्जों को देखा।  अंततः वे सातवें आसमान पर "सिदरल मुंतहा" तक पहुंचे और "जन्नतुल मावा" के दर्शन किये।  इस प्रकार से आप ने ईश्वरीय अनुकंपाओं को समझा।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) अंततः एसे स्थान पर पहुंचे जहां पर किसी अन्य प्राणी को जाने की अनुमति ही नहीं है।  इसका महत्व यूं समझा जा सकता है कि जिब्रईल जैसे महान फ़रिश्ते ने भी आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया।  उस स्थान पर जिब्रईल ने कहा कि अब अगर मैं उंगली की पोर के बराबर भी आगे बढ़ूंगा तो मैं जल जाऊंगा।  इस संदर्भ में सूरे नज्म की आयत संख्या 9 में ईश्वर कहता है कि उनसे दूरी, दो कमान या उससे भी कम थी।

मेराज की यात्रा में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को कुछ महत्वूपर्ण आदेश दिये और इसी प्रकार से महत्वूपर्ण अनुशंसराएं भी कीं।  इस प्रकार से मेराज की यात्रा अपने अंत को पहुंची जिसके बारे में कुछ लोगों का यह मानना है कि वह उम्मेहानी के घर से आरंभ हुई थी और उसका समापन, "सिद्रलमुंतहा" पर हुआ।  इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) को आदेश दिया गया कि वे उसी रास्ते से वापस जाएं जिस रास्ते से आए थे।

    मेराज से अपनी यात्रा से वापसी के समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) बैतुल मुक़द्दस में ठहरे।  उसके बाद उन्होंने मक्के का रुख़ किया।  वापसी के मार्ग में उन्होंने क़ुरैश के एक व्यापारिक कारवां को देखा।  यह कारवां अपना ऊंट खो चुका था और उसको ढूंढने में लगा था।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़ज्र आरंभ होने से पहले धरती पर वापस लौट आए।  मेराज की आध्यात्मिक यात्रा, वास्तव में धरती से आसमान की यात्रा है जिसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आत्मा से परमात्मा की ओर पलायन।  इस घटना की पुष्टि करते हुए ईश्वर इस बारे में सूरे असरा की आरंभिक आयत में कहता हैः ईश्वर के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है।  पवित्र है वह (ईश्वर) जो अपने दास (मुहम्मद) को रात के समय मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा तक ले गया जिसके आसपास को हमने बरकत और विभूति प्रदान की है ताकि उसे अपनी निशानियों में से कुछ निशानियां दिखाए। निश्चित रूप से वह (ईश्वर) सबसे अधिक सुनने और देखने वाला है।  इस सूरे को सूरए इसरा इसलिए कहा जाता है कि इसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मेराज पर जाने की घटना का वर्णन किया गया है। इसरा का अर्थ होता है किसी को रात में कहीं ले जाना।

 पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उन ईश्वरीय कथनों को "हदीसे मेराज" के माध्यम से लोगों सामने पेश किया है जो उनपर परोक्ष रूप में भेजे गए थे।  कथनों का यह संग्रह वास्तव में ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बीच वार्ता का सार है।  आरंभ में पैग़म्बरे इस्लाम, ईश्वर से पूछते हैं कि हे ईश्वर! सबसे अच्छा काम कौन सा है? इसका जवाब आया कि मेरे निकट मुझपर भरोसे से अच्छी कोई चीज़ नहीं है और जो भाग्य के लिए निर्धारित कर दिया गया है उसपर सहमत रहना मेरे निकट बहुत अच्छा है।  यह छोटा सा जवाब, मनुष्य की परिपूर्णता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा को दूर करने की कुंजी है।  यह एसी बाधाए हैं जो मनुष्य के जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर देती हैं जिसके परिणाम स्वरूप वह परिपूर्णता तक पहुंचने का मार्ग रुक जाता है।  ईश्वर पर भरोसे का अर्थ है उसपर पूरी निष्ठा रखते हुए केवल उसी पर भरोसा करना।  यह भावना, मनुष्य की आत्मा को संतुष्टि प्रदान करती है।

 हदीसे मेराज के एक अन्य भाग में ईश्वर, पैग़म्बर को संबोधित करते हुए कहा है हे मुहम्मद! उपासना के दस भाग हैं।  इस दस भागों में से नौ भाग हलाल आजीविका से संबन्धित हैं।  अब अगर तुमने अपने खाने-पीने की चीज़ों को हलाल ढंग से उपलब्ध कराया है तो तुम मेरी सुरक्षा में हो।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ईश्वर से पूछा कि सबसे अच्छी और पहली इबादत क्या है? जवाब में कहा गया कि उपासना का आरंभ रोज़ा और मौन है।  इससे यह निष्कर्श निकलता है कि ईश्वर की राह का पहला क़दम, मौन और रोज़ा रखना है।

 यही दो रास्ते, मनुष्य की परिपूर्णता के लिए आवश्यक हैं।  जबतक मनुष्य अपनी ज़बान को नियंत्रित नहीं करता उस समय तक वह अच्छी और बुरी हर प्रकार की बातें करती है।  एसा व्यक्ति कुछ भी बोलने से नहीं झिझकता।  इस प्रकार का व्यक्ति, ईश्वर की कृपा का पात्र नहीं बन सकता।  पेट भी कुछ एसा ही है।  अगर मनुष्य हर चीज़ खाएगा और खानेपीने में किसी भी चीज़ से नहीं रुकेगा तो वह पशु की भांति हो जाएगा जिसका लक्ष्य केवल खाना है।  इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने पूछाः हे ईश्वर रोज़े का प्रभाव क्या है।  जवाब में कहा गया कि रोज़ा अपने साथ तत्वदर्शिता लाता है।  यह तत्वदर्शिता सही पहचान का कारण बनती है और सही पहचान से ही विश्वास पैदा होता है।  जब किसी दास के भीतर विश्वास पैदा हो जाता है तो जीवन की कठिनाइयां उसके लिए महत्वहीन हो जाती हैं।  मेराज की घटना ने पैग़म्बरे इस्लाम से उच्च स्थान को और अधिक ऊंचा कर दिया।  मेराज की घटना से यह भी पता चलता है कि मनुष्य के भीतर बहुत क्षमता पाई जाती है।  इन क्षमताओं के माध्यम से वह परिपूर्णता तक सरलता से पहुंच सकता है।

 

 

 

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