शबे क़द्र आशा की रात

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शबे क़द्र आशा की रात

पवित्र रमज़ान में विशेष रातें, जिन्हें शबे क़द्र कहा जाता है, ईश्वर की कृपा का चरम बिन्दु समझी जाती हैं। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष कृपा करता है जो बहुत अहम है। इन रातों की महानता का स्वंय ईश्वर ने क़द्र नामक सूरे में गुणगान करते हुए कहा है, "तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है।" इसके बाद ईश्वर ने इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर बताया है और इस रात के शुरु होने से सुबह सवेरे तक की समयावधि को शांति कहा है।

वास्तव में ईश्वर ने शबे क़द्र के ज़रिए बंदों को यह अवसर दिया है कि वे अपने सद्कर्म को परिपूर्ण करे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "अगर ईश्वर मोमिन बंदों के कर्म को कई गुना न करे तो वे परिपूर्णतः के चरण तक नहीं पहुंच पाएंगे। शबे क़द्र में उनके भले कर्म का मूल्य कई गुना बढ़ जाता है।" शबे क़द्र नामक रात में इंसान के कल्याण का राज़ वे सद्कर्म हैं जिन्हें वह शौक़ व स्वेच्छा से अंजाम देता है। ईश्वर ने शबे क़द्र को पवित्र रात कहा है जिसमें फ़रिश्ते ईश्वर की इजाज़त से ज़मीन पर उतरते हैं। स्पष्ट है कि इंसान का पवित्र मन फ़रिश्तों के उतरने का स्थान बन सकता है। इस्लामी इतिहास में है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अबू बसीर से फ़रमाया, "इस रात आगे घटने वाली घटनाएं, मौत और रोज़ी अगले साल की शबे क़द्र तक के लिए निर्धारित होती हैं। तो शबे क़द्र में नमाज़ पढ़ो और रात भर जागो।" अबू बसीर ने कहा, "अगर खड़े होकर नमाज़ न पढ़ सकूं तो क्या करू? इमाम ने फ़रमायाः बैठ कर पढ़ो।" अबू बसीर ने उपासना की अहमियत को समझने के लिए दुबारा पूछाः अगर बैठ कर नमाज़ न पढ़ सकूं तो क्या करू? इमाम ने फ़रमायाः जिस तरह हो सके उपासना करो, क्योंकि आसमान के द्वार खुले होते हैं, शैतान ज़न्जीर में जकड़ा होता है और मोमिनों के कर्म क़ुबूल होते हैं।  

शबे क़द्र आशा की रात है। अगर इंसान के सामने उम्मीद की कोई किरण न हो तो वह पतन की ओर बढ़ता है। उम्मीद ही जीवन के जारी रहने का राज़ है। इंसान उम्मीद की छांव में प्रगति व परिपूर्णतः का रास्ता तय करता है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन के एक भाग को बर्बाद कर दिया तब भी उसे पवित्रता के स्वच्छ चश्मे तक पहुंचने की ओर से निराश नहीं होना चाहिए। पवित्र रमज़ान महाअवसर है। यह इंसान के सामने ऐसी खिड़कियां खोलता है जिससे उम्मीद व जीवन की किरणे आती हैं।

शबे क़द्र वही उम्मीद की किरण है जो पवित्र रमज़ान में पैदा होती है। ऐसी रात जिसकी कोई दूसरी रात बराबरी नहीं कर सकती। पवित्र रमज़ान के आरंभ में सृष्टि के रचयिता से बंदों के फिर से जुड़ने की जो कड़ी शुरु होती है वह शबे क़द्र में पूरी होती है। इन रातों में इंसान और ईश्वर के बीच कोई पर्दा नहीं होता और बंदे बिना किसी रुकावट के ईश्वरीय प्रकाश में नहाते हैं। शबे क़द्र ईश्वर के कृपा भरे दामन में पनाह लेने की रात है। पैग़म्बरे इस्लाम से रवायत है, "हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछा कि ईश्वर मैं तेरा सामिप्य चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः मेरा सामिप्य उसे मिल सकता है जो शबे क़द्र में जागता हो। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर तेरी कृपा चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः मेरी कृपा उनके लिए है जो निर्धनों पर शबे क़द्र में दया करे। हज़रत मूसा ने कहाः मैं सिरात से आसानी से गुज़रना चाहता हूं, ईश्वर ने कहाः यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दान दक्षिणा करे। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर मैं स्वर्ग के पेड़ों का फल चाहता हूं। ईश्वर ने कहा, यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में हमारा गुणगान करे। हज़रत मूसा ने कहाः नरक की आग से किस तरह मुक्ति पाऊं?  ईश्वर ने कहा उसे नरक की आग से मुक्ति मिलेगी जो शबे क़द्र में पापों की क्षमा मांगे। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर तेरी प्रसन्नता चाहता हूं, ईश्वर ने कहाः मेरी प्रसन्नता उसे मिलेगी जो शबे क़द्र में दो रकअत नमाज़ पढ़े।"

शबे क़द्र इंसान के लिए आत्मविश्लेषण और अपने सद्कर्म के बारे में चिंतन मनन का बहुत अच्छा अवसर है। अपने कर्म के बारे में चिंतन मनन का इस रात में जो हज़ार महीनों से बेहतर है, बहुत अधिक फ़ायदा है। शबे क़द्र उन लोगों के लिए जो अपने जीवन का एक भाग यूं ही गवा दिया है, होश में आने के लिए एक अवसर है कि वे सोचें कि कहां से आए हैं? इस दुनिया में उनके क्या लक्ष्य हैं और अंजाम क्या है कहां जाएंगे? हो सकता है कोई व्यक्ति थोड़े से चिंतन मनन से सत्य के मार्ग को पा जाए। इसी वजह से इस्लामी रवायत में एक क्षण के चिंतन मनन को 70 साल की उपासना से बेहतर कहा गया है। इस रात कृपा के स्रोत से संपर्क बनाकर जीवन को नया अर्थ दिया जा सकता है। मन को पाप से पाक कर भलाई की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। शबे क़द्र मन को ईश्वर के नाम से सुसज्जित करने और उससे संदेह को दूर करना है। शबे क़द्र के बारे में जिबरईल ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, "हे मोहम्मद! शबे क़द्र वह रात है जिसमें कोई भी दुआ करने वाला ऐसा नहीं है जिसकी दुआ का जवाब न दिया जाता हो और कोई भी प्रायश्चित करने वाला ऐसा नहीं है जिसका प्रायश्चित क़ुबूल न किया जाता हो।"     

जी हां शबे क़द्र उन लोगों के लिए अवसर है जिन्होंने अपना जीवन व्यर्थ में गुज़ारा है। उनके लिए ग़लतियों की भरपायी और ईश्वर की ओर पलटने का अवसर है। जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है, "इस रात में रुकू और सजदा करने वाले सौभाग्यशाली हैं। अपनी विगत की ग़लतियों के मद्देनज़र रोते हैं और मुझे उम्मीद है कि ऐसे लोग ईश्वर की ओर से निराश नहीं होंगे।"

 

 

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