माहे रमज़ान के बाईसवें दिन की दुआ (22)

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माहे रमज़ान के बाईसवें दिन की दुआ (22)

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللَّـهُمَّ افْتَحْ لي فيهِ اَبْوابَ فَضْلِكَ، وَاَنْزِلْ عَلَيَّ فيهِ بَرَكاتِكَ، وَوَفِّقْني فيهِ لِمُوجِباتِ مَرْضاتِكَ، وَاَسْكِنّي فيهِ بُحْبُوحاتِ جَنّاتِكَ، يا مُجيبَ دَعْوَةِ الْمُضْطَرّينَ.

अल्लाह हुम्मफ़-तह ली फ़ीहि अबवाब फ़ज़लिक, व अनज़िल अलैय फ़ीहि बरकातिक, व वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि ले मूजिबाति मरज़ातिक, व अस-किन्नी फ़ीहि बुह-बूहाति जन्नातिक, या मुजीबा दावतिल मुज़तर्रीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! मुझ पर इस महीने में अपने फ़ज़्ल के दरवाज़े खोल दे, और इस में अपनी बरकतें मुझ पर नाज़िल कर दे, और इस में अपनी ख़ूशनूदी के असबाब फ़राहम करने की तौफ़ीक़ अता कर, और इस के दौरान मुझे अपनी जन्नत के दरमियान बसा दे, ऐ बे बसों की दुआ क़ुबूल करने वाले...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

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