बंदगी की बहार- 22

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बंदगी की बहार- 22

21वीं रमज़ान ईमान वालों के सरदार हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत की तारीख़ है और हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।

इस रात एक ऐसे व्यक्ति ने दुनिया को विदा कहा जिसकी वास्तविकता को न तो पहले वाले लोग समझ सके हैं और न ही आने वाले उस जैसा व्यक्ति देख सकेंगे। ऐसा महान व्यक्ति जिसका संपूर्ण अस्तित्व हर भलाई की कुंजी था और अगर लोग उसे स्वीकार कर लेते तो उन पर ईश्वर की अनुंकपाओं की वर्षा होने लगती लेकिन वे अनुकंपाओं पर अकृतज्ञ रहे और उन्होंने संसार को प्रलय पर प्राथमिकता दी। इस प्रकार संसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अस्तित्व और उनके ईमान व ज्ञान की छाया में जीने की अनुकंपा से वंचित हो गया।

"ईश्वर की सौगंध! मार्गदर्शन के स्तंभ ध्वस्त हो गए, ईश्वरीय भय की निशानियां मिट गईं और रचयिता व रचना के बीच जो मज़बूत रस्सी थी वह टूट गई। मुहम्मद मुस्तफ़ा के चचेरे भाई की हत्या कर दी गई, अली शहीद हो गए और सबसे बड़े दुर्भागी ने उन्हें शहीद कर दिया।" यह आवाज़ कूफ़े में गूंजी और इसने दुनिया को एक बड़ी दुर्घटना से अवगत करा दिया। इस आवाज़ ने बताया कि मानवता, अनाथ हो गई और ईश्वर द्वारा लोगों की मुक्ति के लिए तैयार किया गया मार्गदर्शन का सबसे मज़बूत स्तंभ धराशायी हो गया और इसके बाद इस धरती पर मानव इतिहास का हर क्षण अंधकार में डूब जाएगा।

दो दिन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम का घायल शरीर बिस्तर पर है और पूरा कूफ़ा व्याकुल है। यह वही कूफ़ा है जिसने उन्हें कई बार दुखी किया था, यहां तक कि संसार के सबसे दयालु व कृपालु व्यक्ति ने अपने हाथ आसमान की ओर उठा कर कहा थाः प्रभुवर! मेरे लिए ऐसे लोग भेज दे जो इनसे बेहतर हों और इनके लिए ऐसे को भेज दे जिसके आने से इन्हें मेरे मूल्य का पता चले। जी हां! वही लोग जिन्होंने अपने अज्ञान व समय की सही पहचान न होने के कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बहुत अधिक दुखी किया था, अब चिंताग्रस्त थे कि अब अली के बिना, उनके प्रेम के बिना, उनके साहस के बिना, उनके न्याय के बिना, उनके फ़ौलादी संकल्प के बिना, उनकी दोधारी तलवार के बिना और उनके प्रकाशमयी अस्तित्व के बिना उनके शांत व सुरक्षित जीवन और कमज़ोर ईमान का क्या होगा?

दूसरी ओर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मित्र, सहायक व चाहने वाले, जो हमेशा उनकी सेवा में रहते थे और उनके हर आदेश का हर क़ीमत पर पालन करते थे, व्याकुल थे और आंसू भरी आंखों के साथ उनके घर के बाहर एकत्रित थे। वे ऐसे लोग थे जो ग़दीर की घटना को भूले नहीं थे जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और कहा था कि जिसका मैं स्वामी हूं, उसके ये अली स्वामी हैं। इसके बाद उन्हों ने सभी से उनके आज्ञापालन का वचन लिया था। इन लोगों को मुस्लिम समाज की चिंता थी और उस महान सभ्यता की चिंता थी जिसकी नींव पैग़म्बरे इस्लाम ने रखी थी और पैग़म्बर के तथाकथित मानने वाले उसके स्तंभों को धराशायी करते जा रहे थे। इन्हें मानव इतिहास की चिंता थी कि अली के बिना उसका क्या होगा?

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर के बाहर एकत्रित व्याकुल लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने हज़रत अली के प्रेम व स्नेह का सबसे अधिक स्वाद चखा था और वे थे कूफ़े के अनाथ व दरिद्र बच्चे। उनकी रोती हुई आंखें और रंग उड़े चेहरे, पिछले दो दिनों में हज़रत अली के घर के बाहर एक हृदय विदारक दृश्य पेश कर रहे थे। इनमें से हर एक बच्चा अपने हाथ में दूध का एक प्याला लेकर आया था ताकि अपने आध्यात्मिक पिता के उपचार में मदद कर सके, उन्हें आशा थी कि इस तरह हज़रत अली के घायल शरीर में एक नई जान पड़ जाएगी, लेकिन खेद कि ऐसा न हो सका।

दो दिन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम बिस्तर पर निढाल पड़े हुए थे और उनके घर के बाहर एकत्रित होने वाले चिंतित लोगों को उनसे मिलने की अनुमति थी। वे एक एक करके उनके पास जाते और उन्हें सलाम करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, जिनके शरीर में विष का प्रभाव बड़ी तेज़ी से फैल रहा था, उसी कमज़ोरी की हालत में लोगों से कहते थे कि इससे पहले कि तुम मुझे खो दो, मुझसे जो चाहो पूछ लो लेकिन संक्षेप में पूछो। विष के प्रभाव के कारण बेहोश होने से पहले वे हर क्षण लोगों का मार्गदर्शन करते रहते थे और उनसे कहते थे कि वे उनके ज्ञान से लाभ उठाएं।

इन दो दिनों में लोगों से मुलाक़ात के अलावा, जिसके दौरान उनकी बिगड़ती हालत और लोगों की अधिक संख्या के कारण कोई प्रश्न व उत्तर नहीं हो पाता था, उनके कुछ विशेष साथियों को भी उनके जीवन के अंतिम क्षणों में उनसे मिलने का अवसर मिला। उन्हीं में से एक हबीब बिन अम्र थे। वे कहते हैं कि मैं उनके घर में प्रविष्ट हुआ और उन्हें देख कर रोने लगा, कई और लोग रोने लगे। जब घर के अंदर से रोने की आवाज़ बाहर गई तो लोगों के धैर्य का बांध भी टूट गया और वे भी ऊंची आवाज़ से रोने लगे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी आंखें खोलीं और कहाः जो कुछ मैं देख रहा हूं, उसे अगर तुम भी देखते तो न रोते। मैंने पूछाः हे ईमान वालों के सरदार! आप क्या देख रहे हैं? उन्होंने कहा कि मैं ईश्वर के फ़रिश्तों को देख रहा हूं, मैं पैग़म्बरों व रसूलों को देख रहा हूं जो पंक्ति बना कर मुझे सलाम कर रहे हैं और स्वागतम कह रहे हैं। मैं पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को देख रहा हूं जो मेरे पास बैठे हुए हैं और कह रहे हैं कि हे अली! जल्दी आओ, जो संसार तुम्हारी प्रतीक्षा में है, वह उस संसार से कहीं बेहतर है जिसमें तुम इस समय हो।

जब चिकित्सक ने हज़रत अली अलैहिस्सालम के उपचार से अपने असहाय व अक्षम होने की घोषणा कर दी तो उन्होंने अपने बड़े बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपने क़रीब बुलाया और वसीयत करने लगे। अपनी वसीयत के एक भाग में उन्होंने कहा कि मैं तुम सबको ईश्वर से डरने की सिफ़ारिश करता हूं, दुनिया के पीछे न भागना, चाहे वह तुम्हारे पीछे आती रहे, दुनिया की धन संपत्ति में से जो तुम्हारे हाथ से निकल जाए उस पर दुखी मत होना, सच्ची बात कहना, हक़ का साथ देना, प्रलय के पारितोषिक के लिए काम करना और अत्याचारी के दुश्मन और अत्याचारग्रस्त के सहायक रहना।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी वसीयत के एक अन्य भाग में कहा थाः अनाथों पर बहुत अधिक ध्यान देना, पड़ोसियों का बहुत ख़याल रखना, पैग़म्बर ने पड़ोसियों के बारे में इतनी सिफ़ारिश की कि हमें लगने लगा कि शायद पड़ोसी विरासत में भी भागीदार बन जाएंगे। क़ुरआने मजीद पर बहुत ध्यान देना, ऐसा न हो कि उस पर अमल करने के संबंध में दूसरे तुम से आगे बढ़ जाएं। नमाज़ पर भी बहुत अधिक ध्यान देना कि वह तुम्हारे धर्म का आधार है। इसी तरह काबे पर भी बहुत अधिक ध्यान देना, कहीं ऐसा न हो कि हज बंद हो जाए, अगर हज को छोड़ दिया गया तो तुम्हें मोहलत नहीं दी जाएगी और दूसरे तुम्हें अपना शिकार बना लेंगे। ये हज़रत अली अलैहिस्साम की वसीयत के केवल कुछ ही भाग हैं। उनकी वसीयत यद्यपि छोटी थी लेकिन उसने मानवता के घोषणापत्र और मानव समाज की परिपूर्णता के रास्ते का रेखांकन किया है।

आज लगभग 14 सदियों के बाद भी दुनिया उस व्यक्ति के लिए शोकाकुल है जिसके साथ रहने की लालसा संसार के सभी स्वतंत्रताप्रेमियों के दिल में है। ब्रिटेन के प्रख्यात दार्शनिक कारलायल कहते हैं। हम अली (अलैहिस्सलाम) को चाहने और उनसे प्रेम करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते क्योंकि वे एक महान हृदय वाले साहसी पुरुष हैं। उनकी आत्मा के स्रोत से भलाई के अलावा और कुछ नहीं निकलता था, उनके हृदय से साहस व शौर्य के शोले निकलते थे, वे शेर से ज़्यादा बहादुर थे लेकिन उनकी बहादुरी दया, कृपा, स्नेह और नर्मदली से जुड़ी हुई थी। वे कूफ़ा में शहीद हुए, उनका अत्यधिक न्याय ही इस अपराध की वजह बना, उन्होंने अपनी मौत से पहले अपने हत्यारे के बारे में कहा थाः अगर में ज़िंदा रहा तो मैं ख़ुद उसके बारे में फ़ैसला करूंगा लेकिन अगर मैं मर गया तो फिर फ़ैसला तुम्हें करना होगा, अगर तुम उससे बदला लेना चाहोगे तो एक वार के बदले में सिर्फ़ एक ही वार करना और अगर तुम उसे क्षमा कर दोगे तो यह ईश्वरीय भय के अधिक निकट है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, मानव इतिहास की सबसे पीड़ादायक घटनाओं में से एक है। वे न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि सभी सत्य व न्याय प्रेमियों और नैतिक गुणों के खोजियों के लिए एक सम्मानीय आदर्श थे और हैं। यही कारण है कि सभी पवित्र हृदय वाले उनकी शहादत के दिन शोकाकुल हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ की स्थिति में मस्जिद में ज़हर से बुझी हुई तलवार से उन लोगों के हाथों शहीद हुए जो अपने आपको मुसलमान कहते थे। उनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा थाः हे अली! ईमान आपके अस्तित्व से गूंधा गया और वह आपके मांस और ख़ून में जुड़ा हुआ है जैसा कि वह मेरे मांस और ख़ून से जुड़ा हुआ है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद उनके सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम लोगों के सामने आए और उन्होंने ईश्वर के गुणगान के बाद कहाः आज उस व्यक्ति ने दुनिया को विदा कहा है जिसकी वास्तविकता को न तो पहले वाले लोग समझ सके हैं और न ही आने वाले उस जैसा व्यक्ति देख सकेंगे। वे जब युद्ध नहीं कर रहे होते थे तो जिब्रईल उनके दाहिनी और मीकाईल बाईं ओर रहा करते थे। ईश्वर की सौगंध! वे उसी रात इस संसार से गए जिस रात हज़रत मूसा का निधन हुआ था, हज़रत ईसा को आसमान में ले जाया गया था और क़ुरआने मजीद नाज़िल हुआ था। जान लो कि उन्होंने अपने लिए सात सौ दिरहम के अलावा कोई सोना-चांदी नहीं छोड़ा है और वह भी उनके वेतन का बचा हुआ पैसा है। हे ईमान वालों के सरदार! ईश्वर आपसे प्रसन्न रहे। ईश्वर की सौगंध! आपका पूरा अस्तित्व हर भलाई की कुंजी था और अगर लोग आपका स्वीकार कर लेते तो उन पर ईश्वर की अनुंकपाओं की वर्षा होने लगती लेकिन वे अनुकंपाओं पर अकृतज्ञ रहे

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