ईश्वरीय आतिथ्य- 22

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ईश्वरीय आतिथ्य- 22

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कूफ़े की मस्जिद में रमज़ान का महत्व बताते हुए अपने भाषण में कहा कि हे लोगो! पवित्र रमज़ान का सूरज, रोज़ा रखने वालों पर ईश्वर की कृपा के साथ चमक रहा है।

इस पवित्र महीने के दिन औ-र रात हर समय ईश्वर की अनुकंपाएं, रोज़ेदारों पर उतर रही हैं।  ऐसे में जो भी ईश्वर की छोटी सी भी अनुकंपा से लाभान्वित होगा वह प्रलय के दिन ईश्वर से मुलाक़ात के समय सम्मानीय होगा।  ईश्वर का कोई भी बंदा उसके निकट सम्मानीय नहीं हो सकता मगर यह कि स्वर्ग उसका स्थान होगा।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम जब ख़ुत्बा देकर मिंबर से नीचे उतरे तो "हमदान" क़बीले से संबन्ध रखने वाले एक व्यक्ति ने आपसे अनुरोध किया कि हे अमीरल मोमेनीनः आप रमज़ान के बारे में हमें और अधिक बताइए।  इमाम अली ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कुछ कथन सुनाए।  हज़रत अली के ख़ुत्बे के अंत में उस व्यक्ति ने कहा कि हे अमीरल मोमेनीन, पैग़म्बरे इस्लाम ने रमज़ान के बारे में आपसे क्या कहा इस बारे में हमें बताइए।  इसपर हज़रत अली ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा था कि सर्वश्रेष्ठ महीने में ईश्वर का पसंदीदा व्यक्ति मारा जाएगा।

हमदान क़बीले के उस व्यक्ति ने पूछा कि वह ईश्वर का पसंदीदा व्यक्ति कौन है? पैगम्बर ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ महीना रमज़ान है और पसंदीदा इंसान तुम हो।  इमाम अली ने कहा कि हे पैग़म्बरे इस्लाम (स) क्या एसा होगा?  रसूले ख़ुदा ने कहा कि हे अली हां एसा ही है।  ईश्वर की सौगंध, मेरी उम्मत का एक अति दुष्ट व्यक्ति तुम्हारे सिर पर वार करके तुमको घायल कर देगा।  यह सुनकर लोग रोने लगे।  इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपना ख़ुत्बा रोक दिया और मिंबर से नीचे उतर आए।

आधा रमज़ान गुज़र चुका था।  अब शबेक़द्र नज़दीक आ रही थी। वह रात आ पहुंची थी जिसने पूरी मानवता को दुखी किया था।  नमाज़ की हालत में सजदे की स्थिति में इब्ने मुल्जिम नामक दुष्ट ने हज़रत अली के सिर पर तलवार से वार किया जिसके बाद ख़ून में डूबे हुए अली ने कहा था कि ईश्वर की सौगंध अली कामयाब हो गया।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम इतिहास के एसे महान व्यक्ति हैं जिनकी प्रशंसा हर काल के महान लोगों ने की है।  उनकी जवानी हर युवा के लिए आदर्श है।  उनकी दूरदर्शिता सर्वविदित है।  हज़रत अली ने कहा है कि लोगो, तुक दूसरों के दास न बनो क्योंकि ईश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र पैदा किया है।  ईश्वर के मार्ग में अडिग रहो।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पूरी दृढ़ता के साथ न्याय की स्थापना का प्रयास किया।  वे न्याय के ध्वजवाहक थे जो सरकारों और नेताओं के लिए भी आदर्श हैं।  हज़रत अली के संबन्ध में एक जर्मनी कवि जेनिन कहते हैं कि मैं अली से प्रेम करने के लिए इस लिए मजबूर हुआ क्योंकि वे महान व्यक्तित्व के स्वामी थे, उनकी अंतरात्मा पवित्र थी, उनका मन त्याग और बलिदान से भरा हुआ था।  वे बहुत वीर थे।  अली, वीर होने के साथ ही कृपालु और हमदर्द भी थे।

इमाम अली अलैहिस्सलाम ईश्वरीय शासन का नमूना और पवित्र क़ुरआन का जीता-जागता रूप थे।  लोगों के साथ कृपालू और काफ़िरों के विरुद्ध कठोर थे।  निर्धनों के निकट रहते और कमज़ोरों का सहारा थे।  वे लोग जिन्होंने धन और बल के सहारे स्वयं को चर्चित करवा रखा था वे लोग हज़रत अली की दृष्टि में आम लोगों की दृष्टि में महत्व नहीं रखते थे।  जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सत्ता संभाली तो उनसे कहा कि वे प्रभावशाली लोग जो उच्च पदों पर आसीन हैं उनको पदों से हटाना आपके हित में नहीं है।  इसके जवाब में आपने कहा था कि क्या तुमको इस बात की अपेक्षा है कि अली, अत्याचार के माध्यम से सत्ता में बाक़ी रहे।

जब तक दुनिया बाक़ी है उस समय तक अली ऐसा कर ही नहीं सकते।  हज़रत अली की दृष्टि में जो चीज़ महत्वपूर्ण थी वह ईमान और तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय था।  वे मानवता को महत्व देते थे।  उनके निकट निष्ठा और संघर्ष को विशेष महत्व प्राप्त है।  उन्होंने पूरी ईमानदारी और न्याय के साथ शासन किया।  यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिस निष्ठा के साथ ईश्वर की उपासना करते थे उसका मुख्य कारण उनके निकट ईश्वर का महत्व था।  एक स्थान पर वे कहते हैं कि हे ईश्वर! मैं तेरी उपासना न तो नरक के भय से करता हूं और न ही स्वर्ग के लालच में करता हूं बल्कि तेरी उपासना इसलिए करता हूं कि तू इसका हक़दार है।

रमज़ान के पवित्र महीने में हज़रत अली अलैहिस्सलाम रात के अधिकांश भाग में उपासना करते थे।  रमज़ान के बारे में वे कहते थे कि हे लोगो! रमज़ान के दौरान अधिक से अधिक दुआएं और प्रायश्चित करो।  इसका कारण यह है कि दुआ, बलाओं और संकटों को दूर करती है तथा इस्तग़फ़ार या प्रायश्चित, पाप को समाप्त कर देती है।  जब पवित्र रमज़ान आधा गुज़र जाता था तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहा करते थे कि लोगों, आधा रमज़ान गुज़र चुका है।  अब रमज़ान के कुछ ही दिन बचे हैं।  रमज़ान एक ख़ज़ाने की तरह है।  अब इस ख़ज़ाने से जितना हो सके अपने लिए लेकर रख लो ताकि आवश्यकता के समय उसका प्रयोग किया जा सके और दूसरों के मोहताज न बनो।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम शियों को संबोधित करते हुए उनसे सिफ़ारिश करते हैं कि हर रात ईश्वर के द्वार पर जाकर उसे खटखटाओ।  उसके नामों से उसकी प्रशंसा करो।  उसकी अनुकंपाओं से लाभ उठाओ और उसके मेहमान बने रहो।

पवित्र क़ुरआन ऐसी किताब है जिसकी तिलावत मनुष्य को विशेष शक्ति प्रदान करती है लेकिन रमज़ान के पवित्र महीने में इसकी तिलाव करने से विशेष आनंद प्राप्त होता है।  इसीके साथ इस महीने में क़ुरआन पढ़ने का बहुत सवाब भी है।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जहां पवित्र क़ुरआन के पढ़ने पर बहुत बल दिया है वहीं पर कहा है कि इसपर अधिक से अधिक अमल करने का प्रयास करता रहे।  अपने संबोधन में वे कहते हैं कि ऐसा न हो कि क़ुरआन पर अमल करने के मामले में दूसरे तुमसे आगे निकल जाएं।  एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि क़ुरआन का विदित रूप नरक से मुक्ति दिलाता है।  अगर क़ुरआन के आदेशों पर अमल किया जाए तो ईश्वर उसे माफ़ कर देता है।  उसने जो वादा किया है उसे वह पूरा करता है।

निर्धन्ता को दूर करना और वंचितों की सहायता ऐसे काम हैं जिनकी सिफ़ारिश क़ुरआन में की गई है।  इसका इतना महत्व है कि ईश्वर क़ुरआन में कहता है मुसलमानों की संपत्ति में निर्धनों और वंचितों का अधिकार है।  जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम शहीद हो गए तो कुछ एसे भी अनाथ थे जो भूखे थे।  बाद में पता चला कि हज़रत अली उन अनाथों को खाना पहुंचाया करते थे।  वे रमज़ान में पाबंदी से लोगों के लिए खाने का प्रबंध करते थे।  वे लोगों के लिए इफतारी का प्रबंध करते और उसे उनतक पहुंचाते थे।  वे निर्धनों और भूखों का बहुत ध्यान रखते थे।

हज़र अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। इमाम अली अलैहिस्सलाम को समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे।  वे ईश्वर की गहरी पहचान और विशुद्ध मन के साथ ईश्वर की उपसना करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि संसार के लोग दो प्रकार के होते हैं। एक गुट ऐसा है जो अपने आप को भौतिक इच्छाओं के लिए बेच देता है और स्वयं को तबाह कर लेता है।  दूसरा गुट वह है जो को ईश्वर के आज्ञापालन द्वारा स्वयं को स्वतंत्र कर लेता है।  यही गुट कल्याण प्राप्त करता है।

हज़र अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। इमाम अली अलैहिस्सलाम को समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे परन्तु ईश्वर का इन्कार करने वालों से युद्ध और अत्याचारग्रस्तों की सुरक्षा करते हुए रक्षा क्षेत्रों में उनके साहस और वीरता के सामने कोई टिक ही नहीं पाता था। ख़ैबर के युद्ध में जिस समय विभिन्न सेनापति ख़ैबर के क़िले का द्वार खोलने में विफल रहे तो अंत में पैग़म्बरे इस्लाम ने घोषणा की कि कल मैं इस्लामी सेना की पताका एसे व्यक्ति को दूंगा जिससे ईश्वर और उसका पैग़म्बर प्रेम करते हैं। दूसरे दिन लोगों ने यह देखा कि सेना की पताका हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी गयी और उन्होंने ख़ैबर के अजेय माने जाने वाले क़िले पर उन्होंने वियज प्राप्त कर ली।

 

 

 

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