रमज़ान का पवित्र महीना अपनी सभी विभूतियों और सुंदरताओं के साथ अपने अंत की ओर बढ़ रहा है लेकिन इसकी सुगंध हमारे जीवन के वातावरण में बाक़ी रहेगी।
जिन लोगों ने इस महीने में ईश्वरीय बंदगी का स्वाद चखा है वह इस बात पर प्रसन्न हैं कि वे अपने दायित्वों के पालन में सफल रहे हैं। इसी के साथ वे इस बात से दुखी भी हैं कि रमज़ान अपने प्रकाशमयी क्षणों के साथ गुज़र रहा है। रमज़ान के महीने से हमें पता चलता है कि हमें अपने जीवन में इस तरह के क्षणों, घंटों, दिनों और रातों की कितनी ज़रूरत है। रमज़ान के दिन ईश्वर के आदेशों के आज्ञापालन और रातें दयालु व कृपालु ईश्वर की उपासना व उससे प्रार्थना से परिपूर्ण होते हैं। इस मूल्यवान व पवित्र महीने के क्षण व घंटे बड़ी तेज़ी से गुज़र गए और हमने इसके दिनों व रातों को ईश्वर की दया की प्राप्ति की आशा में बिताया और उसके आदेश पर भूख व प्यास सहन करके पापों से दूर रहे।
रमज़ान के महीने में बहुत से भाग्यशाली लोगों ने अत्यधिक उपलब्धियां अर्जित कीं और परिणाम हासिल किए जो उनके साल भर के काल में नहीं पूरे जीवन में विभूतिपूर्ण रहेंगे। कुछ लोगों ने क़ुरआने मजीद से आत्मीयता पैदा कर ली और उसकी आयतों पर विचार व चिंतन मनन करके अहम क़ुरआनी शिक्षाओं से लाभ उठाया। कुछ अन्य ने इस महीने में ईश्वर से दुआ व प्रार्थना की आदत डाल कर अपने दिल को प्रकाशमयी कर लिया। जिन लोगों ने रोज़े रखे उन्होंने रोज़े के माध्यम से अपने दिल की पवित्र बनाया और यही पवित्रता व प्रकाश उनके व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में बहुत सी विभूतियों का स्रोत है। दिल की पवित्रता मनुष्य को अच्छी सोच प्रदान करती है, उसे ईर्ष्या, कंजूसी, घमंड और अन्य बुराइयों से रोकती है, समाज के वातावरण को सुरक्षित बनाती है। ये सब रमज़ान के पवित्र महीने की उपलब्धियां हैं।
तौबा व प्रायश्चित, ईश्वर की ओर वापसी और अंतरात्मा की पवित्रता रमज़ान के महीन की बड़ी उलब्धियां हैं। जैसा कि हम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की प्रख्यात दुआ अबू हमज़ा सोमाली में पढ़ते हैं कि प्रभुवर! हमें तौबा के चरण तक पहुंचा दे कि हम लौट सकें और बुरे कर्म, बुरी सोच और दुर्व्यवहार से दूर हो सकें। इसी प्रकार वे रमज़ान महीने की विदाई के समय पढ़ी जाने वाली दुआ में कहते हैः प्रभुवर! तूने ही अपनी क्षमा की ओर एक दरवाज़ा खोला है और उसका नाम तौबा रखा है। मनुष्य अपनी मानवीय व आंतरिक इच्छाओं के चलते ग़लतियां कर बैठता है और पाप करने लगता है।
हर पाप हमारी आत्मा पर एक घाव लगाता है और अगर तौबा का मार्ग खुला नहीं होता तो किस प्रकार हम आत्मग्लानी से मुक्ति पा सकते थे। हमारा ईश्वर से क्षमा याचना करना और दयालु व कृपालु ईश्वर की ओर से हमें क्षमा करना, हमारे भीतर आशा की आत्मा फूंक देता है। ईश्वर की दया व कृपा से हम अपने आपको उन सभी अत्याचारों से मुक्त कर सकते हैं जो हमने अपने आप पर किए हैं और अपने पापों की गठरी फेंक कर हम ईश्वर की शरण में जा सकते हैं। ईश्वर ने हमारे लिए यह शरणस्थल खोल रखा है और इसका नाम तौबा व प्रायश्चिम रखा है। यही कारण है कि ईश्वर के पवित्र बंदे हमेशा तौबा का मूल्य समझने पर बल देते हैं। कोई युवा अपनी निश्चेतना व अज्ञान के कारण घर से भाग जाता है लेकिन फिर अपने माता-पिता के पास वापस आ जाता है तो वे उसे गले से लगाते हैं और वह उनकी ओर से प्रेम व स्नेह का ही पात्र बनता है। यही तौबा है। जब हम ईश्वरीय दया के घर की ओर लौटते हैं तो ईश्वर हमें गले से लगाता है और हमारी तौबा स्वीकार कर लेता है। हमें, वापसी के इस अवसर का, जो रमज़ान के महीने में प्राकृतिक रूप से ईमान वाले व्यक्ति के लिए उपलब्ध होता है, मूल्य समझना चाहिए।
एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तूर पर्वत पर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे और उन्होंने इस प्रकार ईश्वर को पुकाराः हे ब्रह्मांड के ईश्वर! उन्हें जवाब दिया गया। मैंने तुम्हारी पुकार को स्वीकार कर लिया। हज़रत मूसा ने एक बार फिर अनन्य ईश्वर को किसी ओर विशेषता से पुकारा और कहाः हे आज्ञापालन करने वालों के ईश्वर! एक बार फिर ईश्वर ने उनकी बात को स्वीकार कर लिया। ईश्वर के प्रेम भरे उत्तरों से हज़रत मूसा अभिभूत हो गए और इस बार उन्होंने अधिक उत्साह के साथ पुकाराः हे पापियों के ईश्वर! इस पुकार के जवाब में हज़रत मूसा ने तीन बार ईश्वर का उत्तर सुना। उन्होंने पूछा कि प्रभुवर! इसका कारण है कि इस बार तूने मेरी पुकार का तीन मर्तबा जवाब दिया? उनसे कहा गयाः हे मूसा! मेरी पहचान रखने वाले अपनी पहचान से आशा लगाए हुए हैं, सद्कर्मियों को अपने भले कर्मों के प्रति आशावान हैं। मेरा आज्ञापालन करने वालों को अपने आज्ञापालन पर भरोसा है लेकिन पापियों के पास तो मेरे अलावा कोई और शरण है ही नहीं। अगर वे मेरी ओर से भी निराश हो गए तो फिर वे किसकी शरण में जाएंगे?
रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य उपलब्धि, ईश्वरीय कृपा से अधिक आशा है जो निश्चित रूप से एक अत्याधिक सुंदर, आध्यात्मिक दशा है जो हक़ीक़त में मनुष्य की पूरी उम्र में रहना चाहिए। क़ुरआने मजीद ने अनेक आयतों में मनुष्य को, ईश्वर की दया व कृपा के प्रति आशावान किया है। सूरए यूसुफ़ की आयत नंबर 87 में बड़े सुंदर रूप में कहा गया है कि "और ईश्वर की दया से निराश न हो कि उसकी दया से नास्तिकों के अलावा कोई निराश नहीं होता। वास्तविकता यह है कि कुछ लोग, कुछ चीज़ों को गंवाने या किसी समस्या में ग्रस्त हो जाने के बाद निराश हो जाते हैं और कभी कभी कमज़ोर ईमान और ईश्वर की सही पहचान न होने की वजह से, अकृतज्ञता भी प्रकट करने लगते हैं जबकि मनुष्य को यदि अपने पालनहार की अपार शक्ति पर विश्वास हो तो वह किसी भी दशा में उसकी दया और कृपा की ओर से निराश नहीं हो सकता। जिस ईश्वर ने अपने दूत, हज़रत यूनुस को समुद्र की अंधेरी गहराई और मछली से पेट से छुटकारा दिलाया वह, आस्थावानों की दुआएं सुन कर उन्हें पूरी करने क क्षमता रखता है।
रमज़ान का पवित्र महीना, जाते जाते हमें यह बताता है कि, रमज़ान की ही तरह, जवानी, ताक़त और अवसर भी बड़ी तेज़ी से चले जाते हैं। वास्तव में रमज़ान का चला जाना हमें यह अवसर प्रदान करता है कि हम इस बात पर विचार करें कि हम कहां खड़े हैं? हमने क्या पाया और क्या खोया? और अब आगे जीवन के उतार- चढ़ाव भरे मार्ग पर कैसे चलेंगे? इस्लामी किताबों में लिखा है कि इस्लाम के आरंभिक काल की बड़ी हस्ती, हारिस हमदानी ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से शिकायत की कि आज मैं मस्जिद गया तो देखा कि मुसलमान, गुटों में बैठे हुए हैं और पैग़म्बरे इसलाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कथनों और हदीसों के बारे में एक दूसरे से बहस कर रहे हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनकी बात सुन कर कहा कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम से स्वंय सुना है कि वह कह रहे थे कि इस्लामी समाज में हमेशा शंकाएं और साज़िशें होती रहेंगी किंतु उन सब का समाधान क़ुरआने मजीद है। श्रोताओ हमें आशा है कि हम रमज़ान के महीने को इस हालत में गुज़ारें कि क़ुरआने मजीद की आयतों को अपने जीवन के लिए आदर्श बना चुके हों। क्योंकि यह निश्चित है कि क़ुरआने मजीद की आयतों और उसकी शिक्षाएं मनुष्य के जीवन में ताज़गी और आशा पैदा करती हैं और यही वजह है कि कुरआने मजीद की आयतों को शिफ़ा अर्थात स्वास्थ्य लाभ भी कहा जाता है।
इस महीने में हर एक की यही कोशिश रही कि वह स्वयं को उन गुणों से सुसज्जित कर ले जिनकी प्रशंसा, कृपालु ईश्वर ने की है। सौभाग्यशाली हैं वे लोग जिन्होंने इस अवसर से लाभ उठाया और स्वयं को मानवीय व नैतिक सद्गुणों से सुसज्जित किया और यह सीख लिया कि जीवन में सब से अच्छा कर्म वह होता है जिसे साफ़ नीयत और ईश्वर की प्रसन्नता के इरादे से किया जाए। हमारे लिए कितना अच्छा है कि हम रमज़ान के पवित्र महीने में अपने आध्यात्मिक अनुभव को, अपने जीवन के हर क्षण पर व्याप्त कर दें। निश्चित रूप से रमज़ान का महीना और उसमें रोज़ा, आध्यात्मिक व भौतिक लाभ लिए हुए है किंतु उसका सब से महत्वपूर्ण लाभ, तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और पापों से दूरी है। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने का फल, हमारे मन व मस्तिष्क में ईश्वरीय भय का घर कर जाना है और उसके परिणाम में पापों से बचना है। यदि हम इस चरण पर पहुंच गये तो यह भय और यह तक़वा हमें जीवन के हर मोड़ पर रास्ता दिखाएगा और पाप व पुण्य के पुल पर हमारे क़दम को डगमगाने नहीं देगा और हमें कल्याण के गंतव्य तक पहुंचा देगा।
रमज़ान के पवित्र महीने में हम सबने अनेक सद्गुण हासिल किए और अच्छी आदतें सीखीं। इसी तरह हमने अनेक बुराइयों को अपने आपसे दूर किया। अब अहम बात यह है कि हम इस पवित्र महीने में अर्जित की गई उपलब्धियों को किस प्रकार हमेशा के लिए अपने जीवन में सुरक्षित रख सकते हैं? रमज़ान के महीने ने हमें अनेक विभूतियां प्रदान की हैं लेकिन जो चीज़ आवश्यक है कि वह यह है कि हम इन उपलब्धियों को सुरक्षित रखें और इस बात की अनुमति न दें कि पापों की बिजली इस मूल्यवान खलिहान को जला कर राख कर दे।