भद्रता और शिष्टाचार
जैसा कि आप जानते हैं कि दूसरों से अच्छा व्यवहार और सदाचार रोज़े के प्रशैक्षिक प्रभावों में है। शिष्ट स्वभाव सामाजिक संबंधों पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। इस अच्छी आदत का अच्छे सामाजिक संबंध बनाने में बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य स्वाभाविक रूप से सामाजिक प्राणी है। इसलिए इस्लाम ने सामाजिक संबंधों के कुछ नियम बनाए हैं जिन पर कार्यबद्ध रहकर विभिन्न मंचों पर मनुष्य सफलता व कल्याण को सुनिश्चित बनाता है। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से शिष्ट स्वभाव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः अपने स्वभाव को नर्म रखो और अच्छी बात करो और अपने धर्म बंधुओं के साथ खुले मन से पेश आओ।
शिष्ट स्वभाव अच्छे गुणों का समूह है जिससे अपने मन को सुशोभित करना चाहिए। हंसमुख व्यवहार, मेल-जोल और दूसरों के साथ अच्छे ढंग से पेश आना अच्छे स्वभाव के चिन्ह हैं। इस्लाम अपने अनुयाइयों को दूसरों के साथ सदैव विनम्रता से पेश आने के लिए कहता है और उन्हें दुर्व्यवहार व हिंसक व्यवहार से मना करता है।
शिष्ट स्वभाव और प्रसन्नचित्त रहने का सामाजिक मेल-जोल और बातचीत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि ईश्वर ने दयालु व मिलनसार लोगों में से अपने पैग़म्बरों को चुना ताकि लोगों पर उनका प्रभाव पड़े और उन्हें सत्य की ओर बुलाएं। यह महापुरुष अपने उच्च उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लोगों के साथ शिष्ट स्वभाव, मेल जोल और प्रेम व मित्रता रखते थे। वे सत्य के इच्छुक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते और उनकी आत्मा को मार्गदर्शन से तृप्त करते थे। ईश्वरीय पैग़म्बरों का स्वाभाव इतना प्रभावी होता था कि कभी कभी शत्रु का मन भी परिवर्तित हो जाता था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का अस्तित्व इस सद्गुण का उच्च उदाहरण है।
पवित्र क़ुरआन इस महानैतिक मूल्य को ईश्वर की ओर से बड़ी कृपा बताता है। जैसा कि सूरए आले इमरान की आयत क्रमांक 159 में आया हैः पैग़म्बर ईश्वर की कृपा से आप इन लोगों के साथ विनम्र हैं, यदि आप क्रूर स्वभाव व कठोर हृदय के होते तो ये सब आपके पास से भाग खड़े होते।
अच्छे ढंग से बातचीत भी संबंधों को घनिष्ठ बनाती है और यह भी शिष्ट स्वभाव का भाग है। अच्छे ढंग से भली बात कहना ईश्वरीय पैग़म्बरों व सदाचारियों की शैली रही है। ईश्वर सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 83 में मोमिनों को मीठी वाणी में बात करने का आदेश दे रहा है। जैसा कि इस आयत की व्याख्या में इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः मोमिन से हंसमुख अंदाज़ में बात करनी चाहिए और विरोधियों से नरमी से ताकि वे भी ईमान की ओर आकर्षित हों। यही कारण है कि ईश्वर ने हज़रत मूसा और हज़रत हारून से कहा कि वे यहां तक कि फ़रऔन से भी नरम अंदाज़ में बात करें शायद वह प्रभावित हो जाए और नसीहत ले।
लोगों के साथ शिष्ट न नर्म व्यवहार व्यक्ति के स्थान को उनके बीच ऊंचा कर देता है। उनके मन में उस व्यक्ति से प्रेम बढ़ जाता है। इसी प्रकार शिष्ट व्यवहार करने वाले व्यक्ति के मित्र बहुत होते हैं। लोगों का दुख-दर्द बटाना और उनकी सहायता करना जनसमर्थन से संपन्न होने का रहस्य है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन हैः लोगों के साथ इस प्रकार व्यवहार करो कि यदि इस संसार से चले जाओ तो तुम पर रोएं और यदि जीवित रहो तो तुमसे मिलने के लिए उत्सुक हों।
इस बिन्दु का उल्लेख भी आवश्यक लगता है कि शिष्ट व्यवहार का अर्थ दूसरों के ग़लत कामों के संबंध में उदासीनता नहीं है। दूसरे शब्दों में ग़लत कामों पर नकारात्मक प्रतिक्रिया को दुर्व्यवहार नहीं कहा जा सकता। इस्लाम की दृष्टि में शिष्ट व्यवहार का यह अर्थ नहीं है कि यदि कोई ग़लत बात नज़र आए तो उस पर मौन धारण कर लें या दूसरों के बुरे कर्मों की आलोचना न करें।
हंसी मज़ाक़ का विषय भी शिष्ट व्यवहार से जुड़ा हुआ है। हंसी-मज़ाक़ उस सीमा तक अच्छे कर्म की श्रेणी में आता है कि जब इसके द्वारा दूसरे के मन से दुख दूर हो जाए और वह प्रसन्न हो जाए किन्तु आवश्यक है कि यह हंसी-मज़ाक़ शिष्टाचार के दायरे में रहे और बुरी बातों से दूर हो। जैसा कि इस संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का स्वर्ण कथन हैः मैं हंसी मज़ाक़ करता हूं किन्तु उसमें भी सत्य बात के सिवा कुछ और नहीं कहता।
यूनुस शैबानी नामक व्यक्ति कहता है कि मुझसे इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने पूछाः तुम्हारे बीच हंसी-मज़ाक़ की क्या स्थिति है? मैंने कहाः बहुत कम होता है। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि हंसी-मज़ाक़ शिष्ट व्यवहार का भाग है और तुम इसके द्वारा अपने धर्म-बन्धु को प्रसन्न कर सकते हो। पैग़म्बरे इस्लाम भी दूसरों से हंसी-मज़ाक़ करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन हैः वह बड़ी विशिष्टता जिससे सुशोभित होने के कारण मेरे अनुयायी स्वर्ग में जाएंगे वह ईश्वर से भय तथा शिष्ट व्यवहार है।
श्रोताओ! आइये इक्कीसवीं रमज़ान को इस प्रार्थना से अपने मन को ताज़गी प्रदान करते हैं। हे प्रभु! इस दिन मुझे सदाचारियों की संगति प्रदान कर और बुरों की मित्रता से दूर कर दे और मुझे स्वर्ग में अपनी कृपा का पात्र बना। हे पूरे संसार के पालनहार।
इस्लाम धर्म के आवश्यक संस्कारों में तवल्ला और तबर्रा भी है। तवल्ला कर अर्थ होता है ईश्वरीय धर्म को मानने वालों से प्रेम करना और तबर्रा का अर्थ होता है ईश्वरीय धर्म के शत्रुओं से दूर रहना। अभी जो प्रार्थना आपने सुनी उसमें भी इसी महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत है। अच्छे लोगों की संगति में रहना चाहिए और इस मार्ग में डटे रहना चाहिए क्योंकि नैतिकता व सहिष्णुता के आदर्श अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम ही लोक-परलोक दोनों की सफलता की कुंजी है।
दुष्ट व्यक्तियों की संगति भी एक प्रकार का पाप है जिससे मना किया गया है क्योंकि व्यक्ति पर दुष्ट व्यक्ति की संगति का दुष्प्रभाव पड़ता है। भ्रष्टाचारी व्यक्ति और जिन्हें पाप करने की आदत हो गयी है, इसी श्रेणी में आएंगे। इस संदर्भ में इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सला कहते हैः मुसलमान को व्याभिचारी व दुष्ट व्यक्ति की संगति से बचना चाहिए।
इस बात में संदेह नहीं कि मित्रों की संगति का मनुष्य के व्यक्तित्व व आचरण पर बहुत प्रभाव पड़ता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः अच्छे लोगों की संगति की तुलना में कोई भी चीज़ मनुष्य को भलाई की ओर नहीं बुलाती और बुराई से नहीं बचाती। अच्छे लोगों से मित्रता व संगति मनुष्य को न चाहते हुए भी भलाई की ओर ले जाती है क्योंकि जब किसी व्यक्ति से निकट संपर्क बनता है तो उन दोनों के बीच प्रेमपूर्ण संबंध उत्पन्न हो जाता है और दोनों पर एक दूसरे के व्यवहार का प्रभाव पड़ता है जबिक उन्हें इसका पता भी नहीं होता। इसलिए इस्लाम धर्म मनुष्य को मित्र के चयन में अच्छे मित्र व साथी के चयन के लिए प्रेरित करता है। दुष्ट की संगति मनुष्य को बुराई की ओर ले जाती है। इसी बात को हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बहुत ही सुंदर ढंग से यूं पेश किया हैः बुरों की संगति बुराई लाती है जैसे कीचड़ व दलदल के ऊपर से गुज़रने वाली हवा अपने साथ दुर्गंध लाती है।
इस्लाम धर्म के महापुरुषों के कथन में विद्वानों, मोमिनों और ईमानदारों की संगति के लिए प्रेरित किया गया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः विद्वानों की संगति अपनाओ कि इससे तुम्हारे ज्ञान में वृद्धि, शिष्टाचार बेहतर और आत्मा पवित्र होती है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की शिक्षाओं के अनुसार भले लोगों की संगति के कुछ लाभ हैः पहला लाभ यह है कि मनुष्य का विकास होता है। दूसरा लाभ यह कि अच्छा मित्र मनुष्य की ख्याति का कारण बनता है। तीसरा लाभ यह कि अच्छा मित्र परलोक में मनुष्य की सिफ़ारिश करेगा। जबकि दूसरी ओर दुष्ट लोगों की संगति का पहला प्रभाव तबाही है।
धर्म की छत्रछाया में प्रशिक्षित धर्मगुरु व महापुरुष स्वयं अच्छे स्वभाव का नमूना है। पिछली शताब्दी के प्रसिद्ध धर्मगुरु आयतुल्लाह शैख़ मोहम्मद हुसैन ग़रवी कि जो अपने समय के बहुत बड़े धर्मगुरु व परिज्ञानी थे, की जीवनी में आया हैः वे पवित्र नगर नजफ़ के धर्मगुरुओं की रीति के अनुसार हर गुरुवार की रात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मजलिस अर्थात शोक सभा आयोजित करते थे। ये शोकसभाएं मित्रों और शिक्षकों व शिष्यों के बीच भेंट का अवसर भी मुहैया करती थीं। स्वर्गीय आयतुल्लाह शैख़ मोहम्मद हुसैन जो अपने समय के बहुत बड़े धर्मगुरु थे, इन शोक सभाओं में समावर अर्थात चाय बनाने के विशेष बर्तन के पास बैठते और लोगों को चाय पिलाते थे। वे मेहमानों की जूतियों व चप्पलों को संभाल कर रखते थे। शैख़ मोहम्मद हुसैन की जीवन शैली ऐसी थी कि जो कोई उनकी शैक्षणिक गतिविधियों को देखता तो उसे लगता कि वे दिन रात सिवाए अध्ययन व शोध के कुछ नहीं करते और जो कोई उनकी उपासना को देखता तो उसे लगता कि वे उपासना के अतिरिक्त कुछ और नहीं करते। वे सदैव ईश्वर के स्मरण में रहते थे।