सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में

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सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में

अल्लाह के इम्तेहान में सफलता के लिये तक़वा ज़रूरी है।

इम्तेहान हर एक का

भाइयों और बहनों! हम सब को इम्तेहान देना है और हम सबसे इम्तेहान लिया जाएगा। अगर हम एक एक इन्सान को देखें, तो हमें मालूम होगा कि सब इन्सानों को आज़माया गया है और इसी तरह हम क़ौमों को देखें तो हमें पता चलेगा कि हर क़ौम को इम्तेहान देन पड़ा है। अलबत्ता सबका इम्तेहान एक जैसा नहीं है बल्कि यह इम्तेहान विभिन्न प्रकार के होते हैं। कभी ऐसा होता है कि इन्सान को किसी काम से बहुत ज़्यादा फ़ायदा हो सकता है लेकिन वह काम हराम होता है। अब इन्सान सोचता है कि क्या करे, यह उसके लिये इम्तेहान का समय है। कभी थोड़ा बहुत या ज़्यादा पैसा उसे मिल रहा होता है लेकिन ग़लत रास्ते से यह उसके इम्तेहान का समय है। कभी वह एक ग़लत बात कहकर या झूठ बोलकर बहुत बड़ा लाभ उठा सकता है यहाँ उसका इम्तेहान है। कहीं कोई बात कहना ज़रूरी होती है लेकिन इन्सान उसे कहने से डरता है कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फँस जाए। यहाँ भी उसके इम्तेहान का समय होता है। ऐसे अवसर में तक़वा (सदाचार) इन्सान के काम आता है।

इसी तरह क़ौमों का भी इम्तेहान होता है। जब उन्हें कोई ताक़त मिल जाए, हुकूमत मिल जाए, बहुत बड़ी सफलता मिल जाए, इल्म के मैदान में आगे बढ़ जाएं, साइंस और टेक्नालॉजी में आगे निकल जाएं, यहाँ से उनका इम्तेहान शुरू होता है। हुकूमत और ताक़त तक पहुँच कर अगर एक क़ौम सही इस्लामी और इन्सानी मूल्यों पर बाक़ी रहती है तो वह इस इम्तेहान में सफल है और अगर वह ख़ुदा को भूल जाए, इन्साफ़ को छोड़ दे, मूल्यों की ओर कोई ध्यान न दे तो वह असफल है। क़ुरआने मजीद सूरए नस्र में रसूले अकरम स. से फ़रमाता है।

 

’’بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ۔إِذَا جَاء نَصْرُ اللَّهِ وَالْفَتْحُ۔ وَرَأَيْتَ النَّاسَ يَدْخُلُونَ فِي دِينِ اللَّهِ أَفْوَاجًا‘‘(سورہ نصر۔۱،۲،۳(

 

यह एक नबी की सपलता है कि जब ख़ुदा उसे ताक़त और हुकूमत देता है और लोग उसके लाए हुए धर्म की रौशनी में झुंड बनाकर आते हैं। वह यहाँ घमण्ड नहीं करता, ख़ुद को बहुत बड़ा नहीं समझता और ख़ुदा को भूलता नहीं है क्योंकि यहाँ उसका इम्तेहान का समय है और यहाँ उसे बहुत ज़्यादा संभल कर रहना है। इसलिये ख़ुदा हुक्म देता है

 

’’فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَاسْتَغْفِرْهُ إِنَّهُ كَانَ تَوَّاباً‘‘

 

यहाँ पर ख़ुदा को याद कीजिए। ख़ुदा के नाम की माला जपिये, उसकी हम्द कीजिए। क्योंकि यह सफलता इन्सान का कारनामा नहीं है बल्कि ख़ुदा की ओर से है।

पैग़म्बरे ख़ुदा जैसा एक लीडर यहाँ बिल्कुल सावधान है कि कहीं ऐसा न हो कि मुसलमान इस सफलता के कारण ख़ुदा को भूल जाएं। ऐसे में तक़वा ही काम आता है। अगर क़ौम के अन्दर तक़वा होगा तो वह ख़ुदा को याद रखेगी और सफलता की ओर बढ़ती जाएगी लेकिन अगर उसके अन्दर तक़वा न हो तो उसका हाल भी वही होगा जो दुनिया की बहुत सी क़ौमों का हुआ। उनके अन्दर घमण्ड आ गया, वह अपने आपको बड़ा समझने लगीं, उन्होंने अत्याचार शुरू कर दिया, कमज़ोरों को दबाना और लूटना शुरू कर दिया, बुरा रास्ता अपना लिया ख़ुद भी गुमराह हुईं और दूसरों को भी गुमराह किया और फिर मुँह के बल नीचे आईं, हमारे सामने इसकी एक मिसाल सोवियत यूनियन है। जब उन्हें हुकूमत और ताक़त मिली तो उन्होंने ख़ुदा और धर्म के विरुद्ध लड़ना शुरू कर दिया और खुले आम यह ऐलान किया कि हमनें अपने मुल्क से ख़ुदा को निकाल दिया है। लेकिन अन्जाम क्या हुआ उसके कई टुकड़े हो गए।

जनाबे नूह की क़ौम

जो लोग जनाबे नूह पर ईमान लाए थे वह बहुत ही ख़ास लोग थे। जनाबे नूह नें अपनी क़ौम के बीच 950 साल तबलीग़ की लेकिन कुछ ही लोग ईमान लाए, फिर ख़ुदा नें उन मोमिनीन का इम्तेहान लेना तो जनाबे नूह को कश्ती बनाने का हुक्म दिया। जब जनाबे नूह कश्ती बनाते थे तो लोग उन पर हँसते थे। आम तौर से कश्ती समन्दर के पास बनाई जाती है लेकिन जनाबे नूह उसे शहर के बाहर जहाँ दूर दूर तक समन्दर नहीं था, बना रहे थे। जब लोग वहाँ से गुज़रते और जनाबे नूह और उनके साथियों को कश्ती बनाता हुआ देखते थे तो उन पर हँसते थे और उनका मज़ाक़ उड़ाते थे। जनाबे नूह के साथी नहीं जानते थे कि वह कश्ती क्यों बना रहे हैं और उन्हें नही मालूम था कि ज़मीन से पानी निकलेगा और आसमान भी बारिश बरसाएगा, लेकिन उनका ईमान इतना मज़बूत था कि लोगों की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया। यह लोग समाज के मामूली लोग थे और जो उनके विरोध में थे वह पैसे वाले, ताक़त वाले, प्रोपगण्डे वाले, बड़ी पोस्टों वाले और समाज के बड़े लोग थे ऐसे लोगों के सामने अपने ईमान पर डटे रहना और उन्हें बर्दाश्त करना आसान काम नहीं है, इसके लिये बहुत पक्के ईमान की ज़रूरत है। उन्होंने कभी जनाबे नूह से नहीं पूछा कि हम कश्ती क्यों बना रहे हैं बल्कि अल्लाह के नबी नें जो कहा वह करते रहे। फिर जब अज़ाब का समय आया और आसमान से बारिश बरसने लगी और ज़मीन से भी पानी निकलने लगा तो जनाबे नूह नें अपने साथियों से कहा- कश्ती में बैठ जाओ। वह लोग सवार हुए और अपने साथ हर जानवर का एक जोड़ा भी ले लिया क्योंकि ख़ुदा का हुक्म था। तूफ़ान शुरू हुआ, सारे काफ़िर डूब गए। केवल वह मोमिनीन और जानवर बचे जो जनाबे नूह के साथ कश्ती में बैठे थे। ख़ुदा नें जनाबे नूह पर ईमान लाने वालों का इम्तेहान लिया। दूसरों नें अल्लाह के नबी का म़ज़ाक़ उड़ाया लेकिन जो लोग नूह पर ईमान ला चुके थे वह आख़िर तक उनके साथ रहे और इम्तेहान में सफल हुए।

आसानी के दिनों का इम्तेहान

कभी ऐसा भी होता है कि कठिनाइयों के दिनों में इतना सख़्त इम्तेहान नहीं होता जितना आराम के दिनों में होता है। मैंने बहुत से लोगों को देखा है जिन्होंने कठिनाइयों मे बहुत अच्छे इम्तेहान दिये लेकिन आराम के दिनों में सफल नहीं हो सके। कठिनाइयों को बहुत अच्छी तरह उन्होंने सहेन किया लेकिन जब उन्हें आसानियां मिलीं तो लड़खड़ा गए, गुनाहों में डूब गए, बर्बाद हो गए। जनाबे नूह से ख़ुदा फ़रमाता है-

 

’’قيل يا نوح اهبط بسلام منا وبركات عليك وعلي امم ممن معك‘‘

 

जब तूफ़ान थम गया और कश्ती रुक गई तो ख़ुदा नें जनाबे नूह से कहा- ऐ नूह उतर जाइये, हमारी ओर से सलामती और बरकतें है आपके लिये और आपके साथियों में से कुछ के लिये। अजीब है, ख़ुदा नें बचाया उन सब को लेकिन सलामती और बरकतें केवल कुछ लोगों के लिये हैं। इसका मतलब यह है कि उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनके लिये अल्लाह की ओर से सलामती और बरकतें नहीं हैं। फिर फ़रमाता है-

 

’’وامم سنمتعهم ثم يمسهم منا عذاب اليم‘‘

 

इनमें से कुछ ऐसे हैं जिनको हम सब कुछ देंगे और वह मज़ा उड़ाएंगे लेकिन फिर उन पर हमारा अज़ाब होगा। यानी जब आसानियों में हम हम उनको आज़माएंगे तो वह अपने ईमान से भी हाथ धो बैठेंगे।

इसका मतलब यह है कि कठिनाइयों से ज़्यादा सख़्त इम्तेहान आसानियों में होता है। इस इम्तेहान में कौन सफल होता है? केवल वह लोग जिनके पास तक़वा होता है जब हम दुनिया के झमेलों में फँस जाते हैं, जब हलाल हराम को भूल जाते हैं, जब ख़ुदा हमारे दिलों से निकल जाता है तो बड़े बड़े लोग ख़ुदाई इम्तेहान में फ़ेल हो जाते हैं। उनको केवल एक चीज़ बचा सकती है और वह है तक़वा। इसी सूरए नूह में ख़ुदा फ़रमाता है-

 

’’تلك من انباء الغيب نوحيها اليك ما كنت تعلمها انت ولا قومك من قبل هذا فاصبر ان العاقبه للمتقين‘‘

 

यह सब ग़ैब की बातें हैं जो हमनें आपको बताईं हैं। यह बातें न आपको मालूम थीं और न आपकी क़ौम वालों को। इसलिये आप सब्र कीजिए और जान लीजिये कि अच्छा अन्जाम केवल उनका है जिनके पास तक़वा है। यह आयत इस बात की तरफ़ इशारा कर रही है कि ईमान के इम्तेहान में वही लोग नाकाम हुए हैं जिन्होंने तक़वे को छोड़ा है और जिनके पास तक़वा था वह आख़िर तक सफल रहे। आज हम और आप आसानी और आराम के दिन गुज़ार रहे हैं। होशियार रहें कि हमारा इम्तेहान कब लिया जाता है। सफलता के लिये तक़वा ज़रूरी है। क्या करें? करना केवल यह है कि ख़ुदा के रास्ते पर चलें। उसकी आज्ञा का पालन करें। उसके हुक्म पर चलें। उसनें जो वाजिब किया है उसे न छोड़ें। जो उसनें हराम किया है उससे बचें। रोज़े को इसी लिये वाजिब किया गया है ताकि हमारे अन्दर तक़वा आए।

 

’’كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ‘‘

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