अगर हाल ही में प्रकाशित होने वाली किताब 'रोज़ा रखने के शिष्टाचार और रोज़ेदारों की परस्थितियां आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में'' का हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयानों की तारीख़ तथा आपके विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े श्रोताओं को मद्देनज़र रख कर अध्ययन किया जाए तो रमज़ान के महीने में आपके आचरण से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं.
फ़ार्स समाचार एजेंसी. किताब और साहित्य डेस्क:
सुप्रीम लीडर विभिन्न विषयों के एक्सपर्ट हैं। जिस तरह से आप पूरी तरह से सूझबूझ और टैक्ट से राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणी करते हैं और अपने मार्गदर्शन से बड़ी मुश्किलें हल कर देते हैं, जिस तरह सामाजिक मुद्दों पर आपकी बातचीत जनता के लिए बरकतें लाती हैं और उन्हें एक दूसरे से क़रीब कर देती है, जिस तरह से आप देश के कलाकारों से मुलाकात के दौरान उनमें उम्मीदें जगाते और उन्हें भविष्य की दिशा दिखाते हैं उसी तरह इस्लामियात के एक बेमिसाल एक्सपर्ट और अद्वितीय मुफ़स्सिर हैं। और शायद दूसरे विषयों से संबंधित आपके हकीमाना बयान के आधार भी इस्लामियात में आपका एक्सपर्ट होना है। आप सालों से विभिन्न मुद्दों पर वार्ता और अपने विचार बयान करते आ रहे हैं लेकिन रमजान के मुबारक महीने और रोज़े के शिष्टाचार से सम्बंधित आपकी बातचीत अन्य विषयों की तुलना में अधिक है।
इस का कारण इस महीने में सार्वजनिक बैठकों का अधिक होना तथा इस दौरान दिल का (नसीहत के लिए) तैयार होना और समाज का अल्लाह से करीब होना है।
आप जहां ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर हैं वहीं महान मरजा-ए-तक़लीद भी हैं इसलिए रोज़े से संबंधित आपके बयान सही माना में मार्गदर्शक हैं। इसलिए इसी के मद्देनजर इस्लामी इंक़ेलाब पब्लीकेशन्ज़ (इंतेशाराते इंक़ेलाबे इस्लामी) ने 'रोज़े के शिष्टाचार और रोज़ेदारों की परस्थितियां'' (आदाबे रोज़ादारी व अहवाले रोज़ादारान) नामक किताब प्रकाशित कर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में रोज़े के शिष्टाचार बयान किये हैं।
यह किताब उन उल्मा, विचारकों और रात भर जाग कर इबादत करने वालों की नसीहतों ही एक कड़ी है जो कि सदियों से लोगों को रमजान के मुबारक महीने की ज़िम्मेदारियों की ओर आकर्षित करते हैं और उन्हें इस सुनहरे मौक़े से अधिक से अधिक फ़ायदा उठाने की दावत देते आ रहे हैं। रमज़ान की फज़ीलत से संबंधित उल्मा, अख़लाक़ व नैतिकता के उस्ताद यहां तक साहित्यकार और कवियों की कई पुस्तकें हैं। यह किताब इसी सिलसिले की एक कड़ी है जो कि रमज़ान से अधिक से अधिक फ़ायदा उठाने पर उभारती है लेकिन उसके कुछ अद्वितीय गुण हैं जो उसे अन्य किताबों से अलग बना देते हैं, नीचे उनमें से कुछ का उल्लेख किया जा रहा है:
ध्यान से पढ़िए ताकि किताब के रूहानी (आध्यात्मिक) माहौल का एहसास हो
यह किताब 1990 से लेकर 2011 तक यानी पिछले बाईस वर्षों के दौरान इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई की रमजान के महीने में की गई स्पीचों और नसीहतों के पर आधारित है। सुनने वालो आम लोग ही रहे हैं लेकिन कभी कभी आपके श्रोता क़ारी-ए-क़ुरआन, इस्लामी रिपब्लिक के सरकारी अधिकारी, जुमे की नमाज के नमाज़ी, युनीवर्सिटी के प्रोफ़ेसर, स्टूडेंट और कवि आदि भी रहे हैं। इसलिये किताब के चयन के लिए निम्नलिखित दो विशेषताएं मद्देनज़र रखी गई हैं:
पहले यह कि हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान रोज़े, दुआ और रमज़ान के मुबारक महीने में मोमेनीन की व्यक्तिगत, सामूहिक और राजनीतिक ज़िम्मेदारियों से संबंधित हैं।
दूसरे यह कि एक ही साल के रमज़ान में यानी चाँद दिखने से लेकर ईदुल फ़ित्र के अंत तक की अवधि में जारी हुए हों, इसलिये जो पाठक इस किताब का ध्यान से अध्ययन करेगा वह उस आध्यात्मिक माहौल में शामिल हो जाएगा जो बोलने वाले के दृष्टिगत रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया ख़ास कर इस्लामी समाज और आबिद व ज़ाहिद मोमिनों पर पहले से रमज़ान के आध्यात्मिक और रूहानी माहौल पर चार चांद लग जाएंगे।
एक तरह के विषय, विभिन्न कोणों से
सुप्रीम लीडर के पिछले बाईस वर्षों के बयानों की एक प्रमुख विशेषता विभिन्न बातों का एक दूसरे से कनेक्ट होना है। लेकिन साथ ही यह विशेषता भी पाई जाती है कि अगर एक ही विषय विभिन्न वर्षों में बयान किया गया है तो हर बार या तो आपने एक नए कोण से रौशनी डाली है या फिर अपने विश्लेषण में एक नया प्वाइंट शामिल किया है।
इसके सबसे अच्छे उदाहरण तक़वा और इस्तिग़फ़ार से सम्बंधित आपकी बातचीत में देखे जा सकते हैं जो कि इस किताब का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है।
वास्तविक बहार सुप्रीम लीडर की निगाह में
आपने रमजान के मुबारक महीने की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया और हर गुण इस्लामी शिक्षाओं खासकर अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हदीसों में बयान हुई इस महीने की किसी विशेषता को बयान करता है जैसे, रमजान का महीना रहमत और माफ़ी, अल्लाह की मेहमानी, अपने को सुधारने और तक़वा व सदाचार का महीना, माफ़ी, इस्तेग़फ़ार, पश्चाताप और अल्लाह की तरफ़ पलटने का महीना, तक़वा स्टोर करने का महीना, इबादत, दुआ और मुनाजात आदि का महीना।
इसी तरह जब रमज़ान और बहार का एक साथ आगमन हुआ तो आपने रमज़ान के महीने को बहार बताया जैसे दुआ और क़ुरआन की बहार, अपने को सुधारने और इबादत की बहार, अल्लाह से क़रीब होने की बहार, इस्तेग़फ़ार की बहार आदि। लेकिन इसके बाद आपने स्पष्ट किया कि रमज़ान केवल वसंत में होने के कारण बहार नहीं है बल्कि वसंत हो या न हो रमज़ान मोमेनीन के साल की शुरुआत और वास्तविक अर्थ में बहार है, मुसलमानों का ईमानी साल रमजान से शुरू होता है इस महीने की इबादतें को आने वाले ग्यारह महीने और अगले रमज़ान तक के लिए निवेश माना जाता है। इसलिये मुसलमानों की यही असली बहार है जिसमें अंदर को पाक किया जाता और आत्मा का पुनर्निर्माण किया जाता है।
रमज़ान की सामूहिक नसीहतें
रमज़ान और रोज़े के शिष्टाचार के बारे में इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के बयानों की एक विशेषता यह है कि आप ने इस अध्याय में इस्लाम के सामूहिक आदेशों पर विशेष ध्यान दिया है जैसे ग़रीबों का हाल चाल पूछना, फ़क़ीरों की सहायता, अनाथ व यतीमों से प्यार, कमज़ोरों की मदद की नसीहतें और इस्राफ़, फ़ुज़ूलख़र्ची, लडाई झगड़ा और मतभेद व फूट डालने जैसी बुराइयों से बचने का आदेश।
इस तरह गुणों व अच्छाईयों को हासिल करने और नैतिक बुराइयों से परहेज़ का दायरा निजी जीवन से आगे बढ़कर पूरे इस्लामी समाज की पहचान बन जाता है। साथ ही व्यक्ति या ज़्यादा से ज़्यादा परिवार के सुधार तक सीमित नसीहत और उपदेश में अंतर भी बखूबी स्पष्ट हो जाता है जिसमें व्यक्ति और घर के सुधार के साथ समाज सुधार और उसे आवश्यक इस्लामी रूप देने की ताकीद हो। समाजशास्त्र पर चर्चा के दौरान निश्चित रूप से इस्लामी समाज को पेश आने वाले मुश्किल राजनीतिक जोखिम पर भी बहस होगी और उन पर टिप्पणी की जाएगी। इसलिए इस संदर्भ में इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इस्लामी शिक्षाओं तथा इस्लामी इतिहास के उतार चढ़ाव के मद्देनजर मुसलमानों के पतन के कारणों पर रौशनी डाली और अंतर्दृष्टि और धैर्य को हर तरह की लापरवाही, दुनियापरस्ती, सत्ता की वासना, घमण्ड, अहंकार, वित्तीय भ्रष्टाचार और नैतिक गिरावट की समाप्ति का रास्ता बताया है। यही बातें कई महत्वपूर्ण और प्रभावशाली इस्लामी हस्तियों के पतन का कारण बनती रही हैं।
रमज़ान के महीने में मुस्लिम राष्ट्रों की ओर ध्यान / वर्षों पहले इस्लामी जागरूकता का बयान
इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर अपने रमज़ान भर के बयानों में दुनिया भर के मुसलमानों, मज़लूम क़ौमों खासकर फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के हालात पर चर्चा करते रहे हैं।
इमाम खुमैनी ने रमज़ान के अंतिम जुमे (जुमअतुल विदा) को विश्व क़ुद्स दिवस निर्धारित किया था। इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर द्वारा विश्व क़ुद्स दिवस के जुलूसों में भाग लेने की ताकीद से आपके रमज़ान के शिष्टाचार से सम्बंधित नसीहतों का दायरा समय और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के मद्देनजर समाज और देश से बढ़कर पूरे इस्लामी जगत में फैल जाता है। इस किताब के पाठक को पता चल जाएगा कि इस्लामी जागरूकता का शब्द आज प्रचलित हआ है लेकिन इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर इसका वर्षों पहले से तज़किरा करते आ रहे हैं और जैसा कि आज यह एक ऐसी वास्तविकता बन चुकी है कि जिसका इंकार असम्भव है।
महत्वपूर्ण बयान
रमज़ान के महीने में इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के सबसे महत्वपूर्ण बयान मुसलमानों के दो कभी न खत्म होने वाले आसमानी भंडार यानी अल्लाह की किताब और अहलेबैत अ. की हदीसों से व्युत्पन्न मूल इस्लामे मोहम्मदी की शिक्षाओं पर आधारित हैं जिन्हें आपने बहुत अच्छी शैली और पिछले बाईस वर्षों में बयान किया है।
इसके महत्वपूर्ण हिस्से निम्नलिखित हैं:
अ. कुरआने करीम की तिलावत के साथ उसे समझने और उससे परिचित होने की ताकीद। इसलिए कि यह सभी व्यक्तिगत और सामूहिक संकटों से नजात का नुस्खा है।
आ. तक़वा, दुआ, मुनाजात, इस्तेग़फ़ार, माफी और पश्चाताप आदि की कुरान और हदीस खासकर नहजुल बलाग़ा की रौशनी में पूर्ण और व्यापक व्याख्या।
इ. मौलाए काएनात हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी का विश्लेषण, इसलिए कि आप बहादुरी, तक़वा, न्याय व इंसाफ़ और अल्लाह की हुकूमत की मिसाल हैं।
रमज़ान के महीने में सुप्रीम लीडर की लाइफ़ स्टाइल
इस किताब का अगर यह ध्यान रखकर अध्ययन किया जाये कि आप ने कौन सी बात कब और किन लोगों में कही है तो इससे रमज़ान के महीने में हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के जीवन शैली की कई महत्वपूर्ण बातें सामने आएँगी जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
• तिलावते कुरान की सभाओं का आयोजन
• ईमानी और नैतिक सुधार पर जोर
• विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों, शिक्षकों, छात्रों आदि की मेजबानी, उनकी बातें सुनना और उनसे बातचीत करना।
• जुमे की नमाज की इमामत
• शबे क़द्र और अमीरुल मोमिनीन की शहादत की ओर विशेष ध्यान
• इस्लामी दुनिया के मौजूदा हालात पर टिप्पणी, विश्व क़ुद्स दिवस के जुलूस में हिस्सा लेने पर बल
सब कुछ यही नहीं
कुरान, नहजुल बलाग़ा, इस्लामी इतिहास, फ़िलिस्तीन, क़ुद्स तथा दुआ आदि से संबंधित इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के सभी बयान इस किताब में शामिल नहीं किए गए हैं। किताब के सेट करने वाले अली रेज़ा मुख़तारपूर क़ह्रवूदी के अनुसार उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के केवल रमज़ान ही के बयानोंम से कुछ बयान या उनके अंश चुना है। लेकिन इन्हीं सारे विषयों पर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के अनगिनत भाषण हैं जिन्हें सेट करने के लिए कई किताबें लिखने की जरूरत है।
आख़री बात यह कि इस किताब में शामिल हुए बयान में डेट का ध्यान रखा गया है लेकिन किसी विशेष विषय के लिए सूची से मदद ली जा सकती है।