इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नव निर्वाचित सांसदों से कहा है कि वे क्रांतिकारी रवैया अपनाएं क्योंकि अमरीका के नेतृत्व में शत्रुओं की ओर से ख़तरे जारी हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को संसद सभापति और नव निर्वाचित सांसदों से मुलाक़ात में आंतरिक, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसद की प्राथमिकताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी को क्रांतिकारी होना चाहिए, क्रांतिकारी व्यवहार करना चाहिए, अमरीका की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रतिक्रिया दिखाना चाहिए और साम्राज्य के षड्यंत्रों के मुक़ाबले में डट जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मजलिसे शूराए इस्लामी एक क्रांतिकारी और क्रांति के कोख से जन्म लेने वाली संस्था है और सांसदों को अपनी बातों और नीतियों में क्रांतिकारी रवैया अपनाना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सांसदों द्वारा क्रांतिकारी रवैया अपनाने पर जो बल दिया है उसका कारण यह है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की शत्रुतापूर्ण नीतियां यथावत जारी हैं। संसद, ईरानी जनता के मतों से अस्तित्व में आती है इस लिए सांसदों का परम कर्तव्य है कि वे ईरान व विदेश स्तर पर समय पर ठोस व सटीक नीतियां अपनाएं। इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही ईरान के साथ वर्चस्ववादी व्यवस्था की दुश्मनी शुरू हो गई थी जो अब भी जारी है। एेेसे में क़ानून बनाने वाली संस्था व जनता की आवाज़ के रूप में मजलिसे शूराए इस्लामी की, देश व राष्ट्र के हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका है।
वास्तविकता यह है परमाणु समझौते से पहले और उसके बाद भी ईरान के संबंध में अमरीका के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है और इस देश की सरकार, संसद और राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी अब भी ईरान को धमकियां दे रहे हैं। इस बात के दृष्टिगत ईरान की संसद को इस्लामी क्रांति की शिक्षाओं के आधार पर अमरीका के दुस्साहस पर चुप नहीं बैठना चाहिए। अगर मजलिसे शूराए इस्लामी, क़ानून बनाने वाली एक क्रांतिकारी संस्था के रूप में काम करे तो ईरान शत्रु की ओर से पहुंचाए जाने वाले संभावित नुक़सानों से सुरक्षित रहेगा।