इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े। यानी अपने कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए रूहानी मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया, इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े।
यानी अपने कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए रूहानी मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में सब्र, स्थिरता और दृढ़ता दिखाए,
राजनैतिक भागीदारी, राजनैतिक मांग, राजनैतिक सूझबूझ और होशियारी के साथ अपने मुल्क की पहचान, अपने भविष्य की पहचान, अपने क़ौमी लक्ष्य और इस्लामी मुल्कों व क़ौमों से संबंधित आला इस्लामी लक्ष्य की पहचान, दुश्मन की साज़िशों की पहचान, दुश्मन की पहचान और दुश्मन की शैलियों की समझ में दिन ब दिन इज़ाफ़ा करे और न्याय क़ायम करने की राह में भी घरों और परिवारों के भीतर सुकून व इत्मीनान का माहौल बनाने में आगे निकले।
इमाम ख़ामेनेई,