इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक़, मज़दूरों की क्षमताओं का विकास, एक ज़िम्मेदारी है। हदीस में है कि अगर कोई किसी मज़दूर पर अत्याचार करे, उसकी मज़दूरी या वेतन के बारे में अन्याय करेगा, तो उसके सभी पुण्य बर्बाद हो जाएंगे।
इस्लामी हदीसों और ख़ास तौर पर शिया मुसलमानों की धार्मिक किताबों में काम और मेहनत को लोक और परलोक से जोड़कर देखा गया है। इसके बारे में काफ़ी ज़्यादा सिफ़ारिश की गई है। वह काम या मज़दूरी जो परिवार के पालन-पोषण के लिए की जाती है, उसे जिहाद का दर्जा दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या इंटरनेशनल लेबर डे पर हम शिया मुसलमानों के इमामों की चार सिफ़ारिशों का ज़िक्र कर रहे हैः
पहले मज़दूरी का निर्धारण उसके बाद काम
हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैः पैग़म्बरे इस्लाम ने मज़दूरी के निर्धारण से पहले, मज़दूर से काम लेने के लिए मना किया है। (मन ला याहज़रुल फ़क़ीह, जिल्द4 पेज10)
पसीना सूखने से पहले मज़दूरी दे देना
इमाम जाफ़िर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मज़दूरी दे दो। (अल-काफ़ी, जिल्द5, पेज289)
मुसलमान और ग़ैर-मुसलमान के बीच कोई फ़र्क़ नहीं है
एक नाबीना और बूढ़ा शख़्स भीख मांगता हुआ हज़रत अली (अ) के नज़दीक से गुज़रा। इमाम (अ) ने अपने साथियों से पूछाः यह शख़्स कौन है और क्यों मांग रहा है? उन्होंने जवाब दियाः यह एक ईसाई है। इमाम ने आलोचनात्मक लहजे में कहाः जब तक उसमें काम करने की ताक़त थी, उससे काम लिया गया, अब वह बूढ़ा हो गया है और उसमें काम करने की ताक़त नहीं है, तो उसकी रोज़ी-रोटी की परवाह क्यों नहीं की जा रही है? सरकारी ख़ज़ाने से उसका ख़र्च अदा किया जाए। वसायलुश्शिया, जिल्द 15, पेज66)
सबसे बड़ा गुनाह
इमाम जाफ़िर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः तीन गुनाह सबसे बुरे गुनाह हैः बेज़बान हैवान की हत्या करना, बीवी का मेहर अदा नहीं करना और मज़दूर की मज़दूरी अदा नहीं करना। (मकारेमुल अख़लाक़)