तिलावत के साथ क़ुरआन फहमी बहुत ज़रूरी

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तिलावत के साथ क़ुरआन फहमी बहुत ज़रूरी

इस्लाम की सबसे सुंदर और शानदार आध्यात्मिकता में से एक मदीना मस्जिद में क़ुरआन की तिलावत करना है। मस्जिद और क़ुरआन, काबा और कुरान को एक साथ जमा करना, यह सबसे खूबसूरत कॉम्बिनेशन में से एक है। यह वह स्थान हैं जहां क़ुरआन नाज़िल हुआ, यह वह स्थान है जहां यह आयात पहली बार पैगंबर के पाकीज़ा दिल पर नाज़िल हुई थी और उन्होंने काबा की फ़िज़ा में और आस पास इन आयात की तिलावत की। उन्होंने कष्ट सहे, मार खाई, यातनाएं झेलीं, फिर भली बुरी बातें सुनी, इन आयात को पढ़ा और इनकी मदद से इतिहास को पूरी तरह से बदलने में कामयाब रहे।

तिलावते क़ुरआन इसकी इलाही तालीम को दिलों में बसाने का वसीला और एक माध्यम है। इस्लामी समाज के विकास और तरक़्क़ी का यह पहला ज़ीना है। कितना अच्छा हो जिस क़ुरआनी बज़्म में आप दस मिनट या एक चौथाई क़ुरआन की तिलावत करते हैं तो वहीँ कुछ देर, या पांच मिनट्स इन्ही आयात का मफ़हूम और पैग़ाम भी मौजूद लोगों को बताएं और कहें कि मैंने जो आयात पढ़ीं हैं उनका मतलब और पैग़ाम यह था। यह बहुत अच्छी चीज़ है जिस से हाज़िरीन, सामेईन और मजलिस का स्तर और स्टेटस बढ़ेगा।

 

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