ईरान के सुन्नी समुदाय के शिक्षकों और बुद्धिजीवियों का सम्मान कार्यक्रम, सुन्नी मुसलमानों के धार्मिक ज्ञान की योजना परिषद द्वारा आयोजित किया गया था।
शुरुआत में ईरान के पश्चिमी भाग के आदर्श शिक्षक मौलवी महमूद मुदर्रिस ने भाषण दिया और कहा:
हम एक ऐसे दशक में हैं जो शुभ अवसरों और स्मरणोत्सवों से सजा हुआ है और इस ज़मीन के लोग इन दिनों को नहीं भूले हैं जिनमें हज़रत फ़ातेमा मासूमा और हज़रत इमाम अली रज़ा का जन्म दिन है और दोनों बड़ी हस्तियों के जन्म दिन के अवसर पर पूरे ईरान में करामत दशक मनाया जाता है।
उन्होंने कहा:
हमें खुशी है कि इन गौरवपूर्ण अवसरों पर ईरान के सुन्नी मुसलमानों की इस्लामिक साइंसेज प्लानिंग काउंसिल और अन्य समूहों के स्कूलों के प्रयासों से ये प्रेमपूर्ण समारोह आयोजित किए जाते हैं।
सुन्नी मुसलमानों के इस विद्वान और प्रोफ़ेसर कहते हैं:
जब तक हम शिक्षा और प्रशिक्षण के मार्ग में प्रयास करते हैं और अपने पूर्वजों के अवशेषों को संरक्षित करने का प्रयास करेंगे, तब तक शत्रुओं को निश्चित रूप से अपनी साज़िशों और षडयंत्रों पर पछतावा होगा और उन्हें निराशा होगी।
ईरान के विश्वविद्यालयों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि निकाय के प्रमुख मुस्तफ़ा रुस्तमी ने भाषण देते हुए कहा:
सृष्टि से संबंधित आयतों में जिसमें बताया गया है कि ईश्वर ने सृष्टि के बाद हज़रत आदम को जो पहली चीज़ प्रदान की, वह ज्ञान है।
ज्ञान और उपासना में, पैग़म्बरे इस्लाम ज्ञान का चयन करते हैं और कुछ रिवायतों में यह उल्लेख किया गया है कि विद्वान, भक्त और उपासक से श्रेष्ठ है क्योंकि उपासक ख़ुद को बचाना चाहता है और विद्वान और आलिम ईश्वरी बंदों को बचाना चाहता है, अलबत्ता इस इल्म की भी ज़िम्मेदारी है और उसे जुल्म के सामने चुप नहीं रहना चाहिए।
मौलाना रुस्तमी ने कहा: ओलमा, पैग़म्बरों के उत्तराधिकारी हैं और यह आलिमों की महान प्रतिबद्धता और कर्तव्य को दर्शाता है। इस्लामी क्रांति व्यवस्था के गौरवपूर्ण कार्यों में एक वैज्ञानिक विकास और परिवर्तन है। हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले देश की वैज्ञानिक स्थिति कैसी थी, इस हद तक कि देश का केंद्रीय इलाक़े को समाज की सामान्य और बुनियादी जरूरतों की को पूरा करने के लिए विदेशी प्रोफेसरों की सेवाएं लेनी पड़ती थीं।
सीस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में खातमुल-अंबिया स्पेशलाइज्ड सेंटर के प्रमुख मौलवी नरोई ने भाषण देते हुए कहा:
शोधकर्ताओं और छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान कार्यक्रमों को मज़बूत करने पर विचार किया जाना चाहिए, विशेष क्षेत्रों और विभागों में नज़रियतं और सूचनाओं के आदान-प्रदान के अवसर पैदा करने के लिए सेमिनार और अनुसंधान सम्मेलन आयोजित करने और शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण पर विशेष रूप से ध्यान देने पर विचार किया जाना चाहिए।
ईरान के संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय में सुन्नी समुदाय के सलाहकार, मामुस्ता अब्दुस्सलाम इमामी ने इस अवसर पर भाषण देते हुए कहा:
इन चार दशकों में सुन्नी और शिया ओलमा, हमेशा एकता और एकजुटता के अग्रदूत रहे हैं।
नसरोई कहते हैं:
ईरान के सुन्नी मौलवियों ने स्पष्टीकरण और बयान के मैदान में तथा फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के प्रतिरोध और प्रतिरोध की रक्षा के क्षेत्र में हमेशा अच्छी भूमिका अदा की है। आज इस्लामी जगत और फिलिस्तीन के शक्तिशाली लोगों के ख़िलाफ़ एक असंतुलित और असमान युद्ध छेड़ रखा है और सबसे महत्वपूर्ण बात जो बुजुर्गों ने कही वह यह है कि फ़िलिस्तीन, मानव अधिकारों के झूठे दावेदारों की पोल खोलने का मंच है।
ईरान के सुन्नी ओलमा और विद्वानों के सम्मान समारोह में सुन्नी और शिया विद्वानों और बुद्धिजीवियों की उपस्थिति
मामुस्ता इमामी ने कहा:
35 हजार मज़लूमों को पूरी दुनिया की नज़रों के सामने शहीद कर दिया गया जिनमें आधी निर्दोष महिलाएं और बच्चे हैं,और पूरी दुनिया इस पर चुप है। फ़िलहाल फ़िलिस्तीन इस्लामी जगत की व्यावहारिक कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहा है और सुन्नी मौलवियों ने कई बार इस महत्व को ज़ाहिर भी किया है और इस अहम मुद्दे पर बल भी दिया है।
ईरान के संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय में सुन्नी समुदाय के सलाहकार कहते हैं:
आज दुनिया यूक्रेन और ग़ज़ा के दो बड़े परीक्षणों का सामना कर रही है। पश्चिम ने यूक्रेन के लिए क्या किया, लेकिन ग़ज़ा की रक्षा के लिए कोई व्यावहारिक कार्रवाई नहीं की गई। इस्लामी जगत का जागना ज़रूरी है और अफसोस की बात यह है कि अमेरिकी और यूरोपीय छात्र तो जाग गए और घटनास्थल पर आ भी गए लेकिन वे ग़ज़ा के पड़ोसी देशों से व्यावहारिक कार्रवाई करने में नाकामी पर अफ़सोस के अलावा कुछ भी नहीं कर सके जिन्होंने कफन भेजने के अलावा कुछ नहीं किया। कई लोगों को इस बात पर गर्व था कि उन्होंने ग़ज़ा के लोगों के लिए आसमान से खाना गिराने के लिए हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जो इस्लामी उम्मा की शान में नहीं है।