अमरीकी समाज में पनप रहा ग़ुस्सा, लावा बनकर फूट सकता है

Rate this item
(0 votes)
अमरीकी समाज में पनप रहा ग़ुस्सा, लावा बनकर फूट सकता है

हालिया वर्षों में अमरीका में ऐसे क्रोधित लोगों की एक बड़ी संख्या को देखा जा सकता है, जो प्रवासियों पर अपना ग़ुस्सा उतारते हैं और अपनी हिफ़ाज़त के लिए हथियार लेकर चलते हैं।

यह लोग अपना काफ़ी वक़्त विदेशी और घरेलू ख़तरों के भय में गुज़ारते हैं। लोग वीकेंड में फ़ायरिंग की प्रैक्टिस करते हैं और अपने चेहरों को मास्क से छिपाते हैं।

यह लोग इन कामों को सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि प्रवासियों की संभावित ख़तरों से निपटने के लिए करते हैं। अकसर उनके पास हथियार होते हैं और वे निजी मुलाक़ातों और डेली वॉकिंग के वक़्त भी अपने पास हथियार रखते हैं।

यह लोग तनहाई का एहसास करते हैं, जिसके नतीजे में वह ख़ुद को निचले दर्जे का अमरीकी समझने लगे हैं और असुरक्षा की भावना में उनमें दिन ब दिन मज़बूत होती जा रही है।

2019 में कोविड-19 से पहले, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिकारियों का ध्यान इस बात की तरफ़ गया कि अकसर अमरीकी ख़ुद को तनहा समझते हैं। ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाक़ो में हर पांच में से तीन लोग ख़ुद को अकेला समझते हैं।

इस तरह की भावनाओं का न सिर्फ़ सेहत पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि दिल की बीमारियों, नशा, निराशा और ख़ुदकुशी के रुझान में इज़ाफ़ा होता है। दूसरे शब्दों में, कमज़ोर सामाजिक रिश्ते उन्हें विनाश की ओर ले जाते हैं।

हालिया वर्षों में आपने देखा होगा कि अमरीका में प्रवासियों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ रहा है और अमरीकी लोग ख़ुद को अलग-थलग समझने लगे हैं। ट्रम्प और उनके समर्थकों का शुमार इन्हीं लोगों में होता है, जो ख़ुद को अलग-थलग समझते हैं और अकेलेपन की वजह से हर वक़्त ग़ुस्से में रहते हैं।

ट्रम्प के अकसर समर्थक गोरे और ज़्यादा उम्र के लोग हैं। वे सामूहिक बैठकों में पहचान से संबंधित नारे लगाते हैं और यह एहसास दिलाने का प्रयास करते हैं कि वह एक नए समाज का गठन कर रहे हैं।

मशहूर दार्शनिक हना आर्नेट ने इस संदर्भ में कहा थाः जिन लोगों में हीन भावना और तनहाई का एहसास होता है, वे इस तरह के आंदोलनों से जुड़ जाते हैं। दर असल, ट्रम्प और उनके साथियों ने लोगों के इस एहसास से फ़ायदा उठाया और उसे एक सामाजिक आंदोलन में बदल दिया।

यहां यह जानना ज़रूरी है कि अमरीका युद्धों और सैन्य मामलों पर भारी बजट ख़र्च करता है, जिसकी वजह से सामाजिक ज़रूरतों पर कम ख़र्च किया जा रहा है, जिससे लोगों में अकेलनेपन का एहसास बढ़ रहा है। ब्राउन यूनिवर्सिटी ने युद्धों पर ख़र्च होने वाले बजट को 8 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा बताया है। अगर यही बजट लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए ख़र्च किया जाता, तो समाज में कई तरह की बुराईयों से छुटकारा पाया जा सकता था।

आख़िर में कहा जा सकता है कि अगर सामाजिक प्राथमिकताओं और बजट में कोई बदलाव नहीं आएगा और युद्धों के बजाए अलग-थलग पड़ते जा रहे नागरिकों की सामाजिक ज़रूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तो अमरीकी समाज में ग़ुस्सा लावा बनकर फूट सकता है।

Read 89 times