ईरान और भारत की संस्कृति में समानता/ मौलाना सैयद जाबिर जौरासी

Rate this item
(0 votes)
ईरान और भारत की संस्कृति में समानता/ मौलाना सैयद जाबिर जौरासी

मौलाना सैयद जाबिर जौरासी ने भारत और ईरान की संस्कृतियों में समानता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासतें, धार्मिक विश्वास और परंपराएं कई मायनों में एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं, जो दोनों देशों के बीच के रिश्तों को और भी मजबूत बनाती हैं।

लखनऊ: कुछ दिनों पहले एक हवाई दुर्घटना में इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति सहित कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व शहीद हो गए। इस घटना के बाद पूरी दुनिया शोक में डूब गई। भारत सरकार ने भी एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की और ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री को विशेष श्रद्धांजलि देने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधिमंडल ईरान भेजा, जिसमें भारत के उपराष्ट्रपति भी शामिल थे।

लखनऊ के ऐतिहासिक हुसैनाबाद स्थित हुसैनिया मोहम्मद अली शाह (छोटा इमामबाड़ा) में रविवार की शाम शहीदों की याद में डूब गई, जहां ऐनुल हयात ट्रस्ट, इदारा इल्म व दानिश और हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी के अलावा दर्जनों धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने "याद-ए-सफीरान-ए-इंकलाब" कार्यक्रम का आयोजन किया।

 इस कार्यक्रम में मौलाना सैयद जाबिर जौरासी ने भारत और ईरान की संस्कृतियों में समानता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासतें, धार्मिक विश्वास और परंपराएं कई मायनों में एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं, जो दोनों देशों के बीच के रिश्तों को और भी मजबूत बनाती हैं।

ईरान के शहीद राष्ट्रपति आयतुल्लाह सैय्यद इब्राहीम रईसी, ईरान के विदेश मंत्री शहीद हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन, तबरेज़ के इमाम जुमा शहीद आयतुल्लाह सैयद आले -हाशिम के सिलसिले में हुए इस कार्यक्रम का शुभारंभ कारी बदर-उल-दुजा ने सूरह बकरा की उन आयतों की तिलावत से किया जिनमें सब्र और शहादत का उल्लेख है।

इसके बाद कार्यक्रम के संचालक मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिजवी ने मौजूदा हालात का मुख़्तसर खाका पेश किया और जनाब वसी काज़मी को अशआर पढ़ने के लिए माइक पर बुलाया। जनाब वसी काज़मी ने बेहद खूबसूरत आवाज़ में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिससे सैकड़ों की तादाद में मौजूद हाज़िरीन की आंखें अश्कबार हो गईं।

इसके बाद कार्यक्रम के संचालक ने पहले मुक़र्रिर के तौर पर डॉ. सैयद क़ल्बे सब्तैन नूरी को आमंत्रित किया जिन्होंने अपनी तक़रीर में शहीद इब्राहिम रईसी और उनके साथियों को याद किया ।

दूसरे स्पीकर मशहूर आलिम और खतीब मौलाना सैयद मोहम्मद हसनैन बाकरी ने कहा कि राष्ट्रपति रईसी ने नि:स्वार्थ सेवाओं के माध्यम से लोगों के दिलों पर राज किया, जिसका अंदाज़ा उनके जनाज़े में उमड़े जनसैलाब से हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि राजनीति का मतलब है देश और क़ौम की सेवा, लोगों के बीच मुहब्बत और प्यार का माहौल कायम करना और मजलूमों की मदद और समर्थन करना।

इसके बाद तीसरे स्पीकर मशहूर पत्रकार शकील रिजवी ने बयान किया कि ईरानी राष्ट्रपति आयतुल्लाह इब्राहीम रईसी भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए प्रयासरत थे। शायद इसी वजह से ईरानी सरकार ने इस साल फरवरी से भारतीय नागरिकों को बिना वीजा ईरान यात्रा की सुविधा प्रदान की, ताकि पश्चिमी देशों की उन नीतियों को विफल किया जा सके जो ईरान के प्रति नफरत फैलाने वाली थीं।

पत्रकार शकील रिज़वी की तक़रीर के बाद नाज़िम ने मौलाना इस्तिफा रजा को आमंत्रित किया जिन्होंने कहा कि कभी-कभी नाम का असर किरदार में देखने को मिलता है। हज़रत इब्राहीम जो तौहीद के मुनादी थे, उन्होंने अपने दुश्मनों से कभी समझौता नहीं किया उसी तरह आयतुल्लाह शहीद इब्राहिम रइसी ने भी कभी भी दुश्मनों से समझौता नहीं किया ।

मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिजवी ने इसके बाद मौलाना अख्तर अब्बास जौन को आमंत्रित किया जिन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि इब्राहीम रईसी बेताल ताकतों को परास्त करने में रहबर-ए-इंकलाब के भरोसेमंद साथी थे और कठिन समय में इस्लामी दुनिया और शिया समुदाय की उम्मीद थे।

इसके बाद के प्रसिद्ध लेखक एवं विश्लेषक मौलाना सैयद मुशाहिद आलम रिजवी थे, जिन्होंने कहा कि आज क्रांति के राजदूतों की शहादत पर सच्चाई और हक़ के सभी दीवाने शोक में हैं। अयातुल्लाह इब्राहिम रईसी ईरान के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने तीन साल की अवधि में राजनीति को सेवा, मजलूमों की सहायता और जनता की समस्याओं के समाधान का बेहतरीन जरिया बनाया।

इस प्रोग्राम के अंतिम वक्ता खतीब, जनाब मौलाना सैयद मोहम्मद जाबिर जौरासी थे, जिन्होंने कहा कि भारत और ईरान की संस्कृति में समानता है, इसका प्रमाण हिंद और ईरान की अज़ादारी है। भारत के उपराष्ट्रपति शहीद रईसी की शहादत पर जब उपस्थित हुए, तो उन्होंने काला वस्त्र पहनकर यह साबित किया कि भारत और ईरान में सांस्कृतिक समानता है।

मौलाना जौरासी ने अपनी बातचीत के अंत में बहुत संक्षिप्त में मसाएब (मुसिबतों की कहानी) पेश की, जिससे सभी मौजूद लोग रो पड़े।

कार्यक्रम के समापन पर मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिजवी ने उन सभी संगठनों की ओर से विद्वानों, मौलवियों और उपस्थित लोगों का धन्यवाद किया जिन्होंने क्रांति के राजदूतों की याद में आयोजित इस कार्यक्रम को अपनी उपस्थिति से रोशन किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्वानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और समुदाय के बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

इस कार्यक्रम को ऐनुल हयात ट्रस्ट, इदारा इल्म व दानिश, हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, प्रिंट पॉइंट, हुदा मिशन, इलाही घराना, तहा फाउंडेशन, तनज़ील एकेडमी, वली अल-असर एकेडमी, जामिया-तुल-ज़हरा, इदारा-ए-इस्लाह, अल-मुअम्मल कल्चरल फाउंडेशन, नबा फाउंडेशन, केयर इस्लाम, बहजत-उल-अदब, अहयू - अम्रना ट्रस्ट, अर्श एसोसिएट, गाजी चैनल, गौहर एजेंसी, हादी टीवी, विलायत टीवी, ग्राफ एजेंसी, महदीयनज़ ऑर्गनाइजेशन और अवधनामा आदि संगठनों के संयुक्त प्रयासों से आयोजित किया गया।

Read 75 times