पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अपने -अपने संदेशों में आशूरा की घटना के महत्व पर बल दिया और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन की ईश्वरीय, नैतिक और अख़लाक़ी आकांक्षा पर बल दिया।
पाकिस्तान के इस्लामी समाज में और इसी प्रकार इस देश के दूसरे धर्मों व संप्रदायों के मध्य मोहर्रम महीने का बहुत सम्मान किया जाता है।
मोहर्रम के महीने में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के करोड़ों अनुयाई उनके नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं।
इस समय समूचे पाकिस्तान में पहली मोहर्रम से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया जा रहा है। धार्मिक नेता इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के रहस्यों, एकता और फ़ूट व मतभेद से मुक़ाबला करने और अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष करने पर बल देते हैं।
शिया समाज और मुसलमानों से हटकर दूसरे धर्मों के लोग भी विशेषकर पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक ईसाई और हिन्दू भी इस देश के विभिन्न क्षेत्रों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अपनी श्रृद्धा व्यक्त और मोहर्रम महीने का सम्मान करते हैं और इस महीने में आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने नया हिजरी क़मरी साल और मोहर्रम का महीने आरंभ होने के उपलक्ष्य में अपने- अपने संदेशों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला में उनके वफ़ादार साथियों के प्रति अपनी श्रृद्धा व्यक्त की और आशूरा की घटना को अन्याय व अत्याचार के मुक़ाबले में न्याय की लड़ाई का प्रतीक बताया।
पाकिस्तानी नेताओं के संदेशों में बल देकर कहा गया है कि हज़रत सय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन अलै. और उनके पवित्र परिजनों ने इस्लामी मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी मूल्यवान जानों की क़ुर्बानी दे दी और इस अद्वितीय क़ुर्बानी को समस्त मुसलमानों को एकता, न्याय और अत्याचार से मुक़ाबले के लिए आदर्श क़रार देना चाहिये।
इसी प्रकार हालिया दिनों में पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में मोहर्रम के सम्मान और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के उद्दश्यों को बयान करने के लिए कांफ्रेन्सें और बैठकें हुई हैं। इन बैठकों व कांफ्रेन्सों में संयुक्त दुश्मनों के षडयंत्रों से होशियार रहने और उनके मुक़ाबले पर बल दिया गया।
उल्लेखनीय है कि दुःख के मोहर्रम महीने के आरंभ में पाकिस्तान के अज़ादार लोग ईरान और इराक़ में मौजूद पवित्र धार्मिक स्थलों का सम्मान करते हैं और पाकिस्तान से काफ़ी दूरी तय करने के बाद दसियों हज़ार श्रद्धालु स्वयं को ईरान के पवित्र नगरों क़ुम और मशहद पहुंचाते हैं और उसके बाद वे इराक़ के पवित्र नगर कर्बला रवाना हो जाते हैं।