हमास का 7 अक्टूबर का शानदार ऑपरेशन और इस्राईली साम्राज्यवादी शासन का आर्थिक संकट

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हमास का 7 अक्टूबर का शानदार ऑपरेशन और इस्राईली साम्राज्यवादी शासन का आर्थिक संकट

ग़ज़ा में युद्ध की वजह से राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य और सामाजिक ख़र्चों के अलावा ज़ायोनी शासन के लिए भारी और अपूरणीय आर्थिक ख़र्चे बढ़ गये हैं।

 ग़ज़ापट्टी पर ज़ायोनी सेना के हमले से पहले इस्राईल की अर्थव्यवस्था भयंकर, मंदी, महंगाई और गिरावट से जूझ रही थी और अब इस युद्ध के 9 महीने से अधिक समय के बाद इस संकट का दायरा और भी गंभीर हो गया है। पार्सटुडे के इस लेख में, हमने ग़ज़ा युद्ध के बाद इस्राईली शासन के आर्थिक संकट पर एक नज़र डाली है:

 युद्ध के आर्थिक प्रभावों की वजह से इस्राईल की क्रेडिट रेटिंग कम हो गई

 ग़ज़ा पर अपने हमलों की शुरुआत के बाद, ज़ायोनी शासन को कई आर्थिक ख़र्चों का सामना करना पड़ा जिनमें हाल ही में मूडीज़ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने क्रेडिट रेटिंग के क्षेत्र में बताया कि पिछले 30 साल में पहली बार इस्राईल के ताज़ा ख़र्चे डाउनग्रेड हुए हैं।

 मूडीज़ एक अमेरिकी वित्तीय और व्यावसायिक सेवा कंपनी है जो बांड बाज़ार की समीक्षाएं और विश्लेषण, क्रेडिट बाज़ार का जाएज़ा, बांड प्रबंधन और निवेश प्रबंधन सेवाएं प्रदान करती है।

 मूडीज़ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने इस्राईल के उसकी रेटिंग योजना में शामिल होने के बाद पहली बार इस्राईल की क्रेडिट रेटिंग को घटाकर A2 कर दी है।

 इस कंपनी ने अपने बयान में, घोषणा की कि यह काम उच्च स्तर के भू-राजनीतिक ख़तरों, विशेष रूप से इस्राईल के लिए मध्यम और दीर्घकालिक सुरक्षा ख़तरों की वजह है।

 ग़ज़ा युद्ध के नतीजे में ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल के कर्ज़ों में वृद्धि

 युद्ध की वजह से ज़ायोनी शासन की कैबिनेट का कर्ज़ भी बढ़ गया और 2023 की तीसरी तिमाही के अंत में यह लगभग 1.08 ट्रिलियन शेकेल (294.2 बिलियन डॉलर) तक पहुंच गया और ऐसा लगता है कि तब से जंग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज़ और वित्तीय मदद हासिल करने के विषय में तेज़ी आई है।

 इस्राईल के लिए लाल सागर का सुरक्षा ख़तरा, परिवहन ख़र्चों में वृद्धि

 ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराधों और इस इलाक़े की नाकाबंदी के बाद, यमनी सशस्त्र बलों ने एलान किया कि वे मक़बूज़ा क्षेत्रों की ओर जाने वाले जहाजों का रास्ता रोकेंगे और उन्हें निशाना बनाएंगे।

 हालिया हफ़्तों में ये हमले और तेज़ हो गए हैं और ज़ायोनी शासन का 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार समुद्र पर निर्भर होने की वजह से तेल अवीव पर भारी आर्थिक लागत आ गई है।

 पर्यटन आय में कमी

 मक़बूज़ा क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 1995 और 2023 के बीच, सालाना औसतन 2.5 मिलियन लोगों ने मक़बूज़ा क्षेत्रों का दौरा किया जो 2019 में अपने चरम पर पहुंच गया था जब 4.5 मिलियन पर्यटकों ने इस्राईल की यात्रा की थी।

 इस शासन ने 2022 में पर्यटन से 5.5 बिलियन डॉलर की कमाई की है लेकिन तूफ़ान अल-अक्सा ऑपरेशन के बाद इस शासन के पर्यटन को भारी नुकसान हुआ और अक्टूबर और नवम्बर 2023 में पर्यटकों की संख्या क्रमशः 89 हजार और 38 हजार थी जबकि दिसंबर में यह संख्या शून्य तक पहुंच गई।

 युद्ध का नौकरियों पर असर

 युद्ध की शुरुआत के बाद से, किसी भी कंपनी ने मक़बूज़ा क्षेत्रों में काम करना शुरू नहीं किया है और लगभग 57 हजार कंपनियां, जिनमें से अधिकांश छोटी कंपनियां हैं, 2023 में बंद हो गई हैं, जो कि पिछले साल बंद कंपनियों की तुलना में 35  प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।

 ज़ायोनी शासन की 70 प्रतिशत से अधिक आरक्षित सेनाओं को वापस बुलाने के बाद, इस शासन को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और इसकी भरपाई के लिए भारतीय श्रमिकों को काम पर रखना शुरू कर दिया गया है।

 शरणार्थियों को बसाने का ख़र्चा

 युद्ध की शुरुआत के बाद, ग़ज़ा पट्टी के आसपास और मक़बूज़ा क्षेत्रों और लेबनानी सीमा के उत्तर में रहने वाले कई परिवारों ने उन क्षेत्रों में प्रवास करने की कोशिश की जहां सुरक्षा ज़्यादा है। इसीलिए शुरुआती दिनों में होटल, मोटल और किराये के अपार्टमेंट, अपनी क्षमताओं से ज़्यादा भरे हुए थे।

 ज़ायोनी शासन के होटल एसोसिएशन के प्रमुख ने कहा है कि होटल के आधे कमरे ग़ज़ा के आसपास से विस्थापित लोगों के लिए रिज़र्व कर दिए गए हैं।

 परिणामस्वरूप, ज़ायोनी शासन की कैबिनेट ने इन लोगों को एक स्थान पर एकत्रित रखने के लिए शिविर बनाने के बारे में सोचा और मिसाल पेश करने क लिए शिविर निर्माण के लिए 150 हजार वर्ग मीटर ज़मीन भी विशेष कर दी।

 इन घटनाओं का नतीजा यह निकला कि मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन से ज़ायोनीवादियों के रिवर्स प्रवासन तेज़ हो गया जो पिछले वर्षों की तुलना में कई गुना है।

 इससे ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल पर भारी वित्तीय बोझ भी पड़ता है और मक़बूज़ा क्षेत्रों में होटल उद्योग को भी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

 ज़ायोनी शासन पर युद्ध के आर्थिक प्रभाव के बारे में व्यक्त किये गये बिंदु इस शासन को हुए नुकसान का मात्र एक हिस्सा मात्र थे जिसके नतीजे उसके लिए भारी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा के रूप में सामने आएंगे।

 दुनिया के सभी हिस्सों में लोगों के बहिष्कार और बॉयकॉट के कारण ज़ायोनी शासन की कुछ संबद्ध या समर्थित कंपनियों को अन्य आर्थिक नुकसान भी हुआ है जिसे सटीक रूप से आंका नहीं जा सका है।

 

 

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