फ़िलिस्तीनी पादरी इमाम रज़ा कांफ्रेन्स में

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फ़िलिस्तीनी पादरी इमाम रज़ा कांफ्रेन्स में

दुनिया के शिया मुसलमानों के आठवें इमाम, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शैक्षिक शास्त्रार्थ या मुनाज़रे की कांफ्रेन्स ईरान के पवित्र नगर मशहद में इमाम के हरम में आयोजित हुई जिसमें विभिन्न देशों के नेताओं, मार्गदर्शकों और मेहमानों ने भाग लिया।

सफ़र का महीना समाप्त हो जाने के साथ और आठवें इमाम की शहादत के दुःखद अवसर पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के हरम के "दारुर्रहमह" नामक भाग में एक कांफ्रेन्स अरबी भाषा में आयोजित हुई जिसमें इराक़ सहित विभिन्न देशों के श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

समाचार एजेन्सी मेहर के हवाले से बताया है कि लेबनान के धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के शिक्षक और अध्ययनकर्ता हुज्जतुल इस्लाम असद मोहम्मद क़ैसर ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सदाचरण की ओर संकेत करते हुए बल देकर कहा कि प्रेम व दया इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दूसरों का सम्मान करने और शिष्टाचार पर बहुत बल देते थे।

उन्होंने कहा कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने दूसरे धर्मों के लोगों व हस्तियों के साथ जो मुनाज़रे किये हैं उन पर दृष्टि डालने से भी इस बात को बहुत अच्छी तरह समझा जा सकता है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दूसरों के सम्मान को बहुत महत्व देते और दूसरों का बहुत अधिक सम्मान करते थे।

धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के शिक्षक ने कहा कि मामून जो मुनाज़रा करवाता था उसका लक्ष्य इमाम की महान हस्ती की छवि को ख़राब करना था परंतु उसका नतीजा उल्टा निकला।

इस कांफ्रेन्स के दूसरे भाग में चर्चा का विषय फ़िलिस्तीन का मुद्दा था जिस पर अंतरराष्ट्रीय वक्ताओं ने रोशनी डाली और अपने विचार व्यक्त किये।

फ़िलिस्तीन के ईसाई बुद्धिजीवी और पादरी ऑन्तूनिस हनिया ने दूसरे नंबर पर इस कांफ्रेन्स में भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध की ओर संकेत किया और कहा कि फ़िलिस्तीनी अपने जीवन की अंतिम सांस तक ज़ायोनी सरकार के हमलों के मुक़ाबले में प्रतिरोध करेंगे और इस बात की अनुमति नहीं देंगे कि उनका देश दूसरों के हाथ में रहे।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि हम अपने देश की आज़ादी चाहते हैं और फ़िलिस्तीन के लोग इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए न केवल ज़ायोनी सरकार बल्कि अमेरिका सहित दुनिया के साम्राज्यवादियों से लड़ रहे हैं और अपने प्राणों को न्यौछावर करके दुश्मनों के अतिक्रमण को रोकेंगे।

इस फ़िलिस्तीनी पादरी ने फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के प्रति ईरानी राष्ट्र के समर्थन का आभार व्यक्त किया और कहा कि हम समस्त आसमानी धर्मों के अनुयाइयों का एक ही लक्ष्य है और जो अस्ली और तौरात को मानने वाले यहूदी हैं वे भी ज़ायोनी सरकार के हमलों की भर्त्सना करते हैं।

 

इसी प्रकार इस कांफ्रेन्स के एक अन्य वक्ता, अध्ययनकर्ता और मिस्र के "जामेअतुल अज़हर" विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर शैख़ अहमद अद्दमनहूर थे। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी बिल्कुल यहूदियों के प्रतिनिधि नहीं हैं क्योंकि यहूदी दूसरे धर्मों के मानने वालों के सम्मान के क़ाएल हैं। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी केवल ख़ुद को मानते व क़बूल करते हैं और किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं चाहे वह इस्लाम हो या ईसाईयत या कोई अन्य धर्म हो और यह बात यहूदी धर्म की मौलिक शिक्षाओं से विरोधाभास रखती है।

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