हरम-ए-इमाम रज़ा अ.स. के गैर मुल्की ज़ायरीन विभाग की कोशिशों से पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में आतंकवाद की घटना में शहीद होने वाले शहीदों के इसाल-ए-सवाब और बुलंदी-ए-दराजात के लिए हरम-ए-इमाम रज़ा अ.स.में मजलिस का आयोजन किया गया।
एक रिपोर्ट के अनुसार , शहीदा ए पाराचिनार के इसाल-ए-सवाब के लिए मजलिस का आयोजन हरम-ए-इमाम रज़ा (अ.स.) के रवाक-ए-ग़दीर में किया गया इस मजलिस में उर्दू भाषा ज़ायरीन और मुज़ावरों की बड़ी संख्या ने शिरकत की।
हुज्जतुल इस्लाम दीदार अली अकबरी ने इस आतंकवादी घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि शहादत हमारा विरसा है जो हमें सय्यदुश शोहदा हज़रत हुसैन (अ.स.) से मिला है। इसलिए हम शहीद होने से डरते नहीं बल्कि इसे अपने लिए सम्मान समझते हैं।
अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि पाराचिनार के मज़लूम शहीद, कर्बला के शहीदों के रास्ते पर चल रहे हैं और फ़िलिस्तीन, ग़ज़ा, यमन और लेबनान के मज़लूमों की तरह अपने विचारों की रक्षा में शहीद हुए हैं यह रास्ता आगे भी जारी रहेगा।
हरम-ए-इमाम रज़ा (अ.ल.) के उर्दू भाषा ख़तीब हुज्जतुल इस्लाम अकबरी ने आगे कहा कि इस्लाम के दुश्मनों, खासतौर पर अमेरिका और इस्राइल, के पास न तो कोई स्पष्ट तर्क है, न विचारधारा और न ही कोई सिद्धांत।
यही कारण है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके सामने कौन खड़ा है। वे फ़िलिस्तीन, लेबनान या पाराचिनार जैसे स्थानों पर मासूम इंसानों की हत्या करते हैं। उनकी इस बर्बरता और जुल्म से उनकी वहशत का पता चलता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के साम्राज्यवादी ताकतों को यह समझ लेना चाहिए कि उनके कायराना और बर्बर कृत्य हमें अपने विचारों से दूर नहीं कर सकते। हम अपने विचारों की रक्षा में एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे।
इस्लाम के बचाव का परचम कभी ज़मीन पर नहीं गिरने देंगे और अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने विचारों पर डटे रहेंगे।
मजलिस के दौरान नजफ अली सआदती ने ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह पढ़ी और क़ारी हमीद रज़ा अहमदी ने क़ुरान की कुछ आयतों की तिलावत की।