अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की प्रभावी उपस्थिति

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अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की प्रभावी उपस्थितिइस्लामी गणतंत्र ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रचलित सिद्धांतों और अपने अनुभावों के आधार बनाकर विश्व मंख पर प्रभावी भूमिका निभाई है। ईरान ने अपना योगदान एसे समय में दिया है कि जब 21वीं शताब्दी में अंतर्राष्ट्रीय मामले पहले से अधिक एक दूसरे से जुड़ गए हैं और यह जुड़ाव, विश्व के स्वाधीन देशों के लिए प्रभावी भूमिका निभाने के लिए अनुकूल सिद्ध हुआ है। पश्चिम ने ईरान को अलग थलग करने की बड़ी चेष्टाएं कीं किंतु आज ईरान मध्यपूर्व के प्रभावशाली देश के रूप में क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर गतिविधियां कर रहा है।

इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद ईरान की कूटनीति में बड़ा उतार चढ़ाव आया। उदाहरण स्वरूप ईरान पर थोपे गए युद्ध के दौरान ईरान के लिए कूटनैतिक गतिविधियां बहुत कठिन हो गईं किंतु ईरान ने राजनैतिक सूझबूझ और दूरदर्शिता के आधार पर हमेशा संतुलन बनाने और सक्रियता का प्रयास किया और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मंच का प्रयोग करते हुए अमरीका की एकपक्षीय नीतियों पर आपत्ति जताते हुए अपनी स्थिति को मज़बूत किया। किंतु इसके साथ ही ईरान थोपे गए युद्ध के दौरान तथा परमाणु मामले में इसी प्रकार फ़िलिस्तीन संकट जैसे क्षेत्रीय मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की नीतियों और क्रियाकलापों को संतोषजनक नहीं मानता। यही कारण है कि ईरान ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा जैसे मंचों पर उपस्थित होकर संयुक्त राष्ट्र संघ तथा सुरक्षा परिषद के ढांचे में सुधार की आवश्यकता पर आधारित अपना दृष्टिकोण पेश किया। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के बारे में ईरान का विचार यह है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं सामूहिक हितों की रक्षा करें। ईरान आतंकवाद, मानवाधिकार, भूमंडलीकरण, मादक पदार्थ, निरस्त्रीकरण तथा अन्य क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय विषयों के बारे में सामूहिक प्रयास और तालमेल की ओर बढ़ा है। इस संदर्भ में गुट निरपेक्ष आंदोलन, ओआईसी तथा निरस्त्रीकरण में ईरान की अगुवाई की ओर संकेत किया जा सकता है।

इस योगदान से साबित होता है कि क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान को प्रभावशाली देश के रूप में गतिविधियां करने से रोकने के प्रयासों के बावजूद ईरान की इस भूमिका को समाप्त नहीं किया जा सका है। इसके प्रमाण में क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान में ईरान की भूमिका और योगदान पर संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपीय संघ के आग्रह की ओर संकेत किया जा सकता है। अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में ईरान की सार्थक भूमिका तथा विभिन्न अवसरों पर क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान में ईरान की भूमिका और भागीदारी पर संयुक्त राष्ट्र संघ के ज़ोर को महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में ईरान की प्रभावी भूमिका का प्रमाण माना जा रहा है।

ईरान ने विरोधों और रूकावटों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी मांगों और लक्ष्यों को पेश किया तथा एकांत में डाल देने के विरोधियों के प्रयासों के बावजूद ईरान ने विश्व शक्तियों के साथ सहयोग की नीति को आगे बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र संघ के महसचिव बान की मून तथा अन्य अधिकारियों ने ईरान की भूमिका की ओर संकेत करते हुए कहा है कि ईरान संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सक्रिया योगदान करे, यदि ईरान कुछ प्रक्रियाओं और फ़ैसलों का विरोधी हो तब भी वह अपने प्रयास और अपनी भूमिका बढ़ाए ताकि दूसरों के विचारों और सोच पर अपना प्रभाव डाल सके। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सोच पायी जाती है कि ईरान मध्यपूर्व के क्षेत्र में शांति व सुरक्षा को मज़बूत बनाने और अर्थ व्यवस्था को अच्छी स्थिति में ले जाने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इसी प्रकार साबित कर दिया कि वह आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय युद्ध में प्रभावी भूमिका निभा सकता है क्योंकि वह स्वयं वर्षों तक आतंकवाद की भेंट चढ़ा है।

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के सिद्धांत समरसतापूर्ण जीवन के समर्थन, विश्व की बड़ी शक्तियों की ओर से की जाने वाली धड़ेबंदी के विरोध और वैचारिक व सांस्कृतिक टकराव के बजाए आपसी सहयोग पर केन्द्रित हैं। इन लक्ष्यों की पूर्ति अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की मज़बूती की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति है।

इस समय मानव समाज के सामने चुनौतियां इतनी अधिक और जटिल हैं कि कोई देश अकेले उनका सामना नहीं कर सकता। अतः विश्व समुदाय की इन चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक दायित्व परायणता तथा रणनीति आवश्यक है और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मंच पर आपसी सहयोग अथवा नई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का गठन किया जाना चाहिए। शांति, विकास और मानवाधिकार, मानव सुरक्षा के संबंध में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ईरान का मानना है कि इस विषय में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को योगदान करना चाहिए। इसी लिए ईरान अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सशक्तीकरण पर आग्रह करता है और इस देश का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं सरकारों के दायरे से बाहर रहकर मानव समाज की समस्याओं को चिन्हित और उनका समधान करें। इस राजनैतिक प्रक्रिया के अंतर्गत ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी उपस्थिति का सदुपयोग करते हुए अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को बार बार उठाया है। ईरान इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के 68वें अधिवेशन में भाग लेने के लिए अपनी न्यूयार्क यात्रा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ईरान की सजीव एवं प्रभावी उपस्थिति का चित्रण किया।

अमरीका की विदेश संबंध परिषद में राष्ट्रपति रूहानी का भाषण, अमरीकी संचार माध्यमों से अपनी बातचीत, महासभा के अधिवेशन और निरस्त्रीकरण सम्मेलन में राष्ट्रपति रूहानी के भाषणों से क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में ईरान की दृष्टिकोण का प्रारूप पूर्ण रूप से स्पष्ट हो गया।

सच्चाई यह है कि ईरानी जनता ने पिछले 35 साल के दौरान विभिन्न प्रकार के षडयंत्रों और थोपे गए युद्ध का सामना किया, रासायनिक हमलों का निशाना बना, टार्गेट किलिंग, आर्थिक नाकाबंदी और इसके अलावा नागरिक लक्ष्यों तक सीमित परमाणु कार्यक्रम के बारे में ग़लत आरोपों की बौछार और छवि ख़राब करने के प्रयास इन सबका सामना करने के बावजूद आज ईरान विश्व जनमत के सामने अपना वास्तविक चित्र पेश करने के संकल्प के साथ खड़ा है ताकि इस अन्याय और द्वेष का अंत कर दे।

मानवाधिकार को हथकंडे के रूप में प्रयोग करना अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों की पुरानी शैली है जिसे वे स्वतंत्र देशों के विरुद्ध प्रयोग करते आए हैं। यह एसी स्थिति में है कि अमरीका मध्यपूर्व के देशों में लोकतंत्र की स्थापना में रुकावट बनकर खड़ा है और यह तर्क देकर कि इन देशों में चुनाव हुए तो इस्लामवादियों को बहुमत मिल जाएगा, देशों में वंशानुगत तानाशाही शासनों का समर्थन करता है। अतः ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ विभिन्न लक्ष्यों और कारणों से अपना सहयोग बढ़ाया है। इसका एक कारण वह नया अनुकूल वातावरण है जो ईरान की कूटनीति के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में उत्पन्न हुआ है। ईरान की प्रबल कूटनीति ने अमरीका को क्षेत्र में नए युद्ध का बिगुल बजाने से रोक दिया। ईरान ने साबित कर दिया कि वह पारस्परिक सम्मान तथा संयुक्त हितों के आधार पर अन्य देशों से सहयोग का पक्षधर है और पश्चिमी देशों से अकारण तनाव नहीं चाहता।

तथ्य यह है कि इस्लामी क्रान्ति की सफलता को 35 साल गुज़र जाने के बाद इस समय ईरान अधिक राजनैतिक एवं आर्थिक स्थिरता व शक्ति से सुसज्जित है। ईरान अपने राजनैतिक दृष्टिकोणों एवं अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों को अंतर्राष्ट्रीय रूप देने का प्रयास किया है इसका यह अर्थ है कि ईरान प्रतिबंधों और दबाव के बावजूद अतीत की तुलना में इस समय और अधिक शक्तिशाली हुआ है।

क्षैत्रीय कूटनीति की दृष्टि से देखा जाए तो ईरान इराक़ युद्ध की समाप्ति और पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद नई परिस्थितियां उत्पन्न हुईं। इन परिस्थितियों में ईरान ने क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों जैसे रूस आदि के साथ प्रभावी सहयोग आरंभ किया और काकेशिया तथा मध्य एशिया में संयुक्त ख़तरों जैसे अलक़ायदा और आतंकवाद से निपटने के प्रयासों, उत्तर दक्षिण कोरीडोर स्थापित करने के लिए सहयोग, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अमरीका की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सहयोग और आर्थिक, सामरिक एवं औद्योगित सहयोग का नाम इस संदर्भ में स्पष्ट रूप से लिया जा सकता है।

इस समय ईरान क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण देश के रूप में अन्य देशों के साथ संयुक्त हित रखता है और शत्रुओं के विरोध के बावजूद इन देशों से ईरान का सहयोग जारी है। इस समय आने वाले इन परिवर्तनों को देखते हुए पश्चिमी देश यहां तक कि अमरीका भी ईरान से अपने संबंधों को बहाल करने पर विवश है। कुछ साक्ष्यों से पता चलता है कि अमरीकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के दूसरे शासनकाल में ईरान के प्रति अमरीका की रणनीति में आधारभूत बदलाव आया है।

टीकाकारों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय परिवर्तनों तथा अमरीका की आंतरिक परिस्थितियों के कारण अमरीका अपना रवैया बदलने और अपने ऊपर संयम रखने पर विवश हुआ है तथा अमरीका ने अपनी नीतियां लागू करने की अपनी शैली बदल ली है।

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