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ईरानी सांसद मेहरदाद लाहूती ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा म्यांमार में पीड़ित मुसलमानों की स्थिति को बेहतर बनाने से संबंधित लाए गए अबाध्यकारी प्रस्तावों से मुसलमानों की स्थिति बेहतर नहीं होगी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ से व्यवहारिक क़दम उठाने की मांग की।
उन्होंने शुक्रवार को म्यांमार के मुसलमानों की समस्याओं के निदान में संयुक्त राष्ट्र संघ के अबाध्यकारी प्रस्तावों को निष्प्रभावी बताते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ से पूरे विष्य में मानवाधिकार की समस्या से बिना किसी भेदभाव के निपटने की मांग की।
ज्ञात रहे 24 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने म्यांमार में मुसलमानों और बौद्धधर्मियों के बीच हिंसा पर गहरी चिंता जताते हुए म्यांमार की सरकार से मानवाधिकार के उल्लंघन से निपटने की मांग की थी। इसी प्रकार महासभा ने इस संदर्भ में सर्वसम्मति से एक अबाध्यकारी प्रस्ताव भी पारित किया है।
म्यांमार में मुसलमान 1948 से कि जबसे इस देश को स्वतंत्रता मिली है, उपेक्षा,यातना, और दमन का शिकार हैं। हालिया दिनों में म्यांमार के राख़ीन राज्य में चरमपंथी बौद्धधर्मियों ने सैकड़ों मुसलमानों का जनसंहार किया और हज़ारों मुसलमानों के घर जलाकर उन्हें बेघर कर दिया।
राख़ीन में चरमपंथी बौद्धधर्मी मुसलमानों पर आए दिन हमला करते हैं और अशांत इलाक़ों में मुसलमानों के अनेक गांवों में घरों को आग लगा देते हैं।
म्यांमार सरकार अल्पसंख्यक मुसलमानों की रक्षा करने में विफल रही है जिसके लिए उसकी निंदा होती रही है।
रोहिंग्या मुसलमानों के पूर्वज तुर्क, ईरानी, बंगाली और पठान थे जो आठवी ईसवी शताब्दी में म्यांमार में बसे थे।