शत्रु मुसलमानों को बांटना चाहता है, लोगों को क़ुरआन की ओर बुलाया जाए,

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शत्रु मुसलमानों को बांटना चाहता है, लोगों को क़ुरआन की ओर बुलाया जाए,

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि इस्लामी जगत की वर्तमान समस्याओं के समाधान का नुस्ख़ा, पवित्र क़ुरआन के आदेशों के सामने नतमस्तक हो जाना, थोपी गयी आधुनिक अज्ञानता के समाने न झुकना और इस अज्ञानता के मुक़ाबले में प्रतिरोध करना है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में तेहरान में आयोजित पवित्र क़ुरआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि खेद की बात यह है कि आज इस्लामी जगत, अज्ञानी व्यवस्था के दबाव से उत्पन्न गृहयुद्ध और आंतरिक मतभेदों के कारण कमज़ोर और निर्धनता का शिकार है।

उनका कहना था कि इन थोपे गये दबावों से मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग, पवित्र क़ुरआन के सामने नतमस्तक होना और उसके उच्च लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए मज़बूत इरादे का होना है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि पवित्र क़ुरआन के लक्ष्यों की ओर एक क़दम बढ़ाया जाए तो ईश्वर दुगुनी शक्ति प्रदान करेगा और यह वह विषय है जिसका अनुभव ईरानी राष्ट्र ने किया है और ज़ोर ज़बरदस्तियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध द्वारा, अधिक आशा और क्षमता प्राप्त की है।

उन्होंने बड़ी शक्तियों के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र के डटे रहने के अनुभव से लाभ उठाने को इस्लामी जगत की समस्याओं के समाधान का तरीक़ा बताया और कहा कि मुसलमानों में भतभेद फैलाना और उन्हें दो गुटों में विभाजित करना, आज शत्रुओं साज़िश है, इस लिए सभी को होशियार रहना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि लोगों में मतभेद पैदा हो जाए और इस्लाम तथा क़ुरआन के शत्रुओं के षड्यंत्र सफल हो जाएं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हर वह आवाज़ जो लोगों के मध्य मतभेद फैलाने मे प्रयोग हो, वह शत्रु का लाउडस्पीकर है। उनका कहना था कि शीया और सुन्नी, अरब और ग़ैर अरब तथा संप्रदाय और जाति के आधार पर मतभेद फैलाना तथा राष्ट्रवाद की विचाधारा को हवा देना, मुसलमानों के शत्रुओं के कार्यक्रमों हैं जिसके मुक़ाबले में पूरी दूरदर्शिता और मज़बूती के साथ डट जाने की आवश्यकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि धर्मगुरुओं, बुद्धिजीवियों, लेखकों, छात्रों, पवित्र क़ुरआन के हाफ़िज़ों और शोधकर्ताओं का दायित्व है कि वह लोगों में जागरुकता बढ़ाएं और लोगों को पवित्र क़ुरआन की ओर लेकर आएं। उन्होंने कहा कि वास्तविक इस्लामी जागरुकता वह है जिसका प्रभाव कभी समाप्त नहीं होता बल्कि इसक प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जाएगा।

 

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