घर परिवार और बच्चे -1

Rate this item
(0 votes)
घर परिवार और बच्चे -1

इस साप्ताहिक कार्यक्रम में बच्चों के प्रशिक्षण, उनके प्रति माता-पिता के दायित्व, प्रशिक्षण के लिए उचित वातावरण और माता-पिता के प्रति बच्चों की ज़िम्मेदारी के विषयों पर चर्चा की गई है।

जेम्स ए ब्रेवर का कहना है कि भाग्यशाली मां-बाप वह हैं जिनकी अच्छी संतान हो और भाग्यशाली संतान वह है जिसके अच्छे मां-बाप हों।

जेम्स ए ब्रेवर का कहना है कि भाग्यशाली मां-बाप वह हैं जिनकी अच्छी संतान हो और भाग्यशाली संतान वह है जिसके अच्छे मां-बाप हों।

बच्चों का पालन-पोषण और मां बाप से उनके संबंधों का विषय मानव जीवन में हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि पालन-पोषण मानव समाज की सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत गतिविधि है जिसका परिवार और समाज पर सबसे गहरा प्रभाव पड़ता है। पालन-पोषण द्वारा ही मां-बाप व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को आने वाली नस्लों तक हस्तांतरित करते हैं। मां-बाप अपने बच्चों का पालन-पोषण किस प्रकार करते हैं और उनके अपने बच्चों के साथ संबंध कैसे हैं, इसका उनके व्यक्तिगत और विशेष रूप से सामाजिक जीवन पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि बच्चों के लालन पालन और उनके विकास को मां-बाप और संतान के बीच संबंधों के परिदृश्य में देखा जाता है।

और यह संबंध बच्चों के व्यवहार, आचरण एवं मानसिकता की रूपरेखा तैयार करने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं।

लेकिन तेज़ी से बदल रहे आज के आधुनिक दौर में कि जब भौगोलिक फ़ासले सिमटते जा रहे हैं और सामाजिक ताने बाने का आधार और उसकी रूपरेखा नए नए रूप धारण कर रही है, इस रिश्ते में बड़ी जटिलताएं उत्पन्न हो रही हैं। समाज में टेक्नॉलॉजी के विस्तार और मानव जीवन में उसकी बढ़ती भूमिका ने इंसानों के रिश्तों पर गहरा प्रभाव छोड़ा है और अतीत की तुलना में इंसान की जीवन शैली में जितना परिवर्तन आया है उतना ही उसके रिश्तों में जटितलताएं उत्पन्न हुई हैं। इससे दुनिया का सबसे पवित्र, भावनात्मक, अटूट, प्राकृतिक एवं ख़ूनी रिश्ता, मां-बाप और संतान के बीच का रिश्ता भी अछूता नहीं रहा है। आज के समय की यह एक समस्या है, जिसका अनुभव लगभग हर कोई किसी न किसी प्रकार से अपने जीवन में करता है। इसलिए अगर इसकी उपेक्षा की जाती रही तो इंसान को उसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। इसी के साथ इस वास्तविकता से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव समाज में होने वाला परिवर्तन जीवन का ही एक भाग है जिसे टाला नहीं जा सकता। यहां सवाल यह उठता है कि फिर इस सबसे पवित्र रिश्ते में आने वाली समस्याओं का हल क्या है? इस रिश्ते के शरीर पर पड़ने वाले घावों का उपचार कैसे करें? इस रिश्ते पर जमने वाली धूल को कैसे साफ़ करें ताकि मां-बाप और संतान दोनों ही इसकी मिठास, इसकी चाश्नी और इसकी पवित्रता का वैसे ही अनुभव कर सकें जैसा ईश्वर ने उसे बनाया है। विश्व भर के बड़े बड़े विद्वानों, मनोवैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने इस समस्या के अनेक समाधान पेश किए हैं। इस सबके बीच सबसे बेहतर एवं प्रभावशाली समाधान उस शैली को माना गया है जिसकी शुरूआत बच्चों से नहीं बल्कि पति-पत्नि के जीवन के तौर तरीक़ो और उनके मां-बाप बनने से पहले की मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थिति से होती है।

आज अधिकांश परिवारों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वे अपने बच्चों को संस्कारित कैसे बनाएं और उनका सही पालन-पोषण कैसे करें और इसके लिए किन मानदंड एवं सिद्धांतों का पालन करें। अधिकांश मां-बाप यह शिकायत करते नज़र आते हैं कि हम अपने बच्चों को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं और हर तरह से उनका ख़याल रखते हैं लेकिन इसके बावजूद बच्चे उनकी बात नहीं सुनते। दूसरी ओर बच्चों को यह आम शिकायत है कि मां-बाप तरह तरह के बहानों से उन पर अपने विचार थोपते हैं और उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप करते हैं। यह समस्या कभी कभी तो इतनी जटिल हो जाती है कि दोनों ही पक्ष मानसिक दबाव का शिकार हो जाते हैं और बहुत ही ख़तरनाक क़दम उठा लेते हैं।

यह विषय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि आम तौर पर हर कोई अपने जीवन में दो आयामों से इसका अनुभव करता है, सबसे पहले इंसान संतान होने का अनुभव करता है और अपनी आयु के दूसरे चरण में वह मां-बाप होने का अनुभव करता है।

 

इसलिए इंसान अपने जीवन के दूसरे चरण में प्रवेश करने के बाद अगर वही ग़लतियां दोहराएगा जो उसके मां-बाप ने की थीं और जिनका अनुभव उसने संतान के रूप में किया था तो यह सिलसिला जारी रहेगा और इस समस्या का कभी समाधान नहीं निकल पाएगा। इसलिए इस हम सबसे पहले इस समस्या के समाधान के रूप में संतान के सही पालन-पोषण का उल्लेख करेंगे और उसके बाद मां-बाप और संतान के द्विपक्षीय संबंधों की चर्चा करेंगे।

यहां हम सबसे पहले इस सवाल का उत्तर देने की कोशिश करेंगे कि पालन-पोषण किया है?

आम तौर से पालन-पोषण या बाल संस्कार का मतलब है शिशु के जन्म से लेकर उसके व्यस्क होने तक उसे शिक्षित एवं संस्कारित करना, उसका लालन पालन करना और उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करना।

अंग्रेज़ी में पालन पोषण के लिए पैरेंटिंग शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो लैटिन शब्द परेरे से लिया गया है, इसका मतलब होता है आगे बढ़ाना या उत्पादन करना।

इस्लामी शिक्षाओं में इसके लिए तालीमो तरबीयत शब्द का प्रयोग किया जाता है, इससे तात्पर्य है किसी को शिक्षित करना, उसका लालन पालन करना एवं संस्कार व नैतिकता सिखाना।

इस परिभाषा में कुछ बिंदु समान हैं और कुछ भिन्न। समान बिंदु यह है कि बच्चों की देखभाल करना और उन्हें संस्कार सिखाना पालन-पोषण का अनिवार्य भाग है। यहां पर ध्यान योग्य बिंदु यह है कि सामान्य परिभाषा में पालन-पोषण को शिशु के जन्म से उसके व्यस्क होने तक सीमित कर दिया गया है, जबकि इस्लामी शिक्षाओं में तालीमो तरबियत को जन्म और व्यस्क होने से सीमित नहीं किया गया है। इस्लामी शिक्षाओं में यह प्रक्रिया गर्भ धारण से पहले ही शुरू हो जाती है और गर्भावस्था के विभिन्न चरणों के दौरान और शिशु के जन्म के बाद उसके मां-बाप या अभिभावकों द्वारा हमेशा जारी रहती है, यहां तक कि वह इंसान ख़ुद मां-बाप के रूप में अब यह ज़िम्मेदारी अपने कांधों पर उठाता है।

लेकिन आधुनिक दौर में तालीमो तरबियत या पालन-पोषण की यह व्यापक प्रक्रिया इस्लामी शिक्षाओं से ही विशेष नहीं रह गई है। मेडिकल साइंस में क्रांतिकारी प्रगति और नई नई मशीनों एवं उपकरणों द्वारा गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में शिशु के विकास और उसके सुनने एवं समझने की योग्यता और उसके द्वारा विभिन्न प्रतिक्रियाएं देने की बात सामने आने के बाद, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री और बाल विशेषज्ञ अब इस बात पर बल देते हैं कि मां-बाप को चाहिए कि गर्भावस्था में शिशु की देखभाल के अलावा उसे संस्कारित बनाने और शिक्षित करने की प्रक्रिया शुरू कर दें। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि 1400 वर्ष पूर्व इस्लाम ने पालन-पोषण के संबंध में जो व्यापक दृष्टिकोण दिया था आज साइंस ने उसके केवल कुछ ही आयामों से पर्दा उठाया है। इस बात को दृष्टि में रखते हुए इस कार्यक्रम श्रंखला में जहां हम अपने विषय की प्रस्तुति के लिए संबंधित विज्ञान और आधुनिक अनुसंधानों का सहारा लेंगे वहीं इस्लामी शिक्षाओं से भी लाभ उठायेंगे।

Read 127 times