ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब

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शाह के काल में ईरान, क्षेत्र में अमरीका का सब से बड़ा घटक समझा जाता था इसी लिए अमरीका को ईरान के राजनीतिक परिवर्रतनों से गहरी रूचि थी और अमरीका को भली भांति ज्ञात था कि यदि ईरान में इस्लामी क्रान्ति सफल हो गयी तो फिर उस के हित ख़तरे में पड़ जाएंगे इसी लिए अमरीकी अधिकारियों ने इस्लामी क्रान्ति के आंदोलन के आरंभ से लेकर अंतिक दिनों तक क्रान्ति को रोकने का भरपूर प्रयास किया।

 

इमाम ख़ुमैनी के ईरान आगमन के पूर्व ही ईरान में जो प्रदर्शनों का क्रम आरंभ हुआ था उस से अमरीका और शाही सरकार दोनों चिंता ग्रस्त हो गये थे स्थिति यहॉ तक पहुंच गयी थी कि अब शाह के पास दो मार्ग रह गये थे या तो वह ईरान में मार्शल लॉ लागू करके देश चलाता या फिर देश से निकल कर, देश का संचालन सेना के हवाले कर देता। इसी मध्य छात्रों ने एक बार फिर पूरे ईरान में प्रदर्शन किये और अमरीकी व पश्चिमी संस्कृति के प्रलीकों और पश्चिमी केन्द्रों पर आक्रमण किये। अमरीकी राजदूत ने शाह से भेंट की और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया गया कि फ़िलहाल शाह ईरान से बाहर चला जाए और जब परिस्थितियां अनुकूल हो जाएं तो वह फिर ईरान वापस आ जाए। ११ दिसम्बर सन १९७८ को लगभग चालीस लाख लोग सड़कों पर उतर आए उन की मॉग थी कि इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में एक इस्लामी सरकार का गठन किय जाए। हज़ारों लोगों को गिरफ़तार किया गया बहुत से लोग शहीद हुए और सेकड़ों को शाही जेल ख़ानों में यातनाएं सहन करनी पड़ी किंतु जनमत का दबाव कम नहीं हुआ। अमरीका ने शाह को इस बात पर तैयार कर लिया कि वह शापुर बख़्तियारी को प्रधानमंत्री बना कर इमाम ख़ुमैनी के प्रभाव को कम करे।

इमाम ख़ुमैनी के बारे में राबिन वूडस वर्थ जिस ने उन से उन के घर में भेंट की थी लिखता है: जैसे ही इमाम ख़ुमैनी द्वारा से अंदर आए मुझे लगा कि उन के अस्तित्व से आध्यात्म का पवन बह रहा है। मानों उन के कत्थई लगादे, काली पगड़ी और सफ़ेद दाढ़ी के पीछे, आत्मा व जीवन की लहरें उठ रही हैं यहॉ तक कि कमरे में उपस्थित सारे लोग, उन के व्यक्तित्व में खो गये, उस समय मुझे लगा कि उन के आते ही हम सब बहुत छोटे हो गये और ऐसा लगने लगा कि जैसे वहॉ उन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

उन्हों ने उन सारे मापदंडों और शब्दों को उलट पुलट दिया जिन के द्वारा मुझे लगता था कि मैं उन के व्यक्तित्व का बखान कर सकता हूं। उन की उपस्थिति का हम पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि मुझे लगा कि माने वह मेरे पूरे अस्तित्व पर छा गये हैं तो क्या कोई साधारण व्यक्ति, ऐसा हो सकता है? मैं ने तो आज तक किसी भी बड़े नेता या बड़ी हस्ती को उन से अधिक महान नहीं पाया, मैं उन की छोटी सी प्रशंसा में बस यही कह सकता हूं कि वह मानों अतीत में ईश्वरीय दूतों की भॉति हैं या फिर यह कि वे इस्लाम के मूसा हैं जो फ़िरऔन को अपनी भूमि से बाहर निकालने के लिए आए हों।

२९ वर्ष पूर्व इमाम ख़ुमैनी देश निकाले के बाद स्वदेश लौटे और कई वर्षों से जारी उन का संघर्ष चरम सीमा की ओर बढ़ने लगा। १२ बहमन को इमाम ख़ुमैनी ईरान आए और सरकार के गठन की घोषणा की और पूरे ईरान में प्रदर्शनों का क्रम आरंभ हो गया।

सन १९७८ में शाह के संकेत पर ईरान के समाचार पत्र इत्तेलात में एक आलेख छपा जिस में खुल कर इमाम ख़ुमैनी का अपमान किया गया था दूसरे दिन इस आलेख के विरूद्ध क़ुम में छात्रों ने प्रदर्शन किया और सुरक्षा बलों के हस्तक्षेप के बाद कई छत्र शहीद हो गये जिस के बाद प्रदर्शनों का क्रम पूरे ईरान में फैल गया। इमाम ख़ुमैनी ने जनता से कहा कि अब इस्लामी सरकार के गठन के लिए सड़कों पर आने का समय आ गया है। शाह ने यह सोच कर कि यदि इमाम ख़ुमैनी को इराक़ से बाहर निकलवा दिया जाए तो प्रदर्शनों में कमी आ जाएगी, इराक़ी सरकार से इमाम ख़ुमैनी को देश निकाला देने को कहा, जहॉ पहले से ही इमाम ख़ुमैनी देश निकाले का जीवन व्यतीत कर रहे थे। इमाम ख़ुमैनी अपने अपने बेटे के साथ कुवैत गये किंतु ईरान की शाही सरकार के दबाव के कारण कुवैत की सरकार ने उन्हें इस देश में रहने की अनुमति नहीं दी जिस के बाद इमाम ख़ुमैनी ने अपने पुत्र से परामर्श करके पेरिस जाने का निर्णय लिया और दूसरे दिन ही पेरिस के निकट स्थित नोफ़ल लूशातो नामक क्षेत्र में एक ईरानी के घर में रहने लगे। फ़्रांस के अधिकारियों ने इमाम ख़ुमैनी को सूचित किया कि राष्टपति भवन यह नहीं चाहता कि वह फ़्रांस में किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि करें जिस पर इमाम ख़ुमैनी ने कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए बयान दिया कि यह प्रजातंत्र के दावों के विपरीत है यदि उन्हें एक हवाई अडडे से दूसरे हवाई अडडे और एक देश से दूसरे देश तक यात्रा करते रहने पर विवश होना पड़े तब भी वह अपने उददेश्य से पीछे हटने वाले नहीं हैं। इस प्रकार से इमाम ख़ुमैनी ने पेरिस में रह कर ईरान में क्रान्ति का नेतृत्व किया क्रान्तिकारी उन के बयानों को गुप्त रूप से ईरानी जनता के मध्य बांटते थे और इस प्रकार से परिस्थितियां यहॉ तक पहुंची कि पूरे ईरान में प्रदर्शन आरंभ हो गये और इमाम ख़ुमैनी ईरान वापस आ गये। पहली फ़रवरी सन १९७९ को बहिश्ते ज़हरा में अपने इतिहासिक भाषणा के दजरान सरकार के गठन की घोषणा कर दी।

उस समय ईरान पर अमरीका का पूरा वर्चस्व था ईरान में अमरीकी राजदूत की सलाह पर शाह काम करता था। वास्तव में अमरीकी ईरान के बारे में एक चीज़ भूल गये थे और वह थी ईरानी जनता में पश्चिमी मूल्यों से पाई जाने वाली गहरी घृणा , उन्हें यह नहीं ज्ञात था कि इमाम ख़ुमैनी की गिरफ़तारी, जेल और १४ वर्ष का देश नाकला वास्तव में ईरानी समाज पर पश्चिम के प्रहाव और अमरीकियों को प्राप्त विशेषधिकार के विरोध का परिणाम था। इसी लिए यह पूरी घटना अमरीका के लिए एक मानसिक समस्या बन यही और वह अब तक इस समस्या में ग्रस्त है, ईरान के विरूद्ध अमरीका की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों का एक बड़ा भाग, इस्लामी क्रान्ति के रूप में अपनी पराजय की क्षति पूरर्ति का एक प्रयास है किंतु सफलता उसे कभी नहीं मिलेगी। किसी भी क्रान्ति को सही रूप से पहचानने के लिए उस के नेता को जानना आवश्यक होता है।

लंदन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका टाइम्ज़ ने जिसे दो सौ वर्ष से ब्रिटिश साम्राज्य का प्रवक्ता कहा जाता है, इमाम ख़ुमैनी के बारे में लिखा: इमाम ख़ुमैनी ऐसे व्यक्ति थे जो जनता को अपनी बातों से मंत्रमुग्ध कर देते थे, वे साधारण लोगों की भाषा बोलते थे और अपने निर्धन और असहाय समर्थकों में आत्मविश्वास भर देते थे जिस के कारण वे अपने सामने आने वाली हर बाधा को हटाने पर सक्षम हो जाते थे उन्हों ने अपनी जनता को यह समझा दिया था कि अमरीका जैसी शक्तियों के सामने डटा जा सकता है, वह भी बिना किसी भय के।

वर्षों तक देश निकाले की समस्याओं और कठिनाइयों को सहन करने के बाद ३० वर्ष पूर्व १२ बहमन को इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी क्रान्ति की विजय का संदश लिये ईरान आए थे जिस के दस दिनों के भीतर ही ईरान में ढाई हज़ार वर्ष के शाही शासन का तख़्ता उलट गया और दसवें दिन इस्लामी क्रान्ति की सफलता की घोषणा कर दी गयी। ईरान में इमाम ख़ुमैनी के आगमन से लेकर , क्रान्ति की औपचारिक सफलता के दस दिनों तक, स्वतंत्रता का जश्न मनाया जाता है जिसे दहे फ़ज्र अर्थात प्रकाश के दस दिन कहा जाता है।

क्रान्ति एक ऐसा शब्द है जिसे सुसन कर एक साथ बहुत से अर्थ मस्तिष्क में घूम जाते हैं किंतु जो सब से गहरा और स्पष्ट अर्थ होता है वह बदलाव और परिवर्तन का होता है। क्रान्ति की सब से बड़ी विशेषता पूर्ण परिवर्तन व बदलाव होता है क्रान्ति लायी ही इसी लिए जाती है ताकि परिस्थितियां बदली जा सकें लोगों के अंसतोष को संतोष में बदला जा सके किंतु क्रान्ति की पूरी प्रक्रिया में जहॉ जनता की भूमिका आवश्यक होती है वहीं क्रान्ति लाने वाले का व्यक्तितव और उस की विशेषताओं को अत्याधिक महत्व प्राप्त होता है क्योंकि क्रान्ति लाने वाला नेता ही वह होता है जो लोगों में सुधार की ललक और अत्याचार के विरूद्ध आक्रोश को एक सही दिशा देता है इसी लिए हम देखते हैं कि बहुत से क्षेत्रों और देशों में अत्याचार होते हैं शोषण होता रहता है जनता में बक्रोश भी बहुत होता है, शासकों के विरूद्ध लड़ते की ललक भी होती है और देश में सुधार की इच्छा भी किंतु इन सब के बावजूद कुछ नहीं होता और क्रान्ति की दिशा में काम करने वाले लोग एक एक करके ख़त्म कर दिये जाते हैं और फिर ऐसा भी समय आता है कि जब उस देश के किसी कोने से क्रान्ति व सुधार की हल्की सी चिंगारी भी उठती नज़र नहीं आती किंतु यदि अत्याचार व शोषण के बीच किसी समाज को योग्य क्रान्ति कारी नेता मिल जाता है तो फिर वे आम लोगों में मौजूद असंतोष व आक्रोश और अत्याचार व शोषण के विरूद्ध भावनाओं की छोटी छोटी नदियों का दिशा निर्देशन करके उन्हें एक प्रचंड तूफ़ान में बदल देता है और फिर इस तूफ़ान के सामने हज़ारों वर्षों से चल रही शासन व्यवस्था भी टिक नहीं पाती और न ही महाशक्तियां उस की कोई सहायता कर पाती हैं। ईरान में भी कुछ ऐसा ही हुआ।

क्रान्ति का अर्थ बदलाव होता है किंतु ईरान की क्रांति और आम क्रांतियों में थोड़ा सा इस दृष्टि से भी अंतर है। प्राय: क्रान्तियां बदलाव व नवीनता लेकर आती हैं किंतु ईरान की क्रान्ति बदलाव तो लेकर आयी किंतु नवीनता के स्थान पर वही जाने पहचाने और प्राचीनप मूल्यों को एक ऐसे रूप में प्रस्तुत किया जिस से तब तक विश्व वासी अनभिज्ञ थे। ईरान की इस्लामी क्रान्ति ने सिद्ध कर दिया कि धर्म में क्या शक्ति होती है और मानवीय व धार्मिक मूल्यों का प्रतिबद्धा के साथ भी कितने अच्छे ढंग से राजनीति की जा सकती और देश चलाया जा सकता है। ईरान की इस्लामी क्रान्ति नवीनता का नहीं बल्कि मानवता व अपनी प्रवृत्ति की ओर मानव की वापसी का संदेश लेकर आयी और स मशीनी युग में धर्म व नैतिकता व मानवता की उपयोगिता को व्यवहारिक रूप से सिद्ध कर दिया और ईरान की इस्लामी क्रान्ति के अन्य राष्टों तक पर्सार और साम्राज्यवादी शक्तियों की इस से शत्रुता का कारण भी इस क्रान्ति की व्यापकता व प्रभाव है हिस का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि ईरान की क्रान्ति का संदेश , हर मनुष्य के हृदय व प्रवृत्ति की गहराइयों से निकलने वाली आवाज़ है।

ईरान में इस्लामी क्रांति का आंदोलन सफलता की ओर बढ़ रहा था और ग्वाडलूप द्वीप में पश्चिम के चार बड़े देश एक सम्मेलन का आयोजन कर रहे थे। सम्मेलन का उददेश्य , इस बड़े परिवर्तन से विदेश नीति को समन्वित करना था।

सम्मेलन का सुझाव फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ने अमरीका, ब्रिटेन और जर्मनी के राष्ट्रपतियों को दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया क्योंकि उन्हों ने अपने स्थाई घटक शाह की सरकार की ख़तरनाक स्थिति को समझ लया था इस लिए यह चार देश सम्मेलन में इस बात पर विचार कर रहे थे कि कैसे उपाय किये जाएं जिस से उन के हितों को कम से कम नुक़सान पहुंचे। इस सम्मेलन का महत्वपूर्ण निर्णय यह था: इमाम ख़ुमैनी को शाही सरकार और क्रांति के मध्य का रास्ता अपनाने और बख़्तियार सरकार से समझौता करने पर तैयार किया जाए और इस के साथ ही उन्होंने अपनी मॉंग मनवाने के लिए सेना के सीधे हस्तक्षेप की धमकी भी दे दी। सम्मेलन के समापत के बाद अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने दावा किया कि सम्मेलन में उपस्थित कोई भी पक्ष शाह के समर्थन में रूचि नहीं रखता था उन्हों ने कहा कि सब का यही कहना था कि शाह को एक असैनिक सरकार को सत्ता सौंप कर ईरान से निकल जाना चाहिए। जिमी कार्टर के अनुसार इस पर सब सहमत थे कि सेना को एकता बनाए रखते हुए यह सिद्ध करना चाहिए उसे इमाम ख़ुमैनी और चरमपंथियों के समर्थन में कोई रूचि नहीं है यह तो जिमी कार्टर का विचार था किंतु ईरानी राष्ट्र का भविष्य एक अलग ढंग से लिखा जा चुका था।

१६ जनवरी १९७९ को ईरान का शाह, भाग कर मिस्र गया और शक्ति हीन एक कमज़ोर सरकार को सड़क को सड़क पर निकली जनता के सामने अकेला छोड़ दिया। बख़्तियार के मंत्रिमंडल का गठन हुआ और कार्यक्रम यह था कि बख़्तियार की सरकार यदि परिस्थितियों पर नियंत्रण में सफल हुई तो शाह कुछ दिनों के लिए ईरान से चला जाएगा किंतु बहुत शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि बख़्तियार परिस्थितियों पर नियंतत्र में सफल हों या न हों, शाह को प्रत्येक दशा में ईरान से जाना होगा, शाह ने अमरीकी राजदूत से कहा कि वह ईरान छोड़ने से पहले बयान जारी करेगा कि आराम करने के लिए देश से निकल रहा है किंतु बयान में वापसी होगा, शाह ने अमरीकी राजदूत से कहा कि वह ईरान छोड़ने से पहले बयान जारी करेगा कि आराम करने के लिए देश से निकल रहा है किंतु बयान में वापसी की तिथि का वर्णन नहीं होगा वास्तव में अमरीका में निर्णय लेने वाले केन्द्र इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे कि अब शाही सरकार का बचना संभव नहीं है। शाह के ईरान से भागने का समाचार जंगल की आग की तरह पूरे ईरान में फैल गया और इस्लामी क्रांति के लिए संघर्ष करने वालों में उत्साह भर गया। शाही सरकार की आधारशिला खिसक गयी थी और अब इमारत गिरने की प्रतीक्षा थी।

बहुत से विचारकों ने ईरान की इस्लामी क्रांति को शताब्दी का सब से बड़ा चमत्बार कहा है क्योंकि क्षेत्र में ईरान की शाही सरकार की जो स्थिति थी और उसे जिस प्रकार से महाशक्तियों का समर्थन प्राप्त था उस के साथ कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि कोई धर्म गुरू बिना किसी महाशक्ति से जुड़े केवल जनता की शक्ति के सहारे ढाई हज़ार वर्ष पुराने शाही शासन को इस प्रकार से उखाड़ फेंकेगा कि उसका भरपूर समर्थन करने वाली अमरीका जैसी महाशक्तियां भी मुंह तकती रह जाएंगी और इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद भी अमरीकी सरकार ने ईरान की इस्लामी क्रांति की विरूद्ध जो षडयन्त्र रचे उस का एक कारण यह भी था कि अमरीका को ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद भी विश्वास नहीं हो पा रहा था कि कोई धर्म गुरू धार्मिक आधारों पर और धर्म की सरकार चलाने के नारे के साथ,ऐसी किसी क्रांति को सफल कर सकता है उसे अंतिम क्षणों तक क्रांति की विफलता की प्रतीक्षा थी अमरीका ने अपनी इस प्रतीक्षा को समाप्त करने के लिए भरसक प्रयास किये जो अब तक जारी हैं किंतु उस की प्रतीक्षा लंबी होती चली गयी और अब तो २९ वर्षों की लंबी अवधिक बीत चुकी है और यह सब कुछ इमाम ख़ुमैनी की सूझबूझ और दूरदर्शिता के कारण था। इसी लिए समाचार पत्र हेराल्ड ट्रीब्यून ने उन की योग्यताओं को स्वीकार करते हुए लिखा:

इमाम ख़ुमैनी , कभी न थकने वाले क्रांतिकारी थे और अंतिम सांसों तक ईरान में इस्लामी समाज और सरकार के गठन की अपनी आकांक्षा के प्रतिबद्ध रहे। वे अपने प्राचीन देश के लिए जो चाहते थे उस में एक क्षण के लिए भी हिचकिचाए नहीं, वह अपना कतवर्य समझते थे कि ईरान को उन वस्तुओं से छुटकारा दिला दें जिन्हें वे पश्चिमी भ्रष्टाचार और पतन का नाम देते थे। वे शुद्ध इस्लाम को अपने राष्ट्र में वापस लाना चाहते थे।

पहली फ़रवरी बराबर १२ बहमन को इमाम ख़ुमैनी के ईरान आगमन के बाद पूरे ईरान में प्रदर्शनों का ऐसा क्रम आरंभ हो गया जिस के सामने शाही सरकार के सारे उपाय और उस के पश्चिमी समर्थकों की सारी युक्तियां प्रभावहीन हो गयीं।

५ फ़रवरी को इमाम ख़ुमैनी ने एक बयान जारी करके अपने बारे में ईरानी जनता की भावनाओं पर उन के प्रति आभार प्रकट किया। इमाम ख़ुमैनी के आदेश पर त्याग पत्र देने वाले कुछ सांसद उन की सेवा में उपस्थित हुए इन परिस्थितियों में भी शाह और कुछ पश्चिमी देशों द्वारा प्रधान मंत्री बनाए गये बख़्तियार ने बयान दिया कि वे अब भी देश का संचालन कर रहे हैं। इसी मध्य आज ही के दिन संसद ने अपनी खुली कार्यवाही में शाह की भयानक गुप्तचर संस्था सावाक को भंग करने और प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों के विरूद्ध मुकदमा चलाने के विधेयक को पारित कर दिया इमाम ख़ुमैनी ने अंतरिम सरकार के गठन का आदेश दिया। उन्होंने इसी आदेश में इस्लामी क्रान्ति के लक्ष्यों और कार्यक्रमों का उल्लेख किया और अंतरिम सरकार को निर्दोश दिया कि वो इन लक्ष्यों के लिए प्रयास करे।

इमाम ख़ुमैनी के इस आदेश में अंतरिम सरकार का मुख्य लक्ष्य राजनैतिक शासन व्यवस्था के निर्धारण हेतु जनमत संग्रह कराना और संसदीय चुनावों का आयोजन कराना था।

अंतरिम सरकार के गठन के साथ ही शाही सरकार की कई सैनिक छावनियों में इस्लामी कान्ति के पक्ष में प्रदर्शन हुए और शाह की सरकार द्वारा देश में सैनिक शासन लागू करने और प्रदर्शों पर प्रतिबंध के बावजूद पूरे ईरान में प्रदर्शन हुए और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध के बावजूद पूरे ईरान में प्रदर्शन हुए और ढाई हज़ार वर्ष के शाही शासन व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी। एक अभूतपूर्व क्रान्ति की आहट अब साफ़ सुनाई दे रही थी।

इमाम ख़ुमैनी के ईरान के आगमन के समय, ईरान की जो परिस्थितियां थी उस के अंतर्गत निश्चित रूप से इमाम ख़ुमैनी द्वारा ईरान आने का निर्णय अत्याधिक साहसिक था क्योंकि शाही शासन ने उन के ईरान आने से पूर्व देश के सारे हवाई अड्डों को बंद कर दिया था और यह भी बातें हो रही थीं कि हो सकता है कोई इमाम ख़ुमैनी पर आक्रमण कर दे या फिर उन के विमान को लक्ष्य बना ले किंतु निर्भीकता व साहस, ईश्वर पर भरोसा और ईश्वर के लिए संघर्ष करने वालों की विशेषता होती है। यही कारण है कि इमाम ख़ुमैनी ने इस प्रकार की समस्त आशंकाओं को महत्व दिये बिना ईरान वापसी का निर्णय लिया जिस के परिणाम में शाही सरकार का पतन हो गया।

इमाम ख़ुमैनी की जीवनी पढ़ने वालों को ज्ञात है कि उन्हों ने कितनी बार और किस प्रकार, अपने इस प्रकार के निणर्यों द्वारा कितने बड़े बड़े काम किये हैं।

मुहम्मद लिंसल, बस्ट्रिया में इस्लामी पुर्नजागरण संस्था के प्रमुख हैं वे युरोप में इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन के प्रभाव के शीर्षक के अंतर्गत अपने एक लेख में लिखते हैं कि निश्चित रूप से इमाम ख़ुमैनी की इस्लामी क्रांति ने न केवल यह कि युरोप में इस्लाम की नयी छवि पेश की बल्कि उन की क्रांति ने गैर मुस्लिमों के जीवन में भी धार्मिक रंग भर दिये । दूसरे शब्दों में आज युरोप में भी धर्म के पालन को नये अर्थ मिल गये हैं।

आस्ट्रिया के पूर्व राष्ट्रपति ने अपनेएक भाषण में कहा था कि इस्लामी क्रांति ने धर्म पर विश्वास रखने वाले सब लोगों में नया आत्मविश्वास भर दिया।

किसी भी क्रांति के लिए क्रांति के नेता की दूर दर्शिता और सूझ बूझ के साथ ही जनता की शक्ति की भी अत्याधिक आवश्यकता होती है और जब जनता की यह शक्ति सड़कों पर नज़र आती है तो राजनीति के सारे दांव पेंच और बड़े बड़े नीतिकारों की बुद्धि धरी रह जाती है। ईरान में क्रांति की आहट सुनने के बाद अमरीका सहित कई विश्व शक्तियों ने क्रांति को रोकने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी किंतु क्रांति के समय आज ही दिन इमाम ख़ुमैनी द्वारा अंतरिम सरकार के प्रमुख के चयन की घोषणा के बाद लाखों की संख्या में ईरानी नागरिकों ने इमाम ख़ुमैनी के इस आदेश के समर्थन में देश भर में जुलूस निकाले और प्रदर्शन किये।

लोग सड़कों पर एकत्रित हो गये और एक आवाज़ होकर शाह के पिटठू शापूर बख़्तियार की सरकार को हटाने की मांग की। इस्फ़हान सहित ईरान के अधिकांश नगरों में जनता सड़कों पर निकल कर शाही सरकार के विरूद्ध नारे लागा रही थी।

१७ बहमन के सुबह से ही संसद की ओर जाने वाली सभी सड़कें प्रदर्शनकारियों से भर गयीं और संसद को सुरक्षा बलों ने घेर लिया। जनता ने तेहरान के बहारिस्तान स्कवायर के आसपास की सड़कों पर भारी प्रदर्शन किये और आज ही कि दिन अमरीका के विशेष दूत जनरल हायज़र अपनी योजना को व्यवहारिक बनाने में असफलता के बाद ईरान से वापस अमरीका लौट गये। वास्तव में जनरल हायज़र को शाही सरकार की सहायता, शाही सेना के प्रति अमरीका के समर्थन की घोषणा और इस्लामी क्रांति के विरूद्ध विद्रोह की भूमिका प्रशस्त करने के लिए ईरान भेजा गया था। वे ईरान की ताज़ा स्थिति की जानकारी अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर को देने अमरीका वापस चले गये। क्रांति की सफलता लगभग निश्चित हो चुकी थी।

इस्लामी क्रांति की सफलता में सब से अधिक महत्वपूरण भूमिका इमाम ख़ुमैनी की थी इस में तो कोई संदेह नहीं है किंतु प्रश्न यह है कि उन के पास इतनी असीम शक्ति आयी कहॉं से थी। क्या एक साधारण मनुष्य एक साथ इतनी सारी शक्तियों से टकरा कर उन्हें पीछे हटने पर विवश कर सकता है। इस प्रश्न का उत्तर बहुत बड़ा है किंतु संक्षेप में बस यही कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमी की यह शक्ति, शक्ति के असीम व अनन्त स्रोत, ईश्वर से जुड़े होने और उसी के मार्ग में संघर्ष के कारण थी। जो ईश्वर से जुड़ा होता है उसे संसारिक लोभ या भय प्रभावित नहीं करता और जब ऐसे लोग किसी काम का निर्णय करते है और ईश्वर के लिए उस दिशा में क़दम बढ़ाते है तो फिर उन्हें कोई भी उन के मार्ग से हटा नहीं सकता।

इमामा ख़ुमैनी ऐसे ही थे।

इमाम ख़ुमैनी से भेंट करने वाले पश्चिम के प्रसिद्ध ईसाई पत्रकार रॉबिन वूडस वर्थ एक स्थान पर इमाम ख़ुमैनी के बारे में लिखते हैं: इमाम ख़ुमैनी एक तूफ़ान थे। इस के बावजूद इस तूफ़ान के भीतर एक पूर्ण शांति थी। वे अत्यन्त ठोस व आदेशक मुद्रा रखते थे किंतु इस के साथ ही अत्यन्त शांतिदायक, प्रहाव शाली और उत्तरदायी थे। उन के भीतर एक स्थिर और अडिग वास्तविकता थी किंतु यही स्थिरता एक देश को गति में लाने का कारण बनी।

इमाम ख़ुमैनी के ईरान आगमन के बाद से शाही सरकार के विरोध में जो तेज़ी आयी तो वह अब अपनी चरम सीमा पर पहुंच रही थी ईरान की जनता समूहों में इमाम ख़ुमैनी से भेंट के लिए तेहरान में उनके आवास पर जाती और इमाम ख़ुमैनी के आज्ञा पालन का संकल्प दोहराती। ईरान भर में हर ओर उत्साह दिखाई दे रहा था। परिस्थितियों साफ़ लग रहा था कि निकट भविष्य में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला हैं आज के दिन जनता के विभिन्न वर्गों के अतिरिक्त तीनों सेनाओं के सैनिकों के कुछ गुट भी अपनी वर्दी में और कुछ पूर्व सेनाध्यक्षों ने भी इमाम ख़ुमैनी के सेवा में उपस्थित होकर उनके आज्ञापालन का संकल्प लिया। इसी प्रकार इमाम ख़ुमैनी ने एक भाषण देकर शाह पर न्यायालय में मुक़द्दमा चलाए जाने पर बल दिया।

शाही सरकार की इमारत को अमरीका के समर्थन के स्तंभ भी खड़ा रखने में सफल नहीं हो पाए, शाही शासन की इमारत ढह रही थी, तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के विशेष दूत जनरल हायज़र एक दिन पूर्व ईरान स निकल चुके थे और आज ही के दिन अमरीकी सरकार ने ख़तरे को भांपते हुए, ईरान में रह रहे अमरीकियों को ईरान से निकल जानत का आदेश दे दिया। ईरान के बंदर अब्बास नगर से बहुत से सैनिक अफ़सरों ने इमाम ख़ुमैनी के नाम टेलीग्राफ़ भेज कर अपने समर्थन की घोषणा की। शाही शासन की कमज़ोर हड़िडया चरमरा गयी थी और उस की आवाज़ विश्व के कोने कोने में सुसनी गयी। विश्व को ईरान में एक बड़े परिर्वतन की प्रतीक्षा थी किंतु यह परिर्वतन इतना बड़ा और स्थायी होगा इस की आशा किसी को भी नहीं थी विशेषकर पश्चिमी जगत और अमरीका को।

किसी भी क्रान्ति के नेता के लिए राजनीतिक सूझ बूझ और विश्व की परिस्थितियों की जानकारी अत्याधिक आवश्यक होती है बल्कि किसी भी क्रांति की सफलता के लिए यह मुख्य शर्त है। इमाम ख़ुमैनी एक धर्मगुरू थे संभवत:शाही शासन में ऐसे बहुत से लोग रहे हों जो यह सोचते हों कि एक धर्म गुरू को राजनीति से क्या संबंध किंतु वह गलत समझे थे अमरीका ने भी यही गलती की थी।

जर्मनी से प्रकाशित पत्रिका इश्पिग्ल ने इमाम ख़ुमैनी के बारे में लिखा:

ईरान कीघटनाओं से हम बहुत अच्छी तरह से यह समझ सकते हैं कि इमाम ख़ुमैनी, मध्य पूर्व के समीकरण में ईरान के महत्व को, राष्ट्रपति कार्टर से अधिक बेहतर रूप में समझते हैं अमरीका ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि ईरान, उस की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए कमज़ोरी बन सकता है किंतु इमाम ख़ुमैनी ने इस वास्तविकता को भली - भॉंति समझ लिया है। तेहरान में उन की सफलता केवल उस क्रांति की आरंभिक लहरें हैं जिस के बारे में उन्हें आशा है कि यह लहर पूरे मध्य पूर्व को अपनी लपेट में ले लेगी। कार्टर और उन के सलाहकारों ने इमाम ख़ुमैनी के केवल राष्ट्रीय आयाम पर ध्यान दिया किंतु इस के बाद अब निश्चित रूप से मिस्र व इस्राईल से लेकर तक सऊदी अरब व इराक़ तथा फ़ार्स की खाड़ी की राजशाही शासनों को ईरान की क्रांति के परिणामों का सामना करना पड़ेगा।

प्राय: क्रांति जनता द्वारा आती है और फिर जब सब कुछ बदल जाता है तो सेना भी अपनी निष्पक्षता की घोषणा कर देती है किंतु ईरान की क्रांति की अन्य घटनाओं की भॉंति इस संदर्भ में भी एक असाधारण घटना घटी।

इमाम ख़ुमैनी के पहली फ़रवरी को तेहरान आगमन के बाद जो प्रदर्शनों का क्रम आरंभ हुआ था वह अब अपने अंतिम चरणों में था अब सेना भी इमाम ख़ुमैनी के समर्थन में आगे आने लगी थी। एक ओर तो लाखों लोग इमाम ख़ुमैनी की आवाज़ पर अंतिरम सरकार के गठन के समर्थन में प्रद्रशन कर रहे थे और शाही सरकार के अपदस्त किये जाने की मांग कर रहे थे तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में वायु सैनिक इमाम ख़ुमैनी के पास पहुंचे और उनके नेतृत्व मे इस्लामी क्रान्ति के प्रति अपने समर्थन की घोषणा की।

इमाम ख़ुमैनी ने इस अवसर पर कहा कि आप लोग अब तक एक दुष्ट का आज्ञापालन करते थे। आज से आप सब क़ुरआन से जुड़ जाएं क़ुरआन आप सब का संरक्षक है। आशा करता हूं कि आपकी सहायता से मैं ईरान में न्याय पर आधारित सरकार का गठन कर सकूंगा। वायु सेना की इस टुकड़ी के क्रांति कारियों से जुड़ने के बाद शाही शासन की कमर टूट गयी और क्रांति कारियों का उत्साह कई गुना बढ़ गया।

शाही व्यवस्था में निराशा फैल गयी। आज ही के दिन पूरे ईरान में अभूतपूर्व प्रदर्शन हुए सूत्रों के अनुसार केवल तेहरान में ही लगभग बीस लाख लोगों ने सड़कों पर निकल कर इमाम ख़ुमैनी के समर्थन में प्रदर्शन किया। वायु सेना के जवानों का समर्थन क्रांति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन था। इसी घटना के उपलक्ष्य में आज के दिन को ईरान में वायु सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इमाम ख़ुमैनी की क्रांति की एक अन्य विशेषता विश्व भर के शोषितों के समर्थन का नारा है।

प्रसिद्ध अरबी समाचार पत्र अश्शअब ने लिखा।:

इमाम ख़ुमैनी ने विश्व के वंचितों व शेषितों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस्राईल के झंडे को ईरान से उतार फेंका और उस के स्थान पर पहली बार फ़िलिस्तीन का ध्वज लहराया। इमाम ख़ुमैनी ने पूरे विश्व में सैंकड़ों संस्थाएं स्थापित कीं और इस प्रकार से लाखों लोग विश्व में इस्लाम से परिचित हुए इस महान हस्ती के जीवन के एक एक क्षण को इतिहास में सुनहरी शब्दों में लिखा जाना चाहिए।

प्राय: क्रांति जनता द्वारा आती है फिर जब सब कुछ बदल जाता है तो सेना भी अपनी निष्पक्षता की घोषणा कर देती है किंतु ईरान की क्रांति की अन्य घटनाओं की भॉंति इस संदर्भ में भी एक असाधारण घटना घटी।

इमाम ख़ुमैनी के पहली फ़रवरी को तेहरान आगमन के बाद जो प्रदर्शनों का क्रम आंरभ हुआ था वह अब अपने अंतिम चरणों में था अब सेना भी इमाम ख़ुमैनी के समर्थन में आगे ओने लगी थी। एक ओर तो लाखों लोग इमाम ख़ुमैनी की आवाज़ पर अंतिरम सरकार के गठन के समर्थन में प्रर्शन कर रहे थे और शाही सरकार के अपदस्त किये जाने की मांग कर रहे थे तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में वायु सैनिक इमाम ख़ुमैनी के पास पास पहुंचे और उनके नेतृत्व में इस्लामी क्रांति के प्रति अपने समर्थन की घोषणा की। इमाम ख़ुमैनी ने इस अवसर पर कहा कि आप लोग अब तक एक दुष्ट का आज्ञापालन करते थे। आज से आप सब क़ुरआन से जुड़ जाएं क़ुरआन आप सब का संरक्षक है। आशा करता हूं कि आपकी सहायता से मैं ईरान में न्याय पर आधारित सरकार का गठन कर सकूंगा। वायु सेना की इस टुकड़ी के क्रांति कारियों से जुड़ने के बाद शाही शासन की कमर टूट गयी और क्रांति कारियों का उत्साह कई गुना बढ़ गया।

शाही व्यवस्था में निराशा फैल गयी। आज ही के दिन पूरे ईरान में अभूतपूर्व प्रदर्शन हुए सूत्रों के अनुसार केवल तेहरान में ही लगभग बीस लाख लोगों ने सड़कों पर निकल कर इमाम ख़ुमैनी के समर्थन में प्रदर्शन किया। वायु सेना के जवानों का समर्थन क्रांति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन था। इसी घटना के उपलक्ष्य में 19 बहमन को ईरान में वायु सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इमाम ख़ुमैनी की क्रांति की एक अन्य विशेषता विश्व भर के शोषितों के समर्थन का नारा है।

प्रसिद्ध अरबी समाचार पत्र अश्शअब ने लिखा:

इमाम ख़ुमैनी ने विश्व के वंचितों व शेषितों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस्राईल के झंडे को ईरान से उतार फेंका और उस के स्थान पर पहली बार फ़िलिस्तीन का ध्वज लहराया। इमाम ख़ुमैनी ने पूरे विश्व में सैंकड़ों संस्थाएं स्थापित कीं और इस प्रकार से लाखों लोग विश्व में इस्लाम से परिचित हुए इस महान हस्ती के जीवन के एक एक क्षण को इतिहास में सुसनहरी शब्दों में लिखा जाना चाहिए।

इस्लामी क्रांति की सफलता से बस एक दिन की दूरी थी। शाही सरकार सत्ता में बाक़ी रहने के अंतिम प्रयास कर रही थी। अंतरिम सरकार के गठन हेतु इमाम ख़ुमैनी के आदेश के समर्थन में लाखों लोग सड़कों पर निकल आए।

इसी के साथ वायु सेना के कई हज़ार सैनिक, प्रर्शन कारियों से जा मिले। यह स्थिति देख कर शाह द्वारा निर्धारित बख़्तियार सरकार ने घोषणा की कि आज साढ़े चार बजे शाम से पॉंच बजे सुबह तक कर्फ़यू रहेगा। इमाम ख़ुमैनी ने बयान जारी करके जनता से कहा कि वे सड़कों पर ही रहें कर्फ़यू पर ध्यान न दें उन्हों ने इस आदेश को धोखा बनाया। शाही गारद अधिक तैयारी के साथ वायु सेना की छावनी पर टूट पड़े किंतु जनता वायु सेना के साथ थी। समाचार जंगल की आग की तरह तेहरान में फैला और प्रदर्शन कारियों ने वायु सेना की छावनी का रूख़ किया।

प्रदर्शन कारियों के छावनी में प्रवेश के साथ ही तेहरान में शाही सेना और क्रांतिकारियों के मध्य सशस्त्र लड़ाई आरंभ हो गयी। जिस के दौरान बहुत से सैनिक भी जनता से जा मिले और ढाम हज़ार वर्षीय शाही शासन की इमारत भरभरा कर गिर पड़ी। क्रांति सफल हो चुकी थी।

प्रोफ़ेसर इस्माईल स्पेन के प्रसिद्ध दार्शनिक हैं वे इमाम ख़ुमैनी के कहते हैं: धर्म जीवित हो गया, गिरिजाघरों में जीवन की नयी लहर दौड़ गयी, अब विश्व विद्यालयों में धार्मिक विचारों पर ध्यान को गलत नज़रों से नहीं देखा जाता विश्व में समाजी संबंधों को सुन्दर बनाने में धर्म और आध्यात्म के आकर्षण की ओर रूझान उत्पन्न हुआ और यह सब कुछ उस नये आंदोलन के कारण था जिसे इमाम ख़ुमैनी ने अपनी धार्मिक क्रांति द्वारा विश्व समूदाय के सामने पेश किया था।

वर्ष १९७० के अंतिम वर्षों में ईरानी समाज क्रमश: व्यापक एवं राष्ट्र व्यापी प्रतिरोध की तैयारी कर रहा था। एक ओर आर्थिक दबाव, तानाशाही, अत्याचार और आंतरिक घुटन से लोग ऊब व थक चुके थे तथा दूसरी ओर ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय हज़रत इमाम खुमैनी रह, कुछ दूसरे धर्मगुरू और मुसलमान बुद्धिजीवियों ने शाह की करतूतों का रहस्योदघाटन करके लोगों को प्रतिरोध के लिए कर दिया था। दूसरे शब्दों में दो चीज़ें, एक शाह की सरकार से ऊब जाना और दूसरे वांछित व्यवस्था स्थापित करने की आशा, जो हर क्रांति के लिए आवश्यक है, ईरानी जनता के मध्य अपनी चरम सीमा पर पहुंच गयी थीं और लोगों के लिए यह स्पष्ट हो चुका था कि स्वतंत्रता एवं आज़ादी प्राप्त करने के लिए पहले क़दम के रूप में शाह की सरकार का अंत होना चाहिये।

अक्तूबर वर्ष १९७८ में इमाम ख़ुमैनी रह, के बड़े बेटे आयतुल्लाह सैयद मुस्तफा ख़ुमैनी का, जिन्हें अपने समय का एक वरिष्ठ धर्मगुरू समझा जाता था, अप्रयाशित रूप से इराक़ के पवित्र नगर नजफ में निधन हो गया। ईरान के अधिकांश लोग इमाम ख़ुमैनी के बेटे के निधन को ईरान एवं इराक़ की पूर्व सरकारों की सहकारिता एवं मिली भगत का परिणाम समझते थे कि ये सरकारें तानाशाही और विरोधियों का दमन करने के लिए विख्यात थीं। इस दुखद घटना के बाद ईरान के लोगों ने शोक सभाओं का आयोजन किया और इस घटना की भर्त्सना की।

पहली बार था जब इन शोक सभाओं में और मंचों आदि पर काफी समय के बाद इमाम ख़ुमैनी का नाम लिया गया। जबकि उस समय विशेष सभाओं में भी इमाम ख़ुमैनी रह, का नाम लेना वर्जित एवं ख़तरनाक कार्य समझा जाता था।

वर्ष १९७८ के आरंभिक दिनों में शाह की सरकार से संबंधित एक समाचार पत्र में इमाम ख़ुमैनी रह, और धर्मगुरूओं के अपमान में एक लेख लिखा गया। इस अपमान जनक लेख के प्रकाशन से ईरानी जनता का क्रोध फूट पड़ा और उसने इस कार्यवाही के प्रति कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई तथा समाचार पत्र की प्रतियां जला डालीं। इसके दो दिन बाद पवित्र नगर क़ुम की जनता एवं धर्मगुरूओं ने शाह की सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन को शाह के सुरक्षा कर्मियों ने अपनी बर्बरतापूर्ण कार्यवाहियों का लक्ष्य बनाकर काफी लोगों को शहीद व घायल कर दिया।

पवित्र नगर क़ुम में लोगों के शहीद होने का समाचार तेज़ी से पूरे ईरान में फ़ैल गया और शाह की सरकार के विरुद्ध जनता के आक्रोश की लहर दौड़ गयी। ईरानी जनता के मध्य एक इस्लामी परम्परा के अनुसार, लोग मरने वाले व्यक्ति की याद और उसके सम्मान में उसके मरने के चालिस दिन के बाद शोक सभा आयोजित करते हैं। इसी उपलक्ष्य में ईरान के विभिन्न नगरों में क़ुम में शहीद कर दिये जाने वाले लोगों के सम्मान में शोक सभाओं का आयोजन किया गया पंरतु ईरान के उत्तर पश्चिम में स्थित तबरेज़ नगर के लोगों का प्रदर्शन अधिक तीव्र था और क्रोधित लोगों ने, जिन पर शाही सरकार के क्रूर सुरक्षा कर्मियों ने आक्रमण किया था, शाही सरकार से संबंधित कुछ स्थानों पर आक्रमण कर दिया। इस घटना में भी तबरेज़ नगर के कुछ लोग या शहीद हो गये। इन आपत्तियों और प्रदर्शनों का परिणाम राष्ट्रीय एकजुटता का आभास उत्पन्न होना, जनता द्वारा अपनी मांगों एवं प्रतिरोध के प्रति संकल्प में वृद्धि और पहलवी सरकार को बर्खास्त करना आदि जनता की मांग थी।

इसी परिप्रेक्ष्य में शाह के सुरक्षा कर्मियों द्वारा जनता की हत्या के विरोध में ईरानी नववर्ष के पहले महीने नौरोज़ को वर्ष १९७८ में अधिकांश लोगों ने सार्वजनिक एवं राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया।

तबरेज़ नगर में शहीद होने वाले व्यक्तियों की याद में भी चालिस दिन के बाद आयोजित होने वाली शोकसभाओं के अवसर पर एक अन्य त्रासदी घटी। इस बार यज़्द नगर के लोगों पर, जो ईरान के केन्द्रीय नगरों में से है, पूरी तरह लैस शाही सरकार के सैनिकों ने आक्रमण कर दिया और कुछ को शहीद कर दिया। यज़्द नगर के लोग भी जेलों से राजनीतिक बंदियों की स्वतंत्रता और शाह को सत्ता से हटाये जाने की मांग कर रहे थे। इन घटनाओं के बाद ईरान के विभिन्न नगरों में जनता का प्रदर्शन और तीव्र हो गया तथा पहलवी सरकार का अंत ईरानी जनता की सार्वजनिक मांग में परिवर्तित हो गया। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह, भी विभिन्न अवसरों पर जनता को प्रतिरोध जारी रखने हेतु प्रोत्साहित करने और अपने बीच एकता की सुरक्षा बनाये रखने की आवश्यकता के संबंध में विज्ञप्ति एवं घोषणा पत्र जारी करते थे।

इन विज्ञप्तियों में महत्वपूर्ण विज्ञप्ति वर्ष १९७८ के जूलाई महीने में जारी की गयी जिसमें एक संकलित घोषणा पत्र की भांति इस्लामी क्रांति के मूल मार्गों और संघर्ष प्रक्रिया में समाज के विभिन्न वर्गों के दायित्वों को बयान किया गया था। इस विज्ञप्ति में इमाम ख़ुमैनी रह, ने शाह की अलोकतांत्रिक सरकार से हर प्रकार के समझौते को निषेध घोषित कर दिया था। अलबत्ता इमाम ख़ुमैनी रह, ने अपने दूसरे संदेश में शाह के सैनिकों व सुरक्षा कर्मियों से जनता पर आक्रमण न करने के लिए कहा था।

वर्ष १९७८ में अगस्त महीने के मध्य में शाह के तत्वों ने एक अत्यंत ख़तरनाक कार्यवाही की और उन्होंने ईरान के दक्षिण पश्चिम में स्थित आबादान नगर में एक सिनेमा में दर्शकों के साथ आग लगा दी। इस जघन्य व भयावह अपराध में लगभग ३८० निर्दोष लोग मारे गये। शाह की सरकार का इरादा यह था कि वह क्रांतिकारी मुसलमानों पर प्रश्न उठाये और इस जघन्य अपराध का ज़िम्मेदार उन्हें बताने की चेष्टा में थी पंरतु मौजूद समस्त साक्ष्य व प्रमाण इस बात के सूचक थे कि इस सिनेमा में शाह के तत्वों ने आग लगाई थी। इसी कारण और ईरानी जनता का प्रदर्शन विस्तृत हो जाने के बाद इस जघन्य कार्यवाही के कई दिन बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जमशीद आमूज़गार को, जिसे अमेरिका और शाह का समर्थन व आशिर्वाद प्राप्त था, विवश होकर त्याग पत्र देना पड़ा। उस समय मोहम्मद रज़ा पहलवी ने जनता को धोखा देने के लिए शरीफ इमामी को सरकार के मुखिया के रूप में चुना जिसकी सरकार को विदित में राष्ट्रीय एकजुटता वाली सरकार कहा जाता था। इसी प्रकार शाह ने ईरान की आधिकारिक तारीख़ को, जिसे हिजरी शम्सी से शहन्शाही तारीख में परिवर्तित कर दिया था, एक बार फ़िर उसे उसकी वास्तविक स्थिति अर्थात शहन्शाही से हिजरी शम्सी में लोटा दिया।

जिस सरकार को राष्ट्रीय एकजुटता उत्पन्न करनी थी उसने थोडे ही समय में अपने चेहरे से नक़ाब हटा दी और जनविरोधी अपनी पहचान व वास्तविकता को स्पष्ट कर दिया।

ईरानी जनता ने शाही सरकार की पाखंडता व धूर्तता से प्रभावित हुए बिना वर्ष १९७८ में नमाज़े ईद के बाद तेहरान सहित ईरान के विभिन्न नगरों में रैली निकाला और सरकार के परिवर्तित होने की आवश्यकता पर बल दिया। उसके कुछ दिन बाद एक अन्य बड़ी रैली निकाली गयी जो जनता के बीच एकता और इस्लामी क्रांति के गति पकड़ जाने की सूचक थी परंतु शाह की सरकार ने उसके बाद अर्थात शुक्रवार ८ सितंबर १९७८ को तेहरान में आयोजित होने वाली रैली को अपनी बर्बरतापूर्ण कार्यवाही से रक्तरंजित कर दिया। शाह के सैनिकों ने ज़मीन और हवा से उन महिलाओं एव पुरुषों पर गोली चला दी जो आंतरिक वर्चस्व तथा विदेशी साम्राज्य से अपने देश की स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे। क्रूरता व बर्बरता की इस कार्यवाही में शाह के सैनिकों ने तीन हज़ार से अधिक लोगों को शहीद कर दिया। शाह के तत्वों ने इस जघन्य अपराध के पहलुओं का रहस्योदघाटन न होने के लिए शहीद होने वाले अधिकांश लोगों को सामूहिक क़ब्र में दफ्न कर दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति के इतिहास में ८ सितंबर को इतने अधिक लोगों के शहीद होने के दिन को काला शुक्रवार और शहीद दिवस का नाम दिया गया।

काले शुक्रवार को लोगों की सामूहिक हत्या पर यद्यपि अमेरिका और अधिकांश पश्चिमी सरकारों ने चुप्पी साध ली परंतु विश्व समुदाय का आम जनमत क्रोधित हुआ। इस घटना के बाद शाह की सरकार के भीतर यहां तक कि उसके विदेशी समर्थकों के मध्य भी जनता के प्रतिरोध के विरुद्ध उसके व्यवहार के संबंध में मतभेद उत्पन्न हो गये। एक गुट जनता के दमन के लिए हिंसा व बर्बरता पर आधारित कार्यवाहियों के जारी रखने का समर्थक था और दूसरा गुट शाह की सरकार से यह सिफारिश करता था कि वह विदित में नर्मी का प्रदर्शन करके और सीमित विशिष्टता देकर लोगों को प्रतिरोध जारी रखने से रोके। अंतत शाह ने कुछ समय के लिए दूसरे सुझाव को अपनाया। उसने सितंबर वर्ष १९७८ में रस्ताखीज़ पार्टी को भंग कर दिया। यह वह पार्टी थी जिसे भंग होने से पांच वर्ष पूर्व बनाया गया था और ईरानी समाज का हर वर्ग उससे घृणा करता था। एकमात्र यह पार्टी पहलवी सरकार में तानाशाही का प्रतीक थी।

इन्हीं दिनों में तेल उद्योग के कर्मचारियों ने, जिसे शाह के दिल की धड़कन समझा जाता था, शाह के अपराधों के विरुद्ध और जनता से समरसता व्यक्त करते हुए प्रदर्शन किया। इमाम ख़ुमैनी ने भी अपने एक संदेश में तेल उद्योग के कर्मचारियों की इस क्रांतिकारी एवं साहसिक कार्यवाही की सराहना की। इन्हीं दिनों में एक अन्य महत्वपूर्ण घटना घटी जिसने ईरान की इस्लामी क्रांति को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण एवं प्रभावी भूमिका निभाई।

इराक़ की बासी सरकार के सुरक्षा कर्मियों ने शाह की सरकार के समन्वय के साथ, कि जो इमाम ख़ुमैनी रह, को इराक़ से निकाले जाने की इच्छुक थी, पवित्र नगर नजफ में इमाम खु़मैनी रह, के घर का परिवेष्टन कर लिया। इराक़ की पूर्व बासी सरकार ने इमाम ख़ुमैनी रह, से मांग की कि वह शाह के अत्याचारों एवं अपराधों पर मौन धारण कर लें अन्यथा उन्हें इराक़ से निकाल दिया जायेगा। आप भी इस्लामी क्रांति के मार्गदर्शन को, जिसका जनता समर्थन कर रही थी, अपना दायित्व समझते थे। अत: आपने इराक़ से पलायन का निर्णय किया। शाह और इराक़ की बासी सरकार का षड़यंत्र इस बात का सूचक था कि ईरानी जनता के आंदोलन को विस्तृत रूप देने में इमाम ख़ुमैनी रह, का मार्गदर्शन प्रभावी भूमिका निभा रहा था।

आरंभ में इमाम ख़ुमैनी रह, कुवैत जाना चाहते थे परंतु वहां की सरकार ने भी आपको स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अंतत: आपने एक अभूतपूर्ण निर्णय में फ्रांस जाने का निर्णय किया और ईरान की इस्लामी क्रांति में नया अध्याय जुड़ गया। पहलवी सरकार यह सोचती थी कि इस कार्यवाही से वह इस्लामी क्रांति के नेतृत्व में विघ्न उत्पन्न कर देगी और इमाम ख़ुमैनी रह, तथा ईरानी जनता के मध्य दूरी उत्पन्न कर देगी परंतु इसके बाद की घटनाओं ने दर्शा दिया कि इमाम ख़ुमैनी रह, ने क्रांति के मार्गदर्शन और शाह के अपराधों को बयान करने के लिए फ्रांस में अपनी उपस्थिति से अच्छी तरह लाभ उठाया।

वर्ष १९६४ में स्वर्गीय हज़रत इमाम खुमैनी रह, के तुर्की और उसके बाद इराक़ निष्कासन के पश्चात शाह से ईरानी जनता के संघर्ष की प्रक्रिया में अस्थाई ठहराव के काल का आरंभ हो गया। उस समय शाह के दमनकारी विभाग विशेषकर सावाक नामक की गुप्तचर सेवा बहुत मज़बूत हो गयी। इस भयावह एवं निर्दयी संस्था के कर्मचारियों का मुख्य दायित्व व कार्य शाही सरकार के विरोधियों की पहचान करके उन्हें गिरफ्तार व प्रताड़ित करना और उनका अंत कर देना था। इस जनविरोधी एवं अमानवीय कार्यवाही के लिए सावाक के कर्मचारियों को अमेरिका और ज़ायोनी शासन की गुप्तचर सेवाओं सीआईए एवं मूसाद ने प्रशिक्षित किया था।

जैसा कि पिछले कार्यक्रम में कहा गया कि इमाम खुमैनी रह, के निष्कासन के बाद पहली महत्वपूर्ण घटना तत्कालीन शाही सरकार के प्रधानमंत्री हसन अली मन्सूर की हत्या थी जिसे वास्तव में शाही सरकार की दमनकारी कार्यवाहियों की प्रतिक्रिया समझा जा रहा था। हसन अली मन्सूर के स्थान पर अमीर अब्बास हुवैदा को प्रधानमंत्री बनाया गया जो शाह और अमेरिका की नीतियों का पूर्ण अनुसरण के कारण लगभग १३ वर्षों तक प्रधानमंत्री रहा। इस अवधि में तेल से होने वाली आय में असाधारण वृद्धि हो गयी जिससे शस्त्रों की खरीदारी हुई और इसी तरह यह भारी आमदनी शाह तथा उसके निकटवर्ती लोगों पर खर्च हुई। जिन कार्यों पर तेल से होने वाली असाधारण आय ख़र्च हुई उनमें से एक वह उत्सव है जो पहलवी सरकार की बुनियादों को मज़बूत करने के लिए आयोजित हुआ।

वर्ष १९६६ में शाह की सरकार का २५वां उत्सव मनाया गया। शाह ने एसी स्थिति में यह उत्सव मनाया जब उसकी सरकार ईरानी जनता के पिछड़ेपन का कारण थी। बाद के वर्ष में शाह के राज्याभिषेक के लिए अधिक धन खर्च किया गया परंतु सबसे अधिक धन तामझाम के उस विशेष उत्सव पर खर्च किया गया जो वर्ष १९७१ में शाही सरकार के २५०० वर्ष पूरा होने पर आयोजित हुआ। इन उत्सवों में बहुत से देशों के राष्ट्राध्यक्षों और वरिष्ठ अधिकारियों को आमंत्रित किया गया था तथा शाह के सत्ताप्रेम एवं आत्ममुग्धता के लिए करोड़ों डालर खर्च कर दिया गया।

अलबत्ता उसने इन उत्सवों पर संतोष नहीं किया और एक वर्ष बाद इस उत्सव की बर्सी भी मनाई। वर्ष १९७५ में पहलवी सरकार की पचासवीं बर्सी मनाई गयी जिसमें भी अपार धन खर्च किया गया। यह एसी स्थिति में था जब ईरान के बहुत से लोगों को निर्धनता का सामना था तथा उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उनके पास अपनी एवं अपने परिवार की प्राथमिक आवश्यकताओं की आपूर्ति की क्षमता नहीं थी। शाह की भ्रष्ठ सरकार ने इस्लाम को अलग थलग कर देने की नीति जारी रखते हुए तथा राजशाही सरकार पर गर्व करने के बहाने वर्ष १९७६ के मार्च महीने के मध्य में ईरान की आधिकारिक तारीख आरंभ होने की तिथि को राजशाही तारीख़ में परिवर्तित कर दिया। ईरान की आधारिकारिक तारीख़ का आरंभ पैग़म्बरे इस्लाम के मक्के से मदीना पलायन से होता है। शाह ने इस कार्यक्रम की बुनियाद रखने और इसी तरह अपनी अत्याचारी सरकार की आधारों को मज़बूत करने के लिए उससे एक वर्ष पहले मार्च महीने में अपने नेतृत्व में रस्ताख़ीज़ पार्टी का गठन किया और दूसरी समस्त पार्टियों को, जो सबकी सब राजशाही सरकार की समर्थक एवं उससे संबंधित थीं, भंग कर दिया था।

मोहम्मद रज़ा शाह ने इस संबंध में अंहकार से कहा था" कि सभी ईरानी रस्ताखीज़ा पार्टी के सदस्य हैं चाहे वे चाहें या न चाहें, जो लोग नहीं आना चाहते हैं वे घोषणा करें हम उन्हें पास्पोर्ट देंगे ताकि वे देश से बाहर चले जायें और यदि देश से बाहर नहीं जाना चाहते तो उनका ठिकाना जेल है" शाह के सीमा से अधिक घमंड का कारण यह था कि वह अमेरिका पर भरोसा करता था और इस्लाम विरोधी नीति को जारी रखकर अपनी तानाशाही व्यवस्था को सुदृढ़ व मज़बूत समझता था और लोगों तथा उनके विश्वासों को कोई महत्व नहीं देता था।

इसके मुक़ाबले में क्रांतिकारी और पहलवी सरकार के विरोधी लोग भी प्रभावित नहीं थे। इमाम खुमैनी रह, के देश निकाला दे दिये जाने के बाद कुछ लोग इस्लामी और ग़ैर इस्लामी रूझानों के साथ शाह की सरकार से सशस्त्र संघर्ष करना चाहते थे। इसी कारण विभिन्न छापामार गुट बन गये जो शाह की सरकार से सशस्त्र संघर्ष करने लगे परंतु इन गुटों को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। इमाम खुमैनी रह, और उनके जैसी सोच रखने वाले बहुत से दूसरे व्यक्तियों का मानना था कि प्रतिरोध एवं क्रांति के लिए लोगों को पर्याप्त मात्रा में अवगत होना चाहिये और इसी कारण इन लोगों ने जनता को इस्लाम की क्रांतिकारी शिक्षाओं से अवगत कराने और शाह की भ्रष्ठ सरकार के क्रिया कलापों के रहस्योदघाटन की नीति अपनाई।

अलबत्ता शाह की सरकार इस प्रकार के प्रचारों के संदर्भ में बहुत संवेदनशील थी और जो लोग इस संबंध में कार्यवाही करते थे तुरंत उनकी पहचान करके गिरफ्तार कर लेती थी। इसी संबंध में बहुत से उन धर्मगुरूओं को गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया गया या फिर उन्हें निष्कासित कर दिया गया जो अपने भाषणों में अत्याचार को स्वीकार न करने के संदर्भ में इस्लाम धर्म की शिक्षाओं को बयान करते और शाह की सरकार के अत्याचार एवं भेदभावपूर्ण कार्यो से मुक़ाबले के लिए लोगों का आहृवान करते।

घुटन इस सीमा तक थी कि वर्ष १९७० के मध्य में आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद रज़ा सईदी को, जो एक वरिष्ठ धर्मगुरू थे, अमेरिका के विरोध और इमाम खुमैनी रह, के समर्थन के कारण गिरफ्तार कर लिया गया तथा जेल में इतनी यातनी दी गयी कि वह शहीद हो गये। वर्ष १९७४ में आयतुल्लाह हुसैन ग़फ्फारी भी इसी कारण गिरफ्तार कर लिये गये और उन्हें भी शाह की गुप्तचर संस्था सावाक के कर्मचारियों ने इतना प्रताड़ित किया कि वह भी शहीद हो गये। इसी प्रकार वर्ष १९७६ के जून महीने के मध्य में डाक्टर अली शरीअती का संदिग्ध रूप से ब्रिटेन में निधन हो गया। डाक्टर अली शरीअती ईरानी मुसलमान बुद्धिजीवी थी जो युवाओं एवं छात्रों में इस्लामी रूझान उत्पन्न करने में प्रभावी व्यक्तियों में से थे। बहुत से लोगों ने उनके संदिग्ध निधन को सावाक के षड्यंत्रों का परिणाम समझा। इन समस्त कठिनाईयों के साथ ईरानी जनता के प्रतिरोध की प्रक्रिया विस्तृत हो रही थी और धार्मिक एवं शाह के विरोधी व्यक्तियों ने वास्तविकतायें बयान करके तथा लोगों को जागरूक बनाकर बहुत से लोगों को शाह की अत्याचारी सरकार के विरुद्ध बड़े प्रतिरोध के लिए तैयार कर दिया था।

ईरान की इस्लामी क्रांति के निकट के वर्षों में तेल के मूल्यों में अचानक वृद्धि और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन के नि: संकोच समर्थन के कारण शाह अधिक सत्ता के घमंड का आभास करता था। विशेषकर इसलिए कि विदित में शक्तिशाली सेना होने तथा आंतरिक विरोधियों के दमन के कारण शाह की सरकार क्षेत्र में अमेरिका के थानेदार में परिवर्तित हो गयी थी। अलबत्ता शाह की विदित शक्ति के मुक़ाबले में भ्रष्टाचार, भेदभाव और अराजकता में वृद्धि हो गयी थी। इसी कारण तथा अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति जिमी कार्टर के सत्ता में आने से अमीर अब्बास हुवैदा को १३ वर्षों के बाद १९७७ के अगस्त महीने में प्रधान मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया और जमशीद आमूज़गार को उसके स्थान पर प्रधानमंत्री बनाया गया। उस समय भी शाह अपनी सरकार को सुदृढ़ एवं तानाशाही को मज़बूत व टिकाऊ समझता था परंतु रास्ते में ऐसी घटनायें प्रतीक्षा में थीं जिन्होंने ईरानी जनता के प्रति शाह और उसके समर्थकों व निकटवर्ती लोगों के वर्षों के अत्याचार एवं विश्वासघात का अंत कर दिया।

ईरानी जनता के क्रांतिकारी संघर्ष के विस्तार से शाह के शासन को इस बात का पूर्ण रुप से आभास हो गया था कि संघर्ष की यह प्रक्रिया जारी रहने वाली है। यही कारण था कि शाह का शासन इससे बुरी तरह से भयभीत था। इसी आधार पर शाह के तत्वों ने क्रांतिकारियों की छवि को बिगाड़ने के लिए अपनी गतिविधियां आरंभ कर दीं। १८ अगस्त वर्ष १९७८ को शाह ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि "इस देश में आतंक का वातावरण उत्पन्न करने के लिए काला रूढ़ीवाद जो बड़ी त्रासदी उत्पन्न करने जा रहे है उससे मैं भयभीत हूं"। "काले रूढ़ीवाद" से शाह तथा उसके प्रचारिक साधनों का तात्पर्य ईरान के क्रांतिकारी तथा देश का धार्मिक नेतृत्व था। शाह के इस साक्षात्कार के एक ही दिन के बाद ईरान के दक्षिण पश्चिमी शहर आबादान में रेक्स सिनेमाधर में हृदयविदारक घटना घटी।

इस घटना के समय आबादान के रेक्स सिनेमाघर में लगभग ७०० लोग फ़िल्म देखने में व्यस्त थे। यकायक इन दर्शकों को आग की लपटों का सामना करना पड़ा। यह आग बहुत तेज़ी से पूरे सिनेमाघर में फैल गई। इस घटना में ३७७ लोग काल के गाल में समा गए। मृत्कों में निर्दोष छोटे बच्चे और महिलाएं भी सम्मिलित थे। यह सारे लोग बहुत ही बुरी तरह से झुलस गए थे। इस अग्निकांड में बहुत से लोग दम घुटने के कारण चल बसे थे। इस घटना में बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए थे। शाह के संचारिक माध्यमों ने अपनी पुरानी पद्धति के विपरीत, जिसके अन्तर्गत वह ईरानी जनता के क्रांतिकारी कार्यों को बहुत ही महत्वहीन दर्शाया करते थे, इस समाचार को अधिक कवरेज दिया। शाह के संचार माध्यमों ने यह दर्शाने का प्रयास किया कि इस घटना के पीछे शाह सरकार के विरोधी धार्मिक संगठनों का हाथ है। शाही तत्वों के अनुसार क्योंकि यह लोग रूढ़ीवादी हैं अतः वे कला तथा सिनेमा को धर्म के विरूद्ध मानते हैं। इस बात के दृष्टिगत कि शाह के अत्याचारी शासन को झूठे प्रचार की आदत है, कोई भी इस दुष्प्रचार को स्वीकार नहीं कर रहा था। सिनेमघर के दरवाज़ें बंद होने तथा सिनेमा के अधिकारियों के साथ शाह के शासन की सांठ-गांठ जैसी बातों के सार्वजनिक होने के पश्चात सबको इस बात का पूर्व विश्वास हो गया था कि यह वही घटना है जिसका वचन शाह ने अपने हालिया साक्षात्कार में दिया है। जिसमें वह इस प्रकार की घटना का आरोप क्रांतिकारियों पर मढ़कर उनकी छवि बिगाड़ने के प्रयास में है।

रेक्स सिनेमाघर अग्निकांड के संबन्ध में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के संदेश ने इस घटना में शाह सरकार के हाथ होने का रहस्योदघाटन किया। अपने संदेश में इमाम खुमैनी ने स्पष्ट किया था कि मुझको इस बात की कदापि आशंका नहीं है कि इस प्रकार की क्रूरतम घटना किसी मुसलमान बल्कि इन्सान ने की हो। उन्होंने कहा कि इसके पीछे उन्ही लोगों का हाथ है जो इस प्रकार की घटनाएं करने के आदी हो चुके हैं और जिनकी पाश्विक्ता ने मानवता का स्थान ग्रहण कर लिया है। इमाम खुमैनी ने अपने संदेश में कहा कि इस प्रकार की क्रूर एवं अमानवीय घटना को, जो अमानवीय तथा इस्लामी नियमों के विरूद्ध है, शाह के वे विरोधी कभी भी नहीं अंजाम दे सकते जिन्होंने इस्लाम, ईरान तथा जनता की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रखी है। इस्लामी क्रांति की सफलता के पश्चात रेक्स सिनेमाघर अग्निकांड की जांच और इसमें लिप्त कुछ लोगों के विरूद्ध चले मुक़द्दमे से यह बात पूर्ण रूस से सिद्ध हो गई कि इस अमानवीय घटना को शाह के तत्वों ने ही अंजाम दिया था।

शाह का प्रयास था कि अबादान के रेक्स सिनेमाघर अग्निकांड की घटना को वह क्रांतिकारियों की कार्यवाही दर्शाए क्योंकि उसको भलि भांति ज्ञान था कि जिस कला का वह प्रचार-प्रसार कर रहा है वह क्रांतिकारियों की दृष्टि में अस्वीकारीय एवं पथभ्रष्ट है। अपने शासन के दुष्कर्मों और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार से आम जनमत का ध्यान हटाने के लिए शाह ने इस्लामी क्रांति की सफलता से पूर्व, समाज में नैतिक भ्रष्टाचार और नैतिक बुराइयां फैलाने का भरसक प्रयास किया। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पहलवी शासन के तत्व कला को नैतिक भ्रष्टाचार फैलाने के हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रहे थे। स्थिति इतनी बुरी हो चुकी थी की शाह शासन के पतन के पूर्व के वर्षो में "कला समारोह" के नाम से आयोजित कार्यक्रम के अन्तर्गत शीराज़ नगर में पुरूष तथा स्त्री के बीच शारीरिक संबन्धों को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया गया। यह बातें इसका कारण बनीं कि कला, जिसे जनहित तथा लोगों के वैचारिक स्तर को बढ़ाने हेतु प्रयोग किया जाना चाहिए था उसे शाह के शासन काल में नैतिक भ्रष्टाचार के विस्तार एवं राजनैतिक हितों की प्राप्ति हेतु हथकण्डे के रूप में प्रयोग किया जा रहा था।

इस्लामी क्रांति की सफलता के पश्चात ईरान में कला ने एक नई दिशा प्राप्त की और यह मानवीय तथा आध्यात्मिक मूल्यों के प्रसार की ओर उन्मुख हुई। इस काल में नैतिक तथा प्रशिक्षण विशेषकर पारिवारिक विषयों के क्षेत्र में बड़ी संख्या में फ़िल्में बनाई गईं। कलाकारों तथा अभिनयकर्ताओं ने फ़िल्मों के माध्यम से एसी कला का प्रदर्शन किया जिनमें से कुछ तो बहुत ही ख्याति प्राप्त रहीं जिन्हें विश्व स्तर पर सम्मान भी मिला। दूसरी ओर स्वतंत्रता का पाया जाना, जो क्रांति की मूल्यवान धरोहर है, इस बात का कारण बना है कि कलाकार विभिन्न दृष्टिकोणों से दर्शकों की इच्छा अनुसार कला का उच्चतम ढंग से प्रयोग करें।

ईरान में ६ महीनों से अधिक अशांति एवं प्रदर्शनों विशेषकर अबादान के रेक्स सिनेमाघर अग्निकांड के कारण, जिसमें शाह के तत्वों का हाथ था, शाह शासन के तत्काल प्रधानमंत्री जमशेद आमूज़गान ने त्यागपत्र दे दिया और उसके स्थान पर जाफ़र शरीफ़ इमामी को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। शतरंज के मोहरों की भांति अपने शासन में एक को दूसरे के स्थान पर बैठा कर शाह जनता को इस बात का आभास देना चाहता था कि मानो उसकी नीतियों में परिवर्तन आ गया है। यही कारण था कि नए प्रधानमंत्री जाफ़र शरीफ़ इमामी ने जनता के ध्यान को केन्द्रित करने और आन्दोलन की अग्नि को शांत करने के उद्देश्य से कुछ नए क़दम उठाए। उसने एक काम तो यह किया कि ईरान में प्रचलित कैलेण्डर जो सोलर सिस्टम शम्सी पर आधारित है उसे हिजरी शम्सी में परिवर्तित कर दिया। उल्लेखनीय है कि ईरान में प्रचलित कैलेण्डर को शहनशाही कैलेण्डर में परिवर्ति करने जैसे कार्य ने, जिसे शाह ढाई वर्ष पूर्व कर चुका था, ईरानी जनता के क्रोध को भड़का दिया। उसका यह कार्य इस्लाम से शत्रुता के रूप में देखा जाने लगा। शरीफ़ इमामी ने इसी प्रकार संचार माध्यमों की स्वतंत्रता और ईरान की तत्काल क्रूरतम गुप्तचर सेवा सावाक को भंग करने का भी वचन दिया। इन सभी बातों के बावजूद इमाम ख़ुमैनी ने, जो इस शासन की वास्तविक्ता और विदेशियों पर उसके आश्रय से भलि भांति अवगत थे और यह भी जानते थे कि इस शासन के सारे ही लोग अमरीका के सेवक तथा उसके हितों के रक्षक हैं, अपने एक संदेश में शाह की धूर्रतता के प्रति ईरानी राष्ट्र से सचेत रहने का आह्वान किया।

ईरान की भव्य इस्लामी क्रांति ने वर्तमान विश्व विशेषकर इस्लामी देशों पर बहुत प्रभाव डाला है। इसी कारण वर्ष १९७९ में इस्लामी क्रांति की सफ़लता के आरंभ से ही अमेरिका की अगुवाई में वर्चस्ववादी व्यवस्था ने इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले को अपनी कार्यसूची में रखा। यह मुक़ाबला गत तीन दशकों के दौरान राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक स्तरों पर विभिन्न रुपों में जारी रहा। पश्चिम विशेषकर अमेरिका की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले की एक शैली ईरान के विरुद्ध प्रचारिक एवं मनोवैज्ञानिक आक्रमण है। गत तीन दशकों के दौरान अमेरिका एवं उसके घटकों ने ईरानी जनता व अधिकारियों के विरुद्ध विभिन्न लक्ष्य साधने के लिए विन्नाभिन्न मार्गों से मनोवैज्ञानिक युद्ध किये हैं।

आज के विश्व में संपर्कों में विस्तार और सामूहिक संचार माध्यमों में असाधारण प्रगति के कारण मानसिक व प्रचारिक युद्ध अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। शब्द और वाक्य इस युद्ध के सिपाही हैं और जो संचार माध्यम अपनी तकनीक व शैली से अधिक लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं वे अधिक सफ़ल हैं।

सखेद कहना पड़ता है कि पश्चिम के बहुत से संचार माध्यमों का आधार ही वास्तविकताओं को तोड़ मरोड़ कर पेश करना, लोगों को धोखा देना और उन्हें दिग्भ्रमित करना है। पश्चिम के अंतरराष्ट्रीय संचार माध्यमों का प्रयास, विभिन्न चालों से लोगों की सोच व ध्यान को अपनी सरकारों की अवैध मांगों की ओर ले जाना है। ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ पश्चिम के प्रचारिक माध्यमों के व्यवहार, पश्चिमी सरकारों की धूर्ततापूर्ण कार्यवाहियों के स्पष्ट उदाहरण हैं।

ईरान की इस्लामी क्रांति के विरुद्ध पश्चिम के प्रचारिक आक्रमण का महत्वपूर्ण उद्देश्य, क्रांति की पहचान, उसके लक्ष्यों तथा उसके परिणाम में स्थापित होने वाली इस्लामी व्यवस्था की छवि को ख़राब करके पेश करना है। ईरानी जनता की क्रांति की मुख्य उपलब्धि, इस्लामी व्यवस्था है और न्याय, अत्याचार का विरोध, अत्याचारग्रस्त जनता का समर्थन, स्वाधीनता और आध्यात्म तथा धार्मिक लोकतंत्र में विस्तार इसके मूल आधार हैं।

इस प्रकार की व्यवस्था के सफ़ल होने का अर्थ, इस्लाम की सफ़लता और विश्व के दूसरे मुसलमानों के लिए आदर्श बन जाना है ताकि वे भी अपने अपने देशों में न्याय और धर्म पर आधारित लोकतंत्र स्थापित करने के प्रयास में रहें। इसी कारण पश्चिमी संचार माध्यम ईरान की इस्लामी व्यवस्था की छवि को ख़राब करके उसे असफल दर्शाने की चेष्टा में हैं। ये प्रचार माध्यम गत तीन दशकों के दौरान इस व्यवस्था को ईरान के भीतर और बाहर विभिन्न समस्याओं में उलझाने के प्रयास में रहे हैं ताकि इस्लाम की प्रगतिशील शिक्षाओं के आधार पर बनने वाली सरकार विफल हो जाये या कम से कम वह अपने मुख्य मार्ग से हट जाये।

ईरान में इस्लामी क्रांति को कमज़ोर करने के लिए पश्चिमी संचार माध्यमों की एक शैली ईरानी जनता व अधिकारियों के बीच फूट डालने तथा दोनों के मध्य दूरी उत्पन्न करने के लिए प्रयास करना है। क्योंकि इस्लामी व्यवस्था में लोग अधिकारियों विशेषकर मुख्य ज़िम्मेदारों पर विश्वास रखते हैं और वे लोगों के विश्वासपात्र हैं। स्पष्ट है कि आम जनमत के विश्वासों को कमज़ोर करने और हर सरकार के अधिकारियों से जनता को दूर करने से सरकार की शक्ति एवं उसके प्रति जनसमर्थन में कमी आ जायेगी।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था की शक्ति को कम करने के लिए पश्चिमी प्रचार माध्यमों का एक हथकंडा, ईरानी समाज में फूट डालना एवं उसे दो भागों में बांट देना है। ये प्रचार माध्यम धार्मिक और जातीय मतभेदों को बढ़ा चढाकर पेश करते हैं ताकि वे फूट डालने पर आधारित अपने लक्ष्य को व्यवहारिक बना सकें। इन सबके बावजूद ईरानी जनता की राजनीतिक जानकारी, जागरुकता और पश्चिम के प्रचारिक षडयंत्रों से अवगत होने के कारण ईरानी समाज में उनकी कुटिल चालों का कोई प्रभाव नहीं हुआ है। इसी प्रकार पश्चिमी संचार माध्यम इस्लामी क्रांति की प्रगतियों व उपलब्धियों को ईरान के भीतर एवं बाहर महत्वहीन दर्शाने और छोटी मोटी कमियों को बड़ा चढ़ा कर पेश करने का प्रयास करते हैं। स्पष्ट है कि महंगाई और कुछ अन्य आर्थिक समस्यायें थोड़ा बहुत हर देश में मौजूद हैं और बहुत सी कठिनाइंया अंतरराष्ट्रीय परिवर्तनों से प्रभावित हैं परंतु ये प्रचार तंत्र उक्त शैली का प्रयोग करके इस्लामी गणतंत्र ईरान को विफल अनुभव दर्शाने की चेष्टा में हैं।

इस्लामी क्रांति को कमज़ोर करने के लिए पश्चिम के सामूहिक संचार माध्यमों ने क्रांतिकारी जनता विशेषकर ईरानी युवाओं के धार्मिक विश्वासों को लक्ष्य बना रखा है। ये प्रचार माध्यम झूठी व निराधार बातों को प्रकाशित करके क्रांति की वास्तविकताओं को उल्टा दिखाकर यह दर्शाने की चेष्टा में हैं कि ईरानी राष्ट्र की गौरवान्वित एवं एतिहासिक घटना परिणामहीन व समाप्त हो चुकी है। युवा पीढ़ी के धार्मिक विश्वासों के कमज़ोर होने से वे पश्चिम के सांस्कृतिक धावे का मुक़ाबला करने में अक्षम हो सकते हैं। इसी कारण पश्चिम, प्रचार माध्यमों द्वारा ईरान सहित दूसरे मुसलमान युवाओं को अराजकता, अपनी धार्मिक एवं सामाजिक परम्पराओं व सिद्धांतों से पीछे हटने और पश्चिम के खोखले व सतही मूल्यों को स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करते हैं। यह प्रयास फिल्मों, ख़बरों और इंटरनेट की साइटों सहित विभिन्न माध्यमों से बड़ी चालाकी से पूरी क्षमता के साथ जारी है।

राष्ट्रों के ध्यान को हटाने व दिग्भ्रमित करने के लिए पश्चिम के प्रचार माध्यमों का हथकंडा वह शैली है जिसे इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नये साम्राज्य का नाम दिया है। आप इस नीति की व्याख्या में फरमाते हैं "आज साम्राज्य की नीति नया साम्राज्य है अर्थात आधिपत्यवादी शक्तियों के संचार माध्यम इस प्रकार कार्य करते हैं कि उस राष्ट्र के तत्व, जिस पर ये शक्तियां नियंत्रण एवं क़ब्ज़ा करना चाहती हैं, यह समझ भी नहीं पाते कि वे इन शक्तियों की सहायता कर रहे हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता फरमाते हैं" वर्चस्वादी देश नये साम्राज्यवाद के प्रवेश के साथ प्रचार माध्यमों और राष्ट्रों की आत्मियता एवं मानसिकता पर प्रभाव डालने वाले संसाधनों व उपकरणों का प्रयोग करके, समाज में सक्रिय और प्रभावी लोगों को ख़रीद कर तथा दूसरी जटिल शैलियों का प्रयोग करके वही पुराने साम्राज्यवादी लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा में हैं"

इस प्रकार पश्चिमी प्रचार माध्यम देश के भीतर कुछ बुद्धिजीवियों और मेधावी व्यक्तियों का प्रयोग अपने हितों की दिशा में करना चाहते हैं और ये प्रचार माध्यम अपने मूल्यों एवं नीतियों का प्रचार ईरान में इन व्यक्तियों की ज़बान से करना चाहते हैं परंतु विदेशी स्तर पर अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों की नीति इस्लामी गणतंत्र ईरान की छवि को बिगाड़ कर पेश करना और यह सिद्ध करने की कुचेष्टा करना, कि इस्लामी व्यवस्था, सरकार के संचालन में अक्षम है। इसी परिप्रेक्ष्य में ये देश ईरान पर विभिन्न आरोप मढ़ते हैं परंतु उनमें से किसी को भी तार्किक व ठोस प्रमाणों के साथ पेश नहीं करते। इनमें से एक ईरान में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप है।

पश्चिमी प्रचार माध्यम कुछ जासूसों व अपराधियों की गिरफ्तारी, मनुष्यों का अपहरण करने वालों और मादक पदार्थों के बड़े तस्करों को फांसी का दंड देने या क़ानूनी रूप से कुछ समाचार पत्रों के बंद किये जाने को बड़े पैमाने पर कवरेज देते हैं और इन्हें मानवाधिकारों के उल्लंघन का नमूना बताते हैं जबकि यही प्रचार माध्यम ग्वांतानामों और अबुग़रेब की जेल में बंदियों को दी जाने वाली प्रताड़ना, इराक व अफ़ग़ानिस्तान में जनता की हत्या और अमेरिका के दूसरे अपराधों को या तो पूरी तरह कवरेज ही नहीं देते हैं या फ़िर उसे महत्वहीन बनाकर पेश करते हैं।

इनमें से बहुत से प्रचार माध्यम फ़िलिस्तीन विशेषकर ग़ज़्ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन द्वारा नृशंस हत्या को इस शासन की ओर से आत्म रक्षा में उठाया गया क़दम बताते हैं। इसी प्रकार सउदी अरब और मिस्र जैसे देशों में अमेरिका समर्थक सरकारों की ओर से मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन पर ये प्रचार माध्य कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दिखाते परंतु चूंकि इस्लामी गणतंत्र ईरान पश्चिम विशेषकर अमेरिका की विस्तारवादी नीतियों का मुखर विरोधी है इसलिए उसकी क़ानूनी कार्यवाहियों को भी पश्चिमी प्रचार माध्यम मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हैं।

ईरान में प्रजातांत्रिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था के वरिष्ठ अधिकारियों का चयन परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जनता करती है चाहे वह राष्ट्रपति हो या मंत्री व सांसद। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से अब तक औसतन प्रति वर्ष स्वतंत्र व निष्पक्ष वातावरण में एक चुनाव आयोजित होता है परंतु पश्चिम के प्रचार माध्यम ईरान को ग़ैर लोकतांत्रिक देश बताते हैं। पश्चिम के इस प्रकार के दावे का कारण यह है कि ईरान ने लोकतंत्र के सिद्धांत को ईश्वरीय धर्म इस्लाम से लिया है न कि पश्चिम से और ईरान में लागू धार्मिक लोकतंत्र पश्चिम के लोकतंत्र से उत्तम व परिपूर्ण है। पश्चिमी सरकारें इस परिणाम पर पहुंच गयी हैं कि इस्लाम से प्रेरित आदर्श का विस्तार, जिसमें जनता की राय एवं उसके दृष्टिकोण का बहुत अधिक महत्व है, पश्चिम की लिबरल व्यवस्था के लिए ख़तरा है।

अमेरिका एवं पश्चिमी सरकारों के प्रचार की एक अन्य शैली ईरान को ख़तरा बनाकर पेश करना है। पश्चिम इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ईरान की सैनिक शक्ति को क्षेत्र के लिए ख़तरा बताता है। यह एसी स्थिति में है जब ईरान का रक्षा बजट क्षेत्र के दूसरे देशों की अपेक्षा बहुत कम है। इसके अतिरिक्त ईरानी अधिकारियों ने बारम्बार घोषणा की है कि ईरान की सैनिक शक्ति केवल अपनी रक्षा के लिए है और उसका प्रयोग क्षेत्र के दूसरे देशों की सुरक्षा के लिए भी हो सकता है। ईरान द्वारा परमाणु हथियार बनाने आधारित पश्चिमी देशों व संचार माध्यमों के झूठे दावे को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। यह सरकारें व प्रचार माध्यम क्षेत्रीय देशों यहां तक कुछ पश्चिमी सरकारों को यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि ईरान का शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम उनके लिए ख़तरा है परंतु परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी के महानिदेशक की बारम्बार की रिपोर्टों में इस बात पर बल दिया गया है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम में शांतिपूर्ण लक्ष्यों से किसी प्रकार का दिशाभेद नहीं हुआ है।

दूसरी ओर चूंकि ईरान की अधिकांश जनता शीया मुसलमानों की है इसलिए पश्चिमी प्रचार माध्यम ईरान की क्रांति को शीया क्रांति तथा सुन्नी मुसलमानों के मुक़ाबले में दर्शाने में चेष्टा में हैं। उनके इस दावे की कोई वास्तविकता नहीं है। ईरान की इस्लामी क्रांति ने सदैव शीया और सुन्नी मुसलमानों के मध्य एकता की बात की है और यह क्रांति विश्व के समस्त मुसलमानों से संबंधित है। ईरान द्वारा फ़िलिस्तीन, अफ़ग़ानिस्तान और बोस्निया हिर्जेगोविना की जनता के संघर्ष के समर्थन से उसकी इस रणनीति नीति का भलिभांति पता चलता है।

अलबत्ता ईरान से डराने की पश्चिमी देशों की नीति के पीछे भी कई लक्ष्य हैं। उदाहरण स्वरूप अमेरिका और उसके घटकों का एक उद्देश्य, विषैला करके ईरान को अलग थलग करना है और जबकि इसके विपरीत वे ज़ायोनी शासन को अलग थलग पड़ी स्थिति से बाहर निकालना चाहते हैं। क्योंकि यदि ईरान को अरब देशों के शत्रु के रूप में पेश किया जायेगा तो उनका ध्यान जायोनी शासन के षडयंत्रों की ओर नहीं जायेगा।

बराक ओबामा के अमेरिका के नये राष्ट्रपति के रूप में सत्ता में आने और बुश के सत्ताकाल की अपेक्षा ईरान पर सैनिक आक्रमण की संभावना में कमी के बाद भविष्यवाणी की जा रही है कि ईरान के विरुद्ध अमेरिका के मनोवैज्ञानिक युद्ध में और वृद्धि होगी। अलबत्ता ईरान के भीतर और बाहर इस नीति का अब तक कोई परिणाम नहीं निकला है। ईरान की इस्लामी क्रांति विभिन्न राष्ट्रों में पहले अधिक पहचानी जा चुकी है तथा वह अधिक लोकप्रिय हो गयी है और बहुत से संघर्षकर्ता एवं स्वाधीन सरकारों ने वर्चस्वादी व्यवस्था से मुक़ाबले के लिए उसे अपना आदर्श बना लिया है।

देश के भीतर भी दिन प्रतिदिन बढ़ती ईरान की शक्ति और जनता एवं अधिकारियों के बीच बढ़ती एकजुटता, इस्लामी व लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमज़ोर करने हेतु पश्चिम के प्रचार माध्यमों के प्रयासों के प्रभावहीन होने का सूचक है।

२० वीं शताब्दी के अंतिम ५० वर्षों में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफ़लता विश्व की बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह क्रांति भी विश्व की बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाओं की भांति ईरान की भौगोलिक सीमा के अंदर सीमित न रह सकी। ईरान की इस्लामी क्रांति ने बहुत से देशों व राष्ट्रों को प्रभावित किया है और यह प्रभाव इस क्रांति को उदाहरण व आदर्श बनाने के रूप में प्रकट हुए हैं। इसी तरह इस क्रांति ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों धड़ों एवं आंदोलनों को नया अवसर प्रदान किया। इसके प्रभाव इस्लामी क्रांति की सफ़लता के आरंभिक दिनों से ही स्पष्ट हो गये थे और क्रांति को सफ़ल हुए तीन दशक का समय बीतने के साथ यह और गहरी एवं मज़बूत हो गयी है।

बहुत से राजनीतिक टीकाकारों के अनुसार इस्लामी क्रांति की सफ़लता से अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई राजनीतिक व्यवस्था आ गई जिसके गठन के महत्वपूर्ण तत्व न्याय प्रेम और प्रजातंत्र हैं जो धार्मिक, सांस्कृतिक और मानवीय प्रतिष्ठा व सम्मान के मूल्यों पर आधारित हैं। ये चीज़े वास्तव में उस राष्ट्र व जनता की मांगे थीं जो वर्षों से अत्याचार और ज़ोर ज़बरदस्ती करने वाली शक्तियों से मुक्ति पाने तथा अपने छिने हुए अधिकारों की प्राप्ति एवं आधिपत्यवादी शक्तियों के वर्चस्व से रिहाई पानी चाहती थी। इसी कारण ईरान की इस्लामी क्रांति की जड़ विश्व के बहुत से राष्ट्रों की धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आकांक्षाओं में है। राजनीतिक टीकाकारों के अनुसार इस्लामी क्रांति ने राजनीतिक एवं सिद्धांतिक व वैचारिक मंच पर बहुत बड़ा परिवर्तन उत्पन्न कर दिया और वह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में धर्म पर आधारित नये अवसरों व सम्भावनाओं के उत्पन्न होने का कारण बनी।

ये प्रभाव क्षेत्र और विश्व में ८०,९० के दशक की राजनीतिक घटनाओं में पूर्णरूप से स्पष्ट थे तथा ये प्रभाव विश्व के बहुत से राष्ट्रों के निकट स्वतंत्रता प्रेमी आंदोलनों के आगे बढ़ने और इस्लामी जागरूकता द्वारा परिपूर्णता का मार्ग तय करने के सूचक थे। इसी प्रकार ये प्रभाव न्याय प्रेम पर आधारित राजनीति की ओर वापसी के रुझान तथा वर्चस्ववादी व्यवस्था को नकार देने के सूचक थे। इस आंदोलन का कारण व लक्ष्य आर्थिक हितों से ऊपर था और यह इस बात का सूचक था कि राजनीतिक एवं सामाजिक स्तर पर जो नया परिवर्तन हुआ है उसने ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रेणा ली है कि जो समस्त रूपों में साम्राज्य को नकारता है तथा आध्यात्म की प्यासी मानवता को तृप्त करता है।

विश्व के स्वतंत्रता प्रेमी राष्ट्रों पर ईरान की इस्लामी क्रांति के प्रभाव के विभिन्न आयाम हैं जिसके एक भाग को ईरान में इस्लामी व्यवस्था और इस्लामी क्रांति के वैचारिक रुझान के परिप्रेक्ष्य में बयान किया जा सकता है परंतु दूसरे आयाम में भी इस्लामी क्रांति ने विश्व स्तर विशेषकर इस्लामी जगत में होने वाले स्वतंत्रा प्रेमी आंदोलनों को प्रभावित किया है। इन प्रभावों को उन नारों और प्रतिरोध की शैलियों को आदर्श बनाने के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है जिन्हें ईरान की जनता ने शाही सरकार से संघर्ष के दौरान अपनाया था।

पहचान की दृष्टि से क्रांति की सफ़लता के आरंभ से ही इसका एक नारा एवं मूल उद्देश्य इस्लामी राष्ट्रों की सहायता करना और एक राष्ट्र बनने की दिशा में प्रयास करना व चलना है तथा यह वह विचार है जो स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह, के वक्तव्यों में बारम्बार प्रतिबिम्बित हुआ है। बहुत से विश्लेषकों के अनुसार यह नहीं कहा जा सकता कि इस्लामी क्रांति के प्रभाव स्वेच्छा से सैकड़ों गुटों व धड़ों, या क्रांति के समर्थक आंदोलनों के गठन तथा संघर्ष करने वाले धड़ों के परिप्रेक्ष्य में इमाम ख़ुमैनी के मार्ग से जुड़ जाने वाले आंदोलनों तक सीमित हैं। क्योंकि आज इस्लामी क्रांति को सफ़ल हुए तीन दशक का समय बीत रहा है और इस्लाम धर्म की प्रगतिशील शिक्षाओं के प्रचार व प्रसार में विश्व स्तर पर उसके गहरे प्रभावों को देखा जा सकता है।

ईरान की इस्लामी क्रांति की सफ़लता के पहले दशक में अलजीरिया, मिस्र, पाकिस्तान, जार्डन,बहरैन, इराक़, लेबनान, सउदी अरब, और तुर्की सहित दूसरे देशों में आंदोलन अस्तित्व में आये जो सबके सब ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रभावित थे और इनमें से हर एक का अपने देशों में लागू व्यवस्था पर ध्यान योग्य राजनीतिक प्रभाव था और आज भी यह आंदोलन व धड़े राजनीतिक पार्टियों के रूप में सक्रिय हैं।

ईरान की इस्लामी क्रान्ति को तीन दशक पूरे हुए। हर वर्ष इस्लामी क्रान्ति की सफलता की वर्षगांठ इस्लामी क्रान्ति की उपलब्धियों की समीक्षा का अच्छा अवसर होती है। हालांकि इस्लामी क्रान्ति ने अपनी तीव्र प्रगति में अनेक उतार चढ़ाव का सामना किया किंतु वह अनेक वैज्ञानिक, औद्योगिक और तकनीकी क्षेत्रों में भव्य उपलब्धियां अर्जित करने में सफल रही। यह उपलब्धियां विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में विकास और दूसरों से निर्भरता की समाप्ति जैसे इस्लामी क्रान्ति के महान सिद्धान्तों से उत्प्रेरित रही हैं। इस्लामी क्रान्ति की संस्थापक इमाम ख़ुमैनी और उनके बाद इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने भी देशवासियों को अपनी क्षमताओं को पहचानने और भारी सफलताएं अर्जित करने हेतु उनके भरपूर प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया है।

आज के युग मे किसी भी देश की शक्ति का आधार उसके विचारक, बुद्धिजीवी और अध्ययनकर्ता होते हैं। जो देश भी मूल वैज्ञानिक अविष्कारों और खोजों तक जल्द अपनी पहुंच बना लेता है और उन्हें अपने वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास के लिए प्रयोग करने लगता है वह बहुत कम समय में विकास के मापदंडों से स्वयं को समन्वित कर लेता है। ईरान ने वैज्ञानिक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले अनुभवों और क्षमताओं से उल्लेखनीय उन्नति की है। ईरान के विज्ञान एवं तकनीक सूचना केन्द्र के अध्यक्ष डाक्टर जाफ़र मेहराद ईरान में वर्ष २००८ में नए वैज्ञानिक अविष्कारों और उन्नति की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि हालिया वर्षों के दौरान ईरान में वैज्ञानिक उन्नति बहुत उल्लेखनीय रही है और हर सप्ताह बड़ी संख्या में ईरानी वैज्ञानिकों के अनुसंधानिक लेख अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सूचना केन्द्र आईएसआई में पंजीकृत हो रहे हैं। तीसरी सहस्त्राब्दी के पहले दशक में यह वैज्ञानिक गतिविधियां अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक क्षेत्र में ईरान की भागादारी में वृद्धि का परिचायक हैं। आईएसआई के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार ईरानी अनुसंधानकर्ताओं ने सत्तरह हज़ार से अधिक वैज्ञानिक लेख प्रस्तुत करके इस दृष्टि से विश्व में २४ वां स्थान प्राप्त कर लिया है।

इस्लामी क्रान्ति की एक देन यह भी है कि देश में राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा केन्द्रों का भारी विकास हुआ है। उच्च शैक्षिक केन्द्रों की स्थापना और विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि से लोगों विशेष कर युवाओ की शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ी है। जानकारों के अनुसार उच्च शिक्षा केन्द्रों की संख्या जो इस्लामी क्रान्ति से पूर्व २२३ थी अब बढ़कर डेढ़ हज़ार से अधिक हो गई है अर्थात इसमंि लगभग सात गुना की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार पीएचडी स्तर के छात्रों की संख्या क्रान्ति के आरंभिक वर्षों में लगभग १७ हज़ार थी किंतु यह संख्या बढ़कर अब एक लाख बीस हज़ार हो गई है। इस समय ईरान के विश्वविद्यालयों के छात्रों की संख्या लगभग चौबीस लाख है जो इस्लामी क्रान्त से पूर्व की संख्या की तुलना में बीस गुना अधिक है। साप्ताहिक पत्रिका न्यूज़वीक ने अपने एक ताज़ा संस्करण में लिखा कि विश्व के अति उत्तम शैक्षिक संस्थानों में से एक ईरान में स्थित है। इस रिपोर्ट में ईरानी छात्रों और ईरान के विश्वविद्यायलों विशेषकर शरीफ़ औद्योगिक विश्वविद्यालय से शिक्ष ग्रहण करने वालों की सफलताओं को रेखांकित किया गया है।

इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी और साझेदारी की आवश्यकता का मुद्दा गंभीरता का साथ उठाया गया। यह इस लिए भी बहुत तर्कसंगत है कि समाज के दो मूल आधारों में से एक महिलाएं हैं जिनकी देशों के विकास व उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका है अतः उनके अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इस समय ईरान की अस्सी प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं जबकि इस्लामी क्रान्ति की सफलता से पूर्व यह दर मात्र ३५ प्रतिशत थी। इस्लामी क्रान्ति के पश्चात ईरानी महिलाओं ने विज्ञान एवं अनुसंधान के क्षेत्र में इस प्रकार अपना योगदान और साझेदारी बढ़ाई कि कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से आगे निकल गईं। उदाहरण स्वरूप विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने वालों में ६७ प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं हैं।

इस समय हम सभी वैज्ञानिक एवं अनुसंधिक क्षेत्रों में ईरानी वैज्ञानिकों और युवाओं की प्रतिभा और नए नए अविष्कारों को देख रहे हैं। इसके साथ ही हर वर्ष ईरानी छात्र, अविष्कारक, खोजकर्ता और प्रतिभाशाली युवा गणित, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, रसायनिक विज्ञान खगोल शास्त्र तथा अन्य विषयों में अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उच्च स्थान ग्रहण कर रहे हैं। वर्ष १९९५ और वर्ष १९९६ में ईरानी छात्रों ने रसायन शास्त्र की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया जबकि वर्ष १९९८ में ईरान को गणित में पहला स्थान मिला। वर्ष १९९९ में भौतिक विज्ञान में ईरान को दूसरा स्थान मिला जबकि वर्ष २००१ में रसायन शास्त्र की प्रतियोगिता में ईरान ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। यह सफलताएं इस्लामी क्रान्ति के बाद के वर्षों में ईरान की वैज्ञानिक उन्नति की परिचायक हैं और ईरान को वैज्ञानिक ओलंपियाडों में विश्व के दस महत्वपूर्ण देशों में गिना जाता है।

ईरान ने इस समय चिकित्सा विज्ञान, परमाणु ऊर्जा, नैनो टेक्नालोजी, बायो टेक्नालोजी, स्टम सेल्ज़ आदि जैसे अनेक वैज्ञानिक विषयों में विकास व उन्नति का नया स्थान प्राप्त किया है। नैनो टेक्नालोजी में इस्लामी गणतंत्र ईरान ने भारी विकास किया है। नैनो टेक्नालोजी २१वीं शताब्दी की अति महत्वपूर्ण तकनीक के रूप में देखी जाती है। यह टेक्नालोजी मोलक्यूल्ज़ के प्रजनन की एक प्रक्रिया पर आधारित होती है जिसे विश्व की श्रेष्ठ तकनीकों में गिना जाता है। नैनो टेक्नालोजी का शब्द, एसे अनुसंधानिक कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें अनुसंधानिक प्रक्रिया नैनो की मात्रा में आगे बढ़ती है। नैनो एक मीटर का एक अरब वां भाग है। आंकड़ों के अनुसार इस समय ईरान में नैनों टेक्नालोजी से संबंधित ९० अनुसंधानिक संस्थाएं और ४० प्रयोगशालाएं काम कर रही हैं।

इस समय ईरान अपने परिश्रमी युवाओं और विशेषज्ञों की सहायता से कई प्रकार के नैनो पाउडर, कई प्रकार के नैनो मिश्रण और नैनों परतें तैयार की हैं। ईरानी अनुसंधानकर्ता एक एसा नैनो मिश्रण बनाने में भी सफल हुए जिसका दवाएं, खाने पीने की वस्तुएं, काग़ज़, सौंदर्य प्रसाधन तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र से संबंधित अनेक वस्तुएं बनाने में बहुत अधिक प्रयोग होता है। ईरान ने नैनो मीटर की सूक्षमता के साथ काम करने वाला माइक्रोस्कोप बनाया है जो डीएनए माल्क्यूल्ज़, प्रोटीन और नैनो ढांचों के चित्र लेने में सक्षम है। यह माइक्रो स्कोप विश्व के कुछ गिने चुने देश ही अब तक बनाने में सफल हो सके हैं। नैनो टेक्नालोजी की दृष्टि से ईरान मध्यपूर्व में पहले स्थान पर, इस्लामी देशों में दूसरे स्थान पर तथा विश्व में तीसरे स्थान पर है।

इस्लाम धर्म के दृष्टिकोण से वही विज्ञान और अनुसंधान सहरानीय और मान्य है जो मानवजाति के हितों की रक्षा के लिए हो क्योंकि कभी कभी कुछ लोग एसे अविष्कार ही कर देते हैं जिससे मानव समाज को क्षति पहुंचती है। इस्लामी गणतंत्र ईरान की रणनीति समाज के लिए लाभप्रद विज्ञान व तकनीक से लाभ उठाने पर आधारित है। इस्लामी गणतंत्र ईरान परमाणु तकनीक सहित हर तकनीक और विज्ञान को इसी दृष्टिकोण से देखता है। कुछ देशों की ओर से लगाए गए भारी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने शांतिपूर्ण लक्ष्यों के लिए परमाणु तकनीक के प्रयोग के संबंध में भारी सफलताएं आर्जित की हैं। परमाणु विशेषज्ञ डाक्टर बाक़ेरी कहते हैं कि इस समय विश्व के देश तेल, गैस, हवा और सौरऊर्जा के प्रयोग के साथ ही परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं।

परमाणु तकनीक अब तक खोजी गई जटिलतम तकनीकों में से एक है। परमाणु तकनीक उस तकनीक को कहते हैं जिसमें अणुओं की ऊर्जा को विजली, खेती, भूविज्ञान आदि क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। इस समय इस्लामी गणतंत्र ईरान ने परमाणु बिजली के विशेष महत्व और तेल तथा गैस जैसे ऊर्जा स्रोतों के सीमित होने तथा परमाणु ऊर्जा के सस्ता होने के दृष्टिगत परमाणु ऊर्जा को अपने एजेंडे में प्राथमिकता दी है। अराक का भारी पानी का परमाणु अनुसंधानिक संयंत्र ४० मेगावाट की क्षमता रखता है जिसने वर्ष २००४ से अपना काम आरंभ कर दिया है। ईरान में इस प्रतिष्ठान के निर्माण से भारी पानी के अन्य संयंत्र और प्रतिष्ठानों के निर्माण की भूमि समतल हो गई है। यह संयंत्र बनाने के बाद ईरान भारी पानी के उत्पादन की तकनीक से संपन्न विश्व का नौवा देश बन गया है।

इस समय ईरान चिकित्सा विज्ञान, कृषि और उद्योग में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जो कृषि उत्पाद और खाद्य पदार्थ ख़राब हो सकते हैं उन्हों परमाणु विकिरण से सुरक्षित रखा जा सकता है। परमाणु विज्ञान फ़ैकेल्टी के विशेषज्ञों का कहना है कि ईरानी वैज्ञानिकों के परिश्रम के चलते ईरान अब स्वयं ही युड नामक परमाणु दवा का निर्माण करने लगा है जो कैंसर तथा थाइराइड के उपचार में प्रभावी है। देश में गामा लहरों के प्रयोग से स्वास्थय संबंधी वस्तुओं को रोगाणुओं से मुक्त बनाया जाता है। ईरान ने परमाणु तकनीक के प्रयोग से चिकित्सा, कैंसर की रोकथाम, एड्ज़ की रोकथाम, मोलक्यूल्ज़ सशक्तीकरण, डाइब्टीज़ का उपचार, रक्त की चरबी की मात्रा में कमी जैसे कार्यों में लाभ उठा रहा है। ऊर्जा के क्षेत्र में ईरान परमाणु तकनीक को बिजली के उत्पादन के लिए प्रयोग करना चाहता है। बूशहर परमाणु बिजलीघर सहित अनेक बिजलीघरों का निर्माण इसी संदर्भ में किया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष २००९ में बूशहर परमाणु बिजलीघर से तैयार होने वाली बिजली देश के विद्युत आपूर्ति तंत्र में शामिल हो जाएगी। ईरानी वैज्ञानिकों ने अपने नए अविष्कारों से तकनीकी समस्याओं पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है और यह देश एक आधुनिकतम सेंट्रीफ़्यूज मशीन तैयार करने में सफल हो गया है जो भारी उत्पादक क्षमता रखती है। यह पी टू सेंट्रीफ़्यूज मशीन वर्ष २००३ में बनाई जाने वाली पी वन मशीनों की जो इस समय नतन्ज़ परमाणु केन्द्र में काम कर रही हैं आधुनिकतम पीढ़ी है। यह सेंट्रीफ़्यूज मशीनें आधुनिक तकनीक से संपन्न हैं और इनके निर्माण का अर्थ यह है कि ईरान भारी प्रतिबंधों के बावजूद विज्ञान और उन्नति के शिखर पर पहुंचने में सफल रहा है। इस प्रकार ईरान औद्योगित स्तर पर यूरेनियम के संवर्धन, भारी पानी के परमाणु संयंत्रों के निर्माण, येलो केक के उत्पादन के केन्दों के निर्माण और दूसरे अनेक क्षेत्रों में विश्व के आधुनिकतम परमाणु तकनीक से संपन्न आठ देशों में से एक है।

(यह महत्व पूर्ण लेख irib.ir से लिया गया है और आवश्यकतानुसार इस के शीर्षक में बदलाव किया गया है।)

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