दयालु ईश्वर ने जहन्नम क्यों पैदा किया?/ आयतुल्लाह जवाद आमुली

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दयालु ईश्वर ने जहन्नम क्यों पैदा किया?/ आयतुल्लाह जवाद आमुली

समूचे ब्रह्मांड का नक्शा दयालु ईश्वर की इच्छानुसार है, ईश्वर आसमान से लेकर ब्रह्मांड की हर चीज़ का नक्शा तैयार करता है।

महान ईश्वर जब किसी व्यक्ति या गुट को सज़ा देना चाहता है तो पहले से नक्शा तैयार करता है इसका भी स्रोत महान ईश्वर की रहमत व दया है।

पवित्र कुरआन के बड़े व्याख्याकर्ता आयतुल्लाहिल उज़्मा जवाद आमुली ने सूरे रहमान की व्याख्या में अपने दर्स में महान ईश्वर की रहमत, न्याय और अज़ाब के बारे में कुछ बिन्दुओं को बयान किया।

उन्होंने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के अनुसार महान ईश्वर की रहमत के बारे में जानना चाहिये कि समूचा ब्रह्मांड दयालु ईश्वर की इच्छानुसार है। आसमान से लेकर समूचे ब्रह्मांड की हर वस्तु को वह व्यवस्थित करता है। महान ईश्वर जब किसी व्यक्ति या गुट को सज़ा देना चाहता है तो पहले से उसका नक्शा तैयार करता है कि यह खुद उसकी असीम दया का परिणाम है।

वह कहते हैं अगर महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में फरमाया है कि "हे बुद्धिमान लोग क़ेसास में तुम्हारे लिए ज़िन्दगी है" तो जी हां ऐसा ही है। यह क़ेसास और हत्यारे को दंडित करना दर्दनाक है किन्तु साथ ही समाज के लिए न्याय और दया भी है।

महान ईश्वर जब किसी को दंडित करना चाहता है तो वास्तव में वह बदला लेना या दुश्मनी नहीं निकालना चाहता है बल्कि वह उसे जगाना चाहता है या उससे किसी के अधिकार को लेना चाहता है! ऐसा नहीं है कि उसकी तरफ से एक हिंसा या दर्द है वह मात्र न्याय है और न्याय भी रहमत व दया है।

आयतुल्लाह जवाद आमुली इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सूरे रहमान अरूसे कुरआन के नाम से मशहूर है। अब इस सूरे का नाम रहमान है अरूसे कुरआन है। उसकी वजह यह है कि महान ईश्वर हर चीज़ को उसकी जगह पर रखता व व्यवस्थित करता है। ऐसा नहीं है कि महान ईश्वर केवल जन्नत और उसकी नेअमतों की प्रशंसा करता है और जहन्नम के बारे में उदाहरण के तौर पर कहे कि धैर्य करो! दोनों प्रशंसनीय हैं। इस सूरे में अज़ाब व दंड की आयतें कम नहीं हैं। अगर जहन्नम न होती तो ब्रह्मांड में कमी थी। दुनिया में इतने सारे ज़ालिम हैं और मज़लूमों का हक़ उन्होंने ले लिया है किस तरह न्याय स्थापित किया जाता? इस आधार पर महान ईश्वर एक जगह जन्नत को बनाता है और एक जगह जहन्नम को बनाता है और दोनों का आधार दया और न्याय है।

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