क़ुरआन ने ज़बान को कंट्रोल पर जो बल दिया है उसका कारण क्या है?

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क़ुरआन ने ज़बान को कंट्रोल पर जो बल दिया है उसका कारण क्या है?

ईरान के प्रसिद्ध धर्मगुरू हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रफ़ीई ने कहा है कि इंसान ज़बान से दूसरे के लिए भलाई कर सकता है जिस तरह वह ज़बान से द्वेष उत्पन्न कर सकता है।

धार्मिक शिक्षा केन्द्र के एक उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन नासिर रफ़ीई ने कहा कि इंसान की ज़िन्दगी का एक महत्वपूर्ण मामला ज़बान से होने वाला गुनाह है और यह वह चीज़ है जिसका अधिकांश लोगों को सामना है। ज़बान से गुनाह करना बहुत आसान है और यह गुनाह विभिन्न प्रकार के हैं और इसी वजह से अधिकांश लोग ज़बान से किये जाने वाले गुनाहों में मुब्तेला हैं।

रफ़ीई ने कहा कि हर इंसान समस्त गुनाहे कबीरा अर्थात बड़े गुनाहों को अंजाम नहीं देता है। मिसाल के तौर पर काफ़िरों के हाथ हथियार बेचना गुनाहे कबीरा में से है। सब लोग यह गुनाह नहीं करते हैं। इसी तरह शराब का पीना गुनाहे कबीरा में से है मगर हर आदमी शराब नहीं पीता है। बहुत से इंसान गुनाहे कबीरा नहीं करते हैं मगर ज़बान से किये जाने वाले गुनाहे ऐसे नहीं हैं क्योंकि वे विविध हैं और आराम से किये जा सकते हैं और उनके अंजाम देने में कोई ख़र्च नहीं है।

उस्ताद रफ़ीई ने इस ओर संकेत किया कि क़ुरआने करीम ने ज़बान को नियंत्रित करने की सिफ़ारिश इंसान से की है। रिवायत में है कि इंसान कामिल व परिपूर्ण बंदा नहीं हो सकता मगर यह कि रूह व आत्मा सुरक्षित हो और रूह सुरक्षित नहीं हो सकती मगर यह कि ज़बान सुरक्षित हो।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि जब इंसान बात करता है तो पहचाना जाता है, इंसान अपनी ज़बान के नीचे छिपा होता है। इंसान अपनी ज़बान से दूसरे के साथ अच्छाई कर सकता है जिस तरह से इंसान अपनी ज़बान से द्वेष उत्पन्न कर सकता है।

 उन्होंने कहा कि प्रेम उत्पन्न करने का एक तरीक़ा मौन धारण करना है। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इंसान जब चुप रहता है तो अगर वह कोई नेक काम नहीं करता है तो गुनाह भी नहीं करता है। बहुत सी रिवायतों में कम बोलने पर बल दिया गया और कहा गया है कि ख़ामोशी व चुप रहना हिकमत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है।

धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद रफ़ीई अच्छी बात की विशेषता के बारे में कहते हैं" पवित्र क़ुरआन कहता है कि अच्छी वह बात है जिसका आधार जानकारी पर हो।

आज कुछ लोग artificial-intelligence के माध्यम से लोगों की तस्वीरें और  आवाज़ बनाते और सोशल साइटों पर उसे डालते व प्रकाशित करते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि इंसान जिस चीज़ को नहीं जानता है उसका अनुसरण न करे और यह वह चीज़ है जिस पर पवित्र क़ुरआन और हदीस दोनों में बहुत बल दिया गया है और अज्ञानता की बहुत सी बातों का आधार गुमान होता है।

उस्ताद रफ़ीई कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन बात के मज़बूत होने पर बल देता है। वह कहते हैं कि बात का तर्कसंगत आधार होना चाहिये। क़ुरआन इंसान को तक़वे के साथ और तार्किक ढंग से बात करने के लिए कहता है। मिसाल के तौर पर राजनीतिक और चुनावी बहसों को अतार्किक नहीं होना चाहिये। इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन बल देकर कहता है कि ऐसी बात नहीं होनी चाहिये जिसकी मलामत व आलोचना की जाये।

धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद आगे कहते हैं कि एक अन्य विशेषता न्याय है जिस पर पवित्र क़ुरआन बल देता है। राजनीतिक व ग़ैर राजनीतिक बहसों में न्याय का ख़याल रखना चाहिये। उसे विनाशकारी नहीं होना चाहिये। अमल के साथ बाच, अच्छी तरह बात करना, ऐसे अंदाज़ से बात करना कि कहने का तात्पर्य अच्छी तरह स्पष्ट हो अच्छी बात की कुछ विशेषतायें हैं जिनकी पवित्र क़ुरआन इंसान से सिफ़ारिश करता है।

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