ईद उल फ़ित्र और इसकी बरकतें

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ईद उल फ़ित्र और इसकी बरकतें

ईद उल फ़ित्र इस्लामी साल की दो बड़ी ईदों में से एक है, जो रमज़ान के मुकम्मल होने के बाद 1 शव्वाल को मनाई जाती है यह दिन अल्लाह की दी हुई नेमतों का शुक्र अदा करने खुशी मनाने और गरीबों व जरूरतमंदों के साथ हमदर्दी जताने का मौका देता है। ईदुल फितर को "यौम अलजाइज़ा" यानी इनाम का दिन भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अल्लाह अपने नेक बंदों को रमज़ान के रोज़ों और इबादतों का बदला देता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ईद उल फ़ित्र इस्लामी साल की दो बड़ी ईदों में से एक है, जो रमज़ान के मुकम्मल होने के बाद 1 शव्वाल को मनाई जाती है यह दिन अल्लाह की दी हुई नेमतों का शुक्र अदा करने खुशी मनाने और गरीबों व जरूरतमंदों के साथ हमदर्दी जताने का मौका देता है। ईदुल फितर को "यौम अलजाइज़ा" यानी इनाम का दिन भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अल्लाह अपने नेक बंदों को रमज़ान के रोज़ों और इबादतों का बदला देता है।

ईद उल फ़ित्र इस्लामी तालीमात पर आधारित एक मुकद्दस दिन है जिसे पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने बहुत अहमियत दी। इस दिन की सबसे खास बात सदक़ा-ए-फितर अदा करना है जो हर साहिब-ए-इस्तिताअत मुसलमान पर वाजिब है ताकि गरीब और जरूरतमंद लोग भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें।

इमाम जाफर सादिक़ अ.स. फरमाते हैं,ईद का दिन वह होता है जब लोग जमा हों अल्लाह की हम्द-ओ-सना करें उसकी नेमतों का शुक्र अदा करें और उससे और ज्यादा फज़ल व करम की दुआ करें। (अल-काफ़ी, जिल्द 4, पृष्ठ 168)

ईदुल फितर के मुस्तहब अमल:

फितरा अदा करना,ईद की नमाज से पहले हर साहिब-ए-इस्तिताअत मुसलमान पर ज़कात-ए-फितर वाजिब है ताकि जरूरतमंद लोग भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. फरमाते हैं,
रोज़ा तब तक मुकम्मल नहीं होता जब तक ज़कात-ए-फितर अदा न की जाए।(वसाइल अल-शिया, जिल्द 6, पृष्ठ 221)

नमाज़ ए ईद अदा करना:

ईद की सुबह खास तक्बीरों के साथ नमाज़ अदा की जाती है जो अल्लाह की बड़ाई और शुक्रगुज़ारी का इज़हार है।
इमाम अली अ.स. फरमाते हैं:ईद का दिन अल्लाह के ज़िक्र दुआ और जरूरतमंदों की मदद के लिए है। (नहजुल बलाग़ा, ख़ुत्बा 110)

ग़ुस्ल करना और अच्छे कपड़े पहनना:

ईद के दिन ग़ुस्ल करना इत्र लगाना और अच्छे कपड़े पहनना मुस्तहब (पसंदीदा) अमल है।इमाम जाफर सादिक़ अ.स.फरमाते हैं,जो शख्स ईद के दिन खुशबू लगाए और उम्दा लिबास पहने,अल्लाह उसे क़यामत के दिन बेहतरीन लिबास अता करेगा।"मुसतद्रक अल-वसाइल, जिल्द 6, पृष्ठ 191)

ज़ियारत ए इमाम हुसैन अ.स. पढ़ना:
ईदुल फितर के दिन इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ियारत का बहुत सवाब है इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) फरमाते हैं:जो शख्स ईद के दिन इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ियारत करे, वह उस शख्स के जैसा है जो अल्लाह के अर्श के नीचे इबादत कर रहा हो।(कामिल अल-ज़ियारात, पृष्ठ 174)

एक दूसरे को मुबारकबाद देना:ईद के मौके पर लोग एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं और मोहब्बत व भाईचारे का इज़हार करते हैं।

गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना: ईद के दिन ज़कात खैरात और सदक़े के ज़रिए जरूरतमंदों की मदद की जाती है ताकि वे भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें।

ईद उल फ़ित्र की बरकतें:

अल्लाह की रज़ा खुशी हासिल करना:रमज़ान के रोज़ों की मुकम्मल अदायगी पर अल्लाह की तरफ से मग़फ़िरत और रहमत नाज़िल होती है।

उम्मत-ए-मुस्लिमा में इत्तेहाद (एकता):

ईद का दिन मुसलमानों को एकजुटता और भाईचारे का सबक देता है।

सामाजिक तालमेल:
ज़कात-ए-फित्रा और दूसरी खैरात के ज़रिए समाजी नाइंसाफियों को कम करने की कोशिश की जाती है।

रूहानी सुकून:
रमज़ान में की गई इबादतों का सिला अल्लाह की तरफ से मिलता है, जो दिली और रूहानी इत्मिनान का सबब बनता है।

अल्लाह की खास मग़फ़िरत:इमाम अली ज़ैनुल आबिदीन अ.स. फरमाते हैं:ईद के दिन का पहला लम्हा ही अल्लाह की तरफ से अपने बंदों के लिए मग़फ़िरत (माफ़ी) का लम्हा होता है।(सहीफा सज्जादिया, दुआ 45)

नतीजा:

ईद उल-फ़ित्र मुसलमानों के लिए खुशी, इबादत, इत्तेहाद और नेकियों में इज़ाफे का दिन है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि असली खुशी अल्लाह के हुक्म पर अमल करने दूसरों को अपनी खुशियों में शरीक करने और इस्लामी तालीमात को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाने में है।

इस्लामी तालीमात के मुताबिक, ईद-उल-फितर इमाम-ए-ज़माना अ.स. की खुशी हासिल करने, अहल-ए-बैत (अ.स.) की सीरत (जीवनशैली) पर अमल करने अपने मरहूमीन को याद करने और इसाले सवाब (पुण्य अर्पित करने) तथा मज़लूमों की मदद करने का मौका है।

मैं आलम-ए-इस्लाम और तमाम मुसलमानों की खिदमत में ईद-उल-फितर की मुबारकबाद पेश करता हूँ और रब-ए-करीम से दुआ करता हूँ कि हमें इस मुबारक दिन की असली रूह को समझने और इस पर अमल करने की तौफीक़ अता फरमाए। आमीन।

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