ग़ीबत एक ऐसा पाप है जो बहुत आसानी से ज़बान पर आ जाता है, लेकिन इसके परिणाम दुनिया और आख़िरत, दोनों में बेहद गंभीर होते हैं। ज़बान के ज़रिए होने वाले इस हक़्क़ुन नास से निजात के लिए चार बुनियादी क़दम मददगार साबित हो सकते हैं।
हुज़तुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा मुहम्मदी शाहरूदी ने एक सवाल-जवाब की श्रृंखला में "ग़ीबत के ज़रिए दूसरों का हक़ जाने" के मुद्दे पर बात की, जिसका सारांश निम्नलिखित है:
सवाल: अगर हमने किसी की ग़ीबत की है तो उसका हक़ कैसे अदा करें और इस पाप की तलाफ़ी कैसे संभव है?
जवाब: ग़ीबत इस्लाम में गुनाहान-ए-क़बीरा में से एक है। क़ुरआन-ए-क़रीम और अहादीस में इससे सख्ती के साथ रोका गया है और इस पर अल्लाह के अज़ाब की वईद सुनाई गई है।
बहुत से पाप इंसान की ज़िंदगी में कभी-कभी ही आते हैं। जैसे किसी का माल चुराना, किसी की दीवार गिराना, या शराब पीना। लेकिन ग़ीबत एक ऐसा पाप है जो बहुत आसानी से हो जाता है, और अफ़सोस कि आज के समाज में इसकी बुराई का एहसास बहुत कम रह गया है, हालांकि यह पाप भी अन्य बड़े पापों जितना ही गंभीर है।
ग़ीबत की तलाफ़ी के लिए चार बुनियादी चरण हैं:
? पहला चरण: सच्ची तौबा
सबसे पहले इंसान को सच्ची तौबा करनी चाहिए। यानी दिल से निदामत महसूस करे, अपने किए पर पछताए और पक्का इरादा करे कि दोबारा कभी इस पाप की तरफ नहीं लौटेगा।
रिवायतों में आया है कि ग़ीबत करने वाला व्यक्ति अगर तौबा न करे तो सबसे पहले जहन्नुम में दाखिल होगा, और अगर तौबा कर ले तो सबसे आख़िर में जन्नत में दाखिल किया जाएगा।
? दूसरा चरण: ग़ीबत के असरात को ज़ायल करना
अगर ग़ीबत की वजह से किसी को नुकसान पहुंचा हो—चाहे वह माली, अख़लाक़ी, इज़्ज़त से मुताल्लिक हो या खानदानी भरोसे का नुकसान हो तो इंसान को अपनी हद तक उन असरात को ख़त्म करने की कोशिश करनी चाहिए।
जैसे अगर किसी ने किसी औरत की बुराई करके उसकी सास के दिल में बदगुमानी पैदा कर दी है, तो अब उसे चाहिए कि उस औरत की अच्छाइयां बयान करे, ताकि उसका मक़ाम और भरोसा बहाल हो जाए।
? तीसरा चरण: नेकियों का हदिया देना
ग़ीबत की तलाफ़ी के लिए यह भी बेहतर है कि ग़ीबत करने वाला शख्स, उसके लिए नेक अमल अंजाम दे जिसकी ग़ीबत की गई थी।
मसलन: सदक़ा देना, नमाज़-ए-मुस्तहब पढ़ना, क़ुरआन की तिलावत या ज़ियारत करना और सवाब उसे बख्श देना।
ये सारे काम इस नीयत से हों कि अल्लाह तआला उस शख्स को ख़ुश करे जिसका हक़ पामाल हुआ।
अगर बाद में वो शख्स जान ले कि उसके लिए नेकियां की गई हैं, तो उसके दिल में नरम गोशा पैदा होगा और शायद वो राज़ी हो जाए।
? चौथा चरण: उज़्र ख़्वाही और हलालीयत तलब करना
अगर ग़ीबत की बात उस शख्स के कानों तक पहुंच चुकी है और उसे दुख या तकलीफ़ हुई है, तो ज़रूरी है कि गीबत करने वाला जाकर माफ़ी मांगे और हलालीयत तलब करे।
लेकिन अगर गीबत की बात अभी उसे मालूम नहीं हुई है, और जाकर बताने से नया फ़ितना या फ़साद पैदा होने का अंदेशा है, तो ऐसी सूरत में सामने जाकर माफ़ी मांगना ज़रूरी नहीं।
असल मक़सद यह है कि उसके दिल का हक़ अदा हो जाए और ताल्लुक़ात की खराबी दूर हो।
✳️ सारांश:
ग़ीबत की तलाफ़ी के लिए चार चरण ये हैं:
- सच्ची तौबा करना
- ग़ीबत के असरात को दूर करना
- ग़ीबत शुदा शख्स के लिए नेक अमल करना
- उज़्र ख़्वाही और हलालीयत तलब करना
इसके साथ-साथ, अपने लिए और उस शख्स के लिए इस्तिग़फ़ार करना भी बेहद प्रभावी है, क्योंकि दुआ और नेक नीयत से दिल साफ़ होते हैं और अल्लाह की रहमत जलील हो जाती है।
ये चार चरण इंसान को न सिर्फ़ ग़ीबत के पाप से पाक करते हैं, बल्कि समाज में भरोसा, मोहब्बत और भाईचारे को भी बहाल करते हैं।