
رضوی
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत
पंद्रह रजब सन 63 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की एक महान महिला ने इस नश्वर संसार को विदा कहा।
यह महिला पैग़म्बरे इस्लाम की नातिन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं जिन्होंने इस्लामी इतिहस के उस संवेदनशील काल में एक अमिट भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब का नाम कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के साथ हमेशा के लिए जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपनी माता हज़रत फ़ातेमा और पिता हज़रत अली से अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने का पाठ सीखा था और कर्बला की घटना के बाद उन्होंने अपने भाषणों से यज़ीद के अत्याचारों को स्पष्द कर दिया और सत्य के मार्ग में किसी भी प्रकार के त्याग व बलिदान से नहीं चूकीं।
जब अली और फ़ातेमा की पहली बेटी ने इस संसार में आंखें खोलीं तो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम यात्रा पर थे। माता-पिता ने प्रतीक्षा की कि पैग़म्बर वापस आ जाएं और वही उनकी बेटी का नाम रखें जिस तरह से उन्होंने ईश्वर की इच्छा से हसन और हुसैन का नाम रखा था। जब पैग़म्बरे इस्लाम यात्रा से वापस लौटे तो अपनी प्राण प्रिय सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के घर गए। हज़रत अली ने अपनी बेटी को पैग़म्बर की गोद में दे दिया। उन्होंने बच्ची को चूमा और उसका नाम ज़ैनब रखा जिसका अर्थ होता है बाप का श्रृंगार। इसके बाद उन्होंने अपना गाल, ज़ैनब के गाल पर रखा और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उनसे पूछा गया कि हे पैग़म्बर! आपके रोने का कारण क्या है? उन्होंने कहाः ये बच्ची मुसीबतों में मेरे हुसैन के साथ होगी।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपना जीवन, उस घराने में आरंभ किया जो कल्याण व परिपूर्णता का केंद्र था। पैग़म्बरे इस्लाम का प्रेम और उनका अंतरज्ञान हर दिन उनके अस्तित्व को नई शक्ति देता था। उन्होंने धाराप्रवाह भाषण और शब्दालंकार अपने पिता से, पवित्र अपनी माता से, धैर्य व प्रतिरोध अपने भाइयों हसन और हुसैन से सीखा था। वे संयम और ईश्वर से प्रसन्नता के उच्च स्थान पर आसीन थीं। इस तरह के वातावरण में नैतिक गुणों और शिष्टाचारिक विशेषताओं से संपन्न होने का तथा ईश्वरीय ज्ञानों की प्राप्ति का उनके पास भरपूर अवसर था। उनके भतीजे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा था। हे फुफी! ईश्वर की कृपा से आप बिना गुरू की ज्ञानी हैं, आपके पास जो समझ-बूझ और ज्ञान है वह किसी से प्राप्त किया हुआ नहीं बल्कि आपका अपना है।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की व्याख्याकर्ता थीं। जिन दिनों हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में इस्लामी शासक के रूप में मौजूद थे उस दौरान हज़रत ज़ैनब अपने घर में महिलाओं के समक्ष क़ुरआने मजीद की व्याख्या करती थीं। उनके अथाह ज्ञान का एक अन्य प्रमाण उनके वे भाषण हैं जो उन्होंने कूफ़े और शाम में दिए थे और अनेक इस्लामी विद्वानों ने उन भाषणों का अनुवाद और व्याख्या की है। इन भाषणों से इस्लामी ज्ञानों विशेष कर क़ुरआने मजीद के संबंध में उनकी दक्षता का पता चलता है। उन्होंने अपने इन भाषणों में जो आयतें प्रयोग की हैं वे विभिन्न क्षेत्रों में अनेक शंकाओं को दूर करती हैं।
जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की आयु विवाह के योग्य हुई तो उनकी शादी उनके चाचा जाफ़र के बेटे अब्दुल्लाह से कर दी गई। अब्दुल्लाह काफ़ी धनवान थे लेकिन हज़रत ज़ैनब ने, जो उच्च व परिपूर्ण विचारों की स्वामी थीं, अपने आपको भौतिक जीवन की चकाचौंध में सीमित नहीं किया। उन्होंने सीखा था कि कभी भी और किसी भी स्थिति में सच्चाई को अत्याचारियों के हितों की भेंट नहीं चढ़ने देना चाहिए। उन्होंने शादी के समय अब्दुल्लाह के सामने यह शर्त रखी थी कि वे अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साथ कभी नहीं छोड़ेंगी और अब्दुल्लाह ने यह शर्त मान ली थी। यही कारण था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब मदीना नगर से कर्बला के लिए निकले तो हज़रत ज़ैनब भी अपने भाई के साथ हो गईं और कर्बला की अमर घटना में वे अत्याचारी और पापी उमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में उठ खड़ी हुईं।
नमाज़, एक ऐसी महान व बेजोड़ शक्ति के साथ गहरा संबंध है जिसके शासन ने पूरे संसार को अपने घेरे में ले रखा है। पूरी सृष्टि उसी की युक्ति से अस्तित्व में आई है। इंसान ऐसे ईश्वर के सामने नतमस्तक हो कर अपने अस्तित्व के भीतर प्रेम व अध्यात्म की आत्मा को मज़बूत करता है। सही अर्थ में नमाज़ पढ़ने वाला, जो ईश्वर का गुणगान करता है, महान आत्म सम्मान प्राप्त कर लेता है और ईश्वर के अलावा किसी के भी सामने नहीं झुकता। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक गुणों में ईश्वर से उनके संपर्क, दुआ, प्रार्थना और नमाज़ को विशेष स्थान प्राप्त है। उपासना के मामले में वे अपनी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की तरह थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम के रास्ते में भी अनिवार्य नमाज़ों के साथ ही नाफ़ेला नमाज़ें भी पूरी तरह अदा करती थीं और कई स्थानों पर वे बैठ कर नमाज़ पढ़ती थीं। कूफ़े से शाम का रास्ता वह था जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को बंदी बना कर ले जाया जा रहा था और उन पर तरह तरह की मुसीबतें ढाई जा रही थीं।
हम इतिहास में जहां भी देखें, आशूरा का नाम जिससे भी सुनें और उसे जिस कोण से भी देखें, उस महान घटना के नेता इमाम हुसैन के साथ हज़रत ज़ैनब का नाम दिखाई देगा जो इस घटना के हर क्षण में उपस्थित रहीं और पलक झपकने जितने समय के लिए भी कर्बला की घटना से दूर नहीं होतीं। आशूरा इमाम हुसैन के नाम से जीवित और हज़रत ज़ैनब की सहायता से इतिहास में अमर है। हज़रत ज़ैनब कर्बला की घटना में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ भरपूर तरीक़े से उपस्थित थीं और उनकी शहादत के बाद उन्होंने उनके आंदोलन के संदेश को संसार तक पहुंचाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बहादुर केवल वह नहीं है जो रणक्षेत्र में जा कर लड़े और बिल्कुल भयभीत न हो। बहादुर उसे कहते हैं जो पहाड़ की तरह डटा रहे और घटनाएं उसके ईमान को कमज़ोर न होने दें। कर्बला की घटना में हज़रत ज़ैनब का ईमान न केवल यह कि कमज़ोर नहीं हुआ बल्कि ईश्वर पर भरोसे से हर दिन उनके ईमान में वृद्धि ही होती गई। उनका साहस कर्बला की घटना के बाद अधिक खुल कर सामने आया।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को बंदी बना कर कर्बला से कूफ़े लाया गया। रास्ते में तरह तरह के दुख और मुसीबतें उठा कर यह कारवां ऐसी स्थिति में कूफ़ा पहुंचा कि पूरे शहर को यज़ीद की जीत पर सजाया गया था। जब कारवां के लोगों विशेष कर हज़रत ज़ैनब ने यह दृश्य देखा तो उनके दुख में वृद्धि हो गई क्योंकि कूफ़ा उन लोगों के लिए परिचित शहर था। कभी वे एक सम्मानीय महिला के रूप में अपने पिता और परिजनों के साथ पूरे आदर के साथ इस शहर में आई थीं। इस शहर की महिलाओं ने उनसे ज्ञान अर्जित किया था।
दुखों के पहाड़ के बावजूद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने आपको टूटने नहीं दिया। वे पूरी दूरदर्दिशता से परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए थीं और समस्त दुखों व कठिनाइयों के बावजूद शहीदों का संदेश लोगों तक पहुंचाना और यज़ीद की अत्याचारी सरकार की सच्चाई सामने लाना चाहती थीं। इसके अलावा उन्होंने उन अत्याचारों का वर्णन करके जो यज़ीद के सैनिकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर किए थे, लोगों का अत्याचारी शासक के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए आह्वान किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कूफ़े के लोगों से इस प्रकार दो टूक बात की कि उनकी आंखों से आंसू जारी हो गए। बनी हाशिम की इस साहसी महिला ने दिखा दिया कि यज़ीद और उसके परिवार से अधिक भ्रष्ट कोई नहीं है। उनके भाषण सुन कर कूफ़े के लोग रोने लगे कि वे क्यों सच्चाई से अवगत नहीं थे और उन्होंने क्यों इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता नहीं की।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा सत्य की रक्षा और ईश्वर की प्रसन्नता के लिए दुख सहन करने में मुसलमान महिलाओं की सबसे अच्छी आदर्श हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई हज़रत ज़ैनब को इतिहास का सर्वोत्तम आदर्श बताते हुए कहते हैं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा इतिहास का वह सर्वोत्तम आदर्श हैं जो इतिहास की एक सबसे अहम घटना में एक महिला की उपस्थिति की महानता को दर्शाता है। यह जो कहा जाता है कि आशूरा में और कर्बला की घटना में तलवार पर ख़ून विजयी हुआ, और वास्तव में भी ऐसा ही है, तो इस विजय की सूत्रधार हज़रत ज़ैनब हैं वरना ख़ून तो कर्बला में ही समाप्त हो गया था। यह घटना दर्शाती है कि महिला, इतिहास में हाशिये पर नहीं है बल्कि वह इतिहास की अहम घटनाओं के केंद्र में है। क़ुरआने मजीद ने भी अनेक स्थानों पर इस बात पर बल दिया है लेकिन यह प्राचीन समुदायों की बात नहीं बल्कि निकट के इतिहास से संबंधित है। यह एक जीवित घटना है जिसमें इंसान हज़रत ज़ैनब को देख सकता है कि वे एक बेजोड़ महानता के साथ मैदान में आती हैं और ऐसा कारनामा करती हैं कि दुश्मन जो विदित रूप से सैन्य रणक्षेत्र में विजयी हो गया था और उसने अपने विरोधियों का जनसंहार कर दिया था, अपने ही सत्ता केंद्र और अपने ही महल में अपमानित हो गया। हज़रत ज़ैनब ने उसके माथे पर हमेशा के लिए धिक्कार का निशान लगा दिया और उसकी विजय को पराजय में बदल दिया। यह है हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का कारनामा। उन्होंने दिखा दिया कि महिला की पवित्रता को एक सम्मान और बड़े जेहाद में बदला जा सकता है।
हज़रत ज़ैनब ने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सालम से सुन रखा था कि इंसान में जब तक तीन विशेषताएं न हों वह ईमान की वास्तविकता को समझ नहीं सकता, धर्म का ज्ञान, कठिनाइयों पर धैर्य और जीवन के मामलों में अच्छा संचालन। इस महान महिला ने कठिन दायित्वों को स्वीकार किया और धैर्य ने एक रत्न की तरह उनकी आत्मा को संवारा। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की नज़र में सच के मार्ग में प्रतिरोध और ईश्वरीय लक्ष्यों के मार्ग में जान देना सुंदर है और मानवता हमेशा ही इस सुंदरता को सराहती है। यही कारण था कि जब अत्याचारी उमवी शासक यज़ीद ने हज़रत ज़ैनब का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि देखा ईश्वर ने कर्बला में हुसैन और उनके साथियों के साथ क्या किया? तो उन्होंन बड़े ठोस स्वर में जवाब दिया था। मैंने सुंदरता के अलावा कुछ नहीं देखा। प्रिय श्रोताओ हम आपकी सेवा में एक बार फिर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहात पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।
म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों के घरों और ज़मीनें में बांग्लादेशी बौद्धों को बसा रही है
म्यांमार सरकार ने रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के घरों और ज़मीनो पर बांग्लादेश के बौद्धों को बसाने की योजना पर अमल शुरू कर दिया है।
मंगलवार को प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, म्यांमार सरकार और सेना ने पूर्व नियोजित साज़िश के तहत रोहिंग्याओं का जनसंहार किया और जीवित रह जाने वालों को घर बार छोड़ने पर मजबूर कर दिया। जिसके बाद अब उनके घरों और ज़मीनों में बौद्धों को बसाया जा रहा है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, रोहिंग्या मुसलमानों की ज़मीनें और घर बांग्लादेश के बौद्धों को अलाट कर दी गई हैं।
म्यांमार सरकार ने यह क़दम, बांग्लादेश में शरण लेने वाले लाखों रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी को रोकने के लिए उठाया है।
ग़ौरतलब है कि क़रीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के काक्स बाज़ार इलाक़े में शरणार्थी कैम्पों में बहुत ही दयनीय जीवन बिता रहे हैं।
ईरानी राष्ट्र पहली अप्रैल को इस्लामी गणतंत्र दिवस के रूप में मना रहा है
रविवार पहली अप्रैल को ईरान में इस्लामी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, पहली अप्रैल सन् 1979 को आयोजित हुए जनमत संग्रह में ईरानी जनता ने इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के पक्ष में मतदान किया और अपने भविष्य का ख़ुद निर्धारण किया।
इस प्रकार ईरानी जनता ने यह साबित कर दिया कि देश के आंतरिक मामलों में किसी भी विदेशी शक्ति के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस अवसर पर ईरान की इस्लामी क्रांति की सेना आईआरजीसी ने एक बयान जारी करके ईरानी राष्ट्र को इस्लामी गणतंत्र दिवस की बधाई दी है।
इस बयान में उल्लेख किया गया है कि आज विश्व में ईरान की विशिष्ट स्थिति, क्षेत्र में ईरान के प्रभाव और मज़बूत रक्षा शक्ति के कारण, ज़ायोनी शासन और कुछ क्षेत्रीय तानाशाही सरकारें इस्लामी गणतंत्र से ईर्ष्या और दुश्मनी रखती हैं।
आईआरजीसी के बयान में आशा जताई गई है कि इस्लामी क्रांति का चालीसवां साल, इस्लामी गणतंत्र का सबसे उज्जवल साल होगा।
अफ़ग़ानिस्तान गेहूं ले जा रहा भातीय जहाज़ चाबहार बंदरगाह पहुंचा
भारत से अफ़ग़ानिस्तान गेहूं ले जाने वाला भारतीय मालवाहक समुद्री जहाज़ , दक्षिण-पूर्वी ईरान के चाबहार बंदरगाह पहुंच गया है।
ईरान के सीस्तान बलूचिस्तान प्रांत के बंदरगाह और जहाज़रानी संस्था के प्रमुख हुसैन शाहदाद के मुताबिक़, भारत की ओर से अफ़ग़ानिस्तान भेजे जाने वाला 1 लाख 10 हज़ार टन गेहूं चाबहार पहुंच चुका है और अब इस गेहूं को ज़मीन के रास्ते ईरान से अफ़ग़ानिस्तान भेजा जाएगा।
उन्होंने बताया कि भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान ट्रांज़िट समझौते के तहत, पिछले साल से अब तक भारत से अफ़ग़ानिस्तान भेजे जाने वाले चार हज़ार दो सौ कंटेनरों को चाबहार बंदरगाह पर उतारा जा चुका है।
यह उल्लेखनीय है कि ईरान, भारत और अफ़ग़ानिस्तान के परिवहन मंत्रियों ने मई 2016 में त्रिपक्षीय सम्मेलन के अवसर पर ट्रांज़िट ट्रेड समझौता किया था।
मुस्लिम उम्माह को एक प्लेटफ़ार्म पर लाने के लिए आयतुल्लाह ख़ामेनई का फ़तवा बेनज़ीर है, सुन्नी नेता
इराक़ के कुर्दिस्तान इलाक़े के एक वरिष्ठ सुन्नी नेता ने दुनिया भर के मुसलमानों के बीच एकजुटता के लिए ईरान के प्रयासों की सराहना की है।
कुर्द नेता सबाह बरज़नजी ने कहा है कि ईरान ने मुसलमानों के बीच, एकता उत्पन्न करने के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं और हम इस संबंध में ईरान के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई के फ़तवे की सराहना करते हैं।
बरज़नजी का कहना था कि मौजूदा समय में सुन्नी या शिया मुसलमानों के किसी धर्मगुरू ने मुसलमानों की एकता और शिया व सुन्नी मुसलमानों के बीच भाईचारे के लिए ऐसा महत्वपूर्ण क़दम नहीं उठाया है।
कुर्दिस्तान के वरिष्ठ सुन्नी नेता ने कहा कि मुस्लिम उम्माह को एक प्लेटफ़ार्म पर लाने के लिए इतना व्यापक दृष्टिकोण आज तक किसी ने नहीं अपनाया और सुन्नी मुसलमानों को आयतुल्लाह ख़ामेनई के प्रयासों का बढ़ चढ़कर स्वागत करना चाहिए।
सबाह बरज़नजी का कहना था कि ईरान के वरिष्ठ नेता ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की किसी भी पत्नी के अनादर को हराम बताकर मुसलमानों के समस्त समुदायों के बीच वास्तविक एकता उत्पन्न करने के लिए भूमि प्रशस्त कर दी है।
उन्होंने कहा कि आज ज़रूर इस बात की है कि समस्त मुसलमान धर्मगुरू ईरान के वरिष्ठ नेता के दृष्टिकोणों का अनुसरण करें।
इराक़ के वरिष्ठ सुन्नी नेता ने कहा कि अगर कोई मुसलमान, ईरान द्वारा मुसलमानों की एकता के लिए किए जा रहे प्रयासों की अनदेखी करे तो यह वास्तव में एक बड़ा अन्याय है।
बरज़नजी का कहना था कि जिस तरह से सुन्नी मुसलमानों का एक वर्ग साम्राज्यवादी शक्तियों के हाथों की कठपुतली बना हुआ है और वह मुसलमानों में एकता एवं एकजुटता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है, इसी तरह से शिया मुसलमानों के बीच भी एक वर्ग ऐसा है जिसे पश्चिमी शक्तियों का समर्थन हासिल है और वह सुन्नी समुदाय के धार्मिक प्रतीकों को निशाना बनाता है।
शिया-सुन्नी एकता के लिए इराक़ के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली सीस्तानी के प्रयासों की भी बरज़नजी ने प्रशंसा की और कहा कि आज उनके इन्ही प्रयासों से अखंड इराक़ का वजूद बाक़ी है और शिया व सुन्नी युवक एक साथ मिलकर दाइश के तत्वों का मुक़ाबला कर रहे हैं।
फ्रांस में मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक भेदभाव बढ़ा
अंतर्राष्ट्रीय कुरआन समाचार एजेंसी ने तुर्की के समाचार पत्र "हुर्रियत" के अनुसार बताया कि फ्रांसीसी राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून आयोग ने मानवाधिकार आयोग की अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट में देश में धार्मिक और नस्लीय भेदभाव में वृद्धि बताई है।
फ्रांस के लीमोंड अखबार ने कमीशन का हवाला देते हुए कहा कि 2017 में मुस्लिमों पर पहले के तुलना में हमलों में 7.5% की वृद्धि हुई है। यह जबकि अन्य धार्मिक अनुयायियों को मुसलमानों की तुलना में बहुत कम भेदभाव किया जाता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 44 प्रतिशत फ्रांसीसी लोग मुस्लिमों को अपने देश की ऐतिहासिक पहचान के लिए खतरा मानते हैं, और देश के 61% नागरिकों का मानना है कि हिजाब की वजह से फ्रांस में समस्याएं अधिक हुई है।
याद रहे कि फ्रांस की मुस्लिम आबादी का अनुमान 5 से 6 लाख के बीच है, और आंकड़े बताते हैं कि ये संख्या आने वाले वर्षों में बढ़ेगी।
फिलिस्तीन ईसाइयों के समारोह पर जेयोनिस्ट हमले की निंदा
अल जजीरा न्यूज़ एजेंसी के हवाले ,कल सोमवार, 26 मार्च को फिलीस्तीन चर्चों की सर्वोच्च अथॉरिटी ने एक बयान जारी करके शांतिपूर्ण रैली में भाग लेने वाले ईसाईयों पर ज़ियोनिस्ट द्वारा किए गए हमले की निंदा की।
इस समिति ने इस बयान के साथ कि सभी अंतर्राष्ट्रीय समझौते और कानून धार्मिक और राष्ट्रीय समारोहों के लिए सुरक्षा और समर्थन प्रदान करने पर बल देते हैं कहा, यहूदी शासन अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने का कोई भी मौका छोड़ता नहीं है।
इस वक्तव्य में ईसाईयों के समारोहों और उनके धार्मिक वातावरणों के खिलाफ लगातार हमलों का उल्लेख करते हुऐ आया है: ज़ाइनिस्ट शासन की ये कार्वाइयां नस्लवादी लक्ष्य और फिलिस्तीन में रहने वाले सभी गैर-यहूदियों के खिलाफ हैं।
याद रहे कि कल सोमवार को ज़ियोनिस्ट आतंकियों ने रैली में भाग लेने वालों पर हमला करके उनमें से कुछ को गिरफ्तार कर लिया था।
कांग्रेस ने कपिल सिब्बल से बाबरी मस्जिद केस की पैरवी छोड़ने को कह दियाः रिपोर्ट
बाबरी मस्जिद के बारे में एक नया मोड़ सामने आया है और रिपोर्टों में बताया गया है कि कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद को लेकर सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की ओर से केस लड़ रहे वकील कपिल सिब्बल को पार्टी ने निर्देश किया है कि वह यह केस को छोड़ दें।
भारतीय मीडिया में दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस ने कपिल सिब्बल से बाबरी मस्जिद की पैरवी छोड़ने के लिए कहा है। सीएनएन न्यूज -18 ने बताया है कि कांग्रेस के अंदर के लोगों का कहना है कि पार्टी ने सिब्बल से कहा है कि अगर वे खुद को इस केस से दूर कर लेते हैं तो यह उनके लिए राजनीतिक तौर पर एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट दी है कि बाबरी मस्जिद मामले की दो सुनवाई में कपिल सिब्बल शामिल नहीं हुए हैं। इसी बीच ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि सिब्बल द्वारा सुनवाई में शामिल न होने के पीछे कारण कांग्रेस द्वारा सिब्बल से केस को छोड़ने के लिए कहना हो सकता है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफ़रयाब जिलानी ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि कांग्रेस ने कपिल सिब्बल को क्या निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें संवैधानिक मुद्दों पर कपिल सिब्बल की ज़रूरत है। बाबरी मस्जिद मामले की अगली सुनवाई 6 अप्रैल को होगी।
इस्लामाबाद की फैसल मस्जिद में कुरान के 100 पांडुलिपियों का प्रदर्शन
अंतर्राष्ट्रीय कुरआन समाचार एजेंसी यह पांडुलिपियां दो से सात शताब्दियों के बीच की है।
मस्जिद के अधिकारियों ने एलान किया है कि इस पवित्र कुरान को इस्लामी शिलालेख के कामों के साथ सार्वजनिक तौर पर रख़ा जाएग़ा।
वोह लोग़ इस दुर्लभ संस्करणों की रक्षा के लिए विशेष उपाय भी करते हैं।
फैसल मस्जिद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, जो पांच हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में बनाई ग़ई है और इसमें 300 हजार नमाज़ियों की जग़ह है।
इस मस्जिद के प्रत्येक मीनार की ऊंचाई 80 मीटर है, जो दक्षिण एशिया की मस्जिदों में सबसे ज्यादा ऊंची मीनार है। आधिकारिक तौर पर मस्जिद का निर्माण 1 9 76 में शुरू हुआ था और 1986 में दस वर्षों के बाद पूरा हुआ
फ़ारसी सीखें-26वां पाठ
पिछले कार्यक्रम में हमने रेशम मार्ग के बारे में बातचीत की थी। आज के कार्यक्रम में मोहम्मद और सईद ईरान के मार्गों के बारे में अपनी बातचीत जारी रखेंगे। इस कार्यक्रम में हम आपको एक प्राचीन मार्ग जाद्दए शाही अथवा राज्य मार्ग से परिचित करवायेंगे। इस मार्ग का निर्माण हख़ामनी वंश के राजाओं कुरोश और दारयुश के शासनकाल में लगभग 2500 वर्ष पूर्व किया गया। हख़ामनी वंश शासनकाल में ईरानियों ने प्रशासन एवं नगरीय विकास में काफ़ी प्रगति कर ली थी। उपलब्ध मानचित्रों के अनुसार ईरानी भूभाग अपने इतिहास में उस समय सबसे विस्तृत था। ईरान के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंच के लिए मार्गों का निर्माण एवं डाक सेवा की स्थापना इरानियों के महत्वपूर्ण कार्यों में से थे। उस समय राजधानी से दूर दराज़ क्षेत्रों तक प्रशासनिक पत्राचार बहुत ही कम समय में संभव था और इस कार्य को तीव्रगति घोड़ों एवं संदेशवाहकों द्वारा अंजाम दिया जाता था। मार्गों पर ऐसे विश्राम गृह थे जहां तरो ताज़ा घोड़े उपलब्ध होते थे तथा डाक कर्मचारी सेवा के लिए उपस्थित होते थे। पत्र एक संदेशवाहक से दूसरे संदेशवाहक के हाथों तथा एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव होकर बहुत ही कम समय में पहुंच जाते थे। यही कारण है कि ईरान में यात्रा के लिए एवं डाक भेजने हेतु सुरक्षित एवं उचित मार्ग तथा संगठित प्रशासनिक व्यवस्था मौजूद थी। मोहम्मद और सईद इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं। आरंभ में इस कार्यक्रम के शब्दों पर ध्यान दीजिए।
(अनुवाद करें और दो बार दोहराएं)
درمورد बारे में
حکومت शासन
هخامنشیان हख़ामनी वंश
وضعیت स्थिति
آن زمان उस समय
تو اطلاع داری आपको जानते हैं
من می دانم मैं जानता हूं
سال वर्ष
آنها حکومت می کردند वे शासन करते थे
کوروش कुरोश
معروف ترین अति प्रसिद्ध
پادشاه राजा
دوره काल
زمان समय
پُست डाक
شیوه शैली
امروزی वर्तमान
آن رایج بوده است प्रचलित था
چگونه कैसे
تو می دانی आप जानते हैं
بزرگتر बड़ा
امروز आज
آن بوده است वह रहा है
ارسال भेजना
نامه पत्र
بسته पैकिट
شبکه پستی डाक सेवा
آنها ایجاد کرده بودند उन्होंने स्थापित किया था
مهمتر - مهمترین महत्वपूर्ण अति महत्वपूर्ण
اداری कार्यलाय
حکومتی प्रशासनिक
راه मार्ग
راهها मार्गों
ایمن सुरक्षित
مناسب उचित
آن لازم بود वह आवश्यक था
تازه ताज़ा
من فهمیدم मैं समझ गया
چه چیزی क्या चीज़
تو صحبت می کنی आप बात कर रहे हैं
تو می خواهی صحبت کنی आप बात करना चाहते हैं
تو حرف بزنی आप बात करें
باستانی प्राचीन
آن نام دارد उसका नाम था
جاده मार्ग
جاده شاهی राज्य मार्ग
مخصوص विशेष
پادشاهان राजाओं
شاید शायद
دلیل तर्क
آنها می گفتند वे कहते थे
فرمان आदेश
آن ساخته شده است उसका निर्माण किया गया है
طول लम्बा
جاده मार्ग
کیلومتر किलो मीटर
آن بوده است वह रहा है
چقدر कितना
طولانی लम्बाई
البته यद्पि
آن تعجب ندارد उसमें आश्चर्य नहीं है
بسیار بزرگ बहुत बड़ा
بندر बंदरगाह
یونان यूनान
شهر नगर
سارد सारद
آن متصل می کرده است . वह जोड़ता था
अब मोहम्मद और सईद के पास चलते हैं और उनकी बातचीत सुनते हैं। कृपया ध्यान से सुनिए।
(अनुवाद करें और दो बार दोहराएं)
سعید - آیا تو درمورد حکومت هخامنشیان و وضعیت ایران در آن زمان ، اطلاعی داری
सईद-क्या तुम्हें हख़ामुनी वंश और उस काल के बारे में जानकारी है
محمد - بله ، می دانم که هخامنشیان دو هزار و پانصد سال پیش بر ایران حکومت می کردند
मोहम्मद- हां, मैं मुझे मालूम है कि 2500 पूर्व हख़ामुनी ईरान पर शासन करते थे
سعید - کوروش ، معروفترین پادشاه آن دوره است، در زمان او ، پُست به شیوه امروزی رایج بوده است
सईद- उस काल का सबसे प्रसिद्ध राजा कुरोश है, उसके काल में डाक की वर्तमान व्यवस्था थी
محمد – چگونه
मोहम्मद- कैसे
سعید - می دانی که ایران در زمان هخامنشیان بسیار بزرگتر از ایران امروز بوده است
सईद- तुम तो जानते हो कि हख़ामुनी वंश काल में ईरान वर्तमान ईरान से बहुत बड़ा था
محمد - پس برای ارسال نامه ها و بسته ها ، شبکه پستی ایجاد کرده بودند
मोहम्मद- इस लिए पत्र और पैकेट भेजने हेतु डाक सेवा की व्यवस्था थी
سعید - بله ، مهمتر از همه ، نامه های اداری و حکومتی بود ، برای ارسال نامه ها ، راههای ایمن و مناسب ، لازم بود
सईद- हां, सहसे महत्वपूर्ण यह है कि वह सरकारी एवं प्रशासनिक पत्र थे, पत्रों को भेजने के लिए सुरक्षित एवं उचिन मार्ग थे
محمد - تازه فهمیدم درباره چه چیزی می خواهی صحبت کنی ، می خواهی درباره راههای ایران حرف بزنی
अब मैं समझा कि तुम किस बारे में बात करना चाहते हो, तुम ईरान के मार्गों के बारे में बात करना चाहते हो
سعید - بله ، مهمترین و معروفترین راه باستانی ایران ، جاده شاهی نام دارد
सईद- हां, सबसे महत्पूर्म एवं सबसे प्रसिद्ध प्राचीन ईरान के मार्ग का नाम शाही मार्ग है
محمد - آیا این جاده مخصوص پادشاهان هخامنشی بوده است
मोहम्मद- क्या यह मार्ग हख़ामनी राजाओं के लिए विशेष था
سعید - نه ، شاید به این دلیل به آن جاده شاهی می گفتند که این جاده به فرمان کوروش و در زمان حکومت وی ساخته شده است ، طول این جاده 2400 کیلومتر بوده است
सईद- नहीं, हो सकता है इस लिए उसे शाही मार्ग कहते हों कि वह कुरोश के शासनकाल में और उसके आदेशानुसार बनाया गया था
محمد - این راه چقدر طولانی بوده ! البته تعجبی ندارد ، چون ایران در آن زمان بسیار بزرگ بوده است
मोहम्मद- यह मार्ग कितना लम्बा था, यद्यपि आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि ईरान उस समय बहुत बड़ा था
سعید - بله ، این راه ، یکی از بندرهای یونان را به شهر " سارد " در ایران متصل می کرده است
सईद- हां, यह मार्ग यूनान की एक बंदरगाह को ईरान के सारद नगर से जोड़ता था
जिस प्रकार मोहम्मद और सईद ने अपनी बातचीत में संकेत किया कि एक नगर से दूसरे नगर की यात्रा एवं पत्रों के भेजने के लिए उचित मार्गों की आवश्यकता थी। उस समय अपने शासन क्षेत्र की स्थिति की जानकारी के लिए कुरोश ने ईरान में बहुत से मार्गों के निर्माण का आदेश दिया। इन मार्गों पर अनेक डाकिया घर बने हुए थे कि जहां सदैव ताज़ा दम घोड़े तैयार रहते थे। इस कारण विश्व में ईरानियों को डाक व्यवस्था का प्रथम संस्थापक कहा जा सकता है। उस समय ईरान के विकास के लिए अधिक प्रयास किये गये। यूनान के प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडोटस ने ईरानी मार्गों और विश्रामगृहों में उपलब्ध सुविधाओं एवं व्यवस्था की बहुत प्रशंसा की है। हेरोडोटस एवं दूसरे एतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ईरान की राजधानी और दूसरे नगरों को जोड़ने वाले अनेक मार्ग थे इसी प्रकार छोटे और बड़े नगरों के बीच भी सड़कें थीं। शाही मार्ग अधिक संख्या वाले नगरों से गुज़रता था। कुछ मार्ग समुद्र से जाकर मिलते थे तथा लोग नावों द्वारा दूसरे क्षेत्रों तक आ जा सकते थे। अधिकांश सड़कें पत्थर की बनी हुई थीं। अनेक मार्गों और विस्तृत प्रशासनिक एवं डाक व्यवस्था के होने से पता चलता है कि प्राचीन काल से ही ईरान की जनता प्रशासनिक नियमों एवं सिद्दांतों से परिचित थी।