رضوی

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पाक व पवित्र है वह ईश्वर, जिसकी प्रशंसा इंसान उस तरह नहीं कर सकता जिस तरह उसकी प्रशंसा करने का हक़ है।

नहीं की जा सकती और जिसके समान कोई चीज़ नहीं है, इसलिए कि उसके जैसा कोई नहीं है और वह सुनने और देखने वाला है। ईश्वर ने जितना वर्णन स्वयं के बारे में किया है, उसके अलावा उसका कोई वर्णन नहीं किया जा सकता। उसने वजूद एवं अस्तित्व को रूप प्रदान किया, लेकिन उसका कोई रूप नहीं है। उसने स्थान की रचना की, लेकिन उसका अपना कोई स्थान नहीं है और वह इस सीमितता से परे है। वह एक है और उसका कोई साथी नहीं है। उसके नाम और गुण पवित्र एवं पाक हैं।

आज पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पोते इमाम अली नक़ी (अ) की शहादत की बरसी है। इमामत ईश्वर का वरदान है। ईश्वर यह वरदान केवल उन लोगों को प्रदान करता है, जिनका विवेक एकेश्वरवाद पर विश्वास के साथ गूंथा हुआ होता है और उनके दामन पर किसी तरह की बुराई का कोई धब्बा नहीं होता है। यही कारण है कि ईश्वर के दूतों के रूप में धरती पर इमामों की ज़िम्मेदारी केवल धार्मिक नियमों एवं क़ुरान की व्याख्या करना नहीं है, बल्कि उनकी ज़िम्मेदारी का दायरा बहुत विस्तृत है और उसमें समस्त इंसानों का मार्गदर्शन शामिल है। वे उस सूर्य की भांति हैं, जिसकी धूप सब पर एक समान पड़ती है, अब अगर कुछ लोग उसकी धूप से लाभ उठाने के बजाए अपने और उसके बीच कोई रुकावट उत्पन्न कर लेंगे तो नुक़सान उन्हीं का होगा और वे ख़ुद ही मार्गदर्शन के केन्द्र से दूर हो जायेंगे। इमाम अपने उपदेशों और मार्गदर्शन से, जीवन के सूखे पौधे को हरा भरा करते हैं।

इमाम अली इब्ने मोहम्मद हादी और नक़ी के नाम से मशहूर हैं। वे 25 रजब और एक दूसरे कथन के मुताबिक़, 25 जमादिल आख़र को इराक़ के सामर्रा शहर में शहीद हुए। अपने पिता की शहादत बाद, केवल 8 साल 5 महीने की उम्र में अपने महान पिता की ही भांति उन्होंने इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 33 वर्ष तक लोगों का मार्गदर्शन किया। इमाम अली नक़ी (अ) से तत्कालीन दक्ष विद्वानों ने विभिन्न विषयों जैसे कि धर्मशास्त्र, दर्शन एवं इतिहास से संबंधित प्रश्न पूछे, इमाम ने समस्त प्रश्नों के उत्तर इतने सटीक एवं स्पष्ट दिए कि उन्होंने दांतों तले उंगली दबा ली और इमाम की इमामत को स्वीकार किया।

इमाम हादी (अ) की इमामत के दौरान, 6 अब्बासी शासकों ने शासन किया। इन अब्बासी शासकों का व्यवहार, इमाम के साथ विभिन्न रहा। कुछ ने इमाम के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार अपनाया तो कुछ ने संतुलित। हालांकि वे सभी इमाम के हक़ को छीनने और उनके अधिकारों का हनन करने में एक समान थे।

अब्बासी शासकों में से मुतवक्किल सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से दुश्मनी रखता था और उन पर अत्याचार करता था। यहां तक कि उसने आदेश दिया कि शिया मुसलमानों के इमामों विशेषकर इमाम हुसैन (अ) की पवित्र क़ब्रों को ध्वस्त कर दिया जाए। उसके आदेश का पालन करते हुए उसके अधिकारियों ने कर्बला में इमाम हुसैन के पवित्र मज़ार को ध्वस्त कर दिया और उस स्थान पर खेती शुरू कर दी।

मुतवक्किल मदीने में इमाम हादी (अ) की उपस्थिति से भयभीत था, उसे डर था कि कहीं इमाम राजनीतिक गतिविधियां शुरू न कर दें। उसने इसीलिए एक साज़िश रची और इमाम को देश निकाला दे दिया और मदीने से सामर्रा भेज दिया। सामर्रा में इमाम हादी (अ) को क़ैद कर दिया गया। सामर्रा शहर अब्बासी शासकों की सैन्य छावनी थी और कुछ शासकों ने इसे अपनी राजधानी भी बनाया। इसीलिए इमाम को इस शहर भेजा गया, ताकि इमाम की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा सके। इमाम हादी को असकरी भी कहते हैं, इसलिए कि वे अपने बेटे इमाम हसन असकरी की भांति सामर्रा की सैन्य छावनी में नज़र बंद रहे। किताबों में इन दो इमामों को असकरिएन के नाम से याद किया गया है।

एक इमाम मासूम की विशिष्टता यह है कि वह ज्ञान, पवित्रता और नैतिक गुणों से सुसज्जित होता है और समस्त गुणों में अपने समय के समस्त इंसानों से सर्वश्रेष्ठ होता है। यह समस्त विशिष्टताएं इमाम हादी (अ) में पाई जाती थीं। उत्कृष्टता तक पहुंचने के लिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का होना ज़रूरी है। इमाम अली नक़ी (अ) का मानना था कि इंसानियत के उत्कृष्ट उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए लोगों को ज्ञान हासिल करना चाहिए, इसलिए कि ज्ञान के बिना कोई भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता। वे फ़रमाते हैं, विद्वान एवं विद्यार्थी विकास में भागीदार होते हैं।

इमाम हादी (अ) विद्वानों का अधिक सम्मान करते थे और उन्हें प्रकाश एवं ज्ञान का स्रोत बताते थे। इमाम (अ) फ़रमाते थे, ईश्वर जिस प्रकार से मोमिन को ग़ैर मोमिन पर प्राथमिकता देता है, वैसे ही ज्ञानी मोमिन को अज्ञानी मोमिन पर विशिष्टता प्रदान करता है। ईश्वर ज्ञानी मोमिनों को उच्च स्थान प्रदान करता है।

इस्लाम के अनुसार, इंसान हर समय और हर स्थान पर ईश्वर के सामने उपस्थित होता है, लेकिन ईश्वर ने अपने बंदों को ख़ुद से अधिक निकट करने और उनकी सुख सविधा के लिए समय और स्थान का निर्धारण कर दिया है। इमाम हादी (अ) पवित्र स्थलों के महत्व को बयान करते हुए फ़रमाते हैं, ईश्वर के निकट कुछ स्थान पवित्र हैं, जहां वह दुआ को स्वीकार करता है। इसलिए जो कोई भी वहां दुआ करता है वह उसे स्वीकार कर लेता है, ऐसे ही स्थानों में से एक इमाम हुसैन (अ) का पवित्र रौज़ा है।

ईरान में नव वर्ष या नौरोज़, ऐसे पवित्र स्थलों की ज़ियारत का बेहतरीत अवसर होता है। ईश्वरीय प्रतिनिधियों के अनुसार, ख़ुशी और मनोरंजन, इंसान की प्रवृत्ति में शामिल है और यह उसका जन्म सिद्ध अधिकार है, जिससे उसके मन को ताज़गी प्राप्त होती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हमेशा ख़ुश रहते थे और इसके महत्व पर बल देते थे। उनके परिजन भी आत्मा की शुद्धि एवं ख़ुशहाली के लिए ख़ुश रहने पर बल देते थे। वे इसके लिए लोगों का मार्गदर्शन करते थे, जिससे मोमिनों के दिलों में ईश्वर की मोहब्बत की कलियां खिल जाती थीं।

इमाम हादी (अ) जब भी सुनते थे कि किसी शख़्स ने अपने किसी परिजन के साथ भलाई की है या किसी मोमिन को प्रसन्न किया है या अपने किसी भाई की किसी समस्या का समाधान किया है, तो बहुत प्रसन्न होते थे और अपनी इस प्रसन्नता से अपने अनुयाइयों को अवगत कराते थे, ताकि वे भी इसका अनुसरण करें। इसहाक़ जल्लाब का कहना है कि बक़रईद के अवसर पर आठ ज़िलहिज्जा को मैंने इमाम हादी (अ) के लिए एक बड़ी संख्या में भेड़ें ख़रीदीं, उन्होंने इन भेड़ों को अपने रिश्तेदारों में बांट दिया। 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि खिला हुआ चेहरा, मीठी और सच्ची बात, सुन्दरता, उत्कृष्टता एवं सम्मान मासूम इमामों की लोकप्रियता के कारण थे और इससे लोगों के दिलों में उनका सम्मान था। इमाम हादी (अ) की विशिष्टताओं के बारे में इब्ने शहर आशोब लिखते हैं, ख़ुश अख़लाक़ी के दृष्टिगत, इमाम हादी (अ) सर्वश्रेष्ठ थे, सबसे सच्चे थे, निकट से देखने में बहुत ही सुन्दर और दूर से देखने में संपूर्ण थे। जब वे ख़ामोश रहते थे तो उनका जलाल देखने योग्य होता था और जब बात करते थे तो उनकी महानता उजागर होती थी।

इमाम हादी (अ) के समय में, परिस्थितियां बहुत जटिल थीं, जिसके कारण राजनीतिक गतिविधियों के लिए काफ़ी सीमितताएं थीं, लेकिन हज़रत ने कोई अवसर हाथ से जाने नहीं दिया और अपनी राजनीतिक गतिविधियां भी जारी रखीं। उनका मानना था कि दृष्टिकोण, कर्मों एवं कार्यक्रमों की शुद्धता के लिए एक आईना है। इस दौरान शिया मुसलमानों के दसवें इमाम ने ऐसे विद्वानों की प्रशिक्षण की जिनका नाम इतिहास में दर्ज है। शेख़ तूसी ने इमाम (अ) के शिष्यों और साथियों की संख्या 190 बताई है।

आख़िरकार, अब्बासी शासक मोतिज़ ने इमाम अली नक़ी (अ) के पवित्र वजूद को इससे ज़्यादा सहन नहीं किया और उन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया। धार्मिक ग्रंथों में शहादत को बेहतरीन मौत क़रार दिया गया है। यह वह मौत है जिसे ईश्वर के लिए पूरे विवेक के साथ गले लगाया जाता है। अधिकांश ईश्वरीय दूतों को यह गर्व हासिल रहा है और उन्होंने शहीद होकर मुर्दा समाज में नई रूह फूंकी है।

इमाम हादी (अ) भी अन्य इमामों की भांति, शहीद हुए। उन्हें उनके ही घर में उनके उपास्ना स्थल में दफ़्ना दिया गया। हर साल करोड़ों मुसलमान सामर्रा में उनके भव्य रौज़े की ज़ियारत करने जाते हैं। हम इमाम (अ) के इस सुन्दर कथन के साथ अपनी बात ख़त्म करते हैं, शिष्टाचार, बेहतरीन नेकी और भलाई है।           

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने नए हिजरी शम्सी साल की शुरुआत पर अपने एक संदेश में देशवासियों विशेष रूप से शहीदों के परिवारों, युद्ध के घायलों, तथा देश की वैज्ञानिक प्रगति के इंजन का काम करने वाले और आशाओं के स्रोत युवाओं को बधाई दी।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने सहर्ष व मधुर नौरोज़ तथा भलाई और बरकतों से संतृप्त साल की कामना करते हुए नए वर्ष को ईरानी उत्पाद के समर्थन का साल घोषित किया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने बीते हिजरी शम्सी साल 1396 के उतार चढ़ाव और कटु व मधुर घटनाओं का मूल्यांकन करते हुए इसे ईरानी राष्ट्र की उपस्थिति, शक्ति और महानता के प्रकटीकरण का साल बताया। उन्होंने कहा कि इस साल के शुरू में देश के 40 मिलियन से अधिक लोगों ने राष्ट्रपति व काउंसिल चुनावों में बहुत शानदार, महान और आंखों को चकाचौंध कर देने वाली उपस्थिति दर्ज कराई तथा उपस्थिति क़ुद्स दिवस के जुलूसों, 30 दिसम्बर की रैलियों और सबसे बढ़कर 11 फ़रवरी के जुलूसों में जारी रही।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस  साल के अंतिम महीनों में अंशाति फैलाने की दुशमनों की विफल योजनाओं और कोशिशों का हवाला देते हुए उपद्रव की घटनाओं  के ख़िलाफ़ आज जन की रैलियों को सभी मैदानों में ईरान की महान, दूरदर्शितापूर्ण, विवेकपूर्ण तथा कामों के लिए तैयार रहने वाली जनता की स्थायी उपस्थिति का परिचायक बताया। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी राष्ट्र यहां तक कि वह लोग जिनकी आड़ में शत्रुओं ने उपद्रव फैलाने की कोशिश की उपद्रव फैलाने वालों के ख़िलाफ़ डट गए और इस घटना से ईरानी राष्ट्र की महानता को और भी स्पष्ट कर दिया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का कहना था कि बीते साल में इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक और बड़ी उपलब्धि यह थी कि उसने क्षेत्रीय ख़तरों को अवसरों में बदल दिया। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय ख़तरों का एक लक्ष्य ईरान पर वार करना था लेकिन इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था ने इन ख़तरों से देश को नुक़सान भी नहीं पहुंचने दिया बल्कि उन्हें अवसरों में बदल दिया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने बीते साले के नारे अर्थात प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था पैदावार व रोज़गार को व्यवहारिक बनाने के लिए की जाने वाली कोशिशों को भी इस साल की सार्थक और सकारात्मक घटनाओं में शुमार करते हुए कहा कि पैदावार और रोज़गार के लिए बड़े अच्छे काम अंजाम दिए गए और साल के नारे पर किसी हद तक हमल हुआ अलबत्ता अभी बहुत से काम बाक़ी हैं जिन्हें पूरा करने तक इस नारे पर काम जारी रखना चाहिए।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने नए साल में जनता और अधिकारियों के प्रयासों की दिशा और ख़ाका निर्धारित करते हुए कहा कि साल के लिए नारों के संदर्भ में मैं आम तौर पर देश के अधिकारियों को संबोधित करता रहा हूं लेकिन इस साल मैं अधिकारियों समेत पूरे राष्ट्र को संबोधित कर रहा हूं, सब को चाहिए कि भरपूर मेहनत और काम करें।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि घरेलू उत्पादन रफ़तार पकड़ ले तो आम जन की जीवनयापन की बहुत सी समस्याएं जैसे रोज़गार और निवेश की समस्याएं हल हो जाएंगी तथा सामाजिक विसंगतियों में भी कमी आएगी, इसी लिए मैंने नए साल का नाम और नारा ईरानी उत्पाद का समर्थन निर्धारित किया है।

 

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द ने कहा कि ईरान की क्षेत्रीय शक्ति इस्लाम की शक्ति तथा क़ुरआन की शिक्षाओं से प्राप्त की गई है और इस शक्ति ने फ़िलिस्तीन, यमन, सीरिया, लेबनान तथा इराक़ के राष्ट्रों को भी उनकी पहिचान का आभास कराया है।

हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि ईरानी राष्ट्र की राजनैतिक स्वाधीनता एक मूल्यवान ख़ज़ाना है, अमरीका के राष्ट्रपति कहते हैं कि ईरान की क्षेत्रीय शक्ति अमरीका के लिए चिंता का विषय है, जबकि यह शक्ति इस्लाम तथा क़ुरआन की शिक्षाओं से प्राप्त की गई है और इसने क्षेत्र के राष्ट्रों तथा प्रतिरोध को पहिचान प्रदान की है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि ईरान की प्रतिष्ठा इस देश के न्यायप्रेमी और संस्कारी नेताओं की देन है, इस्लामी क्रान्ति ने जो कुछ प्राप्त किया है वह अपने नेता और जनता से प्राप्त किया है तथा इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की पूरी शक्ति इन्हीं दो मूल्यवान रत्नों से मिली ह।

हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द कहा कि आज अमरीका के विस्तारवादी मोर्चे के मुक़ाबले में जो क्षेत्र और दुनिया के स्तर पर ग़ैर क़ानूनों लक्ष्यों के लिए प्रयासरत है, इस्लामी प्रतिरोधक मोर्चा नेता और जनता के मज़बूत संबंधों की वहज से डटा हुआ है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने नए हिजरी शम्सी साल 1397 को ईरानी उत्पाद के समर्थन का साल घोषित किया है, उन्होंने ईरानी उत्पाद का समर्थन किए जाने पर ज़ोर देते हुए कहा कि ईरानी उत्पाद उत्तम क्वालिटी के साथ और कम ख़र्च पर तैयार होना चाहिए।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि चालीस वर्ष बीत जाने के बाद आज ईरान की इस्लामी क्रांति न केवल यह कि बूढ़ी नहीं हुई बल्कि यह उसके यौवन का काल है।

     वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बुधवार को पवित्र नगर मशहद में पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रोज़े पर श्रद्धालुओं के मध्य अपने एक भाषण में ईरान की इस्लामी क्रांति के मूल सिद्धान्तों, स्वाधीनता, आज़ादी , प्रजातंत्र, आत्मविश्वास, न्याय और सब से महत्वपूर्ण इस्लामी शिक्षाओं के पालन पर बल दिया और कहा कि यह सारे सिद्धान्त और नारे पूरी ताज़गी के साथ  सुरक्षित हैं।

     वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान पर 200 वर्षों तक विदेशियों का वर्चस्व था इस लिए देश की जनता की सब से बड़ी इच्छा, स्वाधीनता थी और आज हम यह कह सकते हैं कि आज दुनिया के किसी राष्ट्र के पास, ईरानी राष्ट्र की तरह स्वाधीनता नहीं है।

     इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान के बारे में विश्व बैंक की ओर से जारी किये गये कुछ आंकड़े पेश करते हुए, ईरान में क्रांति की सफलता के बाद होने वाली प्रगति का उल्लेख किया और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में देश में किये गये कामों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने बेहद दबाव के बावजूद सामाजिक न्याय स्थापना के क्षेत्र में बड़े काम किये हैं और अच्छी तरक़्क़ी है लेकिन हमें जिस की आशा है वह वर्तमान स्थिति से अधिक है।

वरिष्ठ नेता ने ईरानी नववर्ष के नारे " ईरानी उत्पाद का समर्थन " का उल्लेख करते हुए इस नारे के विभिन्न आयामों को स्पष्ट किया।

वरिष्ठ नेता ने क्षेत्रीय परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए कहा कि पिछले वर्ष इस्लामी गणतंत्र ईरान ने ईरानी राष्ट्र की ताक़त की पताका क्षेत्र में लहरायी और तकफीरी आतंकवाद की कमर तोड़ने में मुख्य भूमिका निभाई ।

नौरोज़ के अवसर पर वरिष्ठ नेता का पूरा संदेश पढ़ने के लिए क्लिक करेंः नौरोज़ के अवसर पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का संबोधन, नए साल का नारा 'ईरानी उत्पाद का समर्थन'

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इलाक़े में अमरीकी साज़िशों को नाकाम बनाने में सफल रहा है जो दाशइ को अस्तित्व में लाकर ज़ायोनी शासन से लोगों का ध्यान हटाना और इलाक़े के लोगों को एक दूसरे से भिड़ाने का प्रयास कर रहा था।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि हम ने इलाक़े की जो भी मदद की है वह तार्किक कारणों और सूझ बूझ पर आधारित थी और किसी भी रूप में भावनात्मक नहीं थी, हमें कामयाबी मिली लेकिन हमारा इरादा किसी भी देश में दखल देने का नहीं था, हम जहां भी गये उस देश की सरकार की इच्छा के अनुसार गये।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस क्षेत्र में अमरीका की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी और हमारे उद्देश्य ज़रूर पूरे होंगे।  

तेहरान के इमामे जुमा ने जुमे की नमाज़ के ख़ुतबों में कहा है कि दुश्मन, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से इस्लामी व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने की साज़िश रच रहा है।

आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी का कहना था कि इस्लामी व्यवस्था के दुश्मन, न्यायपालिका, संसद और सुरक्षा बलों को नुक़सान पहुंचाना चाहता है, इसलिए पूरे राष्ट्र को चाहिए कि मिलकर इस साज़िश का मुक़ाबला करे।

आयतुल्लाह काशाना ने कहा, आध्यात्मिकता में शांति व ईश्वर की इबादत शामिल है और यह ईश्वर की महत्वपूर्ण अनुकंपा है।

उन्होंने कहा कि अधिकारियों को चाहिए कि वे लोगों की आर्थिक समस्याओं का समाधान निकालें।

ईरान के एक वरिष्ठ धर्मगुरु, ग़ुलाम रज़ा मिसबाही मुक़द्दम ने जुमे की नमाज़ से पहले अपने भाषण में कहा, कुछ क्षेत्रीय देश हर वर्ष विश्व की बड़ी शक्तियों से अरबों डॉलर के हथियार ख़रीदते हैं, इसके बावजूद, ईरानी सेना और आईआरजीसी ने रक्षा क्षेत्र में असामान्य प्रगति की है और विश्व की बड़ी शक्तियों को हैरान कर दिया है।  

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने ईश्वर पर आस्था और उससे डर को अमरीकी और ज़ायोनी धावे से मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता का राज़ बताया।

गुरुवार को इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली असेंब्ली के अध्यक्ष व सदस्यों ने तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई से मुलाक़ात की जिसमें वरिष्ठ नेता ने अमरीका और ज़ायोनीवाद के सांस्कृतिक, राजनैतिक, वित्तीय, सैन्य व सुरक्षा की दृष्टि से बड़े मोर्चे से निपटने में ईरान की दृढ़ता का स्रोत ईरानी जनता व जवान नस्ल में ईश्वर पर आस्था और उसका डर बताया।

उन्होंने सत्य के मोर्चे के प्रति ईश्वर के साथ को निश्चित वादा और इसी वादे को सत्य के मोर्चे के लिए ख़ुशी की वजह बताते हुए बल दिया कि ईश्वर के इस निश्चित वादे के पूरा होने की शर्त यह है कि धर्मगुरु, व्यवस्था के अधिकारी और शिक्षा व प्रचार तंत्र ईश्वर पर आस्था रखने वाले समाज के प्रशिक्षण के अपने कर्तव्य को निभाए और वह ख़ुद भी ईश्वर पर आस्था को अपने व्यवहार से साबित करे, मेहनत करे, दृढ़ता दिखाए और रईसाना ज़िन्दगी से दूरे रहे।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने दुश्मन के चौतरफ़ा धावे के मद्देनज़र ईरान के सामने राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व सुरक्षा की नज़र से संघर्ष को सख़्त बताते हुए कहा कि एकेश्वरवाद, सामाजिक न्याय, अत्याचार से संघर्ष, पीड़ितों का समर्थन सहित इस्लामी व्यवस्था की आकांक्षाएं और इस्लामी गणतंत्र के वजूद के कारण धर्म के दुश्मन धावा बोलते हैं और ऐसा पूरे इतिहास में हमेशा से होता आया है कि सत्य के मोर्चे के मुक़ाबले में असत्य का मोर्चा होता है और पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में भी इसका वर्णन है।

वरिष्ठ नेता ने सत्य-असत्य के बीच निरंतर मुक़ाबले में सत्य की जीत के ईश्वर के निश्चित वादे का उल्लेख करते हुए कहा कि इस वादे के पूरा होने के लिए शर्त यह है कि ईश्वर पर आस्था रखने वाले सच्ची नियत, धैर्य, जागरुकता, साहस और दृढ़ता का परिचय दें कि इन शर्तों के पालन से इस वादे का पूरा होना अटल ईश्वरीय परंपरा है।    

 

 

पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के कुन्नड़ प्रांत में अमरीकी ड्रोन हमले में तीन छात्र मारे गये।

तसनीम न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार एेसी हालत में अमरीकी अधिकारी दावा कर रहे हैं कि शुक्रवार को कुन्नड़ प्रांत के मानूगी शहर में होने वाले ड्रोन हमले में आतंकवादी गुट दाइश के सदस्यों को निशाना बनाया गया है, इस प्रांत के गवर्नर के प्रवक्ता ग़नी मुसम्मम ने इस हमले में तीन छात्रों के मारे जाने की पुष्टि की है।

कुन्नड़ प्रांत की शिक्षण और प्रशिक्षण संस्था के एक कर्मी एहसानुल्लाह ज़ुहैर ने फ़ेसबुक पर लिखा कि मानूगी शहर पर होने वाले अमरीकी ड्रोन हमले में मारे गये छात्र थे।

ज्ञात रहे कि अमरीका के ड्रोन हमलों में अधिकतर आम नागरिक ही मारे जाते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा अफ़ग़ानिस्तान के बारे में नई रणनीति की घोषणा के बाद से इस देश में अमरीकी ड्रोन हमलों में वृद्धि हुई है। 

वर्ष 2001 से अफ़ग़ानिस्तान पर अमरीका की चढ़ाई के समय से अब तक इस युद्धग्रस्त देश में एक लाख 11 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।   

 

ईरान में भारत के वाणिज्य राजदूत ने कहा है कि ईरान को तेल की क़ीमत का भुगतान करने में भारत को कोई समस्या नहीं है और यह भुगतान यूरो के रूप में किया जाएगा।

देवेश उत्तम ने तेहरान में भारत की विशेष प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह के अवसर पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि भारत ने ईरान पर प्रतिबंध के काल के अपने सभी क़र्ज़े चुका दिए हैं और अब ईरान को भुगतान के लिए उसके पास कई मार्ग हैं जिनमें से एक यूको बैंक है। उन्होंने कहा कि भारत के यूको बैंक के साथ ईरानी बैंकों के दो देशों में ज्वाइंट अकाउंट हैं और इस माध्यम से ईरान व भारत के बीच व्यापारिक लेन-देन के भुगतान में कोई समस्या नहीं आएगी।

 

तेहरान में भारत के वाणिज्य राजदूत ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि इस समय भारत और ईरान के बीच व्यापारिक लेन-देन का स्तर प्रतिवर्ष 12 अरब 80 करोड़ डाॅलर है, आशा जताई है कि दोनों देशों के बीच रुपये और रियाल को आधार बनाए जाने जैसे क़दमों ईरान व भारत के बीच लेन-देन की दर निर्धारित लक्ष्य यानी तीस अरब डाॅलर प्रतिवर्ष तक पहुंच जाएगी। ज्ञात रहे कि शनिवार से तेहरान में भारत की विशेष प्रदर्शनी आरंभ हुई है जिसमें खाद्य पदार्थ, इंजीनियरिंग, सूचना प्रोद्योगिकी और मशीन उद्योग से संबंधित वस्तुएं पेश की गई हैं।

अवैध अधिकृत फिलिस्तीन के हज़ारों लोगों ने शनिवार की रात तेलअबीव में इस्राईली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतिन्याहू के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन किया।

इस्राईली प्रदर्शन कारियों ने नेतिन्याहू और उनके मंत्रिमंडल के सभी भ्रष्ट सदस्यों के त्यागपत्र की मांग की। 

याद रहे नेतिन्याहू को पुलिस की ओर से  हालिया हफ्तों में कई बार  पूछताछ के लिए बुलाया जा चुका है। 

इस्राईली पुलिस नेतिन्याहू के आर्थिक व सरकारी भ्रष्टाचार के तीन केस तैयार किये हैं 

पहला मामला, धनवान व्यापारियों से उपहार लिए जाने के बारे में है। दूसरा केस नेतिन्याहू और " यदीऊत अहारोनोत" समाचार पत्र के मालिक के बीच होने वाले उस समझौते के बारे में जिसमें यह तय पाया था कि नेतिन्याहू की सरकर के बारे में " अच्छी- अच्छी" खबरें प्रकाशित किये जाने के बदले, इस्राईली सरकार, प्रतिस्पर्धी अखबार " इस्राईल ह्यूम" पर कुछ प्रतिबंध लगाएगी। 

तीसरे मामले में नेतिन्याहू पर जर्मनी से परमाणु पनडुब्बी खरीदने के लिए जोड़-तोड़ का आरोप है वैसे नेतिन्याहू इस्राईल के पहले नेता नहीं हैं जिन पर आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं वास्तव में आर्थिक व नैतिक भ्रष्टाचार, इस्राईली नेताओं में आम है। 

इस्राईल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री " एहुद ओलमर्ट" को सन 2014 में रिश्वत लेने के आरोप सज़ा सुनायी जा चुकी है। 

इस्राईल के एक अन्य  पूर्व प्रधानमंत्री " एरियल शेरून" को प्रधानमंत्री काल में भी उसने रिश्तत के एक मामले में पूछताछ हो चुकी है। 

भ्रष्टाचार के आरोप इस्राईली राष्ट्रपतियों पर भी लग चुके हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि बड़ी शक्तियों ने इस्लामी क्रांति को समाप्त करने के उद्देश्य से आठ वर्षीय युद्ध ईरानी राष्ट्र पर थोपा था लेकिन युवाओं के त्याग, ईमान, युक्ति, साहस और दूरदर्शिता के कारण यह युद्ध ईरानी राष्ट्र के पक्ष में रहा और इस्लामी क्रांति पहले से अधिक मज़बूत हुई।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार को युवाओं के एक समूह से मुलाक़ात में, पवित्र प्रतिरक्षा के काल को ईरान व इस्लामी क्रांति के इतिहास का एक स्वर्णिम व प्रकाशमान अध्याय बताया और कहा कि सम्मान, वैभव, सुरक्षा, स्वाधीनता, स्वतंत्रता और इस्लामी गणतंत्र ईरान व ईरानी राष्ट्र की आज की सुरक्षा, आठ वर्षीय पवित्र रक्षा के कारण है। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि इस्लामी क्रांति की सफलता ने पूरब व पश्चिम की शक्तियों का तख़्त हिला दिया, कहा कि आरंभिक बरसों में ही क्षेत्र और मुस्लिम राष्ट्रों में इस्लामी क्रांति की संस्कृति के प्रसार से वर्चस्ववादी शक्तियां अत्यधिक चिंतित हो गईं और उन्होंने किसी भी मूल्य पर इस क्रांति को समाप्त करने की कोशिश की और इसी लिए उन्होंने अत्याचारी और स्वार्थी व्यक्ति था, युद्ध शुरू करने और ईरान पर हमला करने के लिए उकसाया।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अमरीका व यूरोप विशेष कर ब्रिटेन, फ़्रान्स, जर्मनी और इसी तरह सोवियत संघ की ओर से सद्दाम शासन की व्यापक आर्थिक, सामरिक व गुप्तचर मदद की ओर इशारा करते हुए कहा कि युद्ध के दौरान फ़्रान्स ने अपने विकसित विमान और हेलीकाॅप्टर और जर्मनी ने औपचारिक रूप से और खुल कर रासायनिक पदार्थ सद्दाम को दिए और युद्ध को समाप्त हुए तीस साल गुज़रने के बावजूद अब भी बहुत से लोग उनके कुप्रभावों में ग्रस्त हैं जबकि बड़ी संख्या में लोग उन्हीं विषैले पदार्थों के कारण शहीद हो गए।

 

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि सद्दाम शासन के वैश्विक समर्थन के मुक़ाबले में इस्लामी गणतंत्र ईरान के पास जो एकमात्र चीज़ थी, वह ईमान वाला राष्ट्र और इमाम ख़ुमैनी जैसा सशक्त नेता था जिसके परिणाम स्वरूप दुनिया की शैतानी ताक़तों की सभी कोशिशें, विफल रहीं और ईरानी राष्ट्र पवित्र प्रतिरक्षा में सभी बड़ी शक्तियों पर विजयी हुआ।