
رضوی
इमामे मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम
अब्बासी शासक हारून बड़ा अत्याचारी एवं अहंकारी शासक था। वह स्वयं को समस्त चीज़ों और हर व्यक्ति से ऊपर समझता था।
वह विश्व के बड़े भूभाग पर शासन करता और अपनी सत्ता पर गर्व करता और कहता था" हे बादलों वर्षा करो तुम्हारी वर्षा का हर बूंद मेरे ही शासन में गिरेगी चाहे वह पूरब हो या पश्चिम।
एक दिन हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम को बाध्य करके हारून के महल में ले जाया गया। हारून ने इमाम से पूछा, दुनिया क्या है?
इमाम ने दुनिया से हारून के प्रेम और उसके भ्रष्टाचार को ध्यान में रखते हुए उसे सचेत करने के उद्देश्य से कहा" दुनिया भ्रष्टाचारियों की सराय है" उसके पश्चात आपने सूरये आराफ़ की १४६वीं आयत की तिलावत की जिसका अनुवाद है" वे लोग जो ज़मीन पर अकारण घमंड करते हैं हम शीघ्र ही उनकी निगाहों को अपनी निशानियों से मोड़ देंगे" इमाम और हारून के बीच वार्ता जारी रही। हारून ने, जो अपने आपको इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के साथ बहस में फंसा हुआ देखा देख रहा था, पूछा हमारे बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है? इमाम काज़िम अलैहिस्लाम ने पवित्र क़ुरआन की आयत को आधार बनाते हुए उसके उत्तर में कहा" तुम ऐसे हो कि ईश्वर कहता है कि क्या उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने ईश्वरीय विभूति का इंकार किया और अपनी जाति को तबाह व बर्बाद कर दिया" एक बार लोगों ने हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को ख़ेत में काम करते हुए देखा। कठिन मेहनत व परिश्रम के कारण आपके पावन शरीर से पसीना बह रहा था।
लोगों ने आपसे कहा क्यों इस कार्य को दूसरे को नहीं करने देते?
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम ने उनके उत्तर में कहा" कार्य व प्रयास ईश्वरीय दूतों एवं भले लोगों की जीवन शैली है"
कभी देखने में आता है कि कुछ लोग संसार की विभूतियों से लाभांवित होने या परलोक की तैयारी में सीमा से अधिक बढ़ जाते जाते हैं या सीमा से अधिक पीछे रह जाने का मार्ग अपनाते हैं।
कुछ लोग इस तरह दुनिया में लीन हो जाते हैं कि परलोक को भूल बैठते हैं और कुछ लोग परलोक के कारण दुनिया को भूल बैठते हैं।
परिणाम स्वरुप संसार की विभूतियों, योग्यताओं एवं संभावनाओं से सही लाभ नहीं उठाते हैं।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम कहते हैं" वह व्यक्ति हमसे नहीं है जो अपनी दुनिया को अपने धर्म के लिए या अपने धर्म को अपनी दुनिया के लिए छोड़ दे"
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की दृष्टि में लोक- परलोक एक दूसरे से संबंधित हैं।
धर्म, लोक व परलोक में मानव के कल्याण के मार्गों को दिखाता है। दुनिया धार्मिक आदेशों व शिक्षाओं के व्यवहारिक बनाने का स्थान है।
दुनिया का सीढ़ी के समान है जिसके माध्यम से लक्ष्यों तक पहुंच जा सकता है।
मनुष्यों को चाहिये कि वे अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन उत्पन्न करें ताकि अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को परिपूर्णता तक पहुंचायें।
इस आधार पर हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम लोगों से चाहते हैं कि वे लोक व परलोक के अपने मामलों में संतुलन स्थापित करें।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम अपनी एक वसीयत में धर्म में तत्वदर्शिता पर बल देते हुए कहते हैं"
ईश्वर के धर्म के बारे में ज्ञान व जानकारी प्राप्त करो क्योंकि ईश्वरीय आदेशों का समझना तत्वदर्शिता की कुंजी है और वह धर्म एवं दुनिया के उच्च स्थानों तक पहुंचने का कारण है"
इमाम की वसीयत में यह वास्तविकता दिखाई पड़ती है कि इस्लाम धर्म, मानव कल्याण को सुनिश्चित बनाता है इस शर्त के साथ कि उसे सही तरह से समझा जाये।
अतः आप, सदैव लोगों के हृदय में तत्वदर्शिता का दीप जलाने के प्रयास में रहे।
समाज की राजनीतिक स्थिति संकटग्रस्त होने के बावजूद आप लोगों विशेषकर विद्वानों के विचारों एवं विश्वासों के सुधार के प्रयास में रहते।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रयास इस बात का कारण बने कि ग़लत विचारों के प्रसार के दौरान इस्लाम धर्म की शिक्षाएं फेर- बदल से सुरक्षित रहीं।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस दिशा में बहुत कठिनाइयां सहन कीं। उन्होंने बहुत से शिष्यों का प्रशिक्षण किया।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की श्रेष्ठता व विशेषता के बारे में कहते हैं"
इसके बावजूद कि विभिन्न विषयों के बारे में मेरे पिता की सोच एवं विचार प्रसिद्ध थे फिर भी वे कभी-कभी अपने दासों से विचार - विमर्श करते हैं।
एक दिन एक व्यक्ति ने मेरे पिता से कहा क्या अपने सेवकों व दासों से विचार विमर्श कर लिया? तो उन्होंने उत्तर दिया ईश्वर शायद किसी समस्या का समाधान इन्हीं दासों की ज़बान
पर जारी कर दे" यह शैली समाज के विभिन्न वर्गों विशेषकर कमज़ोरों, वंचितों एवं ग़रीबों के मुक़ाबले में इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की विन्रमता की सूचक थी।
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम लोगों विशेषकर दरिद्र और निर्धन लोगों के प्रति बहुत दयालु एवं दानी थे।
जो भी आपके घर जाता, चाहे आध्यात्मिक आवश्यकता के लिए या भौतिक, आवश्यकता के लिए वह संतुष्ट व आश्वस्त होकर आपके घर से लौटता।
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम कहते थे कि प्रेम, जीवन को अच्छा बनाता है, संबंधों को मज़बूत करता है और हृदयों को आशावान बनाता है"
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम आत्मिक और व्यक्तिगत विशेषताओं की दृष्टि से बहुत ही महान व्यक्तित्व के स्वामी थे तथा एक शक्तिशाली चुंबक की भांति पवित्र हृदयों
अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे परंतु बुरे विचार रखने वाले और अत्याचारी, सदैव ही आपके वैभव तथा आध्यात्मिक आकर्षण से भयभीत थे।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम के उस कथन के चरितार्थ थे जिसमें आप कहते हैं" ईश्वर ने मोमिन अर्थात ईश्वर पर ईमान रखने वाले व्यक्ति
को तीन विशेषताएं प्रदान की हैं दुनिया में मान- सम्मान व प्रतिष्ठा, परलोक में सफलता व मुक्ति और अत्याचारियों के दिल में रोब।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ख़िलाफ़त और विलायत का ज़्यादा हक़दार मैं हूं।
आपने यह हदीस तो बार बार सुनी है, अलबत्ता इंसान जब हदीस को सुने तो ज़रूरी है कि उसके रुख़ को समझने की कोशिश करे, उसे इल्म होना चाहिए कि उसका रुख़ क्या है, किस चीज़ की ओर रुख़ है।
सुप्रीम लीडर ने फरमाया,आपने यह हदीस तो बार बार सुनी है, अलबत्ता इंसान जब हदीस को सुने तो ज़रूरी है कि उसके रुख़ को समझने की कोशिश करे, उसे इल्म होना चाहिए कि उसका रुख़ क्या है, किस चीज़ की ओर रुख़ है।
हारून हज के सफ़र पर जाता है जब वह मदीना पहुंचता है और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के रौज़े में दाख़िल होता है तो यह साबित करने के लिए कि उसकी ख़िलाफ़त की बुनियाद सही है, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को मुख़ातब करके कहता है,ऐ मेरे चचेरे भाई आप पर सलाम हो,
ज़ाहिर है कि चचेरे भाई की ख़िलाफ़त चचेरे भाई को मिलेगी, दूर के रिश्तेदारों को तो नहीं मिलेगी। यह बिलकुल स्वाभाविक सी बात है। बिलकुल साफ़ बात है चचेरा भाई क़रीबी होता है।
मुझे नहीं मालूम कि आप जानते हैं या नहीं कि बनी अब्बास का भी एक सिलसिला है बनी अली की तरह। हम कहते हैं कि मूसा इबने जाफ़र ने इमाम सादिक़ से हासिल किया,
उन्होंने इमाम बाक़िर से, उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन से, उन्होंने इमाम हुसैन से, उन्होंने इमाम हसन से और उन्होंने अली इब्ने अबी तालिब अलैहेमुस्सलाम से और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से। बनी अब्बास ने भी रिवायतों के लिए अपना एक सिलसिला तैयार कर लिया था।
कहते थे कि मंसूर ने अब्दुल्लाह सफ़्फ़ाह अबुल अब्बास से हासिल किया, उसने अपने भाई इब्राहीम इमाम से, उसने अपने वालिद मोहम्मद से और उसने अपने वालिद अली से और उसने अपने वालिद अब्दुल्लाह से और उसने अपने वालिद अब्बास से और अब्बास ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से! उन्होंने अपने लिए यह सिलसिला तैयार कर लिया था और वह ख़ुद को इमामत और ख़िलाफ़त का हक़दार ज़ाहिर करते थे।
हारून इसे साबित करने के लिए कहता हैः “सलाम हो आप पर ऐ मेरे चचेरे भाई इमाम मूसा इब्ने जाफ़र रौज़े में मौजूद हैं। आपने जैसे ही सुना कि हारून ने “सलाम हो आप पर ऐ मेरे चचेरे भाई” कहा है, आपने ऊंची आवाज़ में कहा, “सलाम हो आप पर ऐ वालिद” (बेहारुल अनवार, अल्लामा मोहम्मद बाक़िर मजलिसी, जिल्द-48, पेज 135, 136) सलाम हो आप पर ऐ वालिद! यानी आपने फ़ौरन हारून को मुंहतोड़ जवाब दिया कि तुम यह कहना चाहते हो कि पैग़म्बरे इस्लाम के चचेरे भाई हो इसलिए ख़िलाफ़त तुम्हारा हक़ है तो मैं पैग़म्बरे इस्लाम का फ़रज़ंद हूं।
अगर मानदंड यह है कि चचेरे भाई की ख़िलाफ़त क़रीबी रिश्तेदारी की वजह से चचेरे भाई को मिलती है तो फिर अपने वालिद की मीरास यानी ख़िलाफ़त और विलायत का ज़्यादा हक़दार मैं हूं।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम 25 रजब 183 हिजरी क़मरी को अब्बासी ख़लीफ़ा हारुन रशीद के हाथों शहीद किए गए थे जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम 25 रजब 183 हिजरी क़मरी को अब्बासी ख़लीफ़ा हारुन रशीद के हाथों शहीद किए गए थे जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।
अधिक उपासना और त्याग के कारण इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को अब्दुस्सालेह अर्थात नेक बंदे की उपाधि दी गयी। इसी प्रकार इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने क्रोध को पी जाते थे जिसके कारण उनकी एक प्रसिद्ध उपाधि काज़िम है।
इतिहास में बयान हुआ है कि राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के जीवन का समय बहुत कठिन था। उस समय दो अत्याचारी शासकों की सरकारें रहीं। एक अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर और दूसरा हारून रशीद था।
उस समय इन अत्याचारी शासकों ने लोगों की हत्या करके बहुत से जनआंदोलनों का दमन कर दिया था। दूसरी ओर इन्हीं अत्याचारी शासकों के काल में जिन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की गयी वहां से प्राप्त होने वाली धन- सम्पत्ति इन शासकों की शक्ति में वृद्धि का कारण बनी। इसी प्रकार उस समय समाज में बहुत से मतों की गतिविधियां ज़ोर पकड़ गयीं थीं इस प्रकार से कि धर्म और संस्कृति के रूप में हर रोज़ एक नई आस्था समाज में प्रविष्ट हो रही थी और उसे अब्बासी सरकारों का समर्थन प्राप्त था।
शेर, कला, धर्मशास्त्र, कथन और यहां तक कि तक़वा अर्थात ख़ुदाई भय का दुरुपयोग सरकारी पदाधिकारी करते थे। घुटन का जो वातावरण व्याप्त था उसके कारण बहुत से क्षेत्रों के लोग सीधे इमाम से संपर्क नहीं कर सकते थे। इस प्रकार की परिस्थिति में जो चीज़ इस्लाम को उसके सहीह रूप में सुरक्षित कर सकती थी वह इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का सहीह दिशा निर्देश और अनथक प्रयास था।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने पिता इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के मार्ग को जारी रखा। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस्लामी संस्कृति में ग़ैर इस्लामी चीज़ों के प्रवेश को रोकने तथा अपने अनुयायियों के सवालों के उत्तर देने को अपनी गतिविधियों का आधार बनाया।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम समाज की आवश्यकताओं से पूर्णरूप से अवगत थे इसलिए उन्होंने विभिन्न विषयों के बारे में शिष्यों की प्रशिक्षा की। सुन्नी मुसलमानों के प्रसिद्ध विद्वान और मोहद्दिस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके अहलेबैत (परिजनों) के कथनों के ज्ञाता इब्ने हज्र हैसमी अपनी किताब "सवाएक़ुल मुहर्रेक़ा" में लिखते हैं: इमाम मूसा काज़िम, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी हैं।
ज्ञान, परिपूर्णता और दूसरों की ग़लतियों की अनदेखी कर देने तथा बहुत अधिक धैर्य करने के कारण उनका नाम काज़िम रखा गया। इराक़ के लोग उनके घर को 'बाबुल हवाएज' के नाम से जानते थे क्योंकि उनके घर से लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती थी। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने समय के सबसे बड़े आबिद (उपासक) थे। उनके समय में कोई भी ज्ञान और दूसरों को क्षमा कर देने में उनके समान नहीं था।
भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना ख़ुदाई धर्म इस्लाम के दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अहलेबैत (परिजनों) ने इसके बारे में बहुत अधिक बातें की हैं। इस प्रकार से कि इन दो सिद्धांतों के बारे में इस्लाम के अलावा दूसरे आसमानी धर्मों में भी बहुत बल दिया गया है। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने भी अपने पावन जीवन में इन चीज़ों पर बहुत बल दिया है।
बिश्र बिन हारिस हाफ़ी की कहानी को इस संबंध में एक अनुपम आदर्श के रूप में देखा जा सकता है। बिश्र बिन हारिस हाफ़ी ने कुछ समय तक अपना जीवन ख़ुदा की अवज्ञा एवं पाप में बिताया। एक दिन इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम उस गली से गुज़रे जिसमें बिश्र बिन हारिस हाफ़ी का घर था।
जिस समय इमाम बिश्र के दरवाज़े के सामने पहुंचे संयोगवश उनके घर का द्वार खुला और उनकी एक दासी घर से बाहर निकली। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने उस दासी से पूछा: तुम्हारा मालिक आज़ाद है या ग़ुलाम? दासी ने उत्तर दिया आज़ाद है।
इमाम ने अपना सिर हिलाया और कहा: ऐसा ही है जैसे तुमने कहा। क्योंकि अगर वह दास होता तो बंदों की भांति रहता और अपने ख़ुदा के आदेशों का पालन करता। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने यह बातें कहीं और रास्ता चल दिये। दासी जब घर में आई तो बिश्र ने उससे देर से आने का कारण पूछा। उसने इमाम के साथ हुई बातचीत को बताया तो बिश्र नंगे पैर इमाम के पीछे दौड़े और उनसे कहा: ऐ मेरे आक़ा! जो कुछ आपने इस महिला से कहा एक बार फिर से बयान कर दीजिए। इमाम ने अपनी बात फिर दोहराई।
उस समय ब्रिश्र के हृदय पर ख़ुदाई प्रकाश चमका और उन्हें अपने किये पर पछतावा हुआ। उन्होंने इमाम का हाथ चूमा और अपने गालों को ज़मीन पर रख दिया इस स्थिति में कि वह रोकर कह रहे थे कि हां मैं बंदा हूं! हां मैं बंदा हूं!
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने के लिए बहुत ही अच्छी शैली अपनाई। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने एक छोटे से वाक्य से बिश्र का ध्यान उनकी ग़लती की ओर केन्द्रित किया और वह इस प्रकार बदल गये कि उन्होंने अपनी ग़लतियों व पापों से प्रायश्चित किया और अपना शेष जीवन सहीह तरह से व्यतीत किया।
अब्बासी ख़लीफ़ा अपनी लोकप्रियता और अपनी सरकार की वैधता तथा इसी प्रकार लोगों के दिलों में आध्यात्मिक प्रभाव के लिए स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उत्तराधिकारी और उनका वंशज बताते थे। अब्बासी ख़लीफ़ा, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चाचा जनाबे अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब के वंश से थे और इसका वे प्रचारिक लाभ उठाते और स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उत्तराधिकार बताते थे।
वे दावा करते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजन हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) के वंशज से हैं और हर इंसान का संबंध उसके पिता और दादा के वंश से होता है इसलिए वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के वंश नहीं हैं। इस प्रकार की बातें करके वास्तव में वे आम जनमत को दिग्भ्रमित करने के प्रयास में थे।
इसलिए इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने पवित्र क़ुरआन का सहारा लेकर उन लोगों का मुक़ाबला किया। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने हारून रशीद से जो शास्त्रार्थ किये हैं वह ख़िलाफ़त के बारे में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का स्थान समझने के लिए काफ़ी है।
एक दिन हारून रशीद ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से पूछा आप किस प्रकार दावा करते हैं कि आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) की संतान हैं जबकि आप अली की संतान हैं? इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने उसके उत्तर में पवित्र क़ुरआन के सूरए अनआम की आयत नंबर ८५ और ८६ की तिलावत की जिसमें अल्लाह फ़रमाता है: इब्राहीम की संतान में से दाऊद और सुलैमान और अय्यूब और यूसुफ़ और मूसा और हारून और ज़करिया और यहिया और ईसा हैं और हम अच्छे लोगों को इस प्रकार प्रतिदान देते हैं।"
उसके बाद इमाम ने फ़रमाया: जिन लोगों की गणना इब्राहीम की संतान में की गयी है उनमें एक ईसा हैं जो मां की तरफ़ से उनकी संतान में से हैं जबकि उनका कोई बाप नहीं था और केवल अपनी मां जनाबे मरियम की ओर से उनका रिश्ता पैग़म्बरों तक पहुंचता है। इस आधार पर हम भी अपनी मां जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम (स) की संतान हैं।
हारून रशीद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का तार्किक जवाब सुनकर चकित रह गया और उसने इस संबंध में इमाम से अधिक स्पष्टीकरण मांगा। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने मुबाहेला की घटना का उल्लेख किया जिसमें अल्लाह ने सूरए आले इमरान की ६१वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को आदेश दिया है कि जो भी आप से ईसा के बारे में बहस करें इसके बाद कि आपको उसके बारे में जानकारी प्राप्त हो जाये तो उनसे आप कह दीजिये कि आओ हम अपनी बेटों को लायें और तुम अपने बेटों को लाओ और हम अपनी स्त्रियों को लायें और तुम अपनी स्त्रियों को लाओ और हम अपने नफ़्सों (आत्मीय) लोगों को ले आयें और तुम अपने आत्मीय लोगों को ले आओ उसके बाद हम मुबाहेला (शास्त्रार्थ) करते हैं और झूठों पर अल्लाह की लानत (प्रकोप) व धिक्कार की प्रार्थना करते हैं।" इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बेटों से तात्पर्य हज़रत हसन और हुसैन तथा स्त्री से तात्पर्य हज़रत फ़ातिमा और अपने नफ़्स (आत्मीय) लोगों के रूप में हज़रत अली थे।” हारून रशीद यह जवाब सुनकर संतुष्ट हो गया और उसने इमाम की प्रशंसा की।
इंसान की मुक्ति व सफ़लता के लिए पवित्र कुरआन सबसे बड़ा ख़ुदाई उपहार है। इंसान को कमाल (परिपूर्णता) तक पहुंचने में इस आसमानी किताब की रचनात्मक भूमिका सब पर स्पष्ट है। पवित्र क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम (स) का ऐसा मोजिज़ा (चमत्कार) है जो क़यामत तक बाक़ी रहेगा और उसने अरब के भ्रष्ट समाज में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन उत्पन्न कर दिया। यह परिवर्तन इस प्रकार था कि सांस्कृतिक पहलु से उसने मानव समाज में प्राण फूंक दिया।
हदीसे सक़लैन नाम से प्रसिद्ध हदीस में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने पवित्र अहलेबैत (परिजनों) को क़ुरआन के बराबर बताया है और मुसलमानों को आह्वान किया है कि जब तक वे इन दोनों से जुड़े रहेंगे तब तक कदापि गुमराह नहीं होंगे और यह दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम लोगों को अल्लाह की इस किताब से अवगत कराने के लिए विशेष ध्यान देते थे। इमाम लोगों को आह्वान न केवल इस किताब की तिलावत के लिए करते थे बल्कि इस कार्य में स्वयं दूसरों से अग्रणी रहते थे।
मशहूर धर्मगुरू शेख़ मुफ़ीद ने अपनी एक किताब "इरशाद" में इस प्रकार लिखा है: इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने काल के सबसे बड़े धर्मशास्त्री, सबसे बड़े कुरआन के ज्ञाता और लोगों की अपेक्षा सबसे अच्छी ध्वनि में क़ुरआन की तिलावत करने वाले थे।”
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन पर जो विशेष ध्यान देते थे वह केवल व्यक्तिगत आयाम तक सीमित नहीं था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का एक महत्वपूर्ण कार्य पवित्र क़ुरआन की तफ़सीर (व्याख्या) करना था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम समाज के लोगों के ज्ञान का स्तर बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास करते थे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या में उन स्थानों पर विशेष ध्यान देते थे जहां पर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र अहलेबैत (परिजनों) के स्थान की ओर संकेत किया गया है।
उदाहरण स्वरूप सूरए रूम की १९ वीं आयत में अल्लाह कहता है: "हम ज़मीन को मुर्दा होने के बाद पुनः जीवित करेंगे।" इमाम से पूछा गया कि ज़मीन के ज़िन्दा करने से क्या तात्पर्य है? इमाम ने इसके उत्तर में फ़रमाया: ज़मीन का जीवित होना वर्षा से नहीं है बल्कि ख़ुदा ऐसे लोगों को चुनेगा जो न्याय को जीवित करेंगे और ज़मीन न्याय के कारण जीवित होगी और ज़मीन में ख़ुदाई क़ानून का लागू होना चालीस दिन वर्षा होने से अधिक लाभदायक है।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इस रिवायत में समाज में न्याय स्थापित होने को ज़मीन के जीवित होने से अधिक लाभदायक मानते हैं। वास्तव में पवित्र क़ुरआन की आयतों की इस प्रकार की व्याख्या इमामत के स्थान को बयान करने के लिए थी कि जो स्वयं इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का एक सांस्कृतिक कार्य था।
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम और बीबी शतीता
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने मे नेशापुर के शियो ने मौहम्मद बिन अली नेशापुरी नामी शख़्स कि जो अबुजाफर खुरासानी के नाम से मशहूर था, को कुछ शरई रकम और तोहफे साँतवे इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे मदीने पहुँचाने के लिऐ दी।
उन्होंने तीस हज़ार दीनार, पचास हज़ार दिरहम, कुछ लिबास और कुछ कपड़े दिये और साथ ही साथ एक कापी भी दी कि जिस पर सील लगी हुई थी और उसके हर पेज पर एक मसला लिखा हुआ था और उस से कहा था कि जब भी इमाम की खिदमत मे पहुँचो सवालो की कापी इमाम को दे देना और अगले दिन उस कापी को उनसे वापस ले लेना अगर इस कापी की सील नही टूटी तो खुद इस की सील को तोड़ लेना और देख कि इमाम ने बग़ैर सील तोड़े हमारे सवालो के जवाब दिये है या नही? अगर सील तोड़े बग़ैर इन सवालो के जवाब लिख दिये गऐ है तो समझ लेना कि यही इमामे बर हक़ हैं और हमारे माल को लेने के लायक़ है वरना हमारे माल को वापस पलटा लाना।
इस तरह खुरासान के शिया ये चाहते थे कि हक़ीकी इमाम को पहचाने और उन पर यक़ीन करे और इसके ज़रीऐ से इमामत का झूठा दावा करने वालो के फरेब और धोके से बचे और जिस वक्त नेशापुर के रहने वालो का ये नुमाइंदा मौहम्मद बिन अली नेशापुरी अपने सफर के लिऐ चलने लगा तो एक बुज़ुर्ग खातून कि जिनका नाम शतीता था और वो अपने ज़माने के नेक और पारसा लोगो से एक थी, मौहम्मद बिन अली नेशापुरी के पास आई एक दिरहम और एक कपड़े का टुकड़ा उसे दिया और कहाः ऐ अबुजाफर मेरे माल मे से ये मिक़दार हक़्क़े इमाम है इसे इमाम की खिदमत मे पहुचां दे।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने उनसे कहाः मुझे शर्म आती है कि इतने थोड़े से माल को इमाम को दूँ।
जनाबे शतीता ने उस से कहाः खुदा वंदे आलम किसी के हक़ से शरमाता नही है (यानी ये कि इमाम के हक़ को देना ज़रूरी है चाहे वो कम ही क्यूं न हो) बस यही माल मेरे ज़िम्मे है और चाहती हूँ कि इस हाल मे परवरदिगार से मुलाक़ात करूँ कि हक़्क़े इमाम मे से कुछ भी मेरी गर्दन पर न हो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जनाबे शतीता की वो ज़रा सी रकम ली और मदीने चला गया और मदीने पहुँच कर अब्दुल्लाह अफतह1 का इम्तेहान लेकर ये समझ गया कि अब्दुल्लाह अफतह इमामत के क़ाबिल नही है और नाउम्मीदी की हालत मे उसके घर से निकला उसके बाद एक बच्चे ने उसे इमाम काज़िम के घर की तरफ हिदायत की।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जब इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे पहुँचा तो इमाम (अ.स) ने उस से फरमाया कि ऐ अबुजाफर नाउम्मीद क्यो हो रहे हो?? मेरे पास आओ मैं वलीऐ खुदा और उसकी हुज्जत हुँ। मैने कल ही तुम्हारे सवालो के जवाब दे दिये है उन सवालो के मेरे पास लाओ और शतीता की दी हुई एक दिरहम को भी मुझे दो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैं इमाम काज़िम (अ.स) की बातो और आपकी बताई हुई सही निशानीयो से हैरान हो गया और उनके हुक्म पर अमल किया।
इमाम काज़िम (अ.स) ने शतीता के एक दिरहम और कपड़े के टुकड़े को ले लिया और फरमायाः बेशक अल्लाह हक़ से शरमाता नही है और ऐ अबुजाफर शतीता को मेरा सलाम कहना और ये पैसो की थैली कि इसमे चालिस दिरहम हैं, और ये कपड़े का टुकड़ा कि जो मेरे कफन का टुकड़ा है, को भी शतीता को दे देना और उस से कहना कि इस कपड़े को अपने कफन मे रख ले कि ये हमारे ही खेत की रूई से बना हुआ है और मेरी बहन ने इस कपड़े को बनाया है और साथ ही साथ शतीता से कहना कि जिस दिन ये चीज़े हासिल करोगी उसके बाद से उन्नीस दिन से ज़्यादा ज़िन्दा नही रहोगी। मेरे तोहफे के दिये हुऐ चालिस दिरहम मे से सोलह दिरहम खर्च कर लो और चौबीस दिरहम को सदक़े और अपने कफन दफन के लिऐ रख लेना।
फिर इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया कि उस से कहना कि उसकी नमाज़े जनाज़ा मैं खुद पढ़ाऊँगा।
और उसके बाद इमाम (अ.स) ने फरमाया कि बाक़ी माल को उनके मालिको को वापस दे देना और सवालो की कापी की सील को तोड़ कर देख कि मैंने उनके जवाबो को बग़ैर देखे दिया है या नही??
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने कापी की सील को देखा उसे हाथ भी नही लगाया गया था और सील तोड़ने के बाद मैंने देखा सब सवालो के जवाब दिये जा चुके है।
जिस वक्त मौहम्मद बिन अली नेशापुरी खुरासान पलटा तो ताज्जुब के आलम मे देखता है कि इमाम काज़िम (अ.स) ने जिन लोगो के माल वापस पलटाऐ है उन सब ने अब्दुल्लाह अफतह को इमाम मान लिया है लेकिन जनाबे शतीता अब भी अपने मज़हब पर बाक़ी है।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने इमाम काज़िम (अ.स) के सलाम को शतीता को पहुँचाया और वो कपड़ा और माल भी उसे दिया और जिस तरह इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया था शतीता उन्नीस दिन बाद इस दुनिया से रूखसत हो गई।
और जब जनाबे शतीता इंतेक़ाल कर गई तो इमाम (अ.स) ऊँट पर सवार हो कर नेशापुर आऐ और जनाबे शतीता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।
आज भी लोग इस मौहतरम खातून को बीबी शतीता के नाम से याद करते है और आपका मज़ारे मुक़द्दस नेशापुर (ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की ज़ियारत के लिऐ आते है।
- अब्दुल्लाह अफतह इमाम सादिक का एक बेटा था कि जिसने इमामत का दावा किया था।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अ.स की शहादत के मौके पर काज़मैन में ज़ायरीन का हुजूम
हज़रत इमाम मूसा बिन जाफर अ.स की शहादत के मौके पर काज़मैन शहर में अतबा ए अलवीया की तरफ से ज़ायरीन को सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं इन सेवाओं में ज़ायरीन के लिए खाना, पानी और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था शामिल है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , अतबा अलवीया के सेवक अपनी पूरी मेहनत और ऊर्जा के साथ इमाम मूसा बिन जाफर अ.स की शहादत के अवसर पर काज़मैन आने वाले ज़ायरीन की सेवा में लगे हुए हैं।
अतबा अलवीया की ओर से लगाए गए मोअक़िब की प्रबंधन समिति के प्रमुख, सलाम अल-जुबूरी ने कहा,अतबा अलवीया के सचिवालय के निर्देश पर मोअक़िब के प्रबंधन के लिए एक समिति बनाई गई है और सेवाकारी दलों के आने के साथ ही हमने ज़ायरीन को सेवाएँ प्रदान करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने आगे बताया,हमने हज़ारों खाने के पैकेट उपलब्ध कराए हैं जिनमें नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना शामिल है। इसके अलावा, काज़मैन में सेवा करने वाले सभी मोअक़िब को साफ़ पीने का पानी भी उपलब्ध कराया गया है।
सलाम अलजुबूरी ने यह भी बताया,मोअक़िब की सेवाओं में ज़ायरीन के लिए आरामगाह का प्रबंध, चिकित्सा सुविधाएँ, साथ ही धार्मिक और शरई मार्गदर्शन शामिल हैं इसके अतिरिक्त, इमाम अली अ.स के हरम के टेलीविज़न के माध्यम से विशेष प्रोग्राम और लाइव प्रसारण भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा,इस कार्यक्रम में 100 से अधिक सेवाकर्मी लगे हुए हैं और विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के लिए 20 से अधिक वाहन तैयार किए गए हैं। साथ ही ज़ायरीन की ज़रूरतों के लिए 2000 से अधिक सामान जैसे कालीन, कंबल और अन्य आवश्यक वस्तुएँ भी उपलब्ध कराई गई हैं।
सीरिया के शिया बहुल क्षेत्रों पर तहरीर अलशाम का हमला कई शहीद और घायल
सीरिया के हम्स प्रांत के शिया बहुल क्षेत्रों में तहरीर अलशाम नामक आतंकवादी समूह के हमलों में कम से कम 13 लोगों की शहादत हो गई और कई लोग घायल हो गए हैं।
सीरिया के हुम्स प्रांत के शिया बहुल क्षेत्रों में तहरीर अलशाम नामक आतंकवादी समूह के हमलों में कम से कम 13 लोग शहीद हो गए। सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, तहरीर अलशाम के विद्रोहियों ने पश्चिमी होम्स के ग्रामीण इलाकों में एक बड़े सैन्य अभियान को अंजाम दिया जिसमें कई गांवों में हिंसा की घटनाएं हुईं।
एक रिपोर्ट्स के अनुसार, अलग़र्बिया और अलहमाम गांवों में चार नागरिकों को अवैध रूप से फांसी दे दी गई जबकि दस लोग घायल हुए और पांच को गिरफ्तार कर लिया गया इसी तरह, अलकनिसा गांव में पांच लोगों को सुरक्षा बलों ने हिरासत में ले लिया।
तारीन गांव में तीन लोग गोली लगने से घायल हुए जबकि तीन अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया। कफरनान गांव में 27 लोगों को हिरासत में लिया गया और कई लोगों के घायल होने की भी खबरें मिली हैं।
इसके अलावा तहरीर अलशाम के सशस्त्र लोगों ने स्थानीय आबादी के साथ अमानवीय व्यवहार किया जिसमें लोगों को जानवरों से बदतर व्यवहार किया
SOHR के अनुसार, अज्ञात सशस्त्र व्यक्तियों ने होम्स के उत्तरी ग्रामीण इलाके में तसनीन गांव में एक व्यक्ति के घर पर हमला करके उसे बेरहमी से मार डाला इसी तरह अल-शिनिया गांव में चार शव बरामद हुए हैं।
एक अन्य घटना में चार लोगों को उनके धार्मिक नेताओं की तस्वीरें हटाने से इनकार करने पर मार डाला गया जबकि दो अन्य घायल हो गए। मंगलवार को अलग़ोर अलग़र्बिया गांव में जो अधिकतर शिया आबादी वाला है कम से कम छह लोग तहरीर अलशाम के सशस्त्र विद्रोहियों के हमले में शहीद हो गए।
सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की शुरुआत से अब तक सीरिया के विभिन्न प्रांतों में 83 ऑपरेशनों को रिकॉर्ड किया गया है जिनमें 166 लोगों को धार्मिक अल्पसंख्यक होने के कारण शहीद किया गया जिनमें 5 महिलाएं भी शामिल हैं।
यह घटनाएं सीरिया में जारी हिंसा और मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की एक दुखद तस्वीर प्रस्तुत करती हैं।
यह हुसैन मज़लूम का माल है, अगर इसे खाओगे तो नष्ट हो जाओगेः
जो छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के माल को हड़प रहे हैं। हम उनसे न तो कोई गुज़ारिश करेंगे और न ही कोई दरख्वास्त करेंगे, हम उन्हें बस एक नसीहत दे रहे हैं: "होशियार हो जाओ! यह हुसैन मज़लूम का माल है, अगर तुम इसे खाओगे तो तुम नष्ट हो जाओगे।
24 जनवरी 2025 को शाहि आसफ़ी मस्जिद में जुमे की नमाज़ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी, प्रिंसिपल हौज़ा इल्मिया हज़रत गुफ़रानमाब (र) की इमामत में अदा की गई।
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने अमीरुल मोमिनीन अलीहिस्सलाम के ख़ुत्बा-ए-गदीर का ज़िक्र करते हुए फरमाया: "जो शख्स गदीर के दिन बिना किसी मांग के अपने भाई की मदद करता है, या दिल से अपनी इच्छा के साथ अपने भाई के साथ भलाई करता है, या उसे कर्ज़ देता है, तो मौला के कलाम की रौशनी में उसे वही सवाब मिलेगा जैसा उस शख्स को मिलेगा जिसने गदीर के दिन रोज़ा रखा हो।"
मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने क़ुरान की रौशनी में कर्ज़ की अहमियत को बयान करते हुए फरमाया: "जो भी अल्लाह के लिए उसके किसी बंदे को कर्ज़ देगा, तो अल्लाह उसके माल में इज़ाफ़ा करेगा और उसे इज्ज़त से जीविका अता करेगा।"
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इस हफ्ते की पांच अहम मुनासबतो का ज़िक्र करते हुए फरमाया: 24 रजब फ़तह-ए-ख़ैबर, 25 रजब यौम-ए-शहादत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, 26 रजब यौम-ए-मोहसिन इस्लाम हज़रत अबू तालिब अलीहिस्सलाम, 27 रजब यौम-ए-बेसत और 28 रजब आगाज़-ए-सफ़र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हैं।
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने बेसत का ज़िक्र करते हुए फरमाया: "रसूलुल्लाह (स) उस वक्त भी नबी थे जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पानी और मिट्टी के बीच थे, और 27 रजब को पहली वही नाज़िल हुई। 27 रजब के खास आमाल हैं, इस दिन रसूलुल्लाह (स) और अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत पढ़ें।"
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने फरमाया: "बेसत की हिफ़ाज़त इमामत से है। फ़तह-ए-ख़ैबर में अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की शजाअत और इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की क़ैदी, मज़लूमियत और शहादत इसी सिलसिले की कड़ी हैं।"
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने आख़िर में फरमाया: "इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मक़ाम और मर्तबा परवरदिगार की बारगाह में बहुत ऊँचा है, बहुत अज़ीम है। हमने यह इतिहास में देखा कि जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से टकराया, जिसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का माल खाने की कोशिश की, वह नष्ट और बरबाद हो गया। दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, बस पास के इतिहास में देख लीजिए, सद्दाम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हरम को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की, आज उसका क्या हाल हुआ? वह नष्ट और बर्बाद हो गया। हो सकता है कुछ लोगों के दिल में हो कि जो छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के माल को हड़प रहे हैं। हम उनसे न तो कोई गुज़ारिश करेंगे और न ही कोई दरख्वास्त करेंगे, हम उन्हें बस एक नसीहत दे रहे हैं: "होशियार हो जाओ! यह हुसैन मज़लूम का माल है, अगर तुम इसे खाओगे तो तुम नष्ट हो जाओगे।"
पवित्र कुरान हमें अपमान से बाहर निकाल कर सम्मान प्रदान करता है
/डॉ. मसूद पिज़िश्कीयान ने कहा: यदि हम इस्लाम और शिया संप्रदाय को जीवन के एक तरीके और सम्मान प्राप्त करने के साधन के रूप में दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं, तो हमें कुरान के आदेशों और इमामों के जीवन का पालन करना चाहिए।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिज़िश्कीयान ने अपनी तीसरी प्रांतीय यात्रा के दौरान खुज़स्तान प्रांत के बुद्धिजीवियों और प्रमुख हस्तियों के साथ एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा: "यह कुरान ही है जिसने हमें अपमान से बाहर निकाल कर सम्मान दिया है।"
उन्होंने कहा: पवित्र कुरान सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं बल्कि अमल के लिए है। मासूमीन (अ) ने भी फ़रमाया है, "हमारा शिया हमारे लिए श्रृंगार का स्रोत होना चाहिए।"
डॉ. मसूद पिज़िश्कीयान ने कहा: ज्ञान, ऊर्जा और रचनात्मकता मुफ्त में नहीं मिलती।
उन्होंने आगे कहा: हमें उस बाज की तरह होना चाहिए जो दुनिया पर अपनी नजर रखता है, न कि उस कीड़े की तरह जो यह भी नहीं देख सकता कि उसके सामने क्या है। जब हम यह स्वीकार कर लेंगे और यह विश्वास विकसित कर लेंगे कि हमें दूसरों से पीछे नहीं रहना चाहिए या उनसे कमतर नहीं होना चाहिए, तब हम आगे बढ़ने का रास्ता खोज लेंगे या अपना स्वयं का मार्ग बना लेंगे।
ईरानी राष्ट्रपति ने कहा: दुश्मन सोचता है कि वह विभिन्न प्रतिबंधों और घेराबंदी के माध्यम से हमें घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है, हालांकि यह उसकी गलती है। लेकिन हम दुनिया से झगड़ने के बजाय शांति और सुकून से रहना चाहते हैं। हमें पैगम्बर मुहम्मद (स) के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए तथा समस्याओं, मतभेदों और विवादों को समाप्त कर एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए। यदि हम इस प्रकार कार्य करें तो वर्तमान समस्याओं के एक नहीं बल्कि सैकड़ों समाधान हैं।
तीन ऐसे इमाम जिनके पार्थिव शरीर का उनकी शहादत के बाद अपमान किया गया
आयतुल्लाह सईदी ने जुमे की नमाज़ के अपने ख़ुतबे में इमाम मूसा काज़िम (अ) की शहादत का ज़िक्र करते हुए कहा: तीन इमामों के पवित्र शरीरों को उनकी शहादत के बाद अपमान का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक हज़रत इमाम मूसा इब्न जाफर' थे। आपके पार्थिव शरीर को शहादत के बाद जेल से बाहर निकाला गया और जंजीरों से बांधकर बिना ताबूत के तख्त पर ले जाया गया।
आयतुल्लाह सईदी ने जुमे की नमाज़ के अपने ख़ुतबे में इमाम मूसा काज़िम (अ) की शहादत का ज़िक्र करते हुए कहा: तीन इमामों के पवित्र शरीरों को उनकी शहादत के बाद अपमान का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक हज़रत इमाम मूसा इब्न जाफर' थे। आपके पार्थिव शरीर को शहादत के बाद जेल से बाहर निकाला गया और जंजीरों से बांधकर बिना ताबूत के तख्त पर ले जाया गया और अहल-ए-बैत (अ) मे सो कोई भी आपकी शव यात्रा मे मौजूद नहीं था। इमाम हसन मुजतबा (अ) और इमाम हुसैन (अ) भी उन इमामों में शामिल हैं जिनके शवों को उनकी शहादत के बाद अपमान का सामना करना पड़ा।
इमाम जुमा ने अल्लाह के रसूल (स) के मिशन का उल्लेख करते हुए कहा: अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मिशन के महान आशीर्वाद के बारे में कहा: "वास्तव में, अल्लाह ने विश्वासियों पर अनुग्रह किया है, जब उसने उनके बीच उनके ही बीच से एक रसूल भेजा अल्लाह ने ईमान वालों पर बड़ा उपकार किया, जब उसने उनके पास उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उनके सामने अपनी आयतें पढ़कर सुनाता, उन्हें पवित्र करता और उन्हें किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा देता इस आयत में अल्लाह तआला ने मिशन का उद्देश्य आत्माओं की शुद्धि बताया है। अर्थात् मिशन का एक बाह्य पहलू व्यवस्था और सरकार की स्थापना करना है, जबकि इसका एक आंतरिक पहलू लोगों का शुद्धिकरण भी है; क्योंकि पैगम्बरों का मार्गदर्शन केवल शुद्ध आत्माओं पर ही प्रभाव डालता है।
पहले खुत्बे में आयतुल्लाह सईदी ने तकवा के प्रभावों में पश्चाताप और क्षमा मांगने के महत्व को समझाते हुए कहा: "मुत्तक़ी लोगों की विशेषता यह है कि पश्चाताप और क्षमा मांगना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।" अल्लाह तआला ने इस बारे में कहा: "कहो: ऐ मेरे बन्दों, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किया है, अल्लाह की रहमत से निराश न हो। निस्संदेह अल्लाह सभी पापों को क्षमा कर देता है। निस्संदेह वह क्षमाशील, दयावान है।
सूर ए तौबा पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा: अल्लाह तआला सूर ए तौबा की आयत 112 में कहता है: "जो लोग पश्चाताप करते हैं, जो पूजा करते हैं, जो प्रशंसा करते हैं, जो यात्रा करते हैं, जो झुकते हैं, जो खुद को सजदा करते हैं, जो भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं और जो अल्लाह की सीमाओं का पालन करते हैं। और ईमान वालों को शुभ सूचना दे दो। (वे ईमानवाले) वे लोग हैं जो तौबा करते हैं, इबादत करते हैं, तारीफ़ करते हैं, रोज़ा रखते हैं, रुकू करते हैं, सजदा करते हैं, भलाई का हुक्म देते हैं, बुराई से रोकते हैं और अल्लाह की सीमाओं की रक्षा करते हैं। और ईमानवालों को (अल्लाह की दयालुता की) शुभ सूचना दे दो।
जेनिन कैंप की ताज़ा घटनाएं
इज़राइली सेना के लगातार दूसरे दिन जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर स्थित जेनिन शहर और कैंप पर जारी हमलों में 12 फिलिस्तीनी शहीद हो गए और 100 से अधिक घायल हो गए।
ज़ायोनी सैनिकों ने मंगलवार की सुबह और ग़ज़ा में युद्धविराम के बाद, जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से इस क्षेत्र के उत्तर में स्थित जेनिन पर बड़े पैमाने पर हमला शुरू कर दिये, और ये बर्बर हमले अभी तक जारी हैं।
जेनिन शहर पर ज़ायोनी शासन के हमले में शहर के सरकारी अस्पताल का बुनियादी ढांचा पूरी तरह तबाह हो गया।
फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने गुरुवार सुबह बताया कि प्रतिरोधकर्ताओं और फ़िलिस्तीनी युवाओं ने जेनिन शहर पर ज़ायोनी सैनिकों के हमलों का डटकर मुक़ाबला किया।
दूसरी ओर फ़िलिस्तीन के जिहादे इस्लामी आंदोलन की सैन्य शाखा "सराया अल-कुद्स" से संबद्ध जेनिन बटालियन ने इज़राइली सैनिकों का डटकर मुक़ाबला किया और उसे भारी नुक़सान पहुंचाया।
जेनिन बटालियन ने घोषणा की कि उसने अल-जलबूनी इलाक़े में ज़ायोनी सेना के एक सैन्य वाहन को "सिज्जील" गाइडेड बम से निशाना बनाया जिसमें कई सैनिक घायल हो गये।
फ़िलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं द्वारा जेनिन कैंप में दो बड़े विस्फोट किए। इसके अलावा, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं ने इज़राइली सैन्य वाहनों के रास्ते में एक बम विस्फोट भी किया।
ज़ायोनी सैनिकों ने वेस्ट बैंक के गांवों और क़स्बों पर छापे के दौरान कई फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर लिया।
इज़राइली सेना ने रामल्लाह के उत्तर में स्थित "अल-मज़रआ" गांव में एक फ़िलिस्तीनी के घर को एक सैन्य बैरक में बदल दिया और इस गांव पर छापे के दौरान आठ फ़िलिस्तीनियों को गिरफ्तार कर लिया।
जेनिन के गवर्नर कमाल अबुलरब्ब के अनुसार, ज़ायोनी शासन जेनिन को फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध का एक नया केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
जेनिन के गवर्नर ने वेस्ट बैंक में ज़ायोनी शासन के सैनिकों की बड़े पैमाने पर तैनाती का उल्लेख करते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन जेनिन प्रांत को एक छोटे और खंडहर बन चुके ग़ज़ा में बदलने की कोशिश कर रहा है।
जेनिन पर ज़ायोनी सेना के हमलों के बाद फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ता गुट, क्षेत्रीय देशों और दुनिया से कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
वेस्ट बैंक में इज़राइल के अपराधों के जवाब में फ़िलिस्तीनी आंदोलनों हमास, जेहादे इस्लामी और नेशनल फ़्रंट फ़ॉर द लिबरेशन ऑफ़ फ़िलिस्तीन ने इन अपराधों का मुकाबला करने के लिए एक सामान्य लामबंदी का आह्वान किया है।
हमास आंदोलन की सैन्य शाखा शहीद इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम बटालियन ने भी वेस्ट बैंक में अपने दो मुजाहेदीन की शहादत की सूचना दी और ज़ोर दिया कि वे ज़ायोनियों का जीना हराम कर देंगे।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन ने भी ज़ायोनी शासन को चेतावनी दी कि अगर जेनिन में आप्रेशन जारी रहा, तो वे अपने मिसाइल और ड्रोन हमले फिर से शुरू कर देंगे।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफक़त अली ख़ान ने जेनिन सहित वेस्ट बैंक के विभिन्न क्षेत्रों पर ज़ायोनी सैनिकों के हालिया हमले की निंदा की और चेतावनी दी कि इज़राइल के निरंतर हमलों से शांति, स्थिरता और ग़ज़ा युद्धविराम को ख़तरा होगा।
शफ़कत अली ख़ान ने कहा कि दुनिया को इज़राइल को उसके अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए क्योंकि फ़िलिस्तीनी जनता को पिछले सोलह महीनों में सबसे गंभीर आक्रमण और नरसंहार का सामना करना पड़ा है और अब ग़ज़ा में युद्धविराम के सही कार्यान्वयन का समय आ गया है।
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार सुबह जेनिन शहर पर ज़ायोनी सैनिकों के हमलों की निंदा की और एलान किया कि सऊदी अरब एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इज़राइल द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों व समझौतों के उल्लंघन को रोकने का ज़िम्मेदार बनाने की अपील करता है।
फ़्रांस के विदेशमंत्री "जॉन-नोएल बारू" ने जेनिन शहर पर ज़ायोनी सैनिकों के हमले पर चिंता व्यक्त करते हुए इन हमलों को रोकने की मांग की है।