
رضوی
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के मौके पर शोक में डूबा ईरान
आज पूरे ईरान में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का ग़म मनाया जा रहा है जगह जगह मजलिस और जुलूस निकाले जा रहे हैं।
ईरान में आज इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का शोक मनाया जा रहा है।
आज 4 सितंबर बुधवार को पैग़म्बरे इस्लाम स.ल. के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर पूरे ईरान में शोक सभाएं आयोजित की जा रही हैं और जूलूस निकाले जा रहे हैं।
दुनिया भर में और ख़ास तौर पर ईरान में शिया मुसलमान अपने आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा अ.स. की शहादत की बरसी पर शोक और ग़म मना रहे हैं।
उधर ख़ुरासाने रज़वी प्रांत के गवर्नर ने कहा है कि 1 सितम्बर से अब तक 26 लाख 15 तीर्थयात्री और श्रद्धालु पवित्र नगर मशहद पहुंच चुके हैं।
ख़बरों में बताया गया है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 10 हज़ार से अधिक पाकिस्तानी तीर्थयात्री ज़मीनी रास्ते से पवित्र नगर मशहद पहुंच चुके हैं जबकि सैकड़ों भारतीय श्रद्धालु भी मशहद में मौजूद हैं।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब
आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा मशहद के चारों तरफ़ दूर दूर की बस्तियों, गावों और शहरों से श्रद्धालु पैदल चलकर मशहद पहुंचे जबकि दुनया के दर्जनों देशों से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मशहद में नज़र आई।
पैग़म्बरे इस्लाम के वंशज और शिया मसलक के मानने वालों के आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर शनिवार को पूरा ईरान शोक में डूबा रहा।
आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा मशहद के चारों तरफ़ दूर दूर की बस्तियों, गावों और शहरों से श्रद्धालु पैदल चलकर मशहद पहुंचे जबकि दुनया के दर्जनों देशों से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मशहद में नज़र आई।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पैग़म्बरे आज़म में लाखों लोगों का मजमा नज़र आया और सबने बड़ी श्रद्धा से इमाम रज़ा का शहादत दिवस मनाया।
इस मौक़े पर सारे ही लोग शोकाकुल थे मगर जिस एकता व समरसता का प्रदर्शन किया गया वो अपने आप में बहुत बड़ा संदेश है।
कल के दिन मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के हरम में कई पारम्परिक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें श्रद्धालुओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर पवित्र नगर क़ुम में भी श्रद्धालुओं ने भव्य कार्यक्रम आयोजित किया क़ुम में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत मासूमा का रौज़ा है श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या ने क़ुम में हज़रत मासूमा के रौज़े में पहुंच कर ताज़ियत संवेदना पेश करने के कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
सक़ीफ़ा बनी सईदा" के फ़ितने ने अहले-बैत (अ) की शहादतों और उत्पीड़न की नींव रखी
ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत सकीफ़ा बानी सईदा के परिणामस्वरूप हुई जो नाजायज़ घटना को दर्शाती है। यह एक कड़वी और अप्रिय दुर्घटना थी जो पवित्र पैगंबर (स) की मृत्यु के बाद इस्लाम की उम्मत में घटी और इसने उम्मत को इमामत के रास्ते से भटका दिया।
ईरान के खुरासान-रिज़वी प्रांत मे वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने पवित्र पैगम्बर (स) ने सफ़र महीने के आखिरी दिनों में महदिया मशहद में आयोजित एक मजलिसे अज़ा को संबोधित किया और कहा: आज वह दिन है अहले-बैत (अ) के सभी कष्टों और उत्पीड़न की शुरुआत।
उन्होंने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के दिन, कुछ तथाकथित मुसलमानों की ओर से एक बड़ा फितना हुआ। जिसने उनके अहले-बैत (अ) की तमाम शहादतों और ज़ुल्मों की बुनियाद रखी और यह फ़ितना "सक़ीफ़ा बानी सईदा" था।
आयतुल्लाह अलम उल-हुदा ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के उत्पीड़न और इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के साथ पैगंबर (स) के स्वर्गवास के दिन से जुड़ी हुई है। तकरान इस तथ्य का वर्णन करते हैं कि स्वर्गवास के दिन जो हुआ, उसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति और उदाहरण इमाम हसन मुजतबा (अ) के जीवन और शहादत में देखा जा सकता है।
उन्होंने कहा: इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत सकीफ़ा बानी सईदा के परिणामस्वरूप हुई जो गैर-शरिया घटना को दर्शाती है। यह एक कड़वी और अप्रिय दुर्घटना थी जो पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद इस्लाम की उम्मत में घटी और इसने उम्मत को इमामत के रास्ते से भटका दिया।
युद्ध शुरू होने से इज़राइल ने 98 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अपहरण कर लिया
फ़िलिस्तीनी प्रिज़नर्स सोसाइटी ने कहा है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से इज़रायली सेना ने 98 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अपहरण कर लिया है, जिनमें से 52 पत्रकार इज़रायली जेलों में कैद हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायली हमलों में 116 पत्रकार मारे गए हैं।
फ़िलिस्तीनी कैदी समूह ने कहा है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से इज़रायली सेना ने 98 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अपहरण कर लिया है, जिनमें से 52 पत्रकार अभी भी इज़रायली जेलों में कैद हैं। फिलिस्तीनी प्रिज़नर्स सोसाइटी ने अपने बयान में कहा कि "हिरासत में लिए गए कैदियों में से 15 प्रशासनिक जेलों में हैं, जिनमें 6 महिला पत्रकार और गाजा के लगभग 17 पत्रकार शामिल हैं।"
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इज़राइल की प्रशासनिक हिरासत नीति के अनुसार, इजरायली अधिकारियों को फिलिस्तीनी कैदियों की हिरासत को बिना किसी आरोप या अभियोजन के बढ़ाने का अधिकार है। फिलिस्तीनी प्रिज़नर्स सोसाइटी ने अपने बयान में बताया है कि गाजा में हिरासत में लिए गए पत्रकारों में निदाल अल-वाहदी और हाशिम अब्दुल वहीद शामिल हैं, जिन्हें जबरन गायब कर दिया गया, जबकि उनकी स्थिति के बारे में कोई नहीं जानता।
पत्रकारों की सुरक्षा हेतु समिति की रिपोर्ट
पत्रकारों की सुरक्षा करने वाली समिति ने हाल ही में कहा है कि इज़राइल ने 7 अक्टूबर, 2023 से अब तक 116 पत्रकारों की हत्या कर दी है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2 सितंबर, 2024 को सीपीजे की प्रारंभिक जांच से पता चला कि गाजा में इजरायली युद्ध के परिणामस्वरूप मरने वाले 41,000 फिलिस्तीनियों में 116 पत्रकार शामिल थे। सीपीजे ने 1992 में पत्रकारों की मौत पर डेटा इकट्ठा करना शुरू किया। समिति के अनुसार, गाजा में बिताया गया समय पत्रकारों के लिए सबसे खराब समय था।
सीपीजे ने कहा कि वह न्यायेतर हत्याओं के 130 मामलों की जांच कर रहा है। इजरायल ने गाजा पट्टी से सैकड़ों फिलिस्तीनियों को हिरासत में लिया है, लेकिन इजरायली अधिकारियों ने हिरासत में लिए गए फिलिस्तीनियों की वास्तविक संख्या का खुलासा नहीं किया है।
मोमिन को कैसा होना चाहिये? इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कोई भी बंदा ईमान की हक़ीक़त के शिखर पर नहीं पहुंच सकता मगर यह कि उसमें तीन विशेषतायें हों। धर्म की पहचान, जिन्दगी में सही कार्यक्रम बनाना और जीवन की कठिनाइयों व सख्तियों पर धैर्य करना।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून के नाम जो लिखा था उसमें फ़रमाया है कि अल्लाह के दोस्तों के साथ दोस्ती वाजिब है, इसी प्रकार अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी रखना और बेज़ारी करना वाजिब है।
हज़रत अली बिन मूसा अर्रज़ा अलैहिस्सलाम सातवें इमाम, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बेटे हैं और वह इस्ना अश्री शियों के आठवें इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हैं और उनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम की सिफारिशें हैं।
20 वर्षों तक इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत थी। जिस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत थी उस वक्त हारून रशीद, अमीन और मामून अब्बासी शासकों का शासन था। सन् 200 हिजरी क़मरी में मामून ने इमाम को मदीना से ईरान के ख़ुरासान प्रांत के मर्व शहर आने पर मजबूर किया। मर्व उस समय अब्बासी ख़लीफ़ाओं की सरकार का केन्द्र था।
मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को उत्तराधिकारी के पद को क़बूल करने पर बाध्य किया और अंततः उसने 203 हिजरी क़मरी में इमाम को ज़हर देकर शहीद करवा दिया। उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को जिस जगह पर दफ्न किया गया वह जगह "मशहदुर्रज़ा" के नाम से मशहूर हो गयी और आज दुनिया के लाखों शिया और ग़ैर शिया पूरे साल उनकी पावन समाधि की ज़ियारत के लिए आते रहते हैं।
यहां पर हम मोमिन की विशेषताओं के बारे में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की कुछ हदीसों को बयान कर रहे हैं।
हक़ीक़ते ईमान के शिखर पर पहुंचने का रास्ता
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कोई भी बंदा ईमान की हक़ीक़त के शिखर पर नहीं पहुंच सकता मगर यह कि उसमें तीन विशेषतायें हों। धर्म की पहचान, जिन्दगी में सही कार्यक्रम बनाना और जीवन की कठिनाइयों व सख्तियों पर धैर्य करना। (तोहफ़ुल उक़ूल)
ईमान के पहलु
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ईमान के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं "दिल से पहचान व क़बूल करना, ज़बान से स्वीकार करना और शरीर के अंगों से अमल करना। (तोहफ़ुल उक़ूल)
क्रोध और ख़ुशी की हालत में मोमिन का व्यवहार
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि मोमिन जब ग़ुस्सा करता है तो उसका ग़ुस्सा उसे हक़ से बाहर नहीं करता है और जब राज़ी व ख़ुश होता है तो उसकी ख़ुशी उसे बातिल व ग़लत चीज़ों में दाख़िल नहीं करती है और जब ताक़त व क़ुदरत पैदा करता है तो अपने हक़ से अधिक नहीं लेता है। (बेहारुल अन्वार)
अल्लाह के दोस्तों के साथ दोस्ती और अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी व बेज़ारी
इमाम रज़ा अलैहिस्लाम इरशाद फ़रमाते हैं कि अल्लाह के दोस्तों से दोस्ती करना वाजिब और इसी तरह उसके दुश्मनों और सरगनाओं से दुश्मनी और बराअत व बेज़ारी वाजिब है। (वसाएलुश्शिया)
अल्लाह के बेहतरीन बंदे
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से अल्लाह के नेक बंदों के बारे में सवाल किया गया तो इमाम ने फ़रमाया अल्लाह के नेक बंदे जब नेक काम करते हैं तो प्रसन्न होते हैं, जब ग़लत काम व गुनाह करते हैं तो इस्तेग़फ़ार करते हैं, जब उन्हें कोई चीज़ दी जाती है वे उसका शुक्र अदा करते हैं और जब किसी मुसीबत में गिरफ्तार होते हैं तो धैर्य करते हैं और जब क्रोधित होते हैं तो माफ़ और नज़रअंदाज़ कर देते हैं। (मुसनद अलइमाम रज़ा अलैहिस्सलाम)
लोगों का शुक्रिया अदा करना अल्लाह का शुक्र है
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि जो लोगों का शुक्रिया अदा नहीं करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नहीं करता। (उयूनो अख़बार्रिज़ा अलैहिस्सलाम)
दुनिया से हलाल लाभ उठाना
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि दुनिया से लाभ उठाओ। इसलिए कि हलाल की हद तक दिल की मांगों को पूरा करो, जहां तक मुरव्वत ख़त्म न हो और उसमें फ़ुज़ूलख़र्ची न हो। इस तरीक़े से धार्मिक कार्यों में मदद लो। (फ़िक़्हुर्रज़ा)
बाप के सामने विन्रम रहना
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रताते हैं कि तुम पर बाप की इताअत और उसके साथ नेकी करना वाजिब है, उससे नम्रता से और झुक कर पेश आओ, इसी प्रकार बाप का सम्मान करो और उसकी मौजूदगी में आवाज़ नीची रखो। (फ़ेक़हुर्ररज़ा अलैहिस्सलाम)
बक़ीअ में एक दिन एक खूबसूरत दरगाह जरूर बनेगी, मौलाना असलम रिज़वी
अल-बक़ीअ संगठन के आध्यात्मिक व्यक्ति मौलाना सैयद मेहबूब महदी आब्दी नजफ़ी ने इमाम हसन (अ) की शहादत पर इस्लामी दुनिया के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और कहा कि जिस तरह इमाम हुसैन (अ) पैगम्बरों के वारिस हैं, इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी पैगम्बरों के वारिस हैं।
इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के संबंध में क़ुरआन के महान व्याख्याता मौलाना सैयद महबूब महदी आब्दी नजफ़ी की अध्यक्षता में मुंबई में एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया 'एएन, अल-बक़ीअ संगठन शिकागो, अमेरिका की ओर से ज़ूम के माध्यम से जिसमें विभिन्न देशों के विद्वानों ने जन्नत अल-बक़ीअ और इमाम हसन (अ) के उत्पीड़न का वर्णन किया।
अपने उद्घाटन और अध्यक्षीय भाषण में, अल-बक़ीअ संगठन के आध्यात्मिक नेता मौलाना सैयद मेहबूब महदी आब्दी नजफ़ी ने इमाम हसन (अ) की शहादत पर इस्लामी दुनिया के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और कहा कि जिस तरह इमाम हुसैन ( अ) पैगंबरों के उत्तराधिकारी हैं, उसीतरह इमाम हसन (अ) भी पैगंबरों के उत्तराधिकारी हैं, एसएनएन चैनल ने बक़ीअ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया है फायदा यह हुआ कि आज यह आंदोलन घर-घर तक पहुंच गया है। पूरी दुनिया में अल-बक़ीअ संगठन के आंदोलन को समर्थन मिलने की एक वजह लगातार होने वाला ये सम्मेलन भी है।
अमेरिका से मौलाना सैयद कल्बे अब्बास रिजवी ने कहा कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इस मुद्दे पर एक साथ आवाज उठाएं और जन्नतुल बकी के बारे में हैशटैग चलाएं, इसलिए मुझे लगता है कि मौलाना कल्बे अब्बास रिजवी का बेहतर परिणाम सामने आएगा आंदोलन का समर्थन किया और इसकी सफलता के लिए दुआ की।
अमरोहा से आए मौलाना कारी अहमद हसन ने कहा कि कुरान ने सभी मुसलमानों से अहले-बैत से प्यार करने की मांग की है। यह एक सच्चाई है कि जब आप उनसे प्यार करते हैं, तो आप उनकी कब्रों से भी प्यार करेंगे - यह कैसे उचित है कि अहले-बैत के सदस्यों को शहादत से पहले उनके दरवाजे जलाकर सताया गया था और शहादत के बाद, उन्हें ध्वस्त करके सताया गया था। घर जलाना भी दुखदायी है और मजार तोड़ना भी दुखदायी है, फिर भी अगर कोई प्रेम का दावा करता है तो वह प्रेम नहीं, पाखंड है।
इराक के नजफ अशरफ से आयतुल्लाह शेख बशीर नजफी के प्रतिनिधि मौलाना सैयद जमान जाफरी नजफी ने कहा कि जन्नत अल-बकी के पुनर्निर्माण के आंदोलन को शिया और सुन्नी के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि जन्नत अल-बकी के लिए आवाज उठा रहे हैं। अहले-बैत के अधिकार के लिए है अपनी आवाज उठाओ। पूरे मुस्लिम उम्माह की आस्थाएं और भावनाएं मुस्लिम उम्माह से जुड़ी हुई हैं। इस मुद्दे को शिया धर्म से जोड़कर पेश करने के पीछे एक घिनौनी साजिश है। उनका मानना है कि पैगंबर के 10,000 साथी जन्नत अल-बक़ी में दफ़न हैं आंदोलन केवल शियाओं तक ही सीमित नहीं है।
पुणे शहर के मौलाना असलम रिज़वी ने कहा कि जब तक जन्नतुल बकी में एक खूबसूरत दरगाह नहीं बन जाती, तब तक यह आंदोलन इसी तरह जारी रहेगा। जन्नत-उल-बाकी आपको आवाज दे रहे हैं कि इस आंदोलन के लिए कौन घर छोड़ेगा। हुसैन की आवाज कल भी और आज भी सुनाई देती है, फर्क सिर्फ इतना है कि 61 हिजरी में ये आवाज कर्बला से उठी थी और आज ये आवाज बकीअ से आ रही है।
बांद्रा मुंबई के जुमे के इमाम मौलाना सैयद जुल्फिकार मेहदी ने कहा कि कर्बला में इमाम हुसैन (अ) की दरगाह पर इस वक्त लाखों जायरीन मौजूद हैं, लेकिन इमाम हसन मुजतबा (अ) की कब्र वीरान है नम आँखों और खुले दिल से कहा जाए कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम पर शहादत से पहले भी ज़ुल्म हुआ था और शहादत के बाद भी ज़ुल्म हो रहा है, आवाज़ उठानी चाहिए ताकि ये आवाज़ आले सऊद के कानों तक पहुँचे।
एसएनएन चैनल के प्रधान संपादक मौलाना अली अब्बास वफ़ा ने सभी विद्वानों का स्वागत किया और इस विद्वान सम्मेलन में अपना बहुमूल्य समय देने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
इमाम हसन अ.ह की महानता रसूले इस्लाम स.अ की ज़बानी।
हदीसों की किताबों में इब्ने अब्बास के हवाले से बयान हुआ है कि रसूले इस्लाम स.अ. इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपने कांधे पर सवार किए हुए कहीं ले जा रहे थे किसी ने कहा अरे बेटा तुम्हारी सवारी कितनी अच्छी है? रसूले इस्लाम स.अ. ने फ़रमाया यह क्यों नहीं कहते कि सवार कितना अच्छा है?
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम रसूले इस्लाम के नवासे से और उनके फूल हैं। आप संयम, सब्र, सहनशीलता और दान देने में रसूल का दूसरा रूप थे। रसूले इस्लाम स. आपसे बहुत ज्यादा मुहब्बत करते थे आपकी मोहब्बत मुसलमानों के बीच मशहूर थी किताबों में रसूले इस्लाम स. के निकट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महत्व व स्थान के बारे में बहुत कुछ बयान हुआ है इसलिए हम कुछ हदीसें यहां पेश कर रहे हैं।
हज़रत आएशा से रिवायत है कि रसूले इस्लाम स.अ. ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को गोद में लिया और उनको अपने सीने से चिमटाते हुए कहा है ऐ मेरे खुदा यह मेरा बेटा है मैं इससे मोहब्बत करता हूं और जो इससे मोहब्बत करे मैं उससे मोहब्बत करूंगा।
बर्रा इब्ने आजिब ने बयान किया है मैंने रसूले इस्लाम स. को देखा कि आप अपने कंधों पर इमाम हसन अ. और इमाम हुसैन अ. को सवार किए हुए फरमा रहे हैं ऐ मेरे अल्लाह मैं इनसे मोहब्बत करता हूं और तू भी उनसे मोहब्बत कर इब्ने अब्बास ने भी बयान किया है।
जो जन्नत के जवानों के सरदार को देखना चाहता है वह हसन की ज़ियारत करे।
रसूले इस्लाम ने फरमाया हसन दुनिया में मेरे फूल हैं।
इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा करने की कहानी।
एक दिन इमाम हसन (अ) घोड़े पर सवार कहीं जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया। इमाम हसन (अ) चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो इमाम हसन (अ) ने उसे मुसकुरा कर सलाम किया और कहने लगेः
ऐ शेख़, मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है, अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं, अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं, अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं, अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि "हिल्मुल- हसन" अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था, हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया" मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं,और उससे आस लगाये रहता हूं, इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।"
इमाम हसन (अ) ने 48 साल से ज़्यादा इस दुनिया में अपनी रौशनी नहीं बिखेरी लेकिन इस छोटी सी अवधि में भी उनका समय भ्रष्टाचारियों से लगातार जंग में ही बीता। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम हसन (अ) ने देखा कि निष्ठावान व वफ़ादार साथी बहुत कम हैं इसलिये मोआविया से जंग का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा इसलिये उन्होने मुआविया द्वारा प्रस्तावित सुलह को अपनी शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। इस शान्ति संधि का नतीजा यह निकला कि वास्तविक मुसलमानों को ख़्वारिज के हमलों से नजात मिल गयी और जंग में उनकी जानें भी नहीं गईं।
इमाम हसन(अ) के ज़माने के हालात के बारे में आयतुल्लाह ख़ामेनई कहते हैं" हर क्रान्तिकारी व इंक़ेलाबी के लिये सबसे कठिन समय वह होता है जब सत्य व असत्य आपस में बिल्कुल मिले हुये हों-----(इस हालत को निफ़ाक़ या मित्थ्या कहते हैं) इमाम हसन के ज़माने में निफ़ाक़ की उड़ती धूल हज़रत अली के ज़माने से बहुत ज़्यादा गाढ़ी थी इमाम हसने मुज्तबा (अ) जानते थे कि उन थोड़े से साथियों व सहायकों के साथ अगर मुआविया से जंग के लिये जाते हैं और शहीद हो जाते हैं तो इस्लामी समाज के प्रतिष्ठत लोगों पर छाया हुआ नैतिक भ्रष्टाचार उनके ख़ून (के प्रभाव) को अर्थात उनके लक्ष्य को आगे बढ़ने नहीं देगा। प्रचार, पैसा और मुआविया की कुटिलता, हर चीज़ पर छा जायेगी तथा दो एक साल बीतने के बाद लोग कहने लगेंगे कि इमाम हसन(अ) व्यर्थ में ही मुआविया के विरोध में खड़े हुये। इसलिये उन्होने सभी कठिनाइयां सहन कीं लेकिन ख़ुद को शहादत के मैदान में जाने नहीं दिया,क्योंक् जानते थे कि उनका ख़ून अकारत हो जायेगा।
इस आधार पर इमाम हसन(अ) की एक विशेषता उनका इल्म व बुद्धिमत्ता थी। पैगम्बरे इस्लाम (स) इमाम हसन (अ) की बुद्धिमत्ता के बारे में कहते " अगर अक़्ल को किसी एक आदमी में साकार होना होता तो वह आदमी अली के बेटे हसन होते ।"
पैगम्बर मुहम्मद साहिब के सही किरदार को पेश किया जाए.
आज जबकि मानव समाज आध्यात्मिक पतन की ओर उनमुख है। तथा असदाचारिता, असत्यता ,छल, कपट, द्वेष, भोग विलासिता तथा अमानवियता चारों ओर व्याप्त है। इस पतन को रोकने के लिए अति आवश्यक है कि मानव जाति के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत किया जाये। जिसका अनुसरन करके मानव जाति का कल्याण हो सके।हम विशवास के साथ कहते हैं कि अगर मानवता पूर्णरूप से आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब का अनुसरण करे तो कल्याण पासकती है।क्योंकि आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब मे एक आदर्श के समस्त गुण विद्यमान हैं।
आज दुश्मन आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब के किरदार को ग़लत तरीक़े से पेश केर के मानव समाज को असदाचारिता, असत्यता ,छल, कपट, द्वेष, भोग विलासिता तथा अमानवियता की उर ले जाना चाहता है. हमारे लिये यह ज़रूरी है की हम ,आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब के किरदार को सही तरीक़े से पेश करें और इस समाज को गुमराही से बचाएं.
हज़रत पैगम्बर के पिता का नाम अब्दुल्लाह था जो ;हज़रत अबदुल मुत्तलिब के पुत्र थे। तथा पैगम्बर (स) की माता का नाम आमिना था, जो हज़रत वहाब की पुत्री थीं। हज़रत पैगम्बर का जन्म मक्का नामक शहर मे सन्(1) आमुल फील मे रबी उल अव्वल मास की 17वी तारीख को हुआ था। हज़रत पैगम्बर के पिता का स्वर्गवास पैगम्बर के जन्म से पूर्व ही हो गया था। और जब आप 6 वर्ष के हुए तो आपकी माता का भी स्वर्गवास हो गया। अतः8 वर्ष की आयु तक आप का पलन पोषण आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने किया।दादा के स्वर्गवास के बाद आप अपने प्रियः चचा हज़रत अबुतालिब के साथ रहने लगे।
उनके चचा हज़रत अबुतालिब सदैव उनको अपनी शय्या के पास सुलाते थे। वह कहते हैं कि मैने कभी भी पैगम्बर को झूट बोलते, अनुचित कार्य करते व व्यर्थ हंसते हुए नही देखा। वह बच्चों के खेलों की ओर भी आकर्षित नही थे। सदैव तंन्हा रहना पसंद करते तथा मेहमान से बहुत प्रसन्न होते थे।
जब आपकी आयु 25 वर्ष की हुई तो अरब की एक धनी व्यापारी महिला जिनका नाम खदीजा था उन्होने पैगम्बर के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा। पैगम्बर ने इसको स्वीकार किया तथा कहा कि इस सम्बन्ध मे मेरे चचा से बात की जाये। जब हज़रत अबुतालिब के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा गया तो उन्होने अपनी स्वीकृति दे दी। तथा इस प्रकार पैगम्बर(स) का विवाह हज़रत खदीजा पुत्री हज़रत ख़ोलद के साथ हुआ। निकाह स्वयं हज़रत अबुतालिब ने पढ़ा। हज़रत खदीजा वह महान महिला हैं जिन्होने अपनी समस्त सम्पत्ति इस्लाम प्रचार हेतू पैगम्बर को सौंप दी थी।
हज़रत मुहम्मद (स) जब चालीस वर्ष के हुए तो उन्होने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की। जब कुऑन की यह आयत नाज़िल हुई कि,,वनज़िर अशीरतःकल अक़राबीन.परन्तु हज़रत अली (अ) के अलावा किसी ने भी साहयता का वचन नही दिया। इसी समय से मक्के के सरदार आपके विरोधी हो गये तथा आपको यातनाऐं देने लगे।
हज़रत पैगम्बर(स. की चारित्रिक विशेषताऐं
हज़रत पैगम्बर को अल्लाह ने समस्त मानवता के लिए आदर्श बना कर भेजा था। इस सम्बन्ध मे कुऑन इस प्रकार वर्णन करता-लक़द काना लकुम फ़ी रसूलिल्लाहि उसवःतुन हसनः अर्थात पैगम्बर का चरित्र आप लोगो के लिए आदर्श है। अतः आप के व्यक्तित्व मे मानवता के सभी गुण विद्यमान थे। आप के जीवन की मुख्य विशेषताऐं निम्ण लिखित हैं।
सत्यता
सत्यता पैगम्बर के जीवन की विशेष शोभा थी। पैगम्बर (स) ने अपने पूरे जीवन मे कभी भी झूट नही बोला। पैगम्बरी की घोषणा से पूर्व ही पूरा मक्का आप की सत्यता से प्रभावित था। आप ने कभी व्यापार मे भी झूट नही बोला। वह लोग जो आप को पैगम्बर नही मानते थे वह भी आपकी सत्यता के गुण गाते थे। इसी कारण लोग आपको सादिक़(अर्थात सच्चा) कहकर पुकारते थे।
अमानतदारी(धरोहरिता)
पैगम्बर के जीवन मे अमानतदारी इस प्रकार विद्यमान थी कि समस्त मक्कावासी अपनी अमानते आप के पास रखाते थे। उन्होने कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नही किया। जब भी कोई अपनी अमानत मांगता आप तुरंत वापिस कर देते थे। जो व्यक्ति आपके विरोधि थे वह भी अपनी अमानते आपके पास रखाते थे। क्योंकि आप के पास एक बड़ी मात्रा मे अमानते रखी रहती थीं, इस कारण मक्के मे आप का एक नाम अमीन पड़ गया था। अमीन (धरोहर)
सदाचारिता
पैगम्बर के सदाचार की अल्लाह ने इस प्रकार प्रसंशा की है इन्नका लअला ख़ुलक़िन अज़ीम अर्थात पैगम्बर आप अति श्रेष्ठ सदाचारी हैं। एक दूसरे स्थान पर पैगम्बर की सदाचारिता को इस रूप मे प्रकट किया कि व लव कानत फ़ज़्ज़न ग़लीज़ल क़लबे ला नग़ज़्ज़ु मिन हवालीका अर्थात ऐ पैगम्बर अगर आप क्रोधी स्वभव वाले खिन्न व्यक्ति होते, तो मनुष्य आपके पास से भागते। इस प्रकार इस्लाम के विकास मे एक मूलभूत तत्व हज़रत पैगम्बर का सद्व्यवहार रहा है।
समय का सदुपयोग
हज़रत पैगम्बर की पूरी आयु मे कहीं भी यह दृष्टिगोचर नही होता कि उन्होने अपने समय को व्यर्थ मे व्यतीत किया हो । वह समय का बहुत अधिक ध्यान रखते थे। तथा सदैव अल्लाह से दुआ करते थे, कि ऐ अल्लाह बेकारी, आलस्य व निकृष्टता से बचने के लिए मैं तेरी शरण चाहता हूँ। वह सदैव मसलमानो को कार्य करने के लिए प्रेरित करते थे।
अत्याचार विरोधी
हज़रत पैगम्बर अत्याचार के घोर विरोधि थे। उनका मानना था कि अत्याचार के विरूद्ध लड़ना संसार के समस्त प्राणियों का कर्तव्य है। मनुष्य को अत्याचार के सम्मुख केवल तमाशाई बनकर नही खड़ा होना चाहिए। वह कहते थे कि अपने भाई की सहायता करो चाहे वह अत्याचारी ही कयों न हो। उनके साथियों ने प्रश्न किया कि अत्याचारी की साहयता किस प्रकार करें? आपने उत्तर दिया कि उसकी साहयता इस प्रकार करो कि उसको अत्याचार करने से रोक दो।
बुराई के बदले भलाई की भावना
आदरनीय पैगम्बर की एक विशेषता बुराई का बदला भलाई से देना थी। जो उन को यातनाऐं देते थे, वह उन के साथ उनके जैसा व्यवहार नही करते थे। उनकी बुराई के बदले मे इस प्रकार प्रेम पूर्वक व्यवहार करते थे, कि वह लज्जित हो जाते थे।
यहाँ पर उदाहरण स्वरूप केवल एक घटना का उल्लेख करते हैं। एक यहूदी जो पैगम्बर का विरोधी था। वह प्रतिदिन अपने घर की छत पर बैठ जाता, व जब पैगम्बर उस गली से जाते तो उन के सर पर राख डाल देता। परन्तु पैगम्बर इससे क्रोधित नही होते थे। तथा एक स्थान पर खड़े होकर अपने सर व कपड़ों को साफ कर के आगे बढ़ जाते थे। अगले दिन यह जानते हुए भी कि आज फिर ऐसा ही होगा। वह अपना मार्ग नही बदलते थे। एक दिन जब वह उस गली से जा रहे थे, तो इनके ऊपर राख नही फेंकी गयी। पैगम्बर रुक गये तथा प्रश्न किया कि आज वह राख डालने वाला कहाँ हैं? लोगों ने बताया कि आज वह बीमार है। पैगम्बर ने कहा कि मैं उस को देखने जाऊगां। जब पैगम्बर उस यहूदी के सम्मुख गये, तथा उस से प्रेम पूर्वक बातें की तो उस व्यक्ति को ऐसा लगा, कि जैसे यह कई वर्षों से मेरे मित्र हैं। आप के इस व्यवहार से प्रभावित होकर उसने ऐसा अनुभव किया, कि उस की आत्मा से कायर्ता दूर हो गयी तथा उस का हृदय पवित्र हो गया। उनके साधारन जीवन तथा नम्र स्वभव ने उनके व्यक्तितव मे कमी नही आने दी, उनके लिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय मे स्थान था।
दया की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर मे दया की प्रबल भावना विद्यमान थी। वह अपने से छोटों के साथ प्रेमपूर्वक तथा अपने से बड़ो के साथ आदर पूर्वक व्यवहार करते थे ।वह अनाथों व भिखारियों का विशेष ध्यान रखते थे उनको को प्रसन्नता प्रदान करते व अपने यहाँ शरण देते थे। वह पशुओं पर भी दया करते थे तथा उन को यातना देने से मना करते थे।
जब वह किसी सेना को युद्ध के लिए भेजते तो रात्री मे आक्रमण करने से मना करते, तथा जनता से प्रेमपूर्वक व्यवहार करने का निर्देश देते थे । वह शत्रु के साथ सन्धि करने को अधिक महत्व देते थे। तथा इस बात को पसंद नही करते थे कि लोगों की हत्याऐं की जाये। वह सेना को निर्देश देते थे कि बूढ़े व्यक्तियों, बच्चों तथा स्त्रीयों की हत्या न की जाये तथा मृत्कों के शरीर को खराब न किया जाये
स्वच्छता
पैगम्बर स्वच्छता मे अत्याधिक रूचि रखते थे। उन के शरीर व वस्त्रों की स्वच्छता देखने योग्य होती थी। वह वज़ू के अतिरिक्त दिन मे कई बार अपना हाथ मुँह धोते थे।वह अधिकाँश दिनो मे स्नान करते थे। उनके कथनानुसार वज़ु व स्नान इबादत है। वह अपने सर के बालों को बेरी के पत्तों से धोते और उनमे कंघा करते और अपने शरीर को मुश्क व अंबर नामक पदार्थों से सुगन्धित करते थे। वह दिन मे कई बार तथा सोने से पहले व सोने के बाद अपने दाँतों को साफ़ करते थे। भोजन से पहले व बाद मे अपने मुँह व हाथों को धोते थे तथा दुर्गन्ध देने वाली सब्ज़ियों को नही खाते थे।
हाथी दाँत का बना कंघा सुरमेदानी कैंची आईना व मिस्वाक उनके यात्रा के सामान मे सम्मिलित रहते थे। उनका घर बिना साज सज्जा के स्वच्छ रहता था। उन्होने चेताया कि कूड़े कचरे को दिन मे उठा कर बाहर फेंक देना चाहिए। वह रात आने तक घर मे नही पड़ा रहना चाहिए। उनके शरीर की पवित्रता उनकी आत्मा की पवित्रता से सम्बन्धित रहती थी। वह अपने अनुयाईयों को भी चेताते रहते थे कि अपने शरीरो वस्त्रों व घरों को स्वच्छ रखा करो। तथा जुमे (शुक्रवार) को विशेष रूप से स्नान किया करो। दुर्गन्ध को दूर करने हेतू शरीर व वस्त्रो को सुगन्धित करके जुमे की नमाज़ मे सम्मिलित हुआ करो ।
दृढनिश्चयता
पैगम्बर मे दृढनिश्चयता चरम सीमा तक पाई जाती थी।वह निराशावादी न होकर आशावादी थे। वह पराजय से भी निराश नही होते थे। यही कारण है कि ओहद नामक युद्ध की पराजय ने उनको थोड़ा भी प्रभावित नही किया। तथा बनी क़ुरैज़ा(अरब के एक कबीले का नाम) द्वारा अनुबन्ध तोड़कर विपक्ष मे सम्मिलित हो जाने से भी उन पर कोई प्रभाव नही पड़ा।बल्कि वह शीघ्रता पूर्वक हमराउल असद नामक युद्ध के लिए तैयार होकर मैदान मे आगये।
सावधानी व सतर्कता
पैगम्बर(स.) सदैव सावधानी व सतर्कता बरतते थे। वह शत्रु की सेना का अंकन इस प्रकार करते कि उससे युद्ध करने के लिए कितने व किस प्रकार के हथियारों की आवश्यक्ता है। वह नमाज़ के समय मे भी सतर्क व सवधान रहते थे।
मानवता के प्रति प्रेम
पैगम्बर(स.) के हृदय मे समस्त मानवजाति के प्रति प्रेम था। वह रंग या नस्ल के कारण किसी से भेद भाव नही करते थे । उनकी दृष्टि मे सभी मनुष्य समान थे। वह कहते थे कि सभी मनुष्य अल्लाह से जीविका प्राप्त करते हैं। उन्होने जो युद्धों किये उनके पीछे भी महान लक्ष्य विद्यमान थे।वह सदैवे मानवता के कल्याण के लिए ही युद्ध करते थे। पैगम्बर सदैव अपने अनुयाईयों को मानव प्रेम का उपदेश देते थे। पैगम्बर ने मनुष्यों को निम्ण लिखित संदेश दिया
1- मानवता की सफलता का संदेश
2- युद्ध से पूर्व शान्ति वार्ता का संदेश
3- बदले से पहले क्षमा का संदेश
4- दण्ड से पूर्व विन्रमता या क्षमा का संदेश
5.उच्चयतम कोटी की नेतृत्व क्षमता।
आदरनीय पैगम्बर को अल्लाह ने नेतृत्व की उच्चय क्षमता प्रदान की थी। उनकी इस क्षमता को अरब जाती की स्थिति को देखकर आंका जा सकता है। उन्होने उस अरब जाती का नेतृत्व किया, जो अपनी मूर्खता व अज्ञानता के कारण किसी को भी अपने से बड़ा नही समझते थे। जो सदैव रक्त पात करते रहते थे। सदाचार उनको छूकर भी नही निकला था। ऐसे लोगों को अपने नेतृत्व मे लेना बहुत कठिन कार्य था। परन्तु इन सब अवगुणो के होते हुए भी पैगम्बर ने अपने कौशल से उनको इस प्रकार प्रशिक्षित किया कि सब आपके समर्थक बन गये। तथा अपने प्राणो की आहुती देने के लिए धर्म युद्ध के लिए निकल पड़े।
आदरनीय पैगम्बर युद्ध के लिए एक से अधिक सेना नायकों का चयन करते तथा गंभीरता पूर्वक उनके मध्य कार्यों व शक्तियों का विभाजन कर नियम बनाते थे।वह राजनीतिक तथा शासकीय सिधान्तों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते थे।उन्होने विभिन्न विभागों की नीव डाली। वह सेनापतियों का चुनाव सुचरित्र को आधार बनाकर करते थे
6.क्षमा दान की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर(स.) मे क्षमादान की भावना बहुत प्रबल थी।बदले की भावना उनके अन्दर बिल्कुल भी विद्यमान नही थी। उन्होने अपनी क्षमा भावना का पूर्ण परिचय मक्के की विजय के समय कराया। जब उनके शत्रुओं को बंदी बनाकर उनके सम्मुख लाया गया तो उन्होने यातनाऐं देनेवाले सभी शत्रुओं को क्षमा कर दिया। अगर पैगम्बर(स.) चाहते तो उनसे बदला ले सकते थे परन्तु उन्होने शक्ति होते हुए भी ऐसा नही किया। अपितु सबको क्षमा करके कहा कि जाओ तुम सब स्वतन्त्र हो।
उनकी शक्ति शाली आत्मा सदैव क्षमादान को वरीयता देती थी। ओहद नामक युद्ध मे जो पाश्विक व्यवहार उनके चचा श्री हमज़ा पुत्र श्री अब्दुल मुत्तलिब के साथ किया गया(अबु सुफियान की पत्नि व मुआविया की माँ हिन्दा ने उनके मृत्य शरीर से उनका कलेजा निकाल कर खाने की चेष्टा की) उस को देख कर वह बहुत दुखीः हुए। परन्तु पैगम्बर ने उसके परिवार के मृत्य लोगों के साथ ऐसा व्यवहार नही किया। यहाँ तक कि जब वह स्त्री बंदी बनाकर लाई गई, तो आपने उससे बदला न लेकर उसे क्षमा कर दिया। यही नही अपितु पैगम्बर ने अबुक़ुतादा नामक उस व्यक्ति को भी चुप रहने का आदेश दिया जो उसको अपशब्द कह रहा था।
खैबर नामक युद्ध मे जब यहूदियों ने मुसलमानो के सम्मुख हथियार डाल दिये व युद्ध समाप्त हो गया तो यहूदियों ने भोजन मे विष मिलाकर पैगम्बर के लिए भेजा । पैगम्बर को उनके इस षड़यन्त्र का ज्ञान हो गया। परन्तु उन्होने इसके उपरान्त भी यहूदियों को कोई दण्ड नही दिया तथा क्षमा करके स्वतन्त्र छोड़ दिया।
तबूक नामक युद्ध से लौटते समय मुनाफिकों के एक संगठन ने पैगम्बर की हत्या का षड़यन्त्र रचा। जब पैगम्बर एक पहाड़ी दर्रे को पार कर रहे थे तो मुनाफिक़ीन ने योजनानुसार आप के ऊँट को भड़का दिया। ताकि पैगम्बर ऊँट से गिर कर मर जाऐं, परन्तु वह विफल रहे। और पैगम्बर ने सब को पहचान लिया परन्तु उनसे बदला नही लिय । तथा अपने दोस्तों के आग्रह पर भी उन के नाम नही बताये।
7.उच्चतम सामाजिक जीवन शैली
पैगम्बर(स.) का सामाजिक जीवन बहुत श्रेष्ठ था वह लोगों के मध्य सदैव प्रसन्नचित्त रहते थे। किसी की ओर घूर कर नही देखते थे। अधिकाँश उन की दृष्टि पृथ्वी पर रहती थी। दूसरों के सामने अपने पैरो कों मोड़ कर बैठते थे। किसी के भी सम्मुख वह पैर नही फैलाते थे। जब वह किसी सभा मे जाते थे तो अपने बैठने के लिए निकटतम स्थान को चुनते थे । वह इस बात को पसंद नही करते थे, कि सभा मे से कोई व्यक्ति उनके आदर हेतू खड़ा हो, या उनके लिए किसी विशेष स्थान को खाली किया जाये। वह बच्चों तथा दासों को भी स्वंय सलाम करते थे। वह किसी के कथन को बीच मे नही काटते थे। वह प्रत्येक व्यक्ति से इस प्रकार बात करते कि वह यह समझता कि मैं पैगम्बर के सबसे अधिक निकट हूँ। वह अधिक नही बोलते थे तथा धीरे धीरे व रुक रुक कर बाते करते थे। वह कभी भी किसी को अपशब्द नही कहते थे। वह बहुत अधिक लज्जावान व स्वाभीमानी थे। जब वह किसी के व्यवहार से दुखित होते तो दुखः के चिन्ह उनके चेहरे से प्रकट होते थे, परन्तु वह अपने मुख से गिला नही करते थे। वह सदैव रोगियों को देखने के लिए जाते तथा मरने वालों के जनाज़ों (अर्थी) मे सम्मिलित होते थे। वह किसी को इस बात की अनुमति नही देते थे कि उनके सम्मुख किसी को अपशब्द कहें जायें।
8.कानून व न्याय प्रियता
कानून का पालन व न्याय प्रियता पैगम्बर(स.) की मुख्य विशेषताएं थीं।हज़रत पैगम्बर अपने साथ दुरव्यवहार करने वाले को क्षमा कर देते थे, परन्तु कानून का उलंघन करने वालों कों क्षमा नही करते थे। तथा कानूनानुसार उसको दणडित किया जाता था। वह कहते थे कि कानून व न्याय सामाजिक शांति के रक्षक हैं। अतः ऐसा नही हो सकता कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए कानून को बलि चढ़ा कर पूरे समाज को दुषित कर दिया जाये। वह कहते थे कि मैं उस अल्लाह की सौगन्ध खाकर कहता हूँ जिसके वश मे मेरी जान है कि न्याय के क्षेत्र मे मैं किसी के साथ भी पक्षपात नही करूगां। अगर मेरा निकटतम सम्बन्धि भी कोई अपराध करेगा तो उसे क्षमा नही करूगां और न ही उसको बचाने के लिए कानून को बली बनाऊँगा।
एक दिन पैगम्बर ने मस्जिद मे अपने प्रवचन मे कहा कि अल्लाह ने कुऑन मे कहा है कि प्रलय मे कोई भी अत्याचारी अपने अत्याचार के दण्ड से नही बच सकेगा। अतः अगर आप लोगो मे से किसी को मुझ से कोई यातना पहुंची हो या किसी का कोई हक़ मेरे ऊपर बाक़ी हो तो वह मुझ से लेले। उस सभा मे से सबादा पुत्र क़ैस नामक एक व्यक्ति खड़ा हुआ। तथा कहा कि ऐ पैगम्बर जब आप तायिफ़(एक स्थान का नाम) से लौट रहे थे तो आप के हाथ मे एक असा (लकड़ी का ड़डां) था। आप उसे घुमा रहे थे वह मेरे पेट मे लगा जिससे मुझे पीड़ा हुई। आप ने कहा कि मैं सौगन्ध के साथ कहता हूँ कि मैंने ऐसा जान बूझ कर नही किया परन्तु तू फिर भी उसका बदला ले सकता है। यह कह कर आपने अपना असा मंगाया तथा उस असा को सबादा के हाथ मे देकर कहा कि इससे तेरे शरीर के जिस भाग को पीड़ा पहुँची हो, तू इस से मेरे शरीर के उसी भाग को पीड़ा पहुँचा। उस ने कहा कि ऐ पैगमबर मैने आपको क्षमा किया । आपने कहा कि अल्लाह तुझे क्षमा करे। यह थी इस महान् पैगम्बर की न्याय प्रियता तथा सामाजिक क़ानून की रक्षा।
9.जनता के विचारों का आदर
जिन विषयों के लिए कुऑन मे आदेश मौजूद होता आदरनीय पैगम्बर(स.) उन विषयों मे न स्वयं हस्तक्षेप करते और न ही किसी दूसरे को हस्तक्षेप करने देते थे। वह स्वयं भी उन आदेशों का पालन करते तथा दूसरों को भी पालन करने पर बाध्य करते थे। क्योकि कुऑन के आदेशों की अवहेलना कुफ्र (अधर्मिता) है। इस सम्बन्ध मे कुऑन स्वयं कहता है कि व मन लम यहकुम बिमा अनज़ालल्लाहु फ़ा उलाइका हुमुल काफ़िरून। अर्थात वह मनुषय जो अल्लाह के भेजे हुए क़ानून के अनुसार कार्य नही करते वह समस्त काफ़िर (अधर्मी) हैं। जिन विषयों के लिए कुऑन मे आदेश नही होता था उनमे हस्तक्षेप नही करते थे। उन विषयों मे जनता स्वतन्त्र थी तथा सबको अपने विचर प्रकट करने की अनुमति थी।
वह दूसरों के परामर्श का आदर करते तथा परामर्श पर विचार करते थे। बद्र नामक युद्ध के अवसर पर आपने तीन बार अपने साथियों से विचार विमर्श किया । सर्वप्रथम इस बात पर परामर्श हुआ कि कुरैश से लड़ा जाये या इनको इनके हाल पर छोड़ कर मदीने चला जाये। सब ने जंग करने को वरीयता दी । दूसरी बार छावनी के स्थान के बारे मे परामर्श हुआ। तथा इस बार हबाब पुत्र मुनीज़ा की राय को वरीयता दी गयी। तीसरी बार युद्ध बन्धकों के बरे मे मशवरा लिया गया। कुछ लोगों ने कहा कि इन की हत्या करदी जाये, तथा कुछ लोगों ने कहा कि इनको फिदया (धन) लेकर छोड़ दिया जाये। पैगम्बर ने दूसरी राय का अनुमोदन किया। इसी प्रकार ओहद नामक युद्ध मे भी पैगम्बर ने अपने साथियों से इस बात पर विचार विमर्श किया, कि शहर मे रहकर सुरक्षा प्रबन्ध किये जायें या शहर से बाहर निकल कर पड़ाव डाला जाये व शत्रु को आगे बढने से रोका जाये। विचार के बाद दूसरी राय पारित हुई । इसी प्रकार अहज़ाब नामक युद्ध के अवसर पर भी यह परामर्श हुई कि शहर मे रहकर लड़ा जाये या बाहर निकल कर जंग की जाये। काफी विचार विमर्श के बाद यह पारित हुआ कि शहर से बाहर निकल कर युद्ध किया जाये। अपने पीछे की ओर पहाड़ी को रखा जाये तथा सामने की ओर खाई खोद ली जाये, जो शत्रु को आगे बढ़ने से रोक सके ।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि सब मुसलमान आदरनीय पैगम्बर को त्रुटि भूल चूक तथा पाप से सुरक्षित मानते थे। तथा उनके कार्यों पर आपत्ति व्यक्त करने को अच्छा नही समझते थे। परन्तु अगर कोई पैगम्बर के किसी कार्य की आलोचना करता तो वह आलोचक को शांति पूर्ण ढंग से समझाते तथा उसको संतोष जनक उत्तर देकर उसके भम्र को दूर करते थे। उनका दृष्टिकोण यह था कि सृष्टि के रचियता ने चिंतन आलोचना व दो वस्तुओं के मध्य एक को वरीयता दने की शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान की है। यह केवल सामाजिक आधार रखने वाले शक्ति शाली व्यक्तियों से ही सम्बन्धित नही है । अतः मनुष्यों से चिंतन व आलोचना के इस अधिकार को नही छीनना चाहिये।
शासकीय सद्व्यवहार
वह सदैव प्रजा के कल्याण के बरे मे सोचते थे। पैगम्बर ने स्वंय एक स्थान पर कहा कि -मै जनता कि भलाई का जनता से अधिक ध्यान रखता हूँ। तुम लोगों मे से जो भी स्वर्गवासी होगा तथा सम्पत्ति छोड़ कर जायगा वह सम्पत्ति उसके परिवार की होगी। परन्तु अगर कोई ऋणी होगा या उसका परिवार दरिद्र होगा तो उसके ऋण को चुका ने तथा उसके परिवार के पालन पोषण का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर होगा।
पैगम्बर(स.) ने न्याय व दया पर आधारित अपनी इस शासन प्रणाली द्वारा संसार के समस्त शासकों को यह शिक्षा दी कि समाज मे शासक की स्थिति एक दयावान व बुद्धिमान पिता की सी है। शासक को चाहिये कि हर स्थान पर जनता के कल्याण का ध्यान रखे तथा अपनी मन मानी न करे।
पैगम्बर वह महान् व्यक्ति हैं जिन्होने बहुत कम समय मे मानव के दिलों मे अपने सद्व्यवहार की अमिट छाप छोड़ी। उन्होने अपने सद्व्यवहार, चरित्र व प्रशिक्षण के द्वारा अरब हत्यारों को शान्ति प्रियः, झूट बोलने वालों को सत्यवादी, निर्दयी लोगों को दयावान, नास्तिकों को आस्तिक, मूर्ति पूजकों को एकश्वरवादी, असभ्यों कों सभ्य, मूर्खों को बुद्धि मान, अज्ञानीयों को ज्ञानी, तथा क्रूर स्वभव वाले व्यक्तियों को विन्रम बनाया।
जब पैगम्बर हज करके मक्के से मदीने की ओर लौट रहे थे, तो ग़दीर नामक स्थान पर आपको अल्लाह की ओर से आदेश प्राप्त हुआ, कि हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करो। पैगम्बर ने पूरे क़ाफिले को रुकने का आदेश दिया। तथा एक व्यापक भाषण देते हुए कहा कि मैं जल्दी ही तुम लोगों के मध्य से जाने वाला हूँ। अतः मैं अल्लाह के आदेश से हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता हूँ। पैगम्बर का प्रसिद्ध कथन कि जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उस के अली मौला हैं। इसी अवसर पर कहा गया था।
सन् 11 हिजरी मे सफर मास की 28 वी तारीख को तीन दिन बीमार रहने के बाद आपकी शहादत हो गयी। हज़रत अली (अ) ने आपको ग़ुस्लो कफ़न देकर दफ़्न कर दिया। इस महान् पैगम्बर के जनाज़े (पार्थिव शरीर) पर बहुत कम लोगों ने नमाज़ पढ़ी। इस का कारण यह था कि मदीने के अधिकाँश मुसलमान पैगम्बर के स्वर्गवास की खबर सुनकर सत्ता पाने के लिए षड़यण्त्र रचने लगे थे। तथा पैगम्बर के अन्तिम संसकार मे सम्मिलित न होकर सकीफ़ा नामक स्थान पर एकत्रित थे।
मॉस्को में पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के संबंध में कार्यक्रम आयोजित
पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के उपलक्ष्य में मॉस्को में ईरान के इस्लामी सेंटर में शोकसभा आयोजित हुई।
सोमवार को 28 सफ़र 1446 हिजरी क़मरी बराबर दो सितंबर 2024 है और यह वह दिन है जब पैग़म्बरे इस्लाम का स्वर्गवास हुआ था और उनके प्राणप्रिय पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे।
इस संबंध में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से प्रेम करने वालों की उपस्थिति में रूस की राजधानी मॉस्को में ईरान के इस्लामी सेंटर में शोकसभा आयोजित हुई। इस शोकसभा का आयोजन "मिल्लते इमाम हुसैन" नामक छात्रों के एक गुट ने किया था।
ईरान सहित दुनिया के मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर इमाम बारगाहों और मस्जिदों में शोकसभा आयोजित करके अज़ादारी करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर दुनिया के समस्त मुसलमानों और दूसरे स्वतंत्रता प्रेमियों की सेवा में सांत्वना प्रस्तुत करती है।