
رضوی
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत
वर्ष 254 हिजरी क़मरी के रजब महीने की तीसरी तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक अन्य पौत्र की शहादत की याद दिलाती है।
इस दिन जब सूरज ने अपनी किरणें ज़मीन पर बिखेरीं तो इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर ने बहुत सारे लोगों को शोकाकुल कर दिया। उनकी उपाधि, हादी अर्थात मार्गदर्शक थी।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने 15 ज़िलहिज्जा वर्ष 212 हिजरी क़मरी को मदीना नगर के निकट इस संसार में आंखें खोलीं। उन्होंने अपने पिता इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद 33 साल तक मुसलमानों के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली। उनके काल में विभिन्न प्रकार के मत और आस्था संबंधी विचार सामने आने लगे थे और इस्लामी जगत में धर्म व आस्था के बारे में तरह तरह की शंकाएं पैदा होने लगी थीं। ये शंकाएं कुछ धोखा खाए हुए, अवसरवादी और अवसर से ग़लत लाभ उठाने वाले लोग, इस्लामी जगत में फैला रहे थे। अलबत्ता अब्बासी शासक भी मुसलमानों के वैचारिक व आस्था संबंधी आधारों को कमज़ोर करके अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में थे। यही कारण था कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने भी, जो अन्य इमामों की तरह सामाजिक, राजनैतिक और वैचारिक घटनाओं के आधार पर मुसलमानों के मार्गदर्शन और सच्चे इस्लाम की रक्षा के लिए अनेक ठोस व गंभीर क़दम उठाते थे, काम किया और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के ज्ञान संबंधी मतों को इस प्रकार से पेश किया कि उनके काल में भी और बाद के कालों में भी लोगों की वैचारिक और राजनैतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में ईश्वर को आंखों से देखने के संभव होने या न होने, ईश्वर के साकार या निराकार होने और कर्मों में बंदे के स्वाधीन या विवश होने जैसी बहसें मुस्लिम जनमत को अपनी चपेट में लिए हुए थीं और लोगों की आस्थाओं को प्रभावित कर रही थीं इस लिए इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन के परिप्रेक्ष्य में शास्त्रार्थों और पत्रों के माध्यम से ठोस व स्पष्ट तर्क पेश करके सच्चे इस्लाम को इस्लामी समाज के सामने पेश किया। उदाहरण स्वरूप उनके एक विस्तृत पत्र का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें उन्होंने क़ुरआने मजीद, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के परिचय, उनके आज्ञापालन की अनिवार्यता और इसी प्रकार कर्मों में लोगों के स्वाधीन या विवश होने जैसी गूढ़ बहसों का बड़े स्पष्ट अंदाज़ में विस्तृत उत्तर दिया है।
इमाम हादी अलैहिस्सलाम, जिनके कांधों पर इस्लामी विचारों के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी थी और वे इस प्रकार के वैचारिक मतभेदों को इस्लाम के दुशमनों के हित में समझते थे, क़ुरआने मजीद के बारे में विवाद को अनुचित क़रार देते थे और अपने साथियों को इस प्रकार की बहसों में न पड़ने की सिफ़ारिश करते हुए कहते थे कि क़ुरआन के बारे में यह बहस कि वह रचना है या नहीं या पहले से मौजूद था या बाद में अस्तित्व में आया? पूरी तरह से अनुचित और धार्मिक दृष्टि से ग़लत है क्योंकि इसमें प्रश्न करने वाले को ऐसी चीज़ मिलती है जो उसके लिए उचित नहीं है और उत्तर देने वाला भी उस विषय के बारे में अपने आपको ज़बरदस्ती कठिनाई में डालता है जो उसकी क्षमता में नहीं है। रचयिता, ईश्वर के अलावा कोई भी नहीं है और उसके अतिरिक्त जो भी चीज़ है वह रचना है और क़ुरआने मजीद ईश्वर का कथन है अतः उसके लिए अपनी ओर से कोई नाम न रखो अन्यथा पथभ्रष्ट लोगों में शामिल हो जाओगे।
एक और अहम वैचारिक शंका जो इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में लोगों की आस्थाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थी, ईश्वर के साकार होने के बारे में थी। इमाम ने बौद्धिक तर्क से इस विचार को ग़लत बताते हुए कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के मानने वाले ईश्वर को साकार नहीं मानते क्योंकि ईश्वर को अन्य चीज़ों के समान बताना, उसके साकार होने की कल्पना है और जो चीज़ आकार वाली होती है वह स्वयं किसी कारण का परिणाम होती है और ईश्वर इस प्रकार के उदाहरणों से कहीं उच्च है क्योंकि शरीर और आकार का स्वाभाविक परिणाम किसी समय या स्थान में सीमित होने और बुढ़ापे और कमज़ोर होने इत्यादि के रूप में सामने आता है जबकि ईश्वर के लिए इस प्रकार की बातों की कल्पना नहीं की जा सकती। ईश्वर के साकार होने की आस्था, ईसाइयत में तीन ईश्वरों का विचार सामने आने का कारण बनी है और ईसाई दो अन्य लोगों को ईश्वर का समकक्ष मानते हैं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने ठोस तर्कों से मुसलमानों के बीच इस प्रकार के विचारों को फैलने से रोका। इस प्रकार की शंकाएं, एकेश्वरवाद के आधार पर हमला करती हैं जो ईश्वरीय पैग़म्बरों की सबसे पहली और सबसे अहम उपलब्धि है। इमाम अलैहिस्सलाम ने अपने काल में बेहतरीन ढंग से एकेश्वरवाद की आस्था की रक्षा की और इस के लिए उन्होंने बड़े बुनियादी कार्यक्रम तैयार किए।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने जीवन में हमेशा अब्बासी शासकों की कड़ाइयों का सामना करना पड़ा और लोगों के साथ उनके संपर्क में हमेशा रुकावटें डाली गईं। यही कारण था कि उन्होंने कुछ विशेष युक्तियां अपनाईं जिनमें से एक उनके वकीलों या प्रतिनिधियों का संगठन बनाना था। यह गुप्त संगठन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में गठित हुआ था और इसने गोपनीय रूप से अपनी गतिविधियां जारी रखी थीं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में यह संगठन एक औपचारिक और नए संगठन के रूप में ख़ास विशेषताओं के साथ सामने आया। इस अहम संगठन ने ज्ञान व धर्म की दृष्टि से लोगों की ज़रूरतों को मुख्य स्रोत तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की जिसका आरंभिक परिणाम वैचारिक और आस्था संबंधी संदेहों का समाप्त होना था।
इसी काल में इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने ईरान, इराक़, यमन और मिस्र में अपने अनुयाइयों से, अपने प्रतिनिधियों और इसी प्रकार पत्रों के माध्यम से निरंतर संपर्क बनाए रखा। वे अपने प्रतिनिधियों में अनुशासन बनाए रखने के लिए हर थोड़े समय के बाद किसी प्रतिनिधि को हटाते और किसी दूसरे को नियुक्त करते थे। वे अपने आदेशों के माध्यम से उनका मार्गदर्शन भी करते रहते थे। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के प्रतिनिधियों ने धर्म और आस्था संबंधी मामलों में अत्यंत सकारात्मक भूमिका निभाई। कभी कभी उनमें से कोई पहचान लिया जाता और शासक के कारिंदे उसे गिरफ़्तार करके जेल में डाल देते थे। जेल में उन्हें भयावह यातनाएं दी जाती थीं जिसके चलते कुछ लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते थे। अलबत्ता कुछ प्रतिनिधि ऐसे भी होते थे जो इमाम द्वारा निर्धारित दिशा से भटक जाते थे जिसके बाद इमाम उचित समय पर सही युक्ति द्वारा दूसरों को उनके स्थान पर ले आया करते थे।
सही लोगों की पहचान, उन्हें इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर प्रशिक्षित करना और उन्हें समाज के लिए आवश्यक ज्ञान व गुण से लैस करना सभी धार्मिक नेताओं के अहम दायित्वों में शामिल है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने भी, अब्बासी शासकों की ओर से लगाए जाने वाले हर तरह के प्रतिबंधों के बावजूद जिन्होंने इमाम तक लोगों की पहुंच को रोक रखा था, अनेक लोगों का प्रशिक्षण किया। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार विभिन्न ज्ञानों के बारे में जिन लोगों ने इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम से हदीसें बयान की हैं उनकी संख्या दो सौ के क़रीब है और उनमें ऐसे प्रतिष्ठित लोग भी शामिल हैं जिन्होंने अनेक ज्ञानों के बारे में किताबें लिखी हैं। अब्दुल अज़ीम हसनी भी इमाम के शिष्यों में से एक हैं। इसी तरह ख़ुरासान के रहने वाले फ़ज़्ल बिन शाज़ान भी इमाम अली नक़ी के अहम शिष्य हैं। इसके अलावा इमाम हादी के ऐसे भी शागिर्द हैं जिनकी शासन में अच्छी पैठ थी। इब्ने सिक्कीत उन्हीं लोगों में से एक हैं। वे इमाम के शिष्य थे लेकिन उन्होंने दरबार में अपना प्रभाव बनाया और वे इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों में भी उपस्थित होते थे।
अपनी पूरी विभूतिपूर्ण आयु में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के सद्गुण और उनकी प्रतिष्ठा इस प्रकार की थी कि बनी अब्बास के अत्याचारी शासक अपनी भरपूर कड़ाई के बावजूद इमाम के मार्गदर्शन के प्रकाश को सहन नहीं कर सके। उन्होंने इस्लामी समुदाय को इमाम के विचारों से दूर रख कर समाज में बुराइयों को फैलाने की कोशिश की ताकि इस प्रकार अपने शासन को सुरक्षित रख सके लेकिन इमाम हादी अलैहिस्सलाम हमेशा, शासकों की चालों और हथकंडों से लोगों को अवगत कराते रहते थे और विभिन्न अवसरों पर अत्याचारी शासकों के चेहरे पर पड़ी नक़ाब उलटते रहते थे। यही कारण था कि अब्बासी शासक उनके अस्तित्व को अपने हितों व लक्ष्यों के लिए बहुत बड़ी रुकावट समझते थे। इमाम के प्रति उनका द्वेष विभिन्न रूपों में सामने आता रहता था। इस प्रकार से कि अब्बासी ख़लीफ़ा मोतज़ ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचा। उसने वर्ष 254 हिजरी क़मरी में अपनी इस निंदनीय साज़िश को व्यवहारिक बना दिया।
ईरानी जनता ने प्रतिबंधों के बावजूद घुटने नहीं टेके।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने धार्मिक मामलों और क्रांति के मूल्यों पर प्रतिबद्धता को ईरानी जनता की एकता का प्रतीक बताया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पवित्र नगर मशहद में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पवित्र रौज़े में दसियों हज़ार श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के जनसैलाब को संबोधित करते हुए नये हिजरी शम्सी साल को देश के लिए एक महत्वपूर्ण साल बताया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह वर्ष आर्थिक दृष्टि से भी और अगले राष्ट्रपति और नगर परिषद चुनाव के दृष्टिगत भी महत्वपूर्ण है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले वर्ष ईरान की जनता ने कुछ आर्थिक समस्याओं के बावजूद राजनैतिक व क्रांति के मैदानों में शानदार उपलब्धियां अर्जित कीं और विश्व क़ुद्स दिवस तथा स्वतंत्रता दिवस के जूलूसों में एेतिहासिक उपस्थिति दर्ज करके क्रांति से अपनी निष्ठा का एक बार फिर भरपूर सबूत पेश किया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों में ईरानी जनता की व्यापक उपस्थिति यह सिद्ध करती हे कि देश के राजनैतिक मामलों और क्रांतिकारी लक्ष्यों की रक्षा की बात हो हर क्षेत्र में पूरी तरह एक जुट है।
इस्लामी क्रांंति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी जनता की एकता और क्रांति, इस्लामी व्यवस्था और धार्मिक मूल्यों पर प्रतिबद्धता के महत्व पर बल देते हुए कहा कि नववर्ष भी इसीलिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने आर्थिक मामलों को देश के मामलों में सर्वोपरि बताया और कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि आर्थिक मामलों में गतिशीलता का प्रदर्शन किया जाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि ईरान के अधिकारियों की दृष्टि से आर्थिक मामले सर्वेोपरि हैं तो दुश्मन ने भी इन्हीं मामलों को अपनी प्राथमिकता में क़रार दे रखा है और दुश्मन ईरान को आर्थिक मामलों में कमज़ोर करके जनता और सरकार के मध्य दूरी पैदा करना चाहता है ताकि वह इस प्रकार अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान के नादान दुश्मन वर्षों से इस मैदान में अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं किन्तु वह अब तक विफल रहे हैं और भविष्य में भी उनको सफलता प्राप्त नहीं होगी।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने ईरानी नए साल में अर्थव्यवस्था पर दिया विशेष बल।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सभी ईरानियों विशेष कर शहीदों और युद्ध में घायल होने वालों को नए हिजरी शमसी साल 1396 के आरंभ पर पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री के जन्म दिवस और नौरोज़ की बधाई दी है और ईरानी जनता और दुनिया भर के मुसलमानों के लिए विभूति, सुरक्षा और संपन्नता की कामना करते हुए नए साल को "प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था, पैदावार और रोज़गार" का नाम दिया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए वर्ष के बधाई संदेश में पिछले वर्ष को ईरानी राष्ट्र के कटु व मधुर घटनाओं का साल बताया और उसमें ईरानी राष्ट्र की ख़ुशी की कुछ अहम घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 1395 में प्रिय ईरानी राष्ट्र के लिए सम्मान पूरी तरह से स्पष्ट रहा और शत्रुओं ने दुनिया में हर जगह ईरान की शक्ति व महानता को स्वीकार किया। उन्होंने इस्लामी क्रांति की वर्षगांठ की रैलियों में जनता की भरपूर उपस्थिति को अमरीकी राष्ट्रपति की ओर से ईरानी राष्ट्र की बेइज़्जती का जवाब और इसी तरह विश्व क़ुद्स दिवस में जनता की बेजोड़ उपस्थिति को ईरानी जनता की पहचान और उच्च लक्ष्यों का परिचायक बताया और कहा कि ईरान के पड़ोसी और क्षेत्रीय देशों में अशांति के बावजूद ईरान की सुरक्षा क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी अहम रही और ईरानी राष्ट्र ने पूरे साल टिकाऊ सुरक्षा का अनुभव किया।
वरिष्ठ नेता ने वर्ष 1395 को प्रयास और कार्य का नाम दिए जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि देश के अधिकारियों की ओर से किए जाने वाले कार्यों और जनता व वरिष्ठ नेतृत्व की अपेक्षाओं में काफ़ी अंतर रहा है और कुल मिला कर सकारात्मक और नकारात्मक आंकड़े देखे जा सकते हैं। उन्होंने प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था को अकेल ही प्रभावी नहीं बताया और वर्तमान स्थिति को बेहतर बनाने के उपायों के बारे में कहा कि प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था को अहम बिंदुओं तक पहुंचाना और इस पर अधिकारियों और जनता का ध्यान केंद्रित होना अहम है और यह अहम बिंदु आंतरिक पैदावार और रोज़गार विशेष कर युवाओं को रोज़गार प्रदान करना है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इसी आधार पर नए साल को "प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था, पैदावार और रोज़गार" का नाम दिया और कहा कि सभी कार्यक्रमों को जनता, अधिकारियों और वरिष्ठ नेतृत्व की इसी इच्छा पर केंद्रित होना चाहिए जिससे ध्यान योग्य उपलब्धियां प्राप्त होंगी और अधिकारियों को साल के अंत तक इस संबंध में जनता को रिपोर्ट देनी चाहिए।
अमरीका में "एक मुसलमान से मुलाक़ात"
अमरीका में इस्लाम के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रव्यापी प्रचार का आयोजन किया गया है जिसका शीर्षक है, "एक मुसलमान से मुलाक़ात"।
अमरीका के मुस्लिम युवाओं के संगठन ने इस्लाम के बारे में आम लोगों को सही जानकारी पहुंचाने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम निरधारित किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सप्ताह में एक दिन राष्ट्रव्यापी प्रचार के ज़रिए पूरे अमरीका में लोगों तक इस्लाम धर्म की सच्चाई और उसकी सही जानकारी पहुंचाई जा रही है।
"एक मुसलमान से मुलाक़ात" नामक इस देशव्यापी प्रचार में अमरीका के 50 से अधिक शहरों में 124 स्थानों पर स्वेच्छा से सैकड़ों की संख्या में मुसलमान इकट्ठे होते हैं। इस कार्यक्रम में शामिल लोग इस्लाम के बारे में सवालों के जवाब देते हैं। इस प्रचार का उद्देश्य इस्लाम और मुसलमानों के बारे में अमरीकियों को सही जानकारी प्रदान करना और मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत और हिंसा को रोकना है।
"MEET A MUSLIM" नामक इस राष्ट्रव्यापी प्रचार के अवसर पर अमरीका के विभिन्न शहरों में सैकड़ों मुसलमानों ने एक विशाल मार्च भी निकाला जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमानों सहित अन्य धर्मों के लोगों ने भी भाग लिया।
अमरीका की एफ़बीआई पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई हिंसक घटनाओं में बहुत तेज़ी से वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाल के महीनों, विशेषकर ट्रम्प के सत्ता में आने के साथ ही अमरीका में मुसलमानों और उनकी मस्जिदों पर हमलों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
नेतनयाहू लगता है इतिहास नहीं जानते, ईरानी राष्ट्र ने 3 बार यहूदियों को बचाया, ज़रीफ़
ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने कहा है कि ज़ायोनी प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने ईरान के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम लगाने के लिए तौरैत को झुठलाने और झूठे इतिहास का सहारा लिया है।
उन्होंने रविवार को अपने ट्वीटर पेज पर नेतनयाहू के उस दावे की प्रतिक्रिया में यह बात कही जिसमें नेतनयाहू ने कहा कि ईरान 2500 साल से “यहूदियों को तबाह करने की” कोशिश कर रहा है।
जवाद ज़रीफ़ ने कहा, “एक राष्ट्र के ख़िलाफ़ कि जिसने यहूदियों को तीन बार बचाया, धर्मान्धता से प्रेरित झूठे प्रचार के लिए नेतनयाहू ने आदत के तहत झूठे इतिहास और तौरैत को झुठलाने का सहारा लिया। एक बार फिर बिनयामिन नेतनयाहू ने आज न सिर्फ़ सच बात को विकृत कर दिया बल्कि यहूदियों के ग्रंथ सहित विगत की सच्चाई को भी तोड़ मरोड़ दिया। यह अफ़सोस की बात है कि धर्मान्धता इस हद तक पहुंच गयी है कि एक पूरे राष्ट्र के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम लगाया जा रहा है जिसने इतिहास में 3 बार यहूदियों को बचाया।”
ग़ौरतलब है कि नेतनयाहू ने गुरुवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पूतिन से मॉस्को में मुलाक़ात में यह दावा किया। उनका उस दन्तकथा की ओर इशारा था जिसे यहूदी प्यूरिम त्योहार के अवसर पर याद करते हैं। प्यूरिम त्योहार इस्राईल में शनिवार की रात शुरु हुआ।
ऐसी हालत में जब विद्वान प्यूरिम कहानी की सच्चाई से सहमत नहीं है, नेतनयाहू ने दुनिया के अनेक नेताओं से मुलाक़ात में अपने ईरान विरोधी तर्क में इस दन्तकथा को आधार बनाकर पेश किया।
इससे पहले रविवार को ईरानी संसद सभापति अली लारीजानी ने कहा कि नेतनयाहू ने इस्लाम से पहले के ईरान के इतिहास का ग़लत हवाला दिया और तथ्यों को उलट पलट दिया।
उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि वह न तो इतिहास जानते हैं और न ही उन्होंने तौरैत पढ़ी है।”
ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मिल रहे चौतरफ़ा समर्थन से तिलमिला उठा है अमरीका
ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने विशेषज्ञ एसेंबली के सदस्यों मुलाक़ात में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद और अत्याचार से मुक़ाबला तथा ईमान रखने वालों पर अपना वर्चस्व जताने की नास्तिकों की कोशिशों पर अंकुश इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनिवार्य आयाम हैं।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने गुरुवार को होने वाली इस मुलाक़ात में कहा कि ईरान में शुद्ध इस्लाम के लागू होने होने के नतीजों में बड़ी शक्तियों पर निर्भरता से देश की मुक्ति तथा इन ताक़तों के लिए ईरान के दुरुपयोग का रास्ता बंद हो जाना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने ईरान से विश्व की विस्तारवादी शक्तियों की दुशमनी का हवाला देते हुए कहा कि अमरीका और ज़ायोनी शासन की दुशमनी बहुत भीषण और व्यवहारिक रूप में नज़र आने वाली है लेकिन शक्तियां एसी हैं जो ज़बान और व्यवहार से अपनी दुशमनी इस तरह ज़ाहिर नहीं करते।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में कहा कि संस्कृति के मैदान में व्यापक मगर ख़ामोश हमला और आर्थिक दबाव दुशमन मोर्चे की गतिविधियों और योजनाओं का केन्द्रीय बिंदु है। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य जनता को ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था से निराश करना है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना था कि दुशमनों की साज़िशों और योजनाओं को विफल बनाने का बुनियादी रास्ता तर्क पर आधारित मज़बूत और आक्रमक मुक़ाबला है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार, आतंकवाद और युद्ध अपराध सहित हर मामले में पश्चिम के मुक़ाबले में आक्रामक रुख़ अपनाने की ज़रूरत है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ईरान में होने वाले चुनावों के बारे में अमरीका की हालिया टिप्पणी को ख़ारिज करते हुए कहा कि अमरीका जो क्षेत्र की सबसे दुष्ट और सबसे अमानवीय सरकार से सहयोग कर रहा है और जिसने अपने हालिया चुनावों में भारी निर्लज्जता दिखाई, वह ईरानी जनता के चुनावों पर उंगली उठा रहा है!
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहि उज़्मा ख़ामेनई ने दुनिया और विशेष रूप से पश्चिमी एशिया में इस्लामी गणतंत्र ईरान के रणनैतिक प्रभाव को हालिया चार दशकों की बहुत बड़ी उपलब्धि बताया और कहा कि ईरान के बढ़ते हुए प्रभाव और इस्लामी व्यवस्था के लिए राष्ट्रों की ओर से बढ़ते समर्थन के कारण अमरीका तिलमिलाया हुआ है।
ज्ञात रहे कि गुरुवार को विशेषज्ञ एसेंबली ने अपनी बैठक समाप्त होने के बाद इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।
अगला युद्ध इस्राईल के लिए आख़िरी युद्ध होगाः हिज़्बुल्लाह
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि अतीत में जब इस्राईल किसी को धमकी देता था तो वह धमकी के माध्यम से अपना काम निकाल लेता था और यह शासन अब भलिभांति यह समझ चुका है कि जो भी युद्ध छेड़ेगाा उसमें लज्जाजनक पराजय का सामना करना पड़ेगा।
हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव नईम क़ासिम ने अपने बयान में कहा कि इस्राईल के अतिक्रमण का समय समाप्त हो चुका है और इस शासन को इसकी क़ीमत भलि भांति पता चल चुकी है।
अलअहद वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि एेसा प्रतीत हो रहा है कि धीरे धीरे हम यह भूल ही जाएंगे कि इस्राईली नामक हमारा कोई वास्तविक शत्रु है और यह शासन अत्याचारग्रस्त होने का नारा देकर अरब देशों, विश्व मीडिया, सुरक्षा परिषद में पैठ बना रहा है, वह हमेशा हिज़्बुल्लाह, ईरान और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को निशाना बनाता है कि यह नहीं चाहते कि इस्राईल चैन से बैठे, मानो इस्राईल को यह अधिकार है कि वह दूसरों की धरती पर क़ब्ज़ा करके बैठ जाए। उनका कहना था कि खेद की बात यह है कि कुछ देश है जिनमें अरब देश भी शामिल हैं, इस्राईल के साथ सहयोग कर रहे हैं, हमको धैर्य से काम लेना होगा और फिर वास्तविकता सब पर स्पष्ट होगी।
शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि इस्राईल अतिक्रमणकारी है, वह वही है जिसने तीस वर्ष पहले से अब तक क्षेत्र में युद्ध की आग भड़का रखी है, हमारे क्षेत्र के समीकरण को तबाह करके रख दिया है। दाइश और नुस्रा फ़्रंट तथा सीरिया की बर्बादी के पीछे इस्राईल का हाथ है। मैं यहां पर यह घोषण करने जा रहा हूं कि इस्राईल वही समस्या है, अतिग्रहण वही समस्या है, इस मामले में तनिक भी परिवर्तन नहीं हुआ है। उनका कहना था कि प्रतिरोध न होता तो लेबनान स्वतंत्र न होता और तकफ़ीरियों को निराशा को भागना न पड़ता।
यरूशलेम में अज़ान प्रसारण पर प्रतिबंध इस्लाम की मौजूदगी से इनकार करना बताया है
तुर्की के धार्मिक मामलों के प्रमुख "मोहम्मद Gvrmaz" ने बताया कि यरूशलेम में अज़ान प्रसारण पर प्रतिबंध इस्लाम की मौजूदगी से इनकार करना बताया है।
तुर्की के धार्मिक मामलों के प्रमुख "मोहम्मद Gvrmaz" ने शेख़ शामिल मस्जिद के उद्घाटन समारोह में कहा कि इजरायल Knesset द्वारा यरूशलेम में अज़ान पर प्रतिबंध लगाने दुर्भाग्य है और से यरूशलेम में प्रार्थना पर प्रतिबंध लगा दिया "शेख शामिल हैं" । प्रतिबंध फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र में इस्लाम और यह मुसलमानों की मौजूदगी से पूरी तरह इनकार करना है।
उन्होने मुसलमानों के बीच यरूशलेम की स्थिति का मक्का और मदीना महान प्रतीकों के बाद जिक्र किया है।
हिज़्बुल्लाह के विरुद्ध इस्राईल से कोई समझौता नहीं हुआः रूस
रूस के क्रिमलन हाउस के प्रवक्ता दिमेत्री पेस्कोव ने हिज़्बुल्लाह आंदोलन के विरुद्ध ज़ायोनी शासन से रूस की सहमति पर आधारित अल जज़ीरा टीवी चैनल के दावे को रद्द कर दिया।
उन्होने गुरुवार को क़तर के इस टीवी चैनल के दावे को रद्द कर दिया है कि मास्को ने इस्राईल को इस बात की अनुमति दी है कि वह हिज़्बुल्लाह को निशाना बनाने के लिए सीरिया की वायु सीमा का प्रयोग कर सकता है। उनका कहना था कि अलजज़ीरा टीवी चैनल की यह रिपोर्ट और दावा पूरा तरह निराधार है।
रूस के राष्ट्रपति विलादीमीर पुतीन के प्रवक्ता के हवाले से इतारतास न्यूज़ एजेन्सी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उनका कहना था कि मैं इस समाचार के बारे में इससे अधिक कुछ नहीं कह सकता और केवल इस बात पर बल देता हूं कि इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। उनका कहना था कि इस विषय पर बात ही नहीं हुई और यह मुद्दा उठा ही नहीं।
ज्ञात रहे कि अलजज़ीरा टीवी चैनल ने बिनयामीन नितिनयाहू के निकटवर्ती सूत्र के हवाले से दावा किया था कि मास्को ने इस्राईल को अनुमति दी है कि वह हिज़्बुल्लाह के विरुद्ध हमला करने के लिए सीरिया की हवाई सीमा प्रयोग कर सकता है।
ज़ायोनी प्रधानमंत्री नितिनयाहू ने मास्को में रूस के राष्ट्रपति विलादीमीर पुतीन से गुरुवार को भेंटवार्ता की और बताया गया है कि इस मुलाक़ात में सीरिया के मुद्दे पर भी चर्चा की गयी है।
ईरान ने एस-300 का परीक्षण कर, उड़ाईं दुश्मनों की नींदे।
एस-300 मीज़ाइल सिस्टम के ईरान में सफल परीक्षण के बाद इसको ऑप्रेशनल बना दिया गया और दूसरे एयर डिफ़ेंस सिस्टम के साथ शामिल कर लिया गया है।
एस-300 मिसाइल सिस्टम के परिक्षण के दौरान (जिसे शनिवार को अपनी सैन्य क्षमता का अनुमान लगाने के लिए अंजाम दिया गया) बैलेस्टिक मिज़ाइलों और ड्रोन विमानों का पीछा करके उन्हें नष्ट किया गया।
ख़ातेमुल अंबिया एयर डिफ़ेंस हेडक्वार्टर के अध्यक्ष ब्रिगेडियर फडरज़ाद इस्माईल ने शनिवार को प्रेस रिपोर्टर से बातचीत में इस बात का ज़िक्र करते हुए कि एस-300 मीज़ाईल सिस्टम ईरान का हक़ था और उसने यह हक़ हासिल किया उन्होंने आगे कहा कि ऐस-300 मीज़ाइल सिस्टम भी आज ईरान द्वारा तय्यार किए गए मेरसाद और तलाश जैसे शक्तिशाली मीज़ाइल सिस्टम के साथ हर तरह की कार्यवाही के लिए तैय्यार है।
उन्होंने इस बात का ज़िक्र करते हुए कि दुश्मन की धमकियों का जवाब युद्ध के मैदान में देंगे कहा कि एस-300 मिज़ाइल सिस्टम का परीक्षण खुद ईरानी विशेषज्ञों ने संभावित खतरों और परियोजनाओं के तहत अंजाम दिया है और आगे भी कोई दूसरा व्यक्ति इस सिस्टम को ऑप्रेशनल करने में शामिल नहीं होगा।
बिग्रेडियर फ़रज़ाद इस्माईली ने कहा कि ईरान का बनाया हुआ एस-300 भी जल्द ही बावर-373 के नाम से टेस्ट किया जाएगा। उनका कहना था कि ईरान में तैय्यार किया जाने वाला एस-300 सिस्टम ईरानी टेक्नॉलॉजी के द्वारा तैय्यार किया जा रहा है जो रूसी एस-300 से भी अधिक विकसित है।