महिला समाज का केन्द्र है: इमाम ख़ुमैनी

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महिला समाज का केन्द्र है: इमाम ख़ुमैनी

इमाम ख़ुमैनी का मानना था कि महिला समाज में किनारे पर नहीं होती बल्कि वह समाज का केन्द्र है। इस बात में संदेह नहीं है कि महिला भी पुरूष के ही समान अपने भाग्य एवं भविष्य की स्वयं ही मालिक और अपने कर्म की उत्तरदायी होती है। कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारी के ध्रुव होने का अर्थ एक ओर संकल्प, अधिकार तथा कर्म की स्वतंत्रता है तो दूसरी ओर बुद्धि व ज्ञान होता है, और हर इन्सान ,महिला हो या पुरूष, अपने अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम के प्रति उत्तरदायी होता है। हमें इस बात पर गर्व है कि महिलाएं, बूढ़ी और जवान, छोटी,बड़ी सब संस्कृति, अर्थ व्यवस्था और सैन्य क्षेत्रों में उपस्थित रही हैं और पुरूषों के साथ या उनसे उत्तम रूप में इस्लाम की परिपूर्णता तथा क़ुरआन के लक्ष्यों की राह में सक्रिय हैं।

महिला की अपने भाग्य एवं भविष्य में भूमिका होनी चाहिये। इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाओं को मत देना चाहिये वैसे ही जैसे पुरूषों को मताधिकार है महिलाओं को भी मताधिकार है। जिस प्रकार पुरूषों की राजनैतिक विषयों में भूमिका होती है और वे अपने समाज की रक्षा करते हैं ,महिलाओं को भी भूमिका निभानी चाहिये तथा समाज की रक्षा करनी चाहिये। महिलाएं भी सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधयां पुरूषों के साथ-2 अंजाम दें।

महिला रचनात्मकता के मैदान मेः

समस्त ईरानी राष्टृ चाहे वह महिलाएं हों या पुरूष हमारे लिए (देश की) यह दुर्दशा जो छोङी गयी है उसे ठीक करें। यह केवल पुरूषों के हाथों ठीक नहीं होसकता। पुरूष एवं महिलाएं साथ मिल कर इन ख़राबियों को ठीक करें। साहसी एवं निष्ठावान महिलायें हमारे प्रिये पुरूषों के साथ महान ईरान को बनाने में उसी तरह लग जाएं जिस तरह उन्होंने स्वयं को ज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में बनाने के लिये प्रयास किये थे और आपको कोई भी नगर और गांव

संस्कृति एवं ज्ञान के क्षेत्र में महिला की उपस्थितिः

आप जानते हैं कि इस्लामी संस्कृति इस अवधि में अत्याचार ग्रस्त रही है, इन कई सौ वर्षों की अवधि में ,बल्कि आरम्भ से ही पैगम्बरे इस्लाम के बाद से अब तक,इस्लामी संस्कृति अत्याचार ग्रस्त रही है, इस्लामी नियम अत्याचार ग्रस्त रहे हैं, इस संस्कृति को जीवित करना होगा और आप महिलाएं जिस प्रकार परूष संलग्न हैं ,जिस प्रकार ज्ञान व संस्कृति के क्षेत्र में पुरूष लगे हुए हैं आप भी संलग्न हो जाएं।

महिलाओं की निरीक्षक भूमिकाः

इमाम खुमैनी का मानना था कि महिलाओं को कामों का निरीक्षण की ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। सभी महिलाओं एवं सभी पुरूषों को चाहिये कि सामाजिक विषयों एवं राजनैतिक विषयों में सम्मिलित रहें तथा उनका निरीक्षण करते रहें। संसद पर दृष्टि रखें, सरकार पर दृष्टि रखें और अपना दृष्टिकोण व्यक्त करें।

देश की सुरक्षा में महिलाओं की भूमिकाः

इस्लामी गणतंत्र ईरान पर थोपा गया युद्ध इस बात का कारण बना कि संघर्ष करने वाली बलिदानी महिलाओं को यह अवसर प्राप्त हुआ कि अपने महान अस्तित्व एवं मानवीय मूल्यों को बड़े सुन्दर ढ़ंग से और अत्यंत स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करें। यही कारण है कि स्वर्गीय इमाम खुमैनी की बातों और भाषणों का एक मुख्य आधार महिलाओं की उपस्थिति की आवश्यकता एवं शैली तथा उनके संघर्ष के प्रयास रहे हैं। इमाम खुमैनी का कहना थाः इस्लाम के आरम्भिक काल में महिलायें युद्धों में पुरूषों के साथ सम्मिलित होती थीं हम देख रहे हैं और देख चुके हैं कि महिलायें पुरूषों के साथ-2 बल्कि उनसे आगे युद्ध की पंक्तियों में खड़ी हुईं ,अपने बच्चों और जवानों को हाथ से खोया और फिर भी प्रतिरोध किया । ईश्वर न करे यदि किसी समय में इस इस्लामी देश पर कोई आक्रमण हो तो महिला व पुरूष सभी लोगों को गतिशील होना होगा। सुरक्षा का विषय ऐसा नहीं है कि केवल पुरूषों से संबंधित हो या किसी एक गुट से विशेष हो, सब को जाकर अपने देश की रक्षा करना होगी। मैं ने अब तक महान एवं योद्धा पुरूषों और महिलाओं द्वारा जो कुछ होते देखा है(उसके आधार पर) आशा करता हूं कि स्वयं सेवी संगठन में सैन्य, आस्था, नैतिकता एवं संस्कृति सभी के प्रशिक्षण में ईश्वर की सहायता से सफल हों तथा सैनिक व छापामार सभी प्रकार के व्यवहारिक शिक्षण- प्रशिक्षण को ऐसे उचित रूप में संपन्न करें जो एक क्रांतिकारी राष्टृ के लिये शोभनीय है। यदि सुरक्षा सब के लिए अनिवार्य हो, तो सुरक्षा की तय्यारी के लिये भी काम होना चाहिए ----यह नहीं है कि रक्षा करना हमारे लिए अनिवार्य हो और हम यह न जानते हों कि रक्षा कैसे करें। हमें जानना होगा कि रक्षा कैसे करें। अलबत्ता वह वातावरण जहां आप प्रशिक्षण ले रहे हैं उसे सही होना चाहिए , वातावरण इस्लामी हो, हर दृष्टि से चारित्रिक पवित्रता सुरक्षित होनी चाहिए, सभी इस्लामी आयाम सुरक्षित हों। यह दुष्प्रचार कि यदि इस्लाम आया तो महिलाएं जायें घर में बैठें और दरवाज़े पर ताला भी लगा दें कि बाहर न निकल सकें, यह कितनी ग़लत बात है जिसे इस्लाम से संबंधित करते हैं। इस्लाम के आरम्भ में महिलायें सेनाओं में होती थीं, रणक्षेत्र में भी जाती थीं।

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