इमाम शाफेई

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अबू अब्दिल्ला मुहम्मद इबने इदरीस इब्ने अब्बास शाफेअ, शाफेई मज़हब के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। आप अहले सुन्नत के तीसरे इमाम हैं और इमाम शाफेई के नाम से मशहूर हैं। आप का सिलसिल-ए-नस्ब जनाब हाशिम इब्ने अब्दे मनाफ के भतीजे की निस्बत से जनाब हाशिम इब्ने अब्दुल्-मुत्तलिब तक पहुँचता है।

 

में पैदा हुए और इसी दिन हनफी मज्ञहब के संस्थापक अबु-हनीफा का देहान्त हुआ। उनके पिता का बचपन ही में देहान्त हो गया था वह अपनी माता के साथ मक्का में रहते थे। आप की ज़िन्दगी बहुत ही सख़्त और फक़्र और फाक़े में गुज़री। आपने फिक़हो-उसूल को मक्के में पढा और एक मुद्दत तक यमन में शेअर,लुग़त और नहव का इल्म हासिल किया,यहाँ तक कि मुस्अब इब्ने अब्दिल्ला इब्ने ज़ुबैर ने आप को राये दी कि हदीस और फिक़्ह का इल्म हासिल करें। इस लिए आप मदीने चले गए उस वक़्त आप की आयू 20 साल थी। वहां पर आप मालिकी मज्ञहब के संस्थापक, मालिक इब्ने अनस के पास इल्म हासिल करते रहे।

 

 

शाफेई ख़ुद कहते हैःमै मकतब मे़ था , क़ुरआन के टीचर से आयात सीखता और उनको याद करता था और टीचर जो बात भी कहते वह मेरे दिमाग़ में बैठ जाती थी । एक दिन उन्होने मुझसे कहाःमेरे लिए जाएज़ नही है कि मै तुम से कोई चीज़ लूँ। इस वजह से मै मकतब से बाहर आ गया। मिट्टी के बरतन,खाल के टुक्ड़ो और खजूर के चौड़े पत्तों के ऊपर हदीसें लिखता था। आखिर में मक्का चला आया और हिज़क़ील ...के दरमियान ज़िन्दगी बसर करने लगा। 17 साल वहाँ पर रहा। जहाँ पर भी वह कूच करते थे मैं भी उनके साथ कूच करता था। जब मैं मक्का वापस पलटा तो शेअर,अदब और अख़बार को बहुत अच्छी तरह सीख लिया था। यहाँ तक कि एक दिन ज़ुबैरियून में से एक आदमी ने मुझसे कहाः मेरे लिए बहुत सख़्त है कि तुम इतनी होशियारी और फसाहत के बावजुद फिक़्ह का ज्ञान (इल्म) प्राप्त न करो। इस लिए मैं तुम्हें मालिक के पास ले जाऊँगा। इस के बाद मैने मालिक की किताब (अल-मौता) जो पहले से मेरे पास मौजूद थी। नौ दिन इस किताब को खूब पढा। और मदीने मे मालिक इब्ने अनस के पास चला गया और वहाँ पर ज्ञान (इल्म) प्राप्त करने लगा।

इमाम शाफेई मालिक इब्ने अनस के मरने तक मदीने में रहे और फिर यमन चले गए। वहाँ पर आप अपने कामों में व्यस्त हो गए। उस समय यमन का हाकिम, हारून-रशीद का गवर्नर बहुत अत्याचारी था। इस लिए उसने इस बात से डरते हुए कि शायद शाफेई अल्वियों के साथ बग़ावत न कर दे, उनको गिरफ्तार कर के हारून-रशीद के पास भेज दिया। लेकिन हारून-रशीद ने उनको क्षमा कर दिया। मुहम्मद इब्ने इदरीस एक समय तक मिस्र और फिर बग़दाद चले गए। वहाँ पर उन्होंने पढाना आरम्भ किया। वहाँ पर दो साल पढाने के बाद फिर मक्के आ गए। फिर दुबारा बग़दाद गए और रजब महीने 200 हि. के अन्त में फत्तात मिस्र में देहान्त हो गया। उस समय आप की आयू 54 साल थी। आप की क़ब्र मिस्र में बनी-अब्दूल-हुक्म के मक़्बरे में शहीदों की क़ब्रो और अहले सुन्नत की ज़ियारत-गाह के पास है। आपके प्रसिद्ध शिष्य अहमद इब्ने हम्बल है। जो कि हम्बली धर्म के संस्थापक थे।

अहले सुन्नत ने आप की बहुत सी लिखी हुई किताबों का वर्णन (ज़िक्र) किया है लेकिन हम यहाँ पर कुछ किताबों को गिना रहे हैः

1-अल-उम

2-अल-मुस्नदुश्शाफेई

3-अस-सुनन

4-इस्तिक़बालुल-क़िब्ला

5-ईजाबूल-कबीर

6-किताबुत्तहारत

7-सलातुल-ईदैन

8-सलातुल-कुसूफ

9-अलमनासिकुल-कबीर

10-अर्रिसालतुल-जदीदा

11-किताबे इख्तिलाफुल-हदीस

12-किताबुश्शहादात

13-किताबुस्सहाबा

14-किताबे कसरुल-अरज़

कयोंकि आप के पाठन (शिक्षा देने) की सबसे अच्क्षी जगह बग़दाद और क़ाहिरा थी इस लिए शाफेई धर्म उनके शिष्यों और मानने वालों के दवारा इन

दो जगहों से दूसरी जगहों पर पहुँचा और धीरे धीरे इस्लामी देशों विशेष कर शाम,खुरासान और माविराउन-नहर में फैल गया। अगरचे पाँचवीं और छठीं सदी में शाफेईया और हनाबेला के बीच बग़दाद में और शाफेईया और हनफिया के बीच इस्फहान में बहुत लड़ाईयाँ हुईं। याक़ूत के समय में शाफेईया शियों और हनफियों से जंग करने के बाद रै शहर पर क़ाबिज़ हो गए। आज के समय में शाफेई धर्म मिस्र , पूर्वि और दक्षिणी अफरीक़ा पश्चिमी और दक्षिणी सऊदी अरब , इन्डोनेशिया , फिलिस्तीन के कुछ भाग और एशिया का एक भाग विशेष कर कुर्दिस्तान में प्रचलित है। शाफेई धर्म के प्रसिध्द विधवान में नेसाई,अबुल-हसन अल-अशअरी,अबु-इस्हाक़ शिराज़ी,इमामुल-हरमैन,अबुहामिद ग़ज़ाली,और इमाम राफेई का नाम लिया जा सकता है।

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