رضوی

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एक इन्टरव्यू में, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के पूर्व कमांडर ने ज़ायोनी शासन और ईरान के बीच हाल ही में हुए बारह दिवसीय युद्ध के विभिन्न पहलुओं और अमेरिका और ज़ायोनी शासन के मीडिया दावों पर रोशनी डाली।

रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के पूर्व कमांडर मेजर जनरल मोहसिन रेज़ाई ने मंगलवार शाम को एक साक्षात्कार में कहा: हाल ही में हुए बारह दिवसीय युद्ध में, इज़राइल और अमेरिका, ईरान से हार गए।

श्री मोहसिन रेज़ाई ने वाशिंगटन और तेल अवीव द्वारा हाल के घटनाक्रमों का दुष्प्रचार करने का उल्लेख करते हुए कहा: इस दुष्प्रचार के कई लक्ष्य हैं: पहला, जनता की राय को भटकाना और ईरान की जीत पर सवाल उठाने वाली कहानियां बताना।

"दूसरा लक्ष्य, ऐसा लगता है कि जब ट्रम्प ने कहा कि परमाणु मामला खत्म हो गया है, तो उनका लक्ष्य ईरान को धोखा देना था, जैसी चाल उन्होंने बातचीत के दौरान चली थी।

उन्होंने आगे कहा: अब हमें देखना होगा कि वास्तव में ये जीते हैं या नहीं, हम किस दृष्टिकोण से इज़राइल की उपलब्धियों और लागतों की जांच कर सकते हैं।

इज़रायल के वित्त मंत्रालय के अनुसार, इन 12 दिनों में युद्ध पर लगभग 20 बिलियन डॉलर का खर्च आया।

अमेरिकी THAAD मिसाइलों के दो साल के उत्पादन के बराबर उत्पादन इन 12 दिनों में खर्च हो गया। प्रत्येक मिसाइल बहुत महंगी है। इसका मतलब है कि उन्होंने दो साल के उत्पादन के बराबर मिसाइल को 12 दिनों में ही आसमान में दाग़ दिया।

रज़ाई ने ईरान की सैन्य उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया:

हमने लगभग 80 ड्रोन मार गिराए हैं, जिनमें से 32 ड्रोन के मलबे अभी हमारे पास हैं। इनमें हरमीस और हेरॉन जैसे अत्याधुनिक ड्रोन शामिल हैं। हमारे रडारों ने 80 सफल हमले दर्ज किए हैं। साथ ही, इस्राइल की मानवीय क्षति और सुरक्षा व आर्थिक केंद्रों को भारी नुकसान पहुंचा है। अब देखना यह है कि इतनी भारी कीमत चुकाकर उन्हें क्या हासिल हुआ।

 उन्होंने इस्राइल की सुरक्षा नीतियों की जड़ों पर रोशनी डालते हुए कहा:

इस्राइल का अस्तित्व पूरी तरह 'पूर्ण सुरक्षा' की अवधारणा पर टिका है। उन्होंने दुनिया भर से लोगों को बसाकर यह विश्वास दिलाया कि यहां उन्हें कोई ख़तरा नहीं है। साथ ही, आर्थिक लाभ भी सुरक्षा पर निर्भर रहा है। लेकिन इस बार इस्राइल की सुरक्षा प्रणाली ध्वस्त हो गई है। उनकी सुरक्षा व्यवस्था छलनी और जर्जर हो चुकी है, जो इस्राइल के अस्तित्व के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

 

गाज़ा में इस्राइली सेना की नई बमबारी में 24 और फिलिस्तीनी शहीद हो गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।

गाज़ा में इस्राइली सेना की नई बमबारी में 24 और फिलिस्तीनी शहीद हो गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।

अस्पतालों में ईंधन खत्म, मदद की गुहार गाज़ा के दो बड़े अस्पतालों ने ईंधन खत्म होने की वजह से दुनिया से मदद की अपील की है। 

अशशिफा अस्पताल के निदेशक डॉ. मोहम्मद अबू सलमिया ने कहा,अस्पताल में 100 से ज़्यादा नवजात बच्चे और 350 डायलिसिस मरीज़ खतरे में हैं। ऑक्सीजन, ब्लड बैंक और लैब जल्द ही बंद हो जाएंगे।

यह जगह जल्द ही एक कब्रिस्तान बन सकती है। अलअक्सा अस्पताल और अल-बुरेज शरणार्थी कैंप भी भारी बमबारी से प्रभावित हुए हैं। 

 

 यमनी सशस्त्र बलों के एक प्रवक्ता ने घोषणा की कि उम्म-अर-रश्राश (इलात) की मक़बूज़ा बंदरगाह के लिए जा रहे एक व्यापारिक जहाज़ को निशाना बनाकर डुबो दिया गया।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरी ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा: मज़लूम फ़िलिस्तीनी जनता और उनके साहसी मुजाहेदीन के समर्थन में, यमनी नौसेना ने ड्रोन नौका और 6 क्रूज़ व बैलिस्टिक मिसाइलों से उस व्यापारिक जहाज़ (इटर्निटी सी) (ETERNITY C) को निशाना बनाया जो मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन के उम्म अल-रशराश बंदरगाह की ओर बढ़ रहा था। इस ऑप्रेशन के परिणामस्वरूप जहाज पूरी तरह डूब गया और इस ऑपरेशन का पूरा ऑडियो और वीडियो बनाया गया।

ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरी ने कहा: इस ऑपरेशन के बाद, यमनी नौसेना की एक विशेष इकाई को जहाज के चालक दल के कई सदस्यों को बचाने के लिए भेजा गया और उन्हें बुनियादी चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के बाद, सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया।"

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने बयान में जोर देकर कहा कि जहाज और उसकी मालिक कंपनी ने एक बार फिर इस मार्ग पर यात्रा करने का प्रयास किया है, जो उम्म अल-रशराश बंदरगाह के साथ संपर्क पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय का स्पष्ट उल्लंघन है और उन्होंने यमनी नौसेना की चेतावनियों और संदेशों को भी नजरअंदाज किया है।

यहिया सरी ने एक बार फिर रेड सी और अरब सी के जलक्षेत्र में समुद्री यातायात पर इज़राइली शासन की नाकेबंदी जारी रखने पर जोर दिया, तथा चेतावनी दी कि मक़बूज़ा फिलिस्तीनी बंदरगाहों के साथ संपर्क रखने वाली सभी कंपनियों को निशाना बनाया जाएगा, चाहे उनके जहाजों का स्थान या मार्ग कुछ भी हो।

बयान में कहा गया है कि ये सैन्य कार्रवाइयां ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों को ग़ज़ा की घेराबंदी हटाने, आक्रमण को रोकने और फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ भीषण नरसंहार को समाप्त करने के लिए मजबूर करने का एक प्रयास है।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने मज़लूम फिलिस्तीनी जनता के साथ अपने सहायक सैन्य अभियानों और उनके सच्चे और नेक प्रतिरोध को तब तक जारी रखने पर जोर दिया जब तक कि आक्रमणों का पूर्ण अंत नहीं हो जाता और ग़ज़ा पर घेराबंदी नहीं हटा ली जाती।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने सोमवार को एक बयान में बताया कि यमनी सेना की नौसेना, मिसाइल और ड्रोन इकाइयों ने एक बड़े पैमाने पर ऑप्रेशन के दौरान, लाल सागर में "मैजिक सीज़" व्यापारी जहाज को निशाना बनाया, जो उस कंपनी से संबंधित था जिसका मक़बूज़ा फिलिस्तीन के बंदरगाहों में प्रवेश पर प्रतिबंध का उल्लंघन करने का इतिहास रहा है।

एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि सोमवार का ऑप्रेशन मज़लूम फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन और लाल और अरब सागर के पानी में इज़राइली शासन के जहाजों की निरंतर नौसैनिक नाकेबंदी के जवाब में किया गया था।

यहिया सरी ने कहा कि हमले के दौरान सतह से हवा में मार करने वाली दो मिसाइलें, पांच बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें तथा तीन हमलावर ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।

उन्होंने कहा: मैजिक सीज़ जहाज पर सीधा हमला हुआ और यमनी बलों ने जहाज के चालक दल को सुरक्षित बाहर निकलने में मदद की।  इस बयान के बाद, यमनी सशस्त्र बलों ने मैजिक सीज़ जहाज के पूरी तरह डूबने की तस्वीरें जारी कीं। 

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा: हमारे पास प्रचार के साधनों और प्रमाणों की कोई कमी नहीं है। अगर, अल्लाह न करे, हम प्रचार में ढिलाई बरतें, तो यह हमारी लापरवाही या गलती का संकेत है।

शिया मरजा तक़लीद हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने एक लेख में कहा है कि "हमारे पास प्रचार के लिए पर्याप्त सामग्री है। अगर, अल्लाह न करे, हम इसे कम कर दें, तो इसका मतलब है कि कमी हममें है।"

उन्होंने आगे कहा: "लोगों का स्वभाव इन बातों को स्वीकार करता है, बुद्धि भी इन बातों को स्वीकार करती है, लेकिन इन बातों का असर होने के लिए ज़रूरी है कि इन्हें पाक और अच्छी वाणी से कहा जाए और उसके बाद नेक काम किए जाएँ। तभी लोग इन्हें अपने दिल और आत्मा से स्वीकार करेंगे।"

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद सादिक वहीदी गुलपायगानी ने कहा कि ईरान का आशूरा-प्रेमी दुश्मनों के अत्याचार के आगे झुकने वाला नहीं है उन्होंने कहा कि इज़राईल और उनके समर्थकों के खिलाफ संघर्ष ही इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा और गौरव को बचाने का एकमात्र विकल्प है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद सादिक वहीदी गुलपायगानी ने कहा कि ईरान का आशूरा-प्रेमी दुश्मनों के अत्याचार के आगे झुकने वाला नहीं है उन्होंने कहा कि इज़राईल और उनके समर्थकों के खिलाफ संघर्ष ही इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा और गौरव को बचाने का एकमात्र विकल्प है। 

उन्होने कहा कि सियोनिस्ट शासन के खिलाफ लड़ाई की जड़ें कुरान की शिक्षाओं में हैं उन्होंने कहा, "सियोनिस्टों के खिलाफ प्रतिरोध को राष्ट्रवादी या केवल मानवतावादी मुद्दे तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। 

उन्होंने आगे कहा,अल्लाह ने कुरान में सियोनिस्ट यहूदियों के मानवता-विरोधी और धर्म-विरोधी कार्यों के बारे में बात की है और हमें इस समूह से सावधान रहने की चेतावनी दी है। आज दुनिया में यह समूह कला और मीडिया के हथियारों से लैस होकर गाजा में नरसंहार और ईरान पर आक्रमण को सही ठहराता है और इसे 'पूर्व-emptive ऑपरेशन' कहता है। 

उन्होंने कहा,सियोनिस्ट शासन के खिलाफ संघर्ह राजनीतिक इस्लाम के सिद्धांतों, मानवीय नैतिकता, तर्क और ठोस तर्क पर आधारित है। इसी आधार पर, सियोनिस्ट शासन के आक्रमण के दिनों में भी ईरानी राष्ट्र पहले से अधिक मजबूती के साथ मैदान में उतरा और एकजुट होकर दुश्मन को घुटनों पर ला दिया आज भी यह राष्ट्र दुश्मनों के झूठे प्रचार और भ्रम फैलाने से प्रभावित नहीं होता।

हुज्जतुल इस्लाम वहीदी गुलपायगानी ने कहा, ईरान का आशूरा-प्रेमी राष्ट्र दुश्मनों के अत्याचार के आगे झुकने वाला नहीं है। सियोनिस्टों और उनके समर्थकों के खिलाफ प्रतिरोध और संघर्ष ही इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा और गौरव को बचाने का एकमात्र विकल्प है यह वही रास्ता है जो इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों ने आशूरा के आंदोलन में हमें दिखाया था।

उन्होंने कहा,प्रतिरोध की कीमत आत्मसमर्पण और समझौते की कीमत से कहीं कम है अगर हम आत्मसमर्पण कर दें, तो राष्ट्रीय पहचान और मानवीय गरिमा नष्ट हो जाएगी और हमें हर दिन दुश्मनों के सामने और अधिक झुकना पड़ेगा, हम हीन और अपमानित हो जाएंगे।

इराक से लीबिया तक कई देशों का अनुभव इस सच्चाई को साबित करता है। इसी आधार पर, सर्वोच्च नेता इमाम खामेनेई, इमाम खुमैनी र.ह के आंदोलन को जारी रखते हुए और इस्लामी गणतंत्र के आदर्शों के आधार पर, प्रतिरोध के विकल्प पर जोर देते हैं। 

 

 

लंदन स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास ने एक बयान जारी कर ब्रिटेन द्वारा तेहरान की ओर से सुरक्षा खतरों के दावों को निराधार बताया और इसे लंदन की काल्पनिक दुश्मनी की नीति का हिस्सा करार दिया हैं।

लंदन स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास ने एक बयान जारी कर ब्रिटेन द्वारा तेहरान की ओर से सुरक्षा खतरों के दावों को निराधार बताया और इसे लंदन की काल्पनिक दुश्मनी की नीति का हिस्सा करार दिया हैं।

ईरान के दूतावास के बयान में ब्रिटिश संसद द्वारा तेहरान पर लगाए गए आरोपों को निराधार गैर-जिम्मेदाराना और तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने की एक श्रृंखला बताया गया, जिसका उद्देश्य ईरान के हितों को नुकसान पहुँचाना है। 

बयान में कहा गया कि ब्रिटिश संसद के ये आरोप पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक हैं तथा इनका कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है।

ईरानी दूतावास ने चेतावनी दी कि लंदन इन खतरनाक और अपमानजनक आरोपों के जरिए बिना किसी वजह तनाव बढ़ा रहा है और कूटनीतिक नियमों को कमजोर कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप स्थिति और गंभीर हो सकती है। 

 

 लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने अल-मयादीन चैनल को दिए एक इंटरव्यू में मध्यपूर्व की घटनाओं, ईरान और इस्लामी क्रांति के नेता की प्रतिरोध के मोर्चे को मजबूत करने में भूमिका, और इस्राइल के खिलाफ इस आंदोलन की रणनीति पर रोशनी डाली।

अल-मयादीन चैनल से हुए इस विस्तृत इन्टरव्यू में जो गुरुवार को जारी किया गया, लेबनान में हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए, जिनमें ग़ज़ा युद्ध का समर्थन करने की प्रक्रिया, लेबनान में युद्ध, राजनीतिक और सैन्य आयामों में हिज़्बुल्लाह की वर्तमान स्थिति, पेजर घटना और ईरान से संबंधित घटनाक्रम शामिल हैं।

पार्सटुडे के अनुसार, उन्होंने कहा: लेबनान के हिज़्बुल्लाह नेतृत्व परिषद में ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों के बाद आयोजित बैठक के बाद, यह फ़ैसला किया कि ग़ज़ा के लिए समर्थन सीमित तरीके से किया जाएगा और इस संबंध में अंतिम निर्णय होने तक घटनाक्रमों की समीक्षा की जाएगी।

उन्होंने कहा: समर्थन अभियान में शामिल होने के कुछ हफ़्ते बाद, अंतिम परिणाम यह निकला कि हिज़्बुल्लाह मुकम्मल युद्ध में शामिल नहीं होगा। इसका कारण यह था कि मुकम्मल युद्ध में शामिल हुए बिना भी वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव था।

लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि समर्थन मोर्चे के लिए आंदोलन के लक्ष्यों में उत्तरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में इज़राइली सैन्य बलों को शामिल करना, उत्तरी मक़बूज़ा फिलिस्तीन में सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा संकट पैदा करने के लिए प्रवासियों को भेजना और इज़राइली सैनिकों को सबसे अधिक संख्या में हताहत करना शामिल है।

 हिज़्बुल्लाह को तूफ़ान अल-अक्सा ऑप्रेशन की पहले से कोई जानकारी नहीं थी

 शैख़ नईम क़ासिम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तूफ़ान अल-अक्सा के ऑप्रेशन के संबंध में फिलिस्तीनी प्रतिरोध बलों के साथ कोई समन्वय नहीं था। उन्होंने आगे कहा: "हमें इस ऑप्रेशन की जानकारी नहीं थी और इसी कारण से हम पूर्ण युद्ध में शामिल नहीं हुए।

उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह को क़स्साम ब्रिगेड के कमांडर-इन-चीफ़ शहीद मुहम्मद ज़ैफ़ से एक पत्र मिला है, जिसमें कहा गया है कि ग़ज़ा में हिज़्बुल्लाह के समर्थन अभियान पर्याप्त हैं और वे उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि उनके पास जो जानकारी है उसके अनुसार, तेहरान को भी 7 अक्टूबर के ऑप्रेशन की जानकारी नहीं थी, और यहां तक ​​कि ग़ज़ा के बाहर हमास के कई कमांडरों को भी इस ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी।

 पेजर धमाकों की कहानी क्या थी?

 लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: पेजर खरीदने के मामले में, पिछले डेढ़ साल में सुरक्षा संबंधी खामी सामने आ गयी है, और पेजर में लगाए गए विस्फोटक ऐसे थे, जिन्हें मौजूदा उपकरणों से नहीं पकड़ा जा सकता था।

शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि पेजर ऑप्रेशन से दो दिन पहले, संदिग्ध संकेत मिले थे, जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि पेजर टूट गए थे, जिसके कारण इज़राइल को अपना ऑप्रेशन पहले ही करना पड़ा।

 उन्होंने कहा कि तुर्किए में 1 हज़ार 500 बम से लैस पेजर थे, जिन्हें लेबनान के अंतरिम प्रधानमंत्री नजीब मीक़ाती के अर्दोग़ान से अनुरोध पर तबाह कर दिया गया।

शैख़ नईम क़ासिम ने हिज़्बुल्लाह के तत्वों पर मानवीय प्रभाव को गुप्तचर गतिविधियों, ड्रोनों और अन्य टेक्नालाजीज़ के माध्यम से प्राप्त जानकारी की मात्रा की तुलना में बहुत सीमित बताया, तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह के मुख्य तत्वों या आंतरिक नेताओं के बीच कोई सुरक्षा प्रभाव नहीं था। उन्होंने वादा किया कि यदि ऐसा कुछ साबित हो जाता है तो वे इस मुद्दे को जनता के साथ साझा करेंगे।

 लेबनान के युद्धविराम के बाद के घटनाक्रम पर हिज़्बुल्लाह की प्रतिक्रिया

 युद्ध विराम पर हस्ताक्षर के बाद लेबनान के खिलाफ ज़ायोनी शासन के निरंतर हमलों के संबंध में, शैख़ नईम क़ासिम ने ज़ोर देकर कहा कि हिज़्बुल्लाह अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं करेगा।

साथ ही उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मौजूदा दबावों से वांछित लक्ष्य हासिल नहीं होंगे और हिज़्बुल्लाह कभी भी आत्मसमर्पण नहीं करेगा। लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि हिज़्बुल्लाह सुधार के दौर में है, तथा इस बात पर जोर दिया कि यदि इज़राइल, लेबनान पर हमला करता है तो हम उनसे लड़ेंगे।

उन्होंने हिज़्बुल्लाह के 500 मध्यम और भारी हथियारों के डिपो को नष्ट करने के बारे में ज़ायोनी अफवाहों का उल्लेख किया और कहा कि वे केवल लीतानी नदी के दक्षिण के क्षेत्र के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन लेबनान विशाल है और मैं विवरण के बारे में बात नहीं करना चाहता।

 प्रतिरोध की मज़बूती में ईरान की भूमिका

 लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने युद्ध के मुद्दे में ईरान की भूमिका की ओर इशारा किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि तेहरान का स्पष्ट आकलन है कि युद्ध में ईरान के प्रवेश का मतलब होगा अमेरिका का ईरान के साथ युद्ध में प्रवेश, जिससे इजरायल को लाभ होगा, जो अमेरिका को संघर्ष में घसीटना चाहता था।

उन्होंने कहा: इसलिए, ईरानियों के लिए बेहतर होता कि वे इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करते और वित्तीय, सैन्य, राजनीतिक और मीडिया समर्थन प्रदान करने में अपनी भूमिका जारी रखते। इस समर्थन ने हमारी स्थिरता और प्रतिरोध की पूरी धुरी की स्थिरता में एक बुनियादी भूमिका निभाई।

उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई ग़ज़ा और लेबनान में हो रहे घटनाक्रम पर दैनिक आधार पर नजर रखते थे और रिपोर्टें उन तक पहुंचती थीं तथा उन्होंने इस संबंध में असाधारण कार्रवाई की।

 सीरिया के घटनाक्रम पर हिज़्बुल्लाह की पोज़ीशन

 शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि सीरिया के घटनाक्रम का ग़ज़ा पर प्रभाव पड़ा, इसलिए जब सीरियाई सरकार गिर गई, तो सीरिया की सहायक भूमिका भी समाप्त हो गई।

उन्होंने ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने से संबंधित मुद्दों को बहुत खतरनाक बताया और इस बात पर ज़ोर दिया कि सीरिया को सामान्यीकरण प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

यह उल्लेख करते हुए कि सीरियाई लोगों पर हमारा भरोसा बहुत ज़्यादा है। शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि सीरियाई लोग सामान्यीकरण को स्वीकार नहीं करेंगे, और यह उनकी और हमारी ज़िम्मेदारी है।

ज़ायोनी शासन द्वारा सीरियाई भूमि पर जारी क़ब्ज़े का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इज़राइल ने गोलान हाइट्स और कुनैतरा के 600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया है, लेकिन सीरियाई सरकार ने कुछ नहीं किया है।

उन्होंने सीरियाई सेना और सरकार के लिए कोई सैन्य शक्ति नहीं छोड़ी है और अपने हमले जारी रखे हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ज़ायोनी शासन एक अतिवादी और आपराधिक शासन है जो ख़ूंख़ार और बर्बर है, और दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह अमेरिका उसके साथ है।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि हिज़्बुल्लाह, सीरियाई सरकार के संबंधों को सामान्य बनाने के दृष्टिकोण को बदलने के लिए कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाएगी क्योंकि उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि, वह सैद्धांतिक रूप से सामान्यीकरण प्रक्रिया का विरोध करती है।

 लेबनान के आंतरिक घटनाक्रम

 लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने भी देश के आंतरिक घटनाक्रम और जनरल जोसेफ़ औन के रुख़ की समीक्षा की, इन रुखों की प्रशंसा की और कहा: यह पहले ही क्षण से स्पष्ट था कि उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि इज़राइल को लेबनान से निकल जाना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि ये सिद्धांत वही सिद्धांत हैं जिन पर हिज़्बुल्लाह विश्वास करता है, और ये पूरी तरह से राष्ट्रवादी सिद्धांत हैं।

उन्होंने सेना, राष्ट्र और प्रतिरोध के त्रिकोण को लेबनान की वर्तमान ताक़त का बिंदु माना, और इस बात पर ज़ोर दिया कि दुनिया वर्तमान में इस बारे में सोच रही है कि लेबनान के साथ कैसे बातचीत की जाए, क्योंकि यह देश मजबूत है, और अगर लेबनान कमजोर होता, तो कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता। 

 

हज़रत इमाम हुसैन (अस) ने सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध आंदोलन किया। उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह बयान किया है किः

  1. जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम स.अ.) की उम्मत में सुधार के लिये जा रहा हूँ। तथा मेरा मक़सद लोगों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने बाबा इमाम अली (अस) की सुन्नत पर चलूँगा।
  2. एक दूसरे अवसर पर आपने कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह हुकूमत से दुश्मनी या दुनियावी मोहमाया के लिये नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे दीन की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए। तथा तेरे बंदों के बीच सुधार करें ताकि लोग अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे दीन के सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके।
  3. जब आप की मुलाक़ात हुर इब्ने यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो, आपने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह काम अल्लाह को ख़ुश करने के लिए बहुत अच्छा है। ख़िलाफ़त पद के अन्य अत्याचारी दावेदारों के मुकाबले में हम अहलेबैत सबसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं।
  4. एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत हुकूमत के लिये उन लोगों से ज़्यादा हक़दार हैं जो हुकूमत पर क़ब्ज़ा जमाए हैं। इन चार कथनों में जिन उद्देश्यों की और इशारा किया गया है वह इस तरह हैं,
  5. इस्लामी समाज में सुधार।
  6. लोगों को अच्छे काम की नसीहत।
  7. लोगों को बुरे कामों के करने से रोकना।
  8. हज़रत पैगम्बर(स.) और हज़रत इमाम अली (अस) की सुन्नत को किर्यान्वित करना।
  9. समाज को शांति व सुरक्षा प्रदान करना।
  10. अल्लाह के आदेशो के पालन के लिये रास्ता समतल बनाना।

यह सारे उद्देश्य उसी समय हासिल हो सकते हैं जब हुकूमत की बाग़डोर ख़ुद इमाम के हाथो में हो, जो इसके वास्तविक अधिकारी भी हैं। इसलिये इमाम ने ख़ुद कहा भी है कि हुकूमत हम अहलेबैत का अधिकार है न कि हुकूमत कर रहे उन लोगों का जो अत्याचारी हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

उन्होंने लिखा कि इमाम अ.स. का इनकार न तो किसी निजी दुश्मनी की वजह से था और न ही यह कोई साधारण राजनीतिक विरोध था, बल्कि यह फैसला एक गहरी क़ुरआनी और धार्मिक सोच पर आधारित था। यह इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों की हिफाजत के लिए ज़रूरी था।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, हुकूमत का हक सिर्फ उसी को है जो:कुरआन की गहरी समझ रखता हो,अमली तौर पर दीनदार हो,और अल्लाह का आज्ञाकारी हो।

इमाम हुसैन अ.स. ने इन्हीं उसूलों की बुनियाद पर यज़ीद जैसे फासिक और पापी शासक की बैअत से इनकार कर दिया, क्योंकि वह कुरआन, ईमानदारी और इंसाफ की राह से भटक चुका था।

इस्लामी निज़ाम में क़ियादत उन्हें मिलनी चाहिए जो आम जनता से ज़्यादा जागरूक, न्यायप्रिय और परहेज़गार हों, ताकि वो समाज को अल्लाह के दीन के मुताबिक चला सकें। जबकि बनू उमय्या ने ताक़त, फरेब और मुनाफ़िक़त (पाखंड) के ज़रिये हुकूमत पर क़ब्ज़ा कर रखा था और इस्लामी मूल्यों को रौंद रहे थे।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का क़ियाम दरअसल एक इलाही जिहाद था, ताकि उम्मत-ए-मुस्लिमा को दोबारा हक़, इंसाफ और तक़्वा (पवित्रता) की राह पर लाया जाए, और ज़ालिम और गुनहगार हुक्मरानों के हाथों में उम्मत की तक़दीर न रहे।

इमाम (अ.स.) के बैअत से इंकार ने यह बात साफ कर दी कि बातिल की इताअत (आज्ञा) मुमकिन नहीं है, चाहे उसकी ताक़त कितनी भी बड़ी क्यों न हो। और यही आशूरा का सबसे बुनियादी सबक है:ज़ुल्म के सामने ख़ामोशी नहीं, बल्कि क़ियाम ही एकमात्र रास्ता है।

अस्सलामु अलैक या अबा अब्दिल्लाहिल हुसैन (अ.स.)

 

हज़रत वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी आप बनी क्लब के एक फर्द थे हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया।

आप का नाम वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी था । आप बनी क्लब के एक फर्द थे । हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया है।

हम आप के वाकेयाते शहादत को किताब के ज़रिये ज़िक्र-अल-अब्बास से नक़ल करते है कर्बला की हौलनाक जंग में हुस्सैनी बहादुर निहायत दिलेरी से जान दे-दे श्र्फे शहादत हासिल कर रहे थे ।

यहाँ तक की जनाबे वहब बिन अब्दुल्लाह अल-कलबी की बारी आई । यह हुस्सैनी बहादुर पहले नसरानी था और अपनी बीवी और वालिद समेत इमाम हुसैन अलै० के हाथो पर मुसलमान हुआ था ।

आज जब की यह इमाम हुसैन अलै० पर फ़िदा होने के लिए आमादा हो रहे है उनकी वालेदा हमराह है माँ ने दिल बढ़ाने के लिए वहब से कहा , बेटा आज फ़रज़न्दे रसूल पर कुर्बान हो कर रूहे रसूल मकबूल स० को खुश कर दो । बहादुर बेटे ने कहा, मादरे गिरामी आप घबराये नहीं इंशा अल्लाह ऐसा ही होगा।

अलगरज आप इमाम हुसैन अलै० से रुखसत होकर रवाना हुए और रजज पढ़ते हुए दुश्मनों पर हमलावर हुए आप ने कमाले जोश व शुजाअत में जमाअत की जमाअत को कत्ल कर डाला इस के बाद अपनी माँ “कमरी”और बिवी की तरफ वापिस आये ।

माँ से पूछा मादरे गिरामी आप खुश हो गई माँ ने जवाब दिया मै उस वक्त तक खुश न होउंगी जब तक फ़रज़न्दे रसूल के सामने तुम्हे खाको खून में गलता न देखूं । यह सुन कर बीवी ने कहा, ऐ वहब मुझे अपने बारे में क्यों सताते हो और अब क्या करना चाहते हो?

माँ पुकारी “यांनी बनी ल तक्बिल कौल्हा” बेटा बीवी की मोहब्बत में न अ जाना खुदारा जल्द यहाँ से रुखसत होकर फ़रज़न्दे रसूल पर अपनी जान कुर्बान कर दो वहब ने जवाब दिया मादरे गिरामी ऐसा ही होगा।

 

मुझे इमाम हुसैन का इज्तेराब और हजरते अब्बास जैसे बहादुर की परेशानी दिखाई दे रही है भला क्योकर मुमकिन है की मै ऐसी हालत में ज़रा भी कोताही करूँ इस के बाद जनाबे वहब मैदाने जंग की तरफ वापिस चले गए और कुछ अशआर पढ़ते हुए हमलावर हुए यहाँ तक की आपने उन्नेस१९ ब-कौले१२ सवार और १२ प्यादे कत्ल किये इसी दौरान में आप के दो हाथ कट गए

उनकी यह हालत देखकर उनकी बीवी को जोश आ गया और वह एक चौबे खेमा लेकर मैदान की तरफ दौड़ी और अपने शौहर् को पुकार का कहा खुदा तेरी मदद करें । हाँ फ़रज़न्दे रसूल के लिए जान दे दो और सुन इसके लिए मै अब भी अमादा हूँ ।

यह देख कर वहब अपनी बीवी की तरफ इसलिए फौरन्न आये की उन्हें खेमे तक पंहुचा दे उस मुख्द्दर ने उन का दामन थाम लिया और कहा मै तेरे साथ मौत की आगोश में सोउंगी । फिर इमाम हुसैन अले० ने उसे हुकुम दिया की वह खेमो में वापिस चली जाए । चुनाचे वह वापिस चली गई उसके बाद वहब मशगूले कार्जार हो गए ।

और काफी देर तक नबर्द आजमाई के बाद दर्जा-ऐ-शहादत पर फाऐज हुए वहब के ज़मीन पर गिरते ही उनकी बीवी ने दौड़ कर उन् का सर अपनी आगोश में उठा लिया उन के चेहरे से गर्दो-गुबार और सर व आख से खून साफ़ करने लगी इतने में शिमरे लई के हुकुम से उसके गुलाम रुस्तम लई ने उस मोमिना के सर पर गूरजे आहनी मारा और यह बेचारी भी शहीद हो गई ।

मोर्रखींन का कहना है की “वही अव्वल अम्रात क्त्ल्त:फी अस्कर-अल-हुसैन”  यह पहली औरत है जो लश्करे हुसैन में कत्ल की गई । एक रिवायत में है जब वहब ज़मीन पर गिरे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया यानी उनकी लाश पर कब्ज़ा करके सर काट लिया गया ।

उसके बाद उस सर को खेमा-ऐ-हुस्सैनी की तरफ फेक दिया और माँ ने उस सर को उठा लिया बोसे दिए और दुश्मन की तरफ फेक कर कहा, हम जो चीज़ रहे मौला में देते है उसे वापिस नहीं लेते । कहते है की वहब का फेका हुआ सर एक दुश्मन के लगा और वह हालाक हो गया । फिर माँ चौबे खेमा लेकर निकली और दुश्मनों को कत्ल कर के ब-हुक्मे इमाम हुसैन खेमे में वापिस चली गई ।