
رضوی
रमज़ान, बंदगी की बहार-1
रमज़ान अरबी कैलेंडर के उस महीने का नाम हैं जिस महीने में पूरी दुनिया में मुसलमान, रोज़ा रखते हैं।
अर्थात सुबह से पहले एक निर्धारित समय से, शाम को सूरज डूबने के बाद एक निर्धारित समय तक खाने पीने से दूर रहना होता है। कुरआने मजीद में इस संदर्भ में कहा गया है कि रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन, सही मार्ग का चिन्ह और सत्य व असत्य के मध्य अंतर करने वाला है तो जो भी रमज़ान के महीने तक पहुंचे वह रोज़ा रखे और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो फिर वह कभी और रोज़े रखे, अल्लाह तुम्हारे लिए आराम चाहता है, तकलीफ नहीं चाहता, रमज़ान के महीने को रोज़ा रख कर पूरा करो और अल्लाह को इस लिए बड़ा समझो कि उस ने तुम्हारा मार्गदर्शन किया है और शायद इस प्रकार से तुम उसका शुक्र अदा कर सको। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शाबान महीने के अंतिम दिनों में रमज़ान महीने के बारे में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि हे लोगो! अपनी विभूतियों व , कृपा के साथ रमज़ान का महीना आ गया यह महीना ईश्वर के निकट सब से अच्छा महीना है।ऐसा महीना है, जिसमें तुम्हें ईश्वर का अतिथि बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें ईश्वरीय बंदों में गिना गया है। इस महीने में तुम्हरी सांसें, ईश्वर का नाम जपती हैं, तुम्हारी नींद इबादत होती है, तुम्हारे ज्ञान और दुआओं को स्वीकार किया जाता है। अपने पालनहार से चाहो कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और क़ुरान की तिलावत का अवसर प्रदान करे। रमज़ान की भूख प्यास से प्रलय के दिन की भूख प्यास को याद करो और गरीबों तथा निर्धनों की मदद करो , बड़ों का सम्मान करो, छोटों पर दया करो, रिश्तेदारों से मेल जोल रखो, ज़बान पर क़ाबू रखो और जिन चीज़ों को देखने से ईश्वर ने रोका है उन्हें न देखो जिन बातों को सुनने से उसने रोका है उन्हें न सुनो, अनाथों के साथ स्नेह से पेश आओ, ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगो और नमाज़ के समय दुआ के लिए हाथ उठाओ कि यह दुआ का सब से अच्छा समय है। जान लो कि ईश्वर ने अपने सम्मान की सौगंध खायी है कि नमाज़ पढ़ने वालों और सजदा करने वालों को अपने प्रकोप का पात्र न बनाए और उन्हें प्रलय के दिन, नर्क की आग से न डराए। ... हे लोगो! इस महीने में स्वर्ग के द्वार खोल दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए बंद न हों और नर्क के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए खोले न जाएं। इस महीने में शैतानों को बंदी बना लिया जाता है तो अपने ईश्वर से दुआ करो कि उन्हें अब कभी तुम पर अपने प्रभाव डालने का अवसर न दिया जाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इस अवसर पर मैंने खड़े होकर उनसे पूछा कि हे पैगम्बरे इस्लाम! इस महीने में सब से अच्छा कर्म क्या है? तो उन्होंने फरमाया कि हे अबुलहसन! इस महीने में सब से अच्छा काम, उन चीज़ों से दूरी है जिन्हें अल्लाह ने हराम कहा है।
रमज़ान का महीना, हिजरी क़मरी कैलैंडर का नवां और सब से श्रेष्ठ महीना है। इस महीने में ईश्वरीय आथित्य की छाया में अल्लाह के सारे बंदे, उसकी नेमतों से लाभान्वित होते हैं रमज़ान का महीना, सुनहरे अवसरों का समय है। पैगम्बरे इस्लाम के शब्दों में इस महीने में मनुष्य के साधारण कर्मों का भी बहुत अच्छा फल मिलता है और ईश्वर छोटी सी उपासना के बदले में भी बड़ा इनाम देता है। थोड़े से प्रायश्चित से बड़े बड़े पाप माफ कर देता है और उपासना व दासता द्वारा कल्याण व परिपूर्णता तक पहुंचने के रास्ते आसान बना देता है । इस प्रकार से धार्मिक दृष्टि से इस महीने में जिस प्रकार का अवसर मनुष्य को मिलता है वैसा साल के अन्य किसी महीने में नहीं मिलता इसी लिए इन ईश्वरीय विभूतियों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है और यह भी निश्चित है कि यदि कोई सच्चे मन से इस महीने में रोज़ा रखे, उपासना करे और सही अर्थों में इस आथित्य से लाभ उठाए तो उसे एेसा आध्यात्मिक लाभ मिलेगा जिसकी उसने कल्पना भी न की होगी। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को अपने बंदों के लिए मुक़ाबले का मैदान बनाया है जहां वे ईश्वर की दासता और उपसना में एक दूसरे को पीछे छोड़ने का प्रयास करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा है कि सही अर्थों में अभागा वह है जो रमज़ान का महीना गुज़ार दे और उसके पाप माफ न किये गये हों। इस प्रकार से हम देखते हैं कि रमज़ान, ईश्वर पर आस्था रखने वाले के लिए किस हद तक अहम है। ईश्वर ने इस महीने में लोगों को अपना मेहमान बनाया है और उन्हें अपने अतिथि गृह में जगह दी है इसी लिए बुद्धिजीवी कहते हैं कि इस ईश्वरीय अतिथि गृह में रहने के अपने नियम हैं जिन का पालन करके ही रोज़ा रखने वाला , आघ्यात्म की चोटी पर चढ़ सकता है। हमें इस महीने में पापों से बच कर ईश्वरीय आथित्य का सम्मान करना चाहिए और इस अवसर को ईश्वर से मन में डर पैदा करने का अवसर समझना चाहिए। ईश्वरीय भय या धर्म की भाषा में तक़वा, निश्चित रूप से धर्म में आस्था रखने वाले के लिए एक बहुत बड़ा चरण है कि जिस पर पहुंचने के बाद उपासना का वह आनंद मिलता है जिसकी कल्पना भी उसके बिना करना संभव नहीं होता। तक़वा अर्थात ईश्वर का भय , अर्थात हमेशा यह बात मन में रखना कि हमारे हर एक काम को एक एक गतिविधि को ई्श्वर देख रहा है। वह ऐसा शक्तिशाली है जो उसी क्षण जो चाहे कर सकता है। यदि सही अर्थों में मनुष्य इस पर विश्वास कर ले कि ईश्वर उसे हमेशा देखता है तो फिर निश्चित रूप से पाप और भ्रष्टाचार से कोसों दूर हो जाएगा, रमजा़न का एक लाभ यह भी है कि वह मनुष्य को मोह माया और सांसारिक झंझटों से छुटकारा दिलाता है और एक महीने के लिए उसे आत्मा के पोषण के आंनद से अवगत कराता है।
पैगम्बरे इस्लाम के कथनों के अनुसार, रमज़ान में ईश्वर की उपासना को चार हिस्सों में बांंटा जा सकता है, दुआ, क़ुरआने मजीद की तिलावत, अल्लाह की याद , और तौबा व मुस्तहब नमाज़ , वह उपासना है जिसका पुण्य, रमज़ान के महीने में कई गुना बढ़ जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों ने रमज़ान के लिए विशेष दुआएं बतायी हैं जिन्हें पढ़ने का आंनद ही अलग है। इन दुआओं में जहां ईश्वर से पापों की क्षमा मांगी गयी है वहीं, इन दुआओं को इस्लामी शिक्षाओं और दर्शन का भंडार भी कहा जाता है। पैगम्बरे इस्लाम के कथनों में है कि हर चीज़ की एक बहार होती है और कु़रान की बहार, रमज़ान का महीना है।
वास्तव में ईश्वर मनुष्य को किसी भी एेसे काम का आदेश नहीं देता जिसमें उसका हित न हो अर्थात ईश्वर के हर आदेश का उद्देश्य मनुष्य के हितों की रक्षा होता है। यदि ईश्वर लोगों को किसी काम से रोकता है तो इसका अर्थ यह है कि उस काम से मनुष्य को हानि होती है। इसी तथ्य के दृष्टिगत ईश्वर ने मनुष्य के लिए उन कामों को अनिवार्य किया है जिनकी सहायता से वह परिपूर्णता के चरण तक पहुंच सकता है और जिनके बिना परिपूर्णता के गतंव्य की ओर उसकी यात्रा अंसभव है। इस प्रकार के कामों को छोड़ने पर ईश्वर ने दंड की बात कही है। वास्तव में इस प्रकार से ईश्वर ने मनुष्य को एसे कामों को करने पर बाध्य किया है जिसका लाभ स्वंय मनुष्य को ही होने वाला है और उसे छोड़ने तथा शैतान के बहकावे में आने की दशा में हानि भी उसे ही होने वाली है। रोज़ा भी ईश्वर के इसी प्रकार के आदेशों में से एक है क्योंकि रोज़ा रखने का मनुष्य को आध्यात्मिक व शारीरिक व मानसिक हर प्रकार का लाभ पहुंचता है।
रमज़ान के महीने में मनुष्य अपना आध्यात्मिक , मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर करके, स्वंय को इस योग्य बनाता है कि वह ईश्वर से निकट हो सके। रमज़ान में एक विशेष दुआ में रोज़ा रखने वाला जब ईश्वर के सामने गिड़गिड़ा कर कहता है कि हे ईश्वर! मेरी मदद कर कि मैं संसारिक मोहमाया से मुक्त होकर तेरी तरफ आ जाऊं तो निश्चित रूप से इससे ईश्वर की दासता की वह चोटी नज़र आती है जिस पर पहुंचना हर मनुष्य के लिए बहुत कठिन काम है। इस प्रकार से दास, अपने पालनहार के सामने अपनी असमर्थता व अयोग्यता को स्वीकार करते हुए उससे मदद मांगता है और ईश्वर से निकट होने में अपनी रूचि भी दर्शाता है ताकि ईश्वर उसकी मदद करे और वह इस मायाजाल से निकल कर सुख के अस्ली रूप से परिचित हो सके।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने रोज़ेदार के मन में विश्वास उत्पन्न होने के सब से महत्वपूर्ण चिन्ह के रूप में ईश्वर से भय व मन व आत्मा में पवित्रता उत्पन्न होने के बारे में इस प्रकार से कहा हैः
दास उसी समय ईश्वर से भय रखने वाला होगा जब उस वस्तु को ईश्वर के मार्ग में त्याग दे जिसके लिए उसने अत्यधिक परिश्रम किया हो और जिसे बहुत परिश्रम से प्राप्त किया हो। ईश्वर से वास्तिविक रूप में भय रखने वाला वही है जो यदि किसी मामले में संदेह ग्रस्त होता है तो उसमें धर्म के पक्ष को प्राथमिकता देता है।
रमज़ान उल मुबारक की बहुत सारी विशेषताएं
रमज़ान का महीना अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िंदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।
जिस तरह कुछ जगहें होती हैं जहां इंसान के आने जाने के लिए कुछ आदाब होते हैं जिनका वह ख़याल रखता है जैसे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम के रौज़े, मस्जिदें, मस्जिदुल हराम, मस्जिदुन नबी और दूसरी जगहें, इसी तरह माहे रमज़ान के भी कुछ आदाब हैं जिनका ख़याल रखना बेहद ज़रूरी है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो रमज़ान की बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करना चाहते है।
माहे रमज़ान अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।
ध्यान रहे ग़फ़लत वह बीमारी है जो हमारे हर तरह के मानवी और रूहानी फ़ायदे को हम तक पहुंचने से रोक देती है या कम से कम पूरी तरह से फ़ायदा हासिल नहीं करने देती है। इसीलिए हमारे इमामों ने इस मुबारक महीने की तैयारी के सिलसिले में कुछ आदाब बयान किए हैं जिनको हम यहां पेश कर रहे हैं।
दुआ, तौबा, इस्तेग़फ़ार, क़ुरआन की तिलावत, अमानतों की वासपी, दिलों से नफ़रतों का दूर करना
अब्दुस-सलाम इब्ने सालेह हिरवी जो अबा सलत के नाम से मशहूर हैं उनका बयान है कि मैं माहे शाबान आख़िरी जुमे में इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, उन्होंने फ़रमाया: ऐ अबा सलत! माहे शाबान का महीना लगभग गुज़र चुका हैं
और आज आख़िरी जुमा है इसलिए अब तक जो कमियां रह गई हैं उन्हें दूर करो ताकि बाक़ी बचे हुए दिनों में इस महीने की बरकत से फ़ायदा हासिल कर सको, बहुत ज़ियादा दुआ पढ़ो, इस्तेग़फ़ार करो, क़ुरआन पढ़ो, गुनाहों से तौबा करो
ताकि जब अल्लाह का मुबारक महीना आए तो तुम उसकी बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार रहो और किसी भी तरह की कोई अमानत भी तुम्हारे ज़िम्मे न हो और ख़बरदार! किसी मोमिन के लिए तुम्हारे दिल में नफ़रत बाक़ी न रह जाए, ख़ुद को हर किए गए गुनाह से दूर कर लो, तक़वा अपनाओ और अकेले में हो या सबके सामने केवल अल्लाह पर भरोसा करो क्योंकि उसका फ़रमान है कि जिसने अल्लाह पर भरोसा किया अल्लाह उसके लिए काफ़ी है।
इस मख़सूस दुआ को पढ़ना:
जिसमें बंदा अल्लाह से इस तरह दुआ करता है कि ख़ुदाया! अगर इस मुबारक महीने शाबान में अगर अब तक मुझे माफ़ नहीं किया है वह आने वाले दिनों में मेरी मग़फ़ेरत फ़रमा, क्योंकि अल्लाह माहे रमज़ान के सम्मान में अपने बंदों को जहन्नम से आज़ाद कर देता है।
रोज़ा रखना:
एक और अहम चीज़ जो इंसानों को माहे रमज़ान की बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करने के क़ाबिल बनाता है वह रोज़ा रखना है, ख़ास तौर से माहे शाबान के आख़िरी दस दिनों में रोज़ा रखने पर बहुत ज़ोर दिया गया है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सवाल किया गया कि कौन से रोज़े का सबसे ज़ियादा सवाब है? आपने फ़रमाया: जो रोज़े शाबान के महीने में माहे रमज़ान के सम्मान में रखे जाते हैं वह सबसे ज़ियादा अहमियत रखते हैं।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं: जो शख़्स माहे शाबान के आख़िरी तीन दिनों में रोज़ा रखते हुए माहे रमज़ान से मिला दे तो अल्लाह उसे दो महीनों के रोज़े का सवाब देता है। (जिन लोगों पर पिछले रमज़ान के क़ज़ा रोज़े हैं वह अगर क़ज़ा की नीयत से रखेंगे फिर भी उन्हें यह सवाब मिलेगा)
हराम निवाले से परहेज़:
माहे रमज़ान की बरकतों और नेमतों से फ़ायदा हासिल करने के लिए ख़ुद को तैयार करने के लिए एक और अहम बात यह है कि इंसान ख़ुद को हराम निवाले से बचाकर रखे, क्योंकि हराम निवाला इंसान की सारी इबादत और आमाल को बर्बाद कर देता है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया: क़यामत के दिन एक गिरोह आएगा जिसकी नेकियां पहाड़ की तरह होंगी लेकिन अल्लाह किसी एक नेकी को भी क़ुबूल नहीं करेगा और फिर अल्लाह हुक्म देगा कि इसके आमाल नामे में नेकी न होने की वजह से इसे जहन्नम में डाल दो! जनाबे सलमान फ़ारसी ने पूछा या रसूलल्लाह (स) यह कौन लोग होंगे? आपने फ़रमाया कि यह वह लोग होंगे जिन्होंने रोज़े रखे, नमाज़ें पढ़ीं और रातों को जाग कर अल्लाह की इबादत भी की लेकिन जब कभी हराम निवाला दिखाई देता तो ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं। (यानी खाने पीने में हलाल हराम का ख़याल नहीं करते हैं)
आयतुल्लाह मोहसिन क़राती के अनुसार हवाई जहाज़ हर पेट्रोल से नहीं चल सकता बल्कि उसके लिए विशेष तरह का पेट्रोल होता है उसी तरह हमारे नेक आमाल भी हैं जिन्हें हर हराम निवाला अल्लाह की बारगाह तक पहुंचने से रोकता है इसीलिए अगर कोई अपनी इबादतों और नेक आमाल का सवाब चाहता है तो उसे पाक और हलाल निवाले की तरफ़ ही हाथ बढ़ाना चाहिए।
ख़ुम्स और ज़कात का अदा करना अपनी दौलत को पाक करने के साथ साथ हराम निवाले से भी बचाता है। आज समाज की बहुत बड़ी मुश्किल माली हुक़ूक़ का अदा न करना है, यानी ख़ुम्स और ज़कात अदा करने से फ़रार करना जबकि ख़ुम्स और ज़कात का अदा करना न केवल हमारे माल को पाक करता है बल्कि हमें हराम निवाले से भी बचाता है।
लोगों को माफ़ करना ताकि अल्लाह हम सबको माफ़ करे।
तौबा और इस्तेग़फ़ार के महीने के आने से पहले बेहतर है कि दूसरे सभी लोगों की ग़लतियों को माफ़ कर के ख़ुदा की मग़फ़ेरत के लिए ख़ुद को तैयार करें क्योंकि अगर हम किसी की ग़लतियों को माफ़ नहीं कर सकते तो अल्लाह से कैसे अपने लिए मग़फ़ेरत की उम्मीद कर सकते हैं। इसीलिए माहे रमज़ान के आदाब में से है कि उसके आने से पहले हम सभी की ग़लतियों को माफ़ कर के अल्लाह की रहमत और मग़फ़ेरत के मुंतज़िर रहें।
फ़िलिस्तीन इस्लामी जगत का पहला मुद्दा : ईरान
विदेशमंत्री ने रमज़ान का पवित्र महीना आरंभ होने पर इस्लामी देशों के नेताओं और लोगों को बधाई दिया और अपने बधाई संदेश में फिलिस्तीन के विषय को इस्लामी जगत का सर्वोपरि मुद्दा बताया है।
समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान के बधाई संदेश में आया है कि गज्जा पट्टी के परिवर्तनों ने दर्शा दिया कि फिलिस्तीन का विषय मुसलमानों की समान आकांक्षा और इस्लामी जगत का सर्वप्रथम मुद्दा है।
इसी प्रकार विदेशमंत्री के बधाई संदेश में आया है कि रमज़ान का पवित्र महीना इस्लामी देशों के लिए बेहतरीन अवसर हो सकता है कि एकता व समरसता के परिप्रेक्ष्य में गज्जा में नस्ली सफाये और जायोनी सरकार के अपराधों को रोकवाने के संबंध में प्रभावी कदम उठाया जा सकता है।
विदेशमंत्री ने अपने बधाई संदेश में प्रतिरोध और फिलिस्तीनी जनता को रणक्षेत्र का अस्ली विजेता बताया है।
ईरानी महिलाओं ने फिर अपनी ताक़त का डंका बजाया
एशियाई टेबल टेनिस संघ एटीटीयू ने क़ज़ाक़िस्तान में एशियाई चैम्पियनशिप के वयस्क टेबल टेनिस टूर्नामेंट वर्ग में 2 ईरानी महिला रेफरी की उपस्थिति की सूचना दी है।
एशियाई टेबल टेनिस संघ एटीटीयू की घोषणा के अनुसार 2 ईरानी महिला रेफ़री सीमीन रेज़ाई और "नसीबा दिलेर हर्वी को क्रमशः क़ज़ाक़िस्तान में एशियाई चैम्पियनशिप टेबल टेनिस टूर्नामेंट के मुख्य रेफरी और सहायक निदेशक के रूप में चुना गया है।
"सीमीन रेज़ाई" के पास ओलंपिक और विश्व चैम्पियनशिप जैसे मुक़ाबलों में रेफ़री बनने का अनुभव है।
"नसीबा दिलेर हर्वी" ने विश्व चैम्पियनशिप, एशियाई खेलों और एशियाई चैम्पियनशिप जैसे महत्वपूर्ण मुक़ाबलों में भी रेफ़री की भूमिका निभाई है।
पुरुष और महिला दोनों वर्गों में एशियाई सीनियर चैंपियनशिप की टेबल टेनिस प्रतियोगिताएं 05 से 13 अक्टूबर 2024 तक क़ज़ाकिस्तान की मेज़बानी में राजधानी अस्ताना में आयोजित होंगी।
इसके अलावा, एशिया संघ ने दिलेर हर्वी को इराक़ के सुलेमानिया में आयोजित होने वाले पश्चिम एशियाई चयन टूर्नामेंट की निदेशक और पश्चिम एशियाई युवा चयन टूर्नामेंट की प्रबंधक के रूप में चुना है जिसकी मेज़बानी इराक़ करेगा।
केरल में CAA के खिलाफ ट्रेन रोककर विरोध प्रदर्शन, राज्य में लागू नहीं होगा सीएएः मुख्यमंत्री
सोमवार की शाम को CAA नोटिफिकेशन जारी होने के बाद रात से ही केरल में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। केरल में अलग- अलग प्रोटेस्ट किया गया।
राज्य के मुख्यमंत्री ने ऐलान करते हुए कहा कि केरल में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2024 यानी CAA लागू नहीं किया जाएगा।
भारत सरकार की तरफ से सोमवार की शाम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम CAA का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। CAA लागू होने जाने के बाद केरला में सोमवार रात से ही विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। कांग्रेस के यूथ विंग NSUI ने कोच्चि और त्रिशूर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रोककर CAA के खिलाफ प्रदर्शन किया। पुलिस ने इन सभी प्रदर्शनकारियों को ट्रेक से हटाया। सत्तारूढ़ CPM के यूथ विंग DYFI ने कोझिकोड में विरोध मार्च किया और फ्रेटानिटी पार्टी के समर्थकों ने भी कोझिकोड में अचानक प्रोटेस्ट कर दिया। इस पर पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया।
इसके अलावा कासरगोड में IUML के यूथ विंग यूथ लीग के कार्यकर्ताओं ने CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इसी बीच केरला के CM पिनराई विजयन ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2024 यानी CAA लागू नहीं किया जाएगा। केरल के सीएम ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि राज्य सांप्रदायिक विभाजन अधिनियम (communal division act) का एक साथ विरोध करेगा।
प्राप्त समाचारों के अनुसार CAA को नॉर्थ ईस्टर्न राज्यों में के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाएगा। सीएए कानून को उन सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू नहीं किया जाएगा जहां भारत के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों को यात्रा करने के लिए ‘इनर लाइन परमिट’ (आईएलपी) की जरूरत होती है।
ज्ञात रहे कि आईएलपी अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में लागू है। अधिकारियों ने नियमों के हवाले से बताया कि जिन जनजातीय क्षेत्रों में संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदें बनाई गई हैं, उन्हें भी सीएए के दायरे से बाहर रखा गया है। असम, मेघालय और त्रिपुरा में ऐसी स्वायत्त परिषदें हैं।
फ़िलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों की हत्या कर देनी चाहियेः जायोनी रब्बी
एक ज़ायोनी रब्बी ने खुल्लम- खुल्ला फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों की हत्या कर देने का आह्वान किया है।
इससे पहले एक अतिवादी जायोनी मंत्री ने कहा था कि फिलिस्तीनियों पर परमाणु बम मार देना चाहिये।
अतिवादी जायोनी रब्बी ने कहा कि आज जंग में विनाशकारी वही बच्चे हैं जिन्हें हमने पिछली जंगों में जीवित छोड़ दिया और महिलायें भी वास्तव में वही हैं जो इन बच्चों को आतंकवादी बनाती हैं।
यह जुमले जायोनी रब्बी इल्याहू माली के हैं। इसी प्रकार इस अतिवादी जायोनी रब्बी ने कहा है कि यह पवित्र युद्ध है और शरीयत का कानून बहुत स्पष्ट कि अगर इनकी हत्या नहीं करोगे तो वे तुम्हारी हत्या करेंगे। इसी प्रकार जायोनी रब्बी इल्याहू माली ने कहा कि इसका मतलब यह है कि हम रहेंगे या वे। इसी प्रकार उसने कहा कि जो तुम्हारी हत्या करने के लिए आ रहे हैं पहले तुम उनकी हत्या कर दो। इसमें केवल वे लोग शामिल नहीं हैं जो 16.18.20 या 30 साल के हों और तुम्हारे खिलाफ हथियार उठा रहे हैं बल्कि इसमें भावी पीढ़ी के बच्चे भी शामिल हैं और इसी प्रकार इसमें वे फिलिस्तीनी भी शामिल हैं जो भावी पीढ़ी को जन्म देंगे।
वर्ष 1948 में फिलिस्तीनियों की मातृभूमि में जायोनी सरकार के अवैध अस्तित्व की घोषणा की गयी और तब से लेकर आजतक फिलिस्तीनियों के खिलाफ इस्राईल के अनवरत जघन्य अपराधों का सिलसिला यथावत जारी है। इस्राईल अब तक चालिस लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से निकाल चुका है जो दूसरे देशों में बहुत ही दयनीय दशा में शरणार्थी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
सवाल यह पैदा होता है कि यहूदियों और जायोनियों ने कैसे और किस बहाने से फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर कब्ज़ा किया और वहां पर इस्राईल के अवैध अस्तित्व की घोषणा की? इसका जवाब स्पष्ट है। ब्रिटेन ने इसकी भूमि प्रशस्त की और बिलफौर घोषणापत्र को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा सकता है। इस्राईल के अवैध अस्तित्व की घोषणा के बाद पूरी दुनिया के यहूदियों व जायोनियों को अवैध अधिकृत फिलिस्तीन लाकर फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर लाकर बसाया गया और अपनी मातृभूमि को इस्राईल के अवैध कब्ज़े से आज़ाद कराने के लिए फिलिस्तीनी हमेशा संघर्ष करते रहे हैं परंतु बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि अगर अमेरिका और पश्चिम की वर्चस्ववादी नीतियों के विरोधी किसी देश में किसी एक इंसान की मौत हो जाती है तो तुरंत वे उसे मानवाधिकारों के हनन की संज्ञा देते हैं परंतु इस्राईल के पाश्विक और बर्बर हमलों में 31 हज़ार से अधिक फिलिस्तीनी शहीद हो गये अब उन्हें कहीं मानवाधिकारों का हनन नज़र नहीं आ रहा है।
रोचक बात यह है कि इस्राईल के समर्थक और मानवाधिकारों का राग अलापने वाले इस्राईल के कृत्यों के बचाव में उसे आत्म रक्षा का नाम देते हैं। यही नहीं इस्राईल के समर्थक फिलिस्तीनियों के कानूनी, नैतिक और स्वाभाविक संघर्ष को आतंकवाद का नाम देते हैं।
बिनगोरियन हवाई अड्डे और अमेरिकी जहाज़ पर हमला
इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने मंगलवार को एक बयान जारी करके एलान किया है कि तेलअवीव के बिनगोरियन हवाई अड्डे पर ड्रोन से हमला किया।
समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने एलान किया है कि अतिग्रहण के मुकाबले में कार्यवाही के परिप्रेक्ष्य में आज सुबह इस्राईल के अंदर बिनगोरियन हवाई अड्डे को ड्रोन से लक्ष्य बनाया गया। इसी प्रकार इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने गुरूवार की रात को भी एलान किया था कि अलजलील क्षेत्र में स्थित इस्राईल की एक सैनिक छावनी को लक्ष्य बनाया था।
इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने अमेरिका द्वारा इस्राईल के व्यापक समर्थन की भर्त्सना करते हुए फिलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन में इराक और सीरिया में स्थित अमेरिकी सैनिक छावनियों और इसी प्रकार खुद अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में जायोनी सरकार के ठिकानों पर बारमबार हमला किया है।
इसी बीच यमन की सशस्त्र सेना के प्रवक्ता यहिया सरीअ ने मंगलवार की सुबह कहा कि इस देश की सेना ने लाल सागर में एक अमेरिकी जहाज़ को लक्ष्य बनाया है। उन्होंने कहा कि इस अमेरिकी जहाज़ को कई मिसाइलों से लक्ष्य बनाया गया। यमनी सेना के प्रवक्ता ने बल देकर कहा कि जब तक गज्जा पट्टी पर हमले बंद नहीं होते और उसका परिवेष्टन खत्म नहीं किया जाता तब तक अवैध अधिकृत फिलिस्तीन की ओर जाने वाले जहाजों पर हमला होता रहेगा।
पिछले सप्ताह भी यमन की सशस्त्र सेना ने लाल सागर में अमेरिका के दो युद्धपोतों को लक्ष्य बनाया था।
मुसलमानों के मध्य शांति प्रचलित करना इस्लामी देशों के नेताओं का दायित्व हैः रईसी
ईरान के राष्ट्रपति ने रमज़ान का पवित्र महीना आरंभ हो जाने पर इस्लामी देशों के नेताओं और लोगों को मुबारकबाद देते हुए कहा है कि मुसलमानों के मध्य शांति और बंधुत्व को प्रचलित करना इस्लामी देशों के नेताओं का दायित्व है।
राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद इब्राहीम रईसी ने कहा कि फिलिस्तीनी मुसलमानों का संघर्ष जारी रहने और विश्व के मुसलमानों का निरंतर समर्थन जारी रहने से फिलिस्तीन, बैतुल मुकद्दस और मस्जिदुल अक्सा दोबारा इस्लामी जगत में लौट आयेंगे।
राष्ट्रपति ने बल देकर कहा कि इस्लामी राष्ट्रों के मध्य भाईचारे और बंधुत्व के संबंध के मज़बूत होने और इसी प्रकार इस्लामी देशों के मध्य संबंधों के विस्तृत व प्रगाढ़ होने से इस्लामी जगत मज़बूत होगा।
इसी प्रकार राष्ट्रपति ने कहा कि अत्याचार विशेषकर जायोनी सरकार के वर्चस्व व अपराधों के मुकाबले में इस्लामी देशों के मध्य समन्वय समस्त क्षेत्रों में मुसलमानों विशेषकर फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों की इज्जत और सर बुलंदी का कारण बनेगा।
ज्ञात रहे है कि आज मंगलवार को ईरान में रमज़ान के पवित्र महीने की पहली तारीख है जबकि सऊदी अरब, क़तर, सीरिया, संयुक्त अरब इमारात, अफगानिस्तान, बोस्निया व हिर्ज़ोगोविना, इराक और लेबनान में कल सोमवार को रमज़ान महीने की पहली तारीख थी।
इसी प्रकार इंडोनेशिया, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनई, सिंगापुर, इराक और लेबनान के शीयों ने आज मंगलवार को रमज़ान की पहली तारीख होने का एलान किया है।
अपनी देखभाल- 2
अपनी देख-भाल आप के बारे में पहला क़दम स्वतः ज्ञान या अपने बारे में ज्ञान बढ़ाना है।
हमने अपनी देख-भाल आप की परिभाषा का उल्लेख किया था और बताया था कि यह वह काम है जिसमें हर व्यक्ति अपने ज्ञान, दक्षता व क्षमता को एक स्रोत के रूप में इस्तेमाल करता है ताकि अपने तौर पर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सके। इस आधार पर अपनी देख-भाल आप ऐसा व्यवहार है जो लोगों की अपने इरादे से स्वेच्छा के आधार पर सामने आता है और इसके अंतर्गत व्यक्ति आवश्यक ज्ञान व दक्षता प्राप्त करके अपने स्वास्थ्य की देख-भाल करने में सक्षम हो जाता है।
हममें से सभी के अपने जीवन में बहुत से दायित्व होते हैं जिनके कारण हम अपनी देख-भाल को भूल जाते हैं जबकि उचित व सही अर्थ में अपनी देख-भाल आप, अच्छे जीवन का एहसास दिलाती है और हम स्वयं को जो अहमियत देते हैं उससे दूसरों को भी अवगत कराती है। इस आधार पर अपनी देख-भाल आप का एक अहम तत्व, अपना ज्ञान बढ़ाना है। इसका अर्थ वह दक्षता हासिल करना है जो इस बात में हमारी मदद करती है कि हम अपने आपको, अपनी ज़रूरतों को, अपनी विशेषताओं को, अपनी कमज़ोरियों को, अपने मज़बूत बिंदुओं को, अपनी भावनाओं को और अपनी प्रवृत्ति को संपूर्ण ढंग से पहचान लें।
अधिकतर लोग केवल आयु, लिंग, काम की स्थिति इत्यादि जैसी अपनी मूल व साधारण विशेषताओं के बारे में बात करते हैं और अपने व्यक्तित्व और व्यवहार की विशेषताओं के बारे में पर्याप्त व संपूर्ण जानकारी नहीं रखते। उदाहरण स्वरूप उन्हें पता नहीं होता कि किन कामों को वे बेहतर ढंग से अंजाम दे सकते हैं? उनमें कौन सी नकारात्मक और असैद्धांतिक नैतिक विशेषताएं हैं? अपनै जीवन के बारे में उनकी क्या महत्वकांक्षाएं और लक्ष्य हैं? उनके जीवन की रुचियां और प्राथमिकताएं क्या हैं? और कौन सी चीज़ें उन्हें ख़ुश या दुखी करती हैं? ये सारी बातें अपने बारे में ज्ञान की कमी के कारण होती हैं।
जीवन की विशेषम्ताओं की प्राप्ति से पहले अपने बारे में जानकारी ज़रूरी है क्योंकि इस प्रकार की जानकारी रखने वाले लोग अपने बारे में अधिक सटीक पहचान रखते हैं जिससे उन्हें अपनी सुरक्षा, देख-भाल और प्रगति में काफ़ी मदद मिलती है। अलबत्ता यह नहीं सोचना चाहिए कि अपने बारे में सटीक जानकारी से सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा क्योंकि यह तो केवल पहला क़दम है।
अपने आपको निष्पक्ष रूप से देखना कोई सरल काम नहीं है। इसका अर्थ यह होता है कि मनुष्य इस पर ग़ौर करे कि उसके विचार क्या हैं? आस्थाएं क्या हैं? कमज़ोरियां क्या हैं? मज़बूत बिंदु क्या हैं? कौन सी चीज़ें उसे अप्रसन्न करती हैं? किन बातों से वह ख़ुश होता है? उसके जीवन में कोई लक्ष्य है भी या नहीं? और अगर है तो उस लक्ष्य का आधार क्या है?
वास्तव में अधिकांश लोग अपने जीवन में ज़्यादातर बाहरी मामलों का ज्ञान हासिल करने, उनकी वास्तविकता जानने और तकनीक प्राप्त करने की कोशिश में रहते हैं और अपने बारे में ज्ञान बढ़ाने की कोशिश नहीं करते। यह बात भी रोचक है कि कुछ लोग सोचते हैं कि आयु का एक भाग गुज़र जाने के बाद वे अपने आपको अच्छी तरह पहचान गए हैं जबकि बहुत कम ही लोग होते हैं जो अपने विचारों व आस्थाओं और अपने व्यवहार पर उनके प्रभाव के बारे में ज्ञान रखते हैं। ये लोग शायद ही कभी अपने दुखों, मान्यताओं, रुचियों और व्यवहार की समीक्षा करते हों। ये लोग अधिकतर आज वही काम करते हैं जो इन्होंने कल किए थे। चूंकि इन्हें अपने आपको पहचानने में रुचि नहीं है इस लिए ये कल भी और उसके बाद भी वही पिछले काम करते रहेंगे।
अलबत्ता इस बिंदु पर भी ध्यान रखना चाहिए कि स्वतः ज्ञान या अपने बारे में ज्ञान उसी समय हासिल होता है जब अपने बारे में व्यक्ति की सोच को सवालों के कटघरे में खड़ा किया जाए और वह व्यक्ति पूरी सच्चाई से उनका जवाब दे। “मैं कौन हूं?” इस प्रश्न का उत्तर लोग जितना सटीक और वास्तविक देंगे या दूसरे शब्दों में उनका उत्तर अपने बारे में जितना अधिक सच्चाई और ज्ञान पर आधारित होगा, उतना ही वे अपने बारे में अधिक ज्ञान के स्वामी होंगे।
अब सवाल यह उठता है कि स्वतः ज्ञान का अपनी देख-भाल आप से क्या संबंध है? और इसका इस विषय में कितना महत्व है? अपनी देख-भाल आप के लिए जो कुछ हम हैं, जो कुछ हम बनना चाहते हैं और इस उद्देश्य के लिए हमारे जो तर्क हैं उनके बारे में हमारा स्पष्ट दृष्टिकोण होना चाहिए और फिर हमें सक्षम होना चाहिए ताकि हम पूरे ज्ञान व सक्रियता के साथ, जो कुछ हम चाहते हैं, उसे वास्तविकता में बदल दें। आप सोचिए कि आप एक गलियारे में चल रहे हैं और एक कमरे की ओर जाते हैं, दरवाज़ा खोलते हैं और अचानक ही कमरे का बल्ब बुझ जाता है। आपके अस्तित्व में घबराहट भर जाती है, आप धीरे-धीरे और छोटे-छोटे क़दम उठाते हैं, सहसा ही आपका शरीर किसी चीज़ से टकराता है और एक आवाज़ सुनाई देती है, आप और डर जाते हैं। उसी क्षण बल्ब जल उठता है और आप देखते हैं कि एक साधारण सा कमरा है और आप एक मेज़ से टकराए थे जिसके कारण एक पेन नीचे गिर गया था। वस्तुतः जब बल्ब जलता है तो आप निश्चितं व संतुष्ट हो जाते हैं और आपकी घबराहट दूर हो जाती है। ठीक इसी तरह अगर आप, अपने आपको सही ढंग से नहीं जानते और पहचानते हैं तो मानो आप एक अंधेरे कमरे में घुस गए हैं।
अब एक सवाल और उठता है और वह यह कि स्वतः ज्ञान में दक्षता किस तरह हासिल की जा सकती है या उसे किस तरह बढ़ाया जा सकता है? इस सवाल का पहला जवाब ज्ञान है यानी जो व्यक्ति अपने ज्ञान में वृद्धि करता है वह बेहतर ढंग से विभिन्न अवसरों व स्थानों पर अपने व्यवहार के कारण की समीक्षा कर सकता है। यह ज्ञान, उसे उन चीज़ों को बदलने का अवसर देता है जो उसे पसंद नहीं हैं और वह अपने जीवन को अपनी इच्छाओं और परिस्थितियों के अनुकूल ढाल कर उससे आनंदित हो सकता है। अपने आपके बारे में ज्ञान रखे बिना, अपने आपको स्वीकार करना और बदलना असंभव होगा। हम क्या हैं? और क्या बनना चाहते हैं और इसी तरह इन बातों के लिए हमारा तर्क क्या है? इसके बारे में अगर हमारे विचार और हमारा दृष्टिकोण पूरी तरह से सटीक और स्पष्ट होगा तो इससे हमें अपनी इच्छाओं को पूरा करने में बहुत मदद मिलेगी और इसी तरह इससे हम अपनी बेहतर देख-भाल कर सकेंगे।
अनमोल बातें - 2
ईश्वर की उपासना का अर्थ उसका आज्ञापालन और उसकी प्रसन्नता की दिशा में क़दम उठाना है।
ईश्वर की उपासना मुक्ति की सीढ़ी, उससे प्रेम का तरीक़ा और सौभाग्य की प्राप्ति का सबसे ठोस दस्तावेज़ है। ईश्वर की उपासना उससे संपर्क बनाने का साधन, उसके आज्ञापालन का एलान और उसके सामने नत्मस्तक होना है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि ईश्वर कहता हैः हे मेरे प्रिय बंदो! इस तुच्छ भौतिक दुनिया के जीवन में मेरी उपासना की अहमियत को समझो। इस नेमत की क़द्र करो।
नमाज़ ईश्वर की बहुत बड़ी उपासना है। रोज़ा, ज़कात और ख़ुम्स नामक विशेष कर और हज ईश्वर की अनुकंपा है। इन उपासनाओं का हमारे लिए अनिवार्य होना नेमत की तरह है। ईश्वर कहता है कि दुनिया में मेरी उपासना को अहम समझो। उपासना को अपने लिए बोझ न समझो, बल्कि ईश्वर की ओर से मिलने वाली नेमत समझो।
जहां तक मुमकिन हो धर्मपरायण बंधु के मुंह से निकली बात को सही मानो। अगर हम सिर्फ़ इसी उसूल को अपने जीवन में चरितार्थ कर लें तो बहुत सी दुश्मनियां और अफ़वाहें कम हो जाएंगी।
जिस समय कोई धर्मपरायण भाई कोई बात कहे तो उसमें दो संभावनाएं मौजूद होती हैं एक अच्छी और दूसरी बुरी। जब तक मुमकिन हो उसके नकारात्मक आयाम को अहमियत न दीजिए बल्कि अच्छे आयाम को अहमियत दीजिए। यह मूल नियम और नैतिक सिद्धांतों में है जिससे सामाजिक संबंध मज़बूत होते हैं। क्योंकि समाज की अखंडता बहुत अहम है। अगर समाज में लोगों के बीच संबंध मज़बूत हों तो उनके अपने लक्ष्य तक पहुंचने की संभावना अधिक है न कि फूट की स्थिति में।
जब आपका धर्मपरायण भाई कोई बात कहे तो उस वक़्त तक उसकी बात का बुरा अर्थ न निकालिए जब तक उसकी बात में अच्छाई का पहलू निकल सकता हो। अगर अच्छा अर्थ निकल सकता है कि उससे अच्छा ही अर्थ निकालिए।